कश्मीर की राह पर कैराना और कांधला

kairanaसुरेश हिन्दुस्थानी

उत्तरप्रदेश के कैराना और कांधला में वैसे ही हालात पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है, जैसा किसी समय कश्मीर में किया गया। अतिवादी लोगों के समूह ने हिन्दुओं के साथ अमानुषिक व्यवहार करने के कारण आज हिन्दू विस्थापन की ओर कदम बढ़ा चुका है। ऐसे व्यवहार के कारण आज कश्मीर घाटी पूरी तरह से हिन्दू विहीन हो चुकी है और अब कैराना भी हिन्दू विहीन होने की ओर जाता हुआ दिखाई दे रहा है। ऐसे प्रकरणों पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। सभी राजनीतिक दलों को संयम के भाव का प्रदर्शन करते हुए ऐसा प्रयास करना चाहिए जिससे इस प्रकार के देश विरोधी कृत्य न हो सकें। वैसे किसी भी प्रदेश की कानून व्यवस्था राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है, लेकिन हमारे देश में केवल राजनीतिक चालबाजी के चलते राज्य के किसी भी घटनाक्रम के लिए केन्द्र को भी दायरे में ले लिया जाता है। ऐसे हालातों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वर्तमान की राजनीति से राष्ट्रनीति का समापन होता जा रहा है। अगर राजनीति में राष्ट्रनीति से अलग करने का यही खेल चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं, जब हमारा देश राष्ट्रनीति को पूरी तरह से भूल जाएगा।

हमारे देश में पुरातन काल से अनेकता में एकता के गीत गाए जाते रहे हैं। समस्त विश्व के लिए आदर्श उदाहरण बनने वाली हमारी एकता गौरव का अनुभव कराती है। हम जानते हैं कि हमारे राष्ट्रीय गीतों के माध्यम से हमारे देश के हिन्दू समाज ने अपने जीवन का संचालन किया है, और आज भी कर रहे हैं। इसका प्रमाण यह है कि देश का हिन्दू समाज सभी धर्मों के आस्था केन्द्रों पर असीम श्रद्धा के साथ अपनी भक्ति का प्रदर्शन करता है। उसकी दृष्टि में सारे धर्म और सम्प्रदाय एक ही विचार का प्राकट्य करते हैं। लेकिन देश में राजनीतिक दलों ने जिस प्रकार से तुष्टीकरण का विष बोया है, उससे हिन्दू धर्म के अनुयायियों के अलावा सारे लोग केवल अपने धर्म को ही प्रधानता देते हुए दिखाई देते हैं।

उत्तरप्रदेश के कैराना और कांधला में जो कुछ भी हुआ, उसकी जितनी निन्दा की जाए वह कम ही होगी। कैराना और कांधला में रह रहे लगभग 400 हिन्दू परिवारों को पलायन करना पड़ा। अब सवाल इस बात का आता है कि क्या उत्तरप्रदेश में एक और कश्मीर बनाने की बुनियाद रखी जा रही है। हम जानते हैं कि आज केसर की क्यारी के नाम से जानी जाने वाली कश्मीर घाटी हिन्दू विहीन हो चुकी है। देश भर में रह रहे विस्थापित कश्मीरी हिन्दू आज भी अपनी वापसी की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यहां सवाल तो यह भी आता है कि कश्मीर में ऐसे हालात किसने पैदा किए। निश्चित रुप से इसका जवाब यही होगा कि यह सब पाकिस्तान के संकेत पर किया गया है। भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही पाकिस्तान ने अपने द्वारा पोषित आतंकवादियों के माध्यम से कश्मीर के नागरिकों में भारत के हिन्दुओं के खिलाफ वैमनस्यता का वातावरण बनाया और उस समय की केन्द्र सरकार ने कश्मीर को विशेष दर्जा दे दिया। वर्तमान में कई जगह यह लिखा हुआ मिल जाता है कि कश्मीर की समस्या प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु की देन है। कश्मीर को विशेष दर्जा देने के बाद कश्मीर की क्या स्थिति बनी,यह आज सबके सामने है।

