झारखण्‍ड का अधिकांश कोयला कारोबार कार्यबल चाहता है क्षमता संवर्धन: अध्‍ययन

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जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की तरफ बढ़ते रुझान और नेटजीरो लक्ष्यों के प्रति भारत की संकल्पबद्धता के बीच एक ताजा अध्ययन में झारखंड में कोयला कारोबार से जुड़े कामगारों को लेकर एक विस्तृत अध्ययन किया गया है। हर तीन में से एक कोयला कामगार खेती को रोजगार के अपने वैकल्पिक साधन के तौर पर देखता है। क्लाइमेट ट्रेंड्स एलएलपी द्वारा अर्नेस्ट एंड यंग एलएलपी के साथ मिलकर किए गए अपनी तरह के इस पहले अध्ययन की रिपोर्ट को कोलकाता में आयोजित ‘डीकंस्ट्रक्टिंग द अपॉर्चुनिटी इन अल्टरनेटिव लाइवलीहुड्स टू सपोर्ट अ जस्ट ट्रांजीशन’ में जारी किया गया। यह कार्यक्रम ऐसे समय आयोजित किया गया है जब भारत जी-20 देशों की अध्यक्षता कर रहा है। आजीविका के वैकल्पिक साधनों पर आधारित इस रिपोर्ट का उद्देश्य इस बात का अंदाजा लगाना है कि किस तरह भारत और अधिक सतत अर्थव्यवस्था बना सकता है, जिसमें सभी हित धारकों के लिए समानता पूर्ण और समावेशी दृष्टिकोण शामिल हों।
झारखंड मुख्यमंत्री कार्यालय के नीति एवं संवाद परामर्श इकाई के परियोजना निदेशक और नीति एवं विकास परामर्श समूह के सह संस्थापक श्री अरिंदम बनर्जी ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा, “यह रिपोर्ट ऊर्जा के साथ स्रोतों के प्रति भारत के रूपांतरण और जोखिम वाले समुदायों पर उनके प्रभाव को लेकर जारी चर्चा में एक उल्लेखनीय योगदान है। यह रिपोर्ट वे अंतर्दृष्टि और सिफारिशें उपलब्ध कराती है जो न्याय संगत और सतत हैं। साथ ही साथ समुदायों पर कम से कम दुष्प्रभाव डालती हैं। वे यह भी सुनिश्चित करती हैं कि समुदायों की अर्थव्यवस्था चलती रहे और उनके प्रति सामाजिक सहायता को संरक्षित किया जा सके।
इस सर्वेक्षण का बुनियादी मकसद आजीविका के उन अवसरों की तलाश करना था जिनसे एक ऐसे भविष्य में झारखंड में न्याय संगत ऊर्जा रूपांतरण किया जा सकता है, जब कोयले से चलने वाले बिजली घर चरणबद्ध तरीके से चलन से बाहर हो जाएंगे और अक्षय ऊर्जा के विकल्प सरकार की नीतियों और लक्ष्यों के अनुरूप तेजी पकड़ेंगे।
यह अध्ययन झारखंड के 5 जिलों- रांची, धनबाद, रामगढ़, चतरा और बोकारो में कोयला कारोबार से जुड़े 6000 कामगारों के बीच किया गया। इनमें से 4000 कामगार संगठित क्षेत्र (थर्मल पावर प्लांट और खदान) तथा 2000 कामगार असंगठित क्षेत्र के थे। इस अध्ययन को पूरा करने में नीति तथा क्षेत्रीय मामलों की विशेषज्ञता रखने वाले 26 लोगों का सहयोग मिला। इस अध्ययन का मकसद कोयले के लिहाज से सबसे समृद्ध झारखंड जैसे राज्य में कोयले के बजाय स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में रूपांतरण की राह में मौजूद चुनौतियों और अवसरों को समझना था। इस दौरान उत्तरदाताओं के बीच कम से कम 20 केंद्रित समूह चर्चाएं (एफजीडी) कराई गईं। जिनका उद्देश्य कोयले से अक्षय ऊर्जा की तरफ रूपांतरण के लिए तेज होते कदमों के बीच कामगारों की आवाज को सामने रखना था।
