क्‍या कश्‍मीर के पत्‍थर बाजों का असर भोपाल में भी दिखने लगा है ?

डॉ. मयंक चतुर्वेदी
कश्‍मीर सुलग रहा है, सरकार के लाख शांति और सद्भाव के प्रयासों के बाद भी घाटी में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं जो हाथों में बंदूक, पत्‍थर या अन्‍य हथियार उठाकर भारतीय सेना को और उस प्रशासन को मारने के लिए दौड़ पड़ते हैं, जो उन्‍हें अब तक आई हर प्राकृतिक विपदा में अपनी जान की बाजी लगाकर बचाते आए हैं । आतंकवादियों को कश्‍मीर में किस तरह भीड़ बचाती है, वे किस तरह अब तक धर्मस्‍थलों में शरण लेते रहे हैं यह किसी से छिपी हुई बात नहीं है, किंतु जो कल रात शांति के टापू और देश के ह्दय स्‍थल मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल में घटा, उसे देखकर अब लगने लगा है कि कश्‍मीर का असर भोपाल के युवाओं ओर एक विशेष वर्ग के लोगों के सर चढ़कर बोलने लगा है।
वैसे सामान्‍य दिनों में भोपाल के इस पुराने एरिए में निकलेंगे तो आपको कहीं इकट्ठे किए हुए पत्‍थर नजर नहीं आएंगे। लाख ढूढ़ने के बाद आपको इक्‍का–दुक्‍का पत्‍थर वह भी बड़ी मुश्‍किल से मिलेंगे, लेकिन मंगलवार की रात अचानक सड़कों पर भीड़ का उमड़ना और घर-घर से आए पत्‍थरों का पुलिस व बहुसंख्‍यक समुदाय के लोगों पर बरसना बताता है कि कहीं कुछ गड़बड़ है। कश्‍मीर के पत्‍थर बाजों का अनुसरण भोपाल के वे लोग भी करने लगे हैं जो उनके ही धर्म विशेष से आते हैं । यहां प्रश्‍न यह है कि क्‍या देश के इस शांत प्रदेश में इस तरह का माहौल बनना चाहिए ? क्‍या कश्‍मीर के पत्‍थर बाजों का असर भोपाल में दिखना चाहिए ?
पिछले तीन दिन से एक सम्‍प्रदाय धर्म विशेष के विषय को लेकर माहौल गर्म चल रहा था। प्रशासन को पता था कि कभी भी विस्‍फोट  हो सकता है और स्‍थ‍िति गंभीर हो जाएगी लेकिन इसके बाद भी प्रशासन का देर से जागना क्‍या घटना घटने के बाद सही ठहराया जा सकेगा ? या इसे लेकर परिस्‍थ‍ितियों की दुहाई हमेशा की तरह दी जाती रहेगी ? भले ही फिर इस पूरे घटनाक्रम में किसी भी पक्ष को जानमाल का नुकसान नहीं हुआ हो,किंतु जिन तमाम बेकसूर लोगों की इसमें गाड़ियां फूंक दी गईं, जिनके सामान को उपद्रवियों ने आगजनी के हवाले कर दिया, उसके लिए कौन जिम्‍मेदार होगा ? यह जरूर सोचनेवाली बात है।
इसमें भी समझना यह है कि पीरगेट पर दो पक्ष आमने-सामने आए तो नियंत्रित करने के लिए पुलिस भी कम पड़ गई। पुलिस की मौजूदगी में दोनों पक्ष एक-दूसरे को चुनौती देते रहे। अफसर जब एक पक्ष से बात करने आगे बढ़े तो हालात देखकर पहले उसे भी बीच में रुक जाना पड़ा । हालात इस कदर बिगड़ गए थे कि केबल स्टे ब्रिज से लेकर बुधवारा, इतवारा, पीरगेट, लखेरापुरा, इमामीगेट, कबाड़खाना तक हर गली में लोगों की भीड़ दिख रही थी । उपद्रवी कितने बेखौफ थे, यह इससे भी समझ आता है कि उन्‍होंने पुलिस की गाड़ि‍यों को भी नहीं बख्‍शा। आखिरकार,उपद्रवियों को काबू में करने के लिए पुलिस को हवाई फायर करना पड़े। आंसू गैस के गोले भी छोड़ने पड़े। देर रात तक कलेक्टर, डीआईजी पीरगेट पर डटे रहे। रैपिड एक्शन फोर्स के पहुंचने के बाद हालात काबू में आए। पुलिस ने उपद्रवियों के पास से अवैध हथियार भी जब्‍त किए हैं, जिसके बाद कहा जाएगा कि बात यहां पत्‍थर फैंकने तक सीमित नहीं रही, उससे भी आगे निकल गई है।
