महाभूकंप में भी महालूट

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-निर्भय कर्ण-

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नेपाल में 25 अप्रैल, 2014 को महाभूकंप के बाद चारों तरफ लाशें ही लाशें
नजर आ रही थी और चारों तरफ घायलों की चीख-पुकार ने वातावरण को और भी
मार्मिक व भयावह बना दिया। ऐसे हालात में भारत सबसे पहले नेपाल के लिए
बड़ी तत्परता से मददगार बनकर आगे आया और ‘ऑपरेशन मैत्री’ के तहत राहत
कार्य में  तेजी से जुट गया। लेकिन भारत सहित विभिन्न देशों से महामदद
मिलने के बाद भी सभी महाभूकंप पीड़ितों को मदद मिलने से रहा, जिसके पीछे
मुख्य वजह है महाभूकंप में भी महालूट।

महाभूकंप में महालूट ने लोगों को बिल्कुल ही विस्मित कर दिया है कि आखिर
नेपाल में आयी इस अपार विपदा में भी वो इंसान कैसा होगा, जो भूकंप
पीड़ितों की मदद के लिए आयी सामग्री को लूटने में लगे हैं। ऐसे लोग यह क्यों नहीं समझते कि अभी नेपाल में महालूट नहीं महामदद और महादान की आवश्यकता है जिससे कि आधारभूत सामग्री तमाम जरूतमंद भूकंप पीड़ितों तक पहुंच सके। राहत तो राहत बल्कि खाली घरों और मृतकों के शरीर से भी कीमती सामान को लूटने का सिलसिला लगातार जारी है। चोरों की इस हरकत ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर ऐसी विपदा की घड़ी में भी लोगों का जिगड़ा ऐसे घिनौने काम करने के लिए कैसे तैयार हो जाता है।

गौर करें तो बाहरी देशों से जितनी भी मदद जरूरतमंद देशों को दी जाती है उसके व्यवस्थापन में उस देश की पुलिस, सेना एवं प्रशासनिक अधिकारियों का योगदान न केवल महत्वपूर्ण बल्कि अति आवश्यक माना जाता है। इन्हें न केवल अपने देश की आन्तरिक भौगोलिक व सामाजिक स्थिति का बखूबी ज्ञान होता है बल्कि कानून भी इस बात की इजाजत नहीं देती कि कोई भी देश दूसरे देश में आकर प्रत्यक्ष रूप में मदद या दखल दें। इसलिए नेपाल में महाभूकंप में महालूट का श्रेय काफी हद तक नेपाली प्रशासनिक व्यवस्था को ही जाता है। यहां की कमजोर प्रशासनिक व्यवस्था की वजह से ही राहत के कार्यों पर उंगली उठना शुरू हो गया है। हालांकि महाभूकंप में भी महालूट के कुछ लुटेरों को प्रहरी और सेना ने सतर्कता से पकड़ा है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या रत्ती भर सतर्कता से महाभूकंप में महालूट पर लगाम लग सकेगी?  क्या तमाम पीड़ितों को उनका मुआवजा व राहत सामग्री समान व व्यवस्थित रूप से मिल सकेगा। देखा जाए तो नेपाल के 39 जिलों में 80 लाख लोग भूकंप से प्रभावित हैं। तत्काल प्राप्त समाचार अनुसार, मृतकों की संख्या 6000 को पार कर चुकी है तो वहीं घायलों की संख्या बढ़कर 10,000 के करीब हो चुका है। वहीं घरों को हुए नुकसान की बात करें तो, लगभग 20,000 घर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं तो करीब इतने ही घर को आंशिक रूप से काफी नुकसान पहुंचा है।

ऐसी विषम परिस्थिति में राहत सामग्री के वितरण को लेकर नेपाल के वित्तमंत्री एवं गृहमंत्री में हुए तकरार ने वितरण की समस्या को और भी गंभीर बना दिया जिससे कई सारे बहुत सामग्री हवाईअड्डा पर जहां-तहां पड़ा है। मंत्रियों को अभी राजनीति व अधिकार की बातें पीछे छोड़कर राहत कार्यों में बड़ी तेजी से जुटना होगा। साथ ही यहां की प्रशासनिक व्यवस्था को भी आपसी लड़ाई को छोड़कर पूर्ण रूपेण ईमानदारी से राहत सामग्री के वितरण के लिए तैयार होना होगा। इसके अलावा महालूट में शामिल चोरों पर अंकुश लगाने हेतु सभी आवश्यक कदम उठाने होंगे जिससे कि पीड़ितों को दोहर सदमा लगने से बचाया जा सके।

संयुक्त राष्ट्र ने नेपाल में बदले स्थिति को पूर्व की स्थिति में लाने के लिए तत्काल 41 करोड़ अमेरिकन डॉलर की आवश्यकता का अनुमान लगाया है। कहा जा रहा है कि नेपाल को फिर से व्यवस्थित करने में करीब 10 साल लग जाएंगे। किन फिलहाल जो भी राहत विभिन्न देशों जैसे भारत, भूटान, ऑस्ट्रेलिया, रूस, श्रीलंका, चीन, पाकिस्तान, फ्रांस आदि एवं अन्य संस्थाओं से नेपाल को दिया जा रहा है, यदि उसका उपयोग व वितरण सही तरीेके से हो तो यह निश्चय है कि भूकंप पीड़ितों को काफी राहत मिलेगी।

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  1. जापान की सुनामी में आणविक स्टेशनों को क्षति होने के काण 20 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए थे।पर एक भी चोरी नहीं हुई। सच्चा धार्मिक देश वहीं है जिसके कारण वह उन्नत है।

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