परमाणु रैनेसां का अंत

जापान में प्राकृतिक विनाशलीला का ताण्डव सारी दुनिया को एक नए किस्म के आर्थिक-राजनीतिक संकट की ओर ले जा रहा है। जापान के भूकंप और परमाणु विकिरण का सामाजिक-आर्थिक राजनीतिक प्रभाव सिर्फ जापान तक सीमित नहीं रहेगा। बल्कि इसका असर आने वाले समय में समूची विश्व राजनीति पर पड़ेगा। खासकर वे देश जो परमाणु ऊर्जा और परमाणु अस्त्रों के बारे में शांतिपूर्ण प्रयोग के बहाने परमाणु

खतरे का संचय कर रहे हैं उनके यहां भी आने वाले समय में परमाणु ऊर्जा के विरोध में आंदोलन तेज होंगे।

खासकर भारत जैसे देश में नव्य उदारीकरण और अमेरिकी परमाणु इजारेदारियों के दबाब में जिस तरह भारत सरकार परमाणु संयंत्रों पर तेजी से काम कर रही है और मनमोहन सिंह-सोनिया-आडवाणी-अटल और संघ परिवार की लॉबी भारत को परमाणु शक्ति संपन्न बनाने के लिए जो काम कर रही है उससे भारत भविष्य में कभी भी श्मशान में तब्दील हो सकता है। परमाणु अस्त्रों और परमाणु ऊर्जा के हिमायतियों को नए युग

के कापालिक कहा जा सकता है जो परमाणु के शांतिपूर्ण इस्तेमाल की ओट में श्मशान साधना कर रहे हैं। आज इसके बारे में आम जनता को गोलबंद करने और राजनीतिक दबाब पैदा करने की जरूरत है।

मनमोहन सिंह सरकार को जापान की सामयिक तबाही का यह संदेश है कि भारत को परमाणु विनाश की गोद में मत बैठाओ। भारत के कारपोरेट मीडिया को यह संदेश है कि वह परमाणु ऊर्जा और परमाणु बम की संस्कृति का विरोध करने वालों को उपहास का पात्र न बनाए। परमाणु ऊर्जा के बारे में भारत के कारपोरेट मीडिया ने तथ्यों को छिपाया है और आम जनता को गुमराह किया है। परमाणु ऊर्जा का मामला महज बिजली

उत्पादन का मामला नहीं है। यह अमेरिका बनाम वामदलों का मामला नहीं है। परमाणु ऊर्जा संयंत्र महज तकनीक मात्र नहीं हैं। यह असामान्य विध्वंसक तकनीक है,जिसके सामान्य से विस्फोट से भारत कभी भी मरघट में बदल जाएगा। परमाणु तकनीक असाधारण तौर पर मंहगी तकनीक है। जनविरोधी तकनीक है। विकास विरोधी तकनीक है। यही वजह है कि परमाणु ऊर्जा विरोधी आंदोलन को और भी ज्यादा शक्तिशाली बनाने और

पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण पर जोर देने की जरूरत है। वैकल्पिक ऊर्जा के सवालों पर विचार करने की जरूरत है।

जापान में जिस समय भूकंप आया उस समय किसी को यह आभास भी नहीं था कि परमाणु ऊर्जा केन्द्रों में इस तरह भयानक विस्फोट होंगे,परमाणु भट्टियां धू-धू करके जल उठेंगी,परमाणु आग बेकाबू हो जाएगी और जापान की अधिकांश आबादी परमाणु खतरे की जद में आ जाएगी। जापान में आए भूकंप औक सुनामी से समुद्री इलाकों में बसे शहरों का पूरी तरह सफाया हो गया है। हजारों लोग मर गए हैं या लापता हैं। पूरे शहर

मिट्टी के मलबे में तब्दील हो गए हैं। जापान के भूंकप और सुनामी ने यह बात एक बात फिर से सिद्ध कर दी है कि प्रकृति पर नियंत्रण का पूंजीवाद ने जो दावा किया था वह खोखला है।