इस समुची घटना का एक दुखद पहलु यह भी है कि भोपाल के पीरगेट पर हुए उपद्रव के बाद हमीदिया सरकारी अस्‍पताल की इमरजेंसी बंद कर दी गई । परिणामस्‍वरूप सड़क हादसे और दूसरी बीमारियों से पीड़ित मरीजों को बैरंग लौटना पड़ा। दहशत में 50 से ज्यादा भर्ती मरीज बिना डिस्चार्ज हुए अस्पताल से चले गए। इससे पहले पूरे दिन अस्पताल में भर्ती मरीज एक समुदाय विशेष के लोगों की भीड़ जमा होने के कारण परेशान रहे, लेकिन इस पर प्रशासन पूरी तरह चुप्‍पी साधे रहा। ऐसा बिल्‍कुल नहीं हो सकता कि प्रशासन ने मुख्‍यमंत्री को इस मामले की बारीकियों से अवगत न कराया होगा । जब मामले ने जोर पकड़ लिया तो मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अपील ट्वीटर पर सामने आई, जिसमें उन्‍होंने भोपाल वासियों से सद्भाव की अपील की ।
यहां गौर करनेवाली बात यह भी है कि भोपाल में पुराने शहर की संस्‍कृति को गंगाजमुनी तहजीब कहा जाता है, इस पूरे प्रकरण के बाद लगा कि क्‍या ऐसी होती है गंगाजमुनी तहजीब ? जहां एक-दूसरे की बात सुनने के लिए भी कोई राजी नहीं । गंगा और जमुना तो अपना पानी पिलाने में किसी के साथ भेद-भाव नहीं करतीं, फिर छोटी-छोटी बातों पर भोपाल का यह पुराना एरिया क्‍यों सुलग उठता है और हर बार बहुसंख्‍यक समाज होने पर समझौता गंगावालों को ही क्‍यों करना पड़ता है ?
पूरे मामले को भी देखें तो मामला ये है कि शासकीय हमीदिया अस्‍पताल परिसर में निर्माण कार्य चल रहा है, जहां खुदाई के दौरान कुछ शिलालेख निकले हैं। जिनको लेकर एक वर्ग विशेष का कहना है कि यहां पहले मस्‍जिद थी, इसलिए उन्‍हें यह क्षेत्र दे दिया जाए । जबकि उस जगह पर प्रशासन को विश्‍व युद्ध लड़नेवाले सैनिकों के अभिलेख मिले हैं। दूसरी ओर किसी भी दस्‍तावेज में इस स्‍थान के धार्मिक स्‍थल होने का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है, किंतु इसके बाद भी कश्‍मीर में पत्‍थरबाजों से अपने धर्म की समानता रखनेवाले लोग यहां इस स्‍थान पर अपने धर्म स्‍थल होने का दावा बड़ी चतुराई और ताकत के साथ ठोक रहे हैं।
वस्‍तुत: आज यदि यही हाल रहा तो कहीं ऐसा न हो कि भविष्‍य में यह शांति का टापू भी अशांति के बादलों से छा जाए। समय रहते सत्‍ता और शासन दोनों को समझना होगा कि सत्‍य सदैव सत्‍य रहता है। ताकत और दवाब की राजनीति करनेवालों की बातों में आकर सर्वजन हिताय को किसी भी कीमत पर पीछे नहीं धकेला जा सकता है। हमीदिया परिसर एक चिकित्‍सालय क्षेत्र है, जहां इलाज यह देखकर नहीं किया जाता कि मरीज किस जाति,धर्म,सम्‍प्रदाय का है। सभी का यहां समान रूप से ही इलाज होता है। अत: इस क्षेत्र को किसी भी कीमत पर धार्म‍िक विवाद से नहीं जोड़ा जाना चाहिए, इसके लिए फिर सरकार को जो भी प्रभावी कदम उठाने पड़े, उसे वह निर्भीक होकर उठाए। न कि पहले की तरह जैसे कई अवसरों पर सरकार को ऐसे मामलों में झुकते देखा गया है, वह फिर वैसा ही अपना कमजोर रुख अपनाते हुए दिखाई दे।

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मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

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