मनुष्य मात्र एक समाजिक प्राणी भर है,या मनुष्य कि धार्मिक अभिव्यक्ति उसके अस्तित्व के मूल
में है? सवाल बड़ा गंभीर है और विश्व के हर कोने में, विभिन्न सभ्यताओं ने इसकी अनेकानेक व्याख्या
भी की है। परन्तु कुछ सवाल अपना होना बनाये रखते है। सवालों की अपनी विशिष्टता है। आप कितने
आदर्श जीवन जी रहें हैं, इसकी मुल में आपके सवाल हैं। जितने बड़े सवाल, उतना विशिष्ट जीवन्।
अगर आपके सवाल छोटे हैं, तो जीवन भी छोटे उपलब्धियों की सूचि भर होगी। जिन लोगों को बड़े सवालों
को अपनाया, उन्होनें बड़े मुकाम पाये।
अब शायद आप यह सोचें कि मैं सवालों जैसे किसी बात मे नहीं उलझना चाहता, या मैं ऐसी अवधारणा को

नही मानता। परन्तु कुछ न मानना भी एक प्रकार का मानना हैं। यहीं गांठ हैं, यहीं उलझन हैं जो आपको
सुलझानी हैं। देखो उस सवाल को……जिसने अपना होना कैसे बनाये रखा। एक ऐसा सवाल जो बार बार
आपको एक अद्रिश्य सता को मानने को विवश करता है। एक ऐसा सवाल जो बड़े बड़े विद्वानों ने,
मनुस्य की सोच और बुद्धि को सीमित करने का रूपक बनाया और आज भी बनाया जाता है।
पहले अंडा आया या पहले मुर्गी?
पहले पेड़ या पहले बीज़? जैसे हज़ारों सवाल आप बना सकतें हैं!
परन्तु इस सवाल को समझना मात्र हमारा ध्येय नही। वस्तुत: इसके मनोविज्ञान को समझना होगा।
इसका उतर कुछ नहीं मानने जैसा है। वस्तुत: यह सवाल है हीं नही या कहें कि सवाल गलत है।
जो मुर्गी है, वही काल चक्र को पिछे ले जायें तो अंडा थी। और जो अंडा है वहीं कल मुर्गी में था।
इसलिए मुर्गी हीं अंडा थी और जो अंडा था वह आज मुर्गी है। यह उस मुर्गी और अंडे का अन्तर नहीं है,
अन्तर आपका है, आपकी उपस्थिति का भेद है। समय को स्थूल कर दें तो अंडा और मुर्गी अलग नहीं हैं।
उतर है कि आप कब पहुंचे? जब मुर्गी अंडा थी या जब अंडा मुर्गी था। सवाल द्र्ष्टा की उपस्थिति का है।
उसके उपस्थिति से समय का आयाम जुड़ा हुआ है। वह द्र्ष्टा है जो मुर्गी को अंडा देखता है या अंडे को
मुर्गी!
अब देखिये, यह सवाल आपके लिये सवाल नही रहेगा,अगर आप यह मान लें कि मैं तब भी था
जब अंडा में मुर्गी थी और तब भी था जब मुर्गी से अंडा आया। चीजें वहीं हैं। स्वरूप बदल गया।
आप इस द्रिष्टिकोण, जो न होने का द्रिष्टिकोण है,वह जीवन में उतार लें। क्यों कि आपका होना, किसी
खास समय में, आपको कर्ता बनाता है। और कर्ता बनना हीं सवाल पैदा करता है। अगर आप स्वय को
कर्ता ना मानें आपने स्वयं को जगत मे हमेशा से विद्दमान और अविनाशी मान लिया, तो सवाल जो
आपको सीमित करने वालें हैं, स्वय खत्म हो जायेंगें। और सवाल शुन्य व्यक्ति को सिर्फ़ एक सवाल है,
और वह है शुन्य।
(मेरा यह लेख, अंडे- मुर्गी के फ़डे को समझाने का नही। वस्तुत: अध्यात्मिक विषयों पर कभी कभी
लिखना होता है, और यह पंक्तिया एक ऐसे हीं लेख से यह उद्धृत है।)
द्रष्टि स्रष्टिवाद की मूल भावना काल की कल्पना कॆ सापॆक्श ही हे नई नही आपनॆ सरल् करकॆ सुलभ् किया साधुव्वाद्
nice post kanishka ji
पहले मुर्गी या फिर पहले अंडा ..उलझे रहे इसी में …बाद में पता चला …मामला अध्यात्म का था ..!
बहुत हद तक अपनी बातों को सफलतापूर्वक कहने में आपने सफलता पायी।