प्रमुख निष्कर्ष

·         60% उत्तरदाताओं के पास रोजगार का अनुबंध नहीं होने के बावजूद कोयला क्षेत्र सबसे ज्यादा आकर्षक नियोजक है क्योंकि इसमें नौकरी की सुरक्षा है। साथ ही साथ इतना ही मेहनताना चुकाने वाले अन्य विकल्पों की कमी भी है।
·        10 में से 6 कामगारों को यह नहीं मालूम है कि भविष्य में कोयला खदानें बंद की जा सकती हैं।
·        94% उत्तरदाताओं ने बताया कि उन्होंने कभी किसी प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लिया है। इससे उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि की योजनाओं के नदारद होने की तरफ इशारा मिलता है।
·        85% उत्तरदाताओं ने क्षमता वृद्धि या पुनर्कार्यकुशलता कार्यक्रमों में हिस्सा लेने में दिलचस्पी दिखाई।
·        सिर्फ 6% उत्तरदाता ही ऐसे रहे जिन्होंने कोयला क्षेत्र के अलावा रोजगार के वैकल्पिक अवसर के लिए किसी भी तरह का प्रशिक्षण लिया है और सिर्फ 24% लोग ही अक्षय ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी ट्रेनिंग में शामिल रहे।
·        रोजगार के वैकल्पिक स्रोतों के लिहाज से 32% कामगारों ने रोजगार के विकल्प के तौर पर अपनी पहली पसंद के रूप में कृषि और उससे संबंधित क्षेत्र से जुड़ने की इच्छा जाहिर की। इसके अलावा 30% कामगारों ने अपने दूसरे विकल्प के तौर पर विनिर्माण क्षेत्र को चुना, जबकि तीसरे विकल्प के रूप में 27% कामगारों ने खनन तथा अन्य खनिजों के उत्खनन क्षेत्र का जिक्र किया।
क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा, ” भारत ने वर्ष 2017 तक नेट जीरो देश होने का लक्ष्य निर्धारित किया है। ऐसे में कोयले के इस्तेमाल पर रोक लगाना बेहद महत्वपूर्ण विषय बन गया है। यह बात भी उतनी ही अहम है कि किस तरह वैज्ञानिक तरीके से खदानों को बंद किया जाए, बिजली की अतिरिक्त आवश्यकता को अक्षय ऊर्जा से पूरा किया जाना सुनिश्चित हो और कोयला कारोबार पर निर्भर समुदायों के सामाजिक आर्थिक सरोकारों को भी ध्यान में रखा जाए। इस साल भारत पर ध्यान केंद्रित है और जी-20 देशों के मेजबान के रूप में यह उस लक्ष्य की तरफ अपनी रफ्तार को दिखाने की शुरुआत है कि भारत में ऊर्जा का भविष्य अक्षय ऊर्जा के दबदबे वाला है। यह रिपोर्ट इस बात पर मुहर लगाती है कि कोयले से स्वच्छ ऊर्जा की तरफ रूपांतरण में स्थानीय समुदायों की मदद के लिए उनकी क्षमता का विकास करना बहुत जरूरी है। यह रिपोर्ट नीतिगत स्तर पर क्षेत्र के स्तर पर और व्यक्तिगत स्तर पर ऊर्जा रूपांतरण के लक्ष्यों द्वारा लाए जाने वाले बदलावों को पूरे विश्वास के साथ आत्मसात करने योग्य सिफारिशें उपलब्ध कराती है।”
झारखंड में इस वक्त 113 कोयला खदानें संचालित की जा रही हैं और यह संख्या देश की कुल कोयला खदानों की एक चौथाई से ज्यादा (26%) है। इन खदानों से हर साल 115 मिलियन टन से ज्यादा कोयला निकाला जाता है। झारखंड में कोयला खनन उद्योग से करीब तीन लाख लोगों को सीधे तौर पर रोजगार मिलता है। यह भारत में इस तरह की नौकरियों का लगभग 38% हिस्सा है। भारत को अपनी ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों के विस्तार को प्राथमिकता देनी ही होगी।
