पलायन – किसी के लिए वरदान, किसी के लिए श्राप

0
68

नरेन्द्र सिंह बिष्ट
हल्द्वानी, उत्तराखंड

पलायन पर्वतीय क्षेत्रों के लिए गंभीर समस्या के रूप में उभर रही है. उत्तराखंड में रोज़गार की कमी, राज्य में पलायन का सबसे बड़ा कारण आंका गया है. जिसके कारण बड़ी संख्या में युवा राज्य से बाहर जा रहे हैं. आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 के अनुसार उत्तर प्रदेश के बाद उत्तराखंड देश का दूसरा ऐसा राज्य है जहां सबसे अधिक पलायन हुआ है. 1991-2001 के दशक में राज्य में पलायन दर 2.4 प्रतिशत थी वहीं 2001-2011 में यह दुगुनी 4.5 प्रतिशत हो गयी. उत्तराखंड के आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 ने आर्थिक असमानताएं, कृषि में गिरावट, तनावपूर्ण ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पलायन के कारण माने है.

वर्ष 2001-2011 आंकड़ों के अनुसार विगत 10 वर्ष में 6338 ग्रामपंचायतों से 3 लाख 83 हजार 726 लोगों ने पलायन किया है जिसे अस्थायी श्रेणी में रखा गया है. यह ग्रामों में वर्ष भर में वापसी करते है पर पुनः अपने मैदानी क्षेत्रों में वापसी करते हैं, वहीं 3946 वन पंचायतों को स्थायी पलायन में रखा गया जिसमें 1 लाख 18 हजार 981 लोगों द्वारा पलायन किया गया है. यह वह लोग हैं जिन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन बेचकर मैदानों की ओर पलायन कर लिया है और फिर कभी गांव की ओर नहीं आ रहे हैं. राज्य में पलायन करने वाले अधिकांश युवा 26-35 वर्ष की आयु के हैं, जिनका औसत 42.25 प्रतिशत है.

राज्य में रोजगार के लिए 50 प्रतिशत, शिक्षा के लिए 15 प्रतिशत व स्वास्थ्य सुविधाओं के चलते 08 प्रतिशत जबकि पांच प्रतिशत जंगली जानवरों से तंग होकर पलायन आंका गया है. सरकार द्वारा पलायन को रोकने हेतु 2017 में आयोग का गठन भी किया गया था. साथ ही कोरोना काल में प्रवासियों के लिए ग्राम स्तर पर रोजगार मुहैया करवाने के दावे किये गये थे, परंतु गांवों की सूनी सड़कें और घरों में पड़े ताले, होटलों और कंपनियों में बेरोजगारों की उमड़ती भीड़ इसकी सच्चाई बयां कर रहे हैं. हालांकि उत्तराखंड पर्वतीय राज्य होने कारण पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी है, जिससे यहां रोज़गार की अपार संभावनाएं तलाशी जा सकती हैं. पलायन की समस्या का हल किया जा सकता है. लेकिन इसके लिए उचित योजना बनाने की ज़रूरत है. ऐसी योजना जो लॉन्ग टर्म की और सस्टेनेबल हों.

पलायन भले ही गांव के दृष्टिकोण से चिंताजनक और श्राप हो, लेकिन इसका फायदा भी खूब उठाया जा रहा है. युवा जहां कार्य करते हैं चाहे वह कंपनी हो, होटल हों, दुकान हो या अन्य कार्य स्थल, वहां इनसे कार्य अधिक लिया जाता है जिसके एवज़ में उतना पारिश्रमिक भी नहीं दिया जाता है. ऐसे में उन कंपनियों या होटल मालिकों के लिए यह पलायन किसी वरदान से कम नहीं माना जा सकता है. इन्हीं युवाओं की कार्य क्षमता का लाभ उठाकर अधिक कार्य द्वारा उत्पादन को बढ़ा कर कंपनियां लाभ कमा कमा रही हैं. गांव में रोज़गार और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण यहां के युवा कम पैसों में अधिक कार्य कर शोषित होने पर मजबूर हैं. वहीं पर्वतीय क्षेत्र जहां से पलायन हो रहा है वहां के खेत हल के इंतज़ार में बंजर होते जा रहे हैं. राज्य के कई ऐसे दूर दराज़ के गांव हैं, जहां से सभी परिवार रोज़गार के लिए मैदानों अथवा महानगरों में पलायन कर चुके हैं और उन गांवों को भूतिया घोषित कर दिया गया है. गांवों का इस तरह से खाली हो जाना गंभीर चिंता का विषय है, जिसकी तरफ प्रशासन और सरकार को ध्यान देने की ज़रूरत है.

