एक वायरस ने बदल दी जीवनचर्या

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लिमटी खरे

2019 के दिसंबर में आए एक वायरस ने 2020 में अनेक बदलाव किए हैं। लोगों का कहना है कि शायद ऊपर वाले के द्वारा 2020 को बिसार ही दिया गया है। 2020 के आरंभ में न तो करीने से सर्दी पड़ी, न ही गर्मी ही ठीक ठिकाने पर दिख रही है। आने वाले समय में और क्या क्या बदलाव होने वाले हैं इस बारे में कहा जाना थोड़ा मुश्किल ही प्रतीत हो रहा है।

जनवरी से मार्च तक कोरोना के बारे में जितनी खबरें मीडिया या सोशल मीडिया पर आती रहीं, उसे लोगों ने बहुत गंभीरता से नहीं लिया। मार्च के मध्य तक लोगों की आवाजाही बिना किसी सावधानी के ही जारी रही। यहां तक कि होली के अवसर पर भी अनेक जिलों के प्रशासनिक अधिकारियों के निवास पर होली मिलन समारोहों में भी मास्क का उपयोग होता नहीं दिखा।

मार्च विशेषकर 20 मार्च के बाद कुछ सक्रियता बढ़ी। 22 मार्च को प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के द्वारा जनता कर्फ्यू और टोटल लॉक डाउन का ऐलान किया। टोटल लॉक डाउन समझने में ही लोगों को काफी समय लग गया। शुरूआती दिनो में तो लोग मास्क लगाने से परहेज करते ही दिखे, पर बाद में वे इसके आदी हो गए।

कोरोना कोविड 19 वायरस ने बच्चों से उनका बचपन छीन लिया। ग्रीष्मकालीन अवकाश में भी वे खेल नहीं पा रहे हैं। मोहल्ले में बच्चे एक दूसरे का मुंह ताकते नजर आते हैं। वे गलियों में भी निकल नहीं पा रहे हैं। गर्मी के मौसम को शादी ब्याह का मौसम माना जाता है, इस साल शहनाईयों की गूंज भी सुनाई नहीं दे रही है। गर्मी में आईसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक्स, आईसगोला आदि के लिए भी बच्चे तरसते दिख रहे हैं, वैसे कोरोना के संक्रमण के चलते ठण्डी चीजों से परहेज करने की बात भी चिकित्सक कहते नजर आ रहे हैं।

परीक्षाओं के बाद अमूमन लोग परिवार के साथ समय बिताते थे। बच्चे दादी या नानी के घर जाने आतुर रहते थे, पर यह पहला साल है जबकि बच्चे अपने घर पर ही या यूं कहा जाए जो जहां है, वहीं थमा है। घरों पर पकवान बन रहे हैं, पारंपरिक खेल बच्चे खेलते नजर आ रहे हैं।

एक बात आश्चर्य जनक तौर पर यह भी सामने आ रही है कि लॉक डाउन के लगभग पचास दिनो में लोगों के बीमार पड़ने का क्रम भी बहुत कम हो गया है। आप अपने ही घरों पर देखें तो अन्य दिनों की अपेक्षा परिवार के लोग बीमार कम ही पड़ रहे हैं। लोगों का पेट भी ठीक ही माना जा सकता है। इससे यही निश्कर्ष निकाला जा सकता है कि सब कुछ मनोवैज्ञानिक कारणों से होतेा है। साईक्लाजिकली लोग अपने आप को चुस्त तंदरूस्त मानने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे वे अपने आप को ऐसा बना भी पा रहे हैं।

हां, आर्थिक रूप से लोग टूट रहे हैं। केंद्र सरकार के द्वारा घोषित किए गए राहत पैकेज से निम्न मध्यम वर्गीय परिवार पशोपेश में हैं। उसे आखिर इस पैकेज से कैसे राहत मिल पाएगी इसका गणित लगाते वे लोग दिख रहे हैं जो इस वर्ग में आते हैं।

एक समय था जब सुबह उठकर सबसे पहले अखबार की चाहत हर व्यक्ति को होती थी। लगभग पचास दिनों से अखबारों की चाहत भी कम होती दिख रही है। यद्यपि समाचार पत्रों का प्रकाशन हो रहा है, इसका प्रसार भी हो रहा है, पर इसकी गति पहले की तुलना में कम ही नजर आ रही है।

लॉक डाउन में सोशल मीडिया का जादू सर चढ़कर बोल रहा है। यूट्यूब पर गृहणियां पकवानों की रैसिपी खंगालती नजर आती हैं तो युवा वर्ग सीरिज में अपने आप को मशगूल रखे हुए हैं। इसी बीच यूट्यूब चैनल पर समाचार बुलेटिन्स मानों लोगों के जीवन का अभिन्न अंग बनकर रह गया है। लोग अपने अपने मोबाईल पर ही समाचार देख और सुन रहे हैं। विभिन्न नए यूट्यूब चेनल्स के द्वारा इस दौरान अपने दर्शकों के बीच खासी पैठ बना ली गई है।

जिस तरह से लॉक डाउन आगे बढ़ता जा रहा है वैसे वैसे लोग अब इसके अभ्यस्त होते जा रहे हैं। लोगों को धीरे धीरे यह बात समझ में आती दिख रही है कि जितनी भी पांबदियां लगाई जा रही हैं, सब कुछ उनके स्वास्थ्य के लिए ही लगाई जा रही हैं। अगर वे घर पर रहेंगे और सरकार के दिशा निर्देशों का पालन करेंगे तो वे इसके संक्रमण से बच सकते हैं। देश में कोरोना के मरीजों की तादाद भले ही बढ़ रही हो पर ठीक होने वालों की तादाद भी उसी अनुपात में बढ़ रही है जो राहत की बात मानी जा सकती है।

आप अपने घरों में रहें, घरों से बाहर न निकलें, सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी को बरकरार रखें, शासन, प्रशासन के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करते हुए घर पर ही रहें।

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