आखिर प्रदेश में भाजपा को मिल ही गया नेता

मृत्युंजय दीक्षित

काफी लम्बी जदोजहद और विचार- विमर्श के बाद आखिकार भारतीय जनता पार्टी को नया प्रदेश अध्यक्ष मिल ही गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नवनियुक्त भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष  अमित शाह ने केशव कुमार मौर्य को नया प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाकर सभी प्रदेश भाजप नेताओं और कार्यकर्ताओं को चौंका दिया है। प्रदेश में सभी वर्ग यह जानने के लिए लगातार उत्सुक रहे कि आखिरकार यह केशव हैं कौन। अमित शाह ने केशव की नियुक्ति करके एक साथ बहुत सारे समीकरणों को ध्वस्त करने तथा कई के सपने तोड़ने का साहसिक फैसला  लिया है। केशव प्रसाद मौर्य की नियुक्ति करके भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने वंश्वाद जातिवाद तथा समय समयपरअनद दावेदारी करने वालों को  भी चौंका दिया है। साथ ही नये भाजपा अध्यक्ष के आने से सबसे अधिक पार्टी के  आंतरिक गुटबाज हैरान परेशान हो गये हैं। जब मौर्य की नियुक्ति हुयी तब एक महिला नेता ने आपत्ति जताई तो उन्हें तत्काल बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और यह संकेत भी दे दिया गया है कि अब बेसमय – बेमतलब की बयानबाजी करने वाले नेताओं  व कार्यकर्ताओं की पार्टी में कोई जगह नहीं रह गयी है।

मौर्य की नियुक्ति करके भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने जहां प्रदेश के जातिगत समीकरणों को साधने का प्रयास किया हैं वहीं दूसरी ओर विश्व हिंदू परिषद सहित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे तमाम संगठनों को एक हद तक साध लिया है। मौर्य की नियुक्ति के पहले  भाजपा व संघ के नेताओं के साथ  लम्बा विचार- विमर्श भी हुआ है। यही कारण है कि संघ की ओर से केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा लिये जा रहे निर्णयों का स्वागत हो रहा हैं।

दूसरी ओर मौर्य की नियुक्ति होने के बाद प्रदेश के विरोधी दल सकपका गये हैं। सभी विरोधी दलों में कुछ हद तक प्रारम्भिक बैचेनी देखी गयी है। राजनैतिक हलकों  में माना जा रहा है कि मौर्य जातिगत समीकरणों में 50 प्रतिशत फिट बैठ रहे हैं वह जिस पिछड़ी जाति से आते हैं उसके 50 प्रतिशत वोटर प्रदेश में हैं। मौर्य की नियुक्ति होने के बाद प्रदेश के विरोधी दलों ने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि  मौर्य दागी राजनेता हैं तथा उन पर  कई प्रकार के आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं। जिसमें हत्या,हत्या की साजिश गुंडा एक्ट आदि से सबंधित कुल दस मुकदमें विचाराधीन है। वहीं प्रदेश अध्यक्ष मौर्य अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर रहे हैं तथा उनका कहना है कि वे अधिकांश मामलों में बरी  हो चुके हैं। समाजवादी पार्टी का कहना है कि भाजपा सांप्रदायिक पार्टी है तथ वह अपने साप्रंदायिक मुददे के आधार पर ही चुनावी रणनीति को तैयार करेगी। सपा का मानना है कि यह राजनैतिक साजिशों का वर्ष हो सकता है जिसे भाजपा व संघ की ओर से अंजाम दिया जायेगा।