भारत में राजनीति कर रहे कई राजनीतिक दलों में मुसलमानों का हितैषी बनने की प्रतिस्पर्धा चल रही है। हर कोई मुसलमानों के प्रति तुष्टीकरण की नीति को अपनाकर उनके वोट लेने की राजनीति कर रहे हैं। इसमें कांगे्रस तो है ही, लेकिन उत्तरप्रदेश में सत्ता संचालन कर रही समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी किसी भी मामले में पीछे नहीं है। उत्तरप्रदेश के कैराना में कई हिन्दू परिवार अपना घर छोड़कर चले गए। कैराना में हिन्दुओं के व्यापारिक प्रतिष्ठानों को विशेष समुदाय के लोगों ने निशाना बनाया। यह सारा कृत्य अनेकता में एकता की परिभाषा को मिटाने का षड्यंत्र है। कैराना में बने दहशत के वातावरण को नियंत्रित करने की पूरी जिम्मेदारी प्रदेश सरकार की है। अगर प्रदेश सरकार इस पर नियंत्रण नहीं कर पाई तो स्वाभाविक रुप से यह सवाल उठेगा कि कहीं यह प्रदेश सरकार के इशारे पर की गई कार्यवाही तो नहीं?

इस सबके लिए हमारे देश का राजनीतिक तंत्र ही पूरी तरह से जिम्मेदार है। देश की एकता को खंडित करने वाली कोई भी घटना हो, राजनेता हमेशा से राजनीति करने की मुद्रा में आ जाते हैं। बसपा प्रमुख मायावती ने इस घटना पर जिस प्रकार की बयानबाजी की है, वह एक जिम्मेदार राजनेता के मुंह से शोभा नहीं देती। मायावती का बयान आग में घी डालने जैसा ही कहा जाएगा। उन्होंने कहा कि भाजपा कैराना के माध्यम से प्रदेश में दंगा कराना चाहती है। बहुजन समाज पार्टी उत्तरप्रदेश में सत्ता वापसी का सपना देख रहीं हैं, इसलिए हर किसी भी मामले पर राजनीति करना उनकी मजबूरी है, लेकिन सवाल यह है कि राजनेताओं को बयान देने से पहले घटना के मूल का अध्ययन करना चाहिए। मायावती के बयान से एक और सवाल आता है कि या तो मायावती को घटना की जानकारी नहीं है, या फिर वह वास्तविकता की अनदेखी कर रही हैं। घटना के मूल में भाजपा कहीं भी दिखाई नहीं देती। उसका काम केवल इतना भर है कि उसने कैराना और कांधला से विस्थापित किए गए हिन्दुओं की दुर्दशा को उजागर किया है।

यह भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि देश के किसी भी हिस्से में हिन्दू पिट जाए या भगा दिया जाए तो देश का प्रचार तंत्र उसे अन्य की तरह प्रस्तुत नहीं करता। हम जानते है कि देश में रोहित वेमुला प्रकरण को राजनीतिक दलों और प्रचार तंत्रों ने कई दिनों तक उछाल कर रखा। जबकि कश्मीर से विस्थापित किए गए हिन्दुओं के बारे में आज तक किसी भी प्रचार तंत्र ने वास्तविकता को नहीं रखा। इसी प्रकार का खेल उत्तरप्रदेश के कैराना और कांधला के बारे में भी है। अब सवाल यह आता है कि क्या देश में रह रहे प्रताडि़त हिन्दुओं के बारे में आवाज उठाना भी गुनाह है। भारतीय जनता पार्टी ने केवल पीडि़त परिवारों के पक्ष में खड़ होकर उनका समर्थन किया है। अगर पीडि़तों का समर्थन करना दंगा कराने की साजिश है तो उसे क्या कहा जाएगा, जिसमें हिन्दुओं को विस्थापित होने को मजबूर किया गया।

हमारे देश के कई राजनीतिक दलों ने अंगे्रजों की फूट डालो और राज करो की नीति का अक्षरश पालन किया है। समाज में फूट डालने वाली राजनीति ने भले ही राजनीतिक दलों को लाभ पहुंचाया हो लेकिन यह सत्य है कि इस प्रकार की राजनीति से देश कमजोर हुआ है। समाज में फूट डालकर अंगे्रजों ने देश की जनता को गुलाम बना लिया था और आज देश के राजनीतिक दल भी समाज को गुलाम बनाने की राजनीति कर रहीं हैं।

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