भारत में वर्ष 2017 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने का इरादा जाहिर किया है और वह इस वक्त कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से खत्म करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। हालांकि कोयले को चलन से बाहर करने से देश के विभिन्न राज्यों में लाखों कामगारों और उनसे जुड़े समुदायों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा। झारखंड जैसे राज्यों में इसका ज्यादा असर होगा जहां बड़ी संख्या में कोयला खदानें हैं और बहुत भारी मात्रा में कोयले का उत्पादन होता है।
अर्नेस्‍ट एंड यंग एलएलपी के एसोसिएट पार्टनर अमित कुमार ने कहा, “यह रिपोर्ट झारखंड तथा कोयले से समृद्ध भारत के अन्य राज्यों के लिए न्याय संगत रूपांतरण से संबंधित नीतिगत निर्णयों को आकार देने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। यह बहुत जरूरी है कि भारत का कोयले को चलन से चरणबद्ध तरीके से बाहर करने का संकल्प मूर्त रूप ले। साथ ही साथ ऐसे नीतिगत कदम भी उठाए जाएं जो इस रूपांतरण से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले कामगारों और समुदायों का कल्याण सुनिश्चित कर सकें।”
यह रिपोर्ट अनेक स्तरों पर मौजूद चुनौतियों की एक पूरी श्रृंखला का खाका पेश करती है। इन चुनौतियों में अल्पकाल में (2030 तक) रोजगार के लिए कोयला क्षेत्र पर बढ़ती निर्भरता, छोटी और भूमिगत खदानों को बंद करना, कोयला खदानों को बंद करने की समय सीमा को लेकर जागरूकता की कमी, ऊर्जा रूपांतरण के लिए धन की कमी तथा रोजगार के विकल्पों का अभाव शामिल है। रिपोर्ट दीर्घकालिक परिदृश्य यानी वर्ष 2030 के बाद की चुनौतियों, जैसे कि सरकार की आमदनी में कमी, आर्थिक और मजबूरन प्रवासन विस्थापित श्रमिकों को रोजगार देने के अवसरों की कमी, संबंधित उद्योगों में रोजगार के अवसरों की कमी, गैर अनुबंधित कामगारों की सुरक्षा संबंधी व्यवस्था की कमी, वित्तीय सुरक्षा की कमी, कार्यकुशलता की कमी और व्यवहार संबंधी बदलावों में रुकावटों को रेखांकित करती है।
यह रिपोर्ट खदानों को बंद करने, कोयला खदानों के अंदर और उनके आसपास की जमीन को दूसरे प्रयोगों में लाने की योजना, क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं की मौजूदा स्थिति पर जिला स्तरीय रिपोर्टिंग, संभावनापूर्ण क्षेत्रों की पहचान, खास तौर पर वह क्षेत्र जहां कोयला खदानें पहले से ही मौजूद हैं, ऊर्जा रूपांतरण गतिविधियों पर उपकर लगाना, कारोबारों का विविधीकरण, कार्यकुशलता आधारित प्रशिक्षण, रोजगार उत्पन्न करने की योजनाओं को बढ़ावा इत्यादि से संबंधित दिशानिर्देशों को बेहतर बनाने का आह्वान करती है।
इस अध्ययन में एक व्यापक नीतिगत कार्ययोजना की जरूरत पर भी जोर दिया गया है, जिसके जरिए अध्ययन में की गई सिफारिशों और दिए गए सुझावों पर विचार किया जा सके।–

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