जापान में भूकंप,सुनामी और परमाणु विकिरण के त्रिस्तरीय संकट ने जापान के साथ समूचे विश्व को हिलाकर रख दिया है। फिलहाल जापान में बड़े पैमाने पर बिजली का संकट है,बिजली की सप्लाई के अभाव के कारण जापान के 55 परमाणु रिएक्टर बंद हैं। इनके लिए प्राइमरी और वैकअप बिजली सप्लाई बंद है। लाखों घरों में अँधेरा है।

उल्लेखनीय है सोवियत संघ के यूक्रेन स्थित चेरनोविल परमाणु संयंत्र में 1986 में हुए विस्फोट और विकिरण ने समूची समाजवादी व्यवस्था को धराशायी कर दिया था ठीक वैसे ही परवर्ती पूंजीवाद की विदाई का संकेत जापान के परमाणु विकिरण और परमाणु ऊर्जा केन्द्रों में हुए विस्फोटों ने भेजा है। चेरनोविल (यूक्रेन) ने समाजवाद पर आम रूसी जनता का विश्वास उठा दिया वैसे ही जापानी परमाणु संकट

ने परवर्ती पूंजीवाद के ताबूत में कील ठोंक दी है और परवर्ती पूंजीवाद के ऊपर से आम जनता पूरा विश्वास खत्म कर दिया है।

जापान के 55 परमाणु रिएक्टरों में से 3 में विस्फोट हुए हैं और स्थिति किसी भी तरह नियंत्रण में नहीं है। विध्वस्त परमाणु संयंत्रों के आसपास के इलाकों से दो लाख से ज्यादा लोगों को निकालकर सुरक्षित इलाकों में पहुँचाया गया है।

जापान के परमाणु विध्वंस के कई सबक हैं,पहला सबक है प्रकृति अजेय है। दूसरा, परमाणु इजारेदारियां सारी दुनिया में परमाणु ऊर्जा के नाम पर आक्रामक ढ़ंग से जीवनघाती तकनीक को थोप रही हैं। वे और उनके भोंपू कारपोरेट मीडिया प्रचार कर रहे हैं परमाणु तकनीक और परमाणु सवालों पर आम जनता को सिर खपाने की जरूरत नहीं है। परमाणु सुरक्षित ऊर्जा है। तीसरा सबक है परमाणु ऊर्जा संयंत्र किसी

भी कीमत पर सुरक्षित नहीं हैं,यदि प्राकृतिक विपदा आ जाए तो जनता के ऊपर तबाही दर तबाही का मंजर टूट सकता है। जापान का चौथा सबक है हम परमाणु ऊर्जा के विकल्पों पर अभी से सोचें और परमाणु ऊर्जा के मोह को त्यागें। जो देश परमाणु मोह को नहीं त्यागेगा उसे कभी भी भयानक जनविनाश का सामना करना पड़ सकता है। भविष्य को सुंदर बनाने के लिए परमाणु से बचो।

इस समय सारी दुनिया में 440 व्यवसायिक परमाणु संयंत्र काम कर रहे हैं। इनमें अमेरिका में 104 संयंत्र हैं, अमेरिका में अधिकांश परमाणु संयंत्रों में जो डिजाइन इस्तेमाल किया गया है वह जापान में फेल हो गया है। जापान में आई परमाणु विभीषिका के तात्कालिक और दीर्घकालिक दुष्प्रभावों के बारे में अभी कुछ भी कहना संभव नहीं है। भूकंप-सुनामी में मरने वालों की सही संख्या का अनुमान करना

कठिन है, उस पर से परमाणु संयंत्रों में हुए विस्फोटों ने सारे मामले को और भी पेचीदा बना दिया है।फुकोसीमा परमाणु ऊर्जा उत्पादन संयंत्र केन्द्र में 3 रिएक्टरों में विस्फोट हो चुका है और चौथे में भी दरारें आ गयी हैं।

विगत 40 सालों से जापान में लगाये जा रहे परमाणु संयंत्रों का वैज्ञानिक विरोध कर रहे थे और सावधान कर रहे थे कि जापान कभी भी विनाश के मुँह में जा सकता है ,लेकिन जापान के शासकों और कारपोरेट घरानों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन इसबार सुनामी और भूकंप की घटना ने जापान को परमाणु सुनामी के करार पर पहुँचा दिया है। परमाणु विकिरण का खतरा टोक्यो तक पहुँच गया है। जगह जगह परमाणु पाइप

लाइन फट गयी हैं। उनसे बड़े पैमाने पर परमाणु रिसाव हो रहा है। जापान के प्रधानमंत्री ने माना है हीरोशीमा-नागासाकी पर परमाणु विस्फोट के समय जैसी आपदा आयी थी उससे ज्यादा बड़ी विपत्ति है ये। मीडिया ने इसे “कैटेस्ट्रोफी” कहा है। न्यूयार्क टाइम्स ने 1997 में कराए एक शोध के हवाले से लिखा है कि “It estimated 100 quick deaths would occur within a range of 500 miles and 138,000 eventual deaths. The study also found that land over 2,170 miles would be contaminated and damages would hit $546 billion. That section of the

Brookhaven study focused on boiling water reactors—the kind at the heart of the Japanese crisis.” यह शोध ब्रुकवेन नेशनल लेबोरेटरी ने लॉग आइसलैंड के बारे में किया था। उल्लेखनीय है जापान के ज्यादातर परमाणु संयंत्र भूकंप संभावित समुद्री क्षेत्रों में ही लगाए गए हैं। यही स्थिति अमेरिका की भी है वहां पर भी समुद्री तटों के किनारे दर्जनों परमाणु केन्द्र बनाए गए हैं।

इस समय फ्रांस में 58,ब्रिटेन में 19,जर्मनी में 17,स्वीडन में 10,बेल्जियम में 7,स्विटजरलैण्ड में 5 और कनाडा में 18 परमाणु ऊर्जा संयंत्र केन्द्र हैं। जापान की परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की तबाही एक ही संदेश दे रही है कि परमाणु रैनेसां का अंत । परमाणु रैनेसां सामाजिक उत्थान का नहीं सामाजिक विध्वंस का प्रकल्प है और इसका हर कीमत पर विरोध करना चाहिए।

3 COMMENTS

  1. श्री चतुर्वेदी जी ने अच्छी जानकारी दी है. परमाणु संयंत्र वाकई बहुत विनाशकारी है. बड़ी योजना में खर्च करने से पहले लाभ हानि दोनों की को बहुत ध्यान से देखना चाइये.
    रही बात बिजली की तो सौर उर्जा, पन, पवन उर्जा – वैकल्पिक उपाय है. ठीक है की आज ज्यादा महंगे है और आम आदमी से ज्यादा बहुत ज्यादा दूर है. किन्तु जब technology सर्व सुलभ हो जाएगी तो कीमत बहुत कम हो जाएगी. बहुत से चीजे ऐसे है तो समय के साथ साथ सस्ती होती जा रही है. जितना पैसा परमाणु बिजली संयंत्र में खर्च होता है उतना सौर, पन, वायु उर्जा के चेत्र में खर्च किया जाय तो यह चेत्र उद्योग के रूप में स्थापित ही जायेंगे, लाखो लोगो को रोजगार मिलेगा, सभी को सस्ती और “””भ्रष्टाचार मुक्त””””””” बिजली मिलेगी.
    जाने सर्कार क्यों अमेरिका का कचरा (पुराने, कबाड़े में पड़े, outdated परमाणु संयंत्र) खरीदने को जी जान लगा रही है. यह तो ऐसा है की पुल्सर DTSI के ज़माने में मारुती की कीमत में लेम्ब्रेटा स्कूटर खरीदना.

  2. भाई साहिब, आपलोग सूरज की रोशनी में काम कीजिये और रात होते ही सो जाइये.आग का इस्तेमाल तो बिलकुल मत कीजिये.बिजली वगैरह को तो भूल ही जाइये .उम्मीद करताहूं की तब आप सुरक्षित रहेंगे.

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