अभी तक कहा जा रहा था कि भाजपा अपने अध्यक्ष की नियुक्ति में  जितना अधिक देरी कर रही है वह उतना ही पिछड़ती जा रही है लेकिन नवनियुक्त अध्यक्ष  इन सब बातों को सिरे से नकार रहे हैं। मौर्य का कहना है कि भाजपा की ओर से कोई देरी नहीं हो रही है। प्रदेश भर में काम चल रहा है तथा वह स्वयं 14 अप्रैल से प्रदेश के तूफानी दौरे पर  निकल रहे हैं। मौरू की नियुक्ति होन से जहां भाजपा को कुछ लाभ होता दिख रहा है वहीं नये अध्यक्ष के सामने कई कठिन चुनौतियां भी हैं। मौर्य के अध्यक्ष  बनने से पार्टी को सबसे बड़ा लाभ यह हुआ है कि कल्याण सिंह, उमाभारती और विनय कटियार जैसे पिछड़े नेताओं के बाद भाजपा को एक और युवा पिछड़ा नेता मिल गया है। पार्टी व संगठन के भीतर निर्विववाद नेता हैं। संघ के चहेते हैं। विहिप में दिवंगत अशोक सिघ्ंाल के साथ काम कर चुके हैं । जातिगत समीकरणांे के साथ क्षेत्रीय समीकरणों में भी संतुलन स्थापित करने में माहिर हैं। साथ ही हिंदूवादी छवि और युवा चेहरा हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इनका नाम सब लोगों ने तभी जाना जब उनकी नियुक्ति का ऐलान हुआ। बहुत कम ही लोगों को यह याद आया कि वे फतेहपुर के सांसद हैं और मोदी लहर में तीन लाख से भही अधिक वोटों से जीतकर संसद में पहुंचे हैं। मौर्य के सामने बहुत बड़ी चुनौती है।

प्रदेश में अध्यक्ष पद का कामकाज संभलने के बाद से ही उन्होनें अपने तेवर दिखलाने प्रारम्भ कर दिये हैं। अपना काम संभालने के बाद कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होनें सपा – बसपा मुक्त यूपी के साथ विधानसभा चुनाव के लिए “टारगेट- 265“ का ऐलान करते हुए  प्रदेश को गरीबी , बीमारी व बेरोजगारी से मुक्ति दिलाने का वादा किया। कार्यकर्ताओं के सम्मान के लिए अपना सर्वस्व सौंपने का वादा करते हुए चुनौती दी कि सपा सरकार भाजपा कार्यकर्ताओं को न छेड़े।

उनका कहना है कि अगले विधानसभा चुनाव में 265 से अधिक सीटें जीतने का     लक्ष्य निर्धारित किया गया है। भाजपा अध्यक्ष मौर्य का कहना है कि प्रदेश का अगला चुनाव, ”केवल विकास, विकास और विकास“ के नारे पर ही लड़ा जायेगा। निश्चय ही मौर्य के सामने मोदी व शाह के सपनों को पूरा करने की बड़ी भारी चुनौती है। उत्तर प्रदेश एक अतिमहत्वपूर्ण राज्य है । यदि यहां पर भारतीय जनता पार्टी  सभी प्रकार के राजनैतिक समीकरणों को लोकसभा चुनावों की तर्ज पर ध्वस्त करते हुए चली गयी तो केंद्र की सत्ता मजबूत हो जायेगी। राज्यसभा में अपना पूर्ण बहुमत हो जायेगा तथा फिर राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति भी अपना हो जायेगा। हर जगह ही भाजपा का अपना पूर्ण बहुमत होने की स्थिति में ही राममंदिर का सपना पूरा हो सकेगा। यही कारण है कि भाजपा ने बहुत ही सधे हुए कदमों से  फैसले लेने प्रारम्भ कर दिये हैं। कारणयह है कि मौर्य के लिए रास्ता आसान नहीं रह गया है। सपा- बसपा अपने उम्मीदवार घोषित कर चुकी हैं तथा कर रही हैं। कांग्रेस सहित अन्य दल भी अपने जातिगत व धार्मिक आधार पर समीकरणों को मजबूत करने का लगातार प्रयास कर रहे हैं। विगत चार विधानसभ चुनावों से विधानसभा में भाजपा के विधायकों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। लोकसभा चुनावों के बाद 71 सांसदों के होने के बाद भी जितने उपचुनाव हुए उनमें अधिकांश में पराजय का मुंह देखना पड़ा है तथा पार्टी को शर्मसार भी होना पड़ा है। इस बीच विधानपरिषद चुनावों में भाजपा के कुछ उम्मीदवार सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी से पैसा खाकर अंतिम क्षणो में चुनाव मैदान से हट गये। मौर्य को भाजपा के अंदर ऐसे विश्वासघातियों से भी सतर्क रहना होगा।

 

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