इस संबंध में अल्मोड़ा के तोली गांव के युवा हरीश सिंह डसीला बताते हैं कि ‘ग्राम स्तर पर इण्टर तक शिक्षा तो प्राप्त हो जा रही है, पर इस शिक्षा का स्तर उच्च श्रेणी का नहीं कहा जा सकता है जो काॅपीटीशन रोजगार के लिए उपयुक्त हो. पहाड़ों में सरकारी नौकरी का एक ही अवसर है और वह है फौज. जिसने पहाड़ों में कुछ हद तक युवाओं के रोजगार की नाक बचायी है. युवाओं का मनोबल तोड़ रही सरकारी आवेदन पहले तो पोस्ट ही बड़ी मुश्किल से निकल रही है जो निकल भी रही है वह भी दलालों की भेट चढ़ जा रही है. अधिकांश सरकारी नौकरी में पेपर लीक के मामले ही उजागर हो रहे हैं. सरकार द्वारा कड़े नियम से परीक्षा करवाये जाने की बात तो कही जा रही है, पर परीक्षा के दूसरे या तीसरे दिन पेपर लीक की घटना सच्चाई को बयां कर रही है.

युवाओं में सरकारी नौकरी की आस दम तोड़ रही है उनके पास प्राईवेट सेक्टर में कार्य करने के सिवा कोई विकल्प नहीं रह गया है क्योंकि स्वयं के रोजगार के लिए धनराशि का अभाव भी है, वहीं उनमें सही मार्गदर्शन की कमी भी इस पलायन का महत्वपूर्ण कारण बन चुका है.’ हरीश कहते हैं कि जब घर का एक सदस्य रोज़गार के लिए घर छोड़ देता है तो बाकि सदस्य भी उसी को फॉलो करते हुए पलायन शुरू कर देते हैं. दरअसल यह एक प्रकार से ट्रेंड बन जाता है. युवाओं को लगता है कि महानगरों के होटलों और फैक्ट्रियों में कम समय में अच्छा कमाया जा सकता है, लेकिन जब वह यहां आते हैं तो उन्हें हकीकत कुछ और नज़र आती है, लेकिन पैसों की चाहत उनके पैरों में ज़ंज़ीर बांध देती है. इस तरह पलायन का यही सिलसिला अनवरत जारी रहता है.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी की जनवरी, 2022 की रिर्पोट के अनुसार दिसम्बर, 2021 तक भारत में बेरोजगारों की संख्या 5.3 करोड़ है, जिसमें एक बड़ी संख्या पहाड़ी राज्यों और देश के दूर दराज़ गांवों के युवाओं की है. जो सरकार के लिए भी किसी चुनौती से कम नहीं है. इस संख्या को कम करना अनिवार्य हो गया है क्योंकि एक तरफ जहां बेरोज़गारी के कारण पलायन का सिलसिला बढ़ता जायेगा जिससे गांव खाली और शहरों पर बोझ बढ़ेगा वहीं दूसरी ओर इसका लाभ उठाते हुए निजी क्षेत्र शोषण करते रहेंगे. इस वरदान और श्राप के सिलसिले को ख़त्म करने के लिए ज़रूरी है कि युवाओं को गांव में ही रोज़गार की सुविधा और लोन उपलब्ध कराया जाए. हालांकि सरकार इस दिशा में कई पहल कर चुकी है लेकिन वह पहल ज़मीन से अधिक केवल विज्ञापनों में नज़र आता है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,026 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress