देश के पश्चिमी समुद्री तटीय क्षेत्र में समुद्री जहाज संकट के सबब बन रहें हैं। बिना किसी सूचना के भारतीय समुद्री सीमा में बेखौफ घुसे चले आने से जहां इन जहाजों ने तट रक्षकों की लापरवाही पर सवाल खड़े किए हैं, वहीं उन दो खाली जहाजों के रहस्य का खुलासा नहीं हो सका है जो मुंबई तक बहते चले आए। इन मालवाहक पोतों में न कोई सामान था और न ही चालक दल का कोई व्यक्ति ? इससे सवाल कौंधता है कि आखिर ये जहाज भारतीय सीमा में किस मकसद से भेजे गए ? कहीं, अपनी उम्र पूरी कर चुके इन जहाजों को बतौर औद्योगिक कचरा ठिकाने लगाने के नजरिए से तो भारत नहीं खदेड़ा गया ? क्योंकि दुनिया के 105 से भी ज्यादा देशों ने गुजरात के कुछ बंदरगाहों को अपने औद्योगिक अवशेष ठिकाने लगाने का कुड़ाघर बनाया हुआ है। चूंकि पर्यावरणविद ऐसे जहाजों को भारत में नष्ट करने के चलन का विरोध करते हैं, इसलिए चालाक देशों ने जहाजों को भारत की ओर लावारिस छोड़ देने का एक नया रवैया अपनाने की शायद शुरूआत की हो ? बहरहाल इन जहाजों से हो रहे तेल रिसाव से समुद्री जल जीवों व वनस्पतियों को तो हानि पहुंचाई ही जा रही है, जहाजों के कचरे को समुद्र तटों पर नष्ट करने से तटीय जमीन भी बड़े पैमाने पर प्रदूषित हो रही है।
करीब एक साल पहले मुंबई के समुद्री तट पर दो मालवाहक जहाजों के टकराने से भारी मात्रा में तेल रिसाव और जहरीले रसायनों के पानी में विलय हो जाने की घटना अभी पुरानी भी नहीं पड़ी थी कि पनामा का मालवाहक एमवी रैक नामक जहाज बेखटके भारतीय सीमा में आकर डूब गया।इस इन्डोनेशियाई जहाज में 60 हजार टन कोयला, 251 टन तेल और 50 टन डीजल लदा था। हैरानी की बात यह रही कि मुंबई के बिलकुल करीब आ चुकने के बावजूद हमारे तटों की रक्षा में लगी नौ और वायु सेना को इस जहाज के आने की भनक तक नहीं लगी। वह तो जहाज के चालक दल ने डूबते जहाज से प्राण बचाने की गुहार हमारे तटरक्षकों तक दूरसंदेशों से लगाई और तटरक्षकों ने हवाई उड़ानें भरके सभी कर्मचारियों को बचा भी लिया। अलबत्ता प्राणों पर संकट नहीं आया होता तो इस जहाज की यात्रा गुमनाम ही बनी रहती।
इस जहाज के हादसे का शिकार होने के दो माह पहले भी दो अन्य जहाज हमारी समुद्री सीमा मेंं बेरोकटोक चले आए थे। जो अभी भी खौफ व आशंका का सबब बने हुए हैं। क्योंकि इनमें न कोई सामान था और न ही चालक दल का कोई सदस्य ? इनमें एक नौ हजार टन वजनी जहाज एमवी विजडम था, जो 11 जून 2011 को मुंबई की जुहू चौपाटी पर आकर फंस गया। यह जहाज नाइजीरिया का बताया जा रहा है। इसका रूख गुजरात की और था। तीसरा जहाज मुंबई तट से तीन किलोमीटर की समुद्री दूरी पर खड़ा अब भी अचरज बना हुआ है। इन जहाजों के बेधड़क घुसे चले आने से हैरानी इस बात पर है कि हमारी समुद्री सीमा में 20 मील तक घुसे चले आने के बावजूद इन पर सुरक्षा बलों की नजर क्यों नहीं पड़ी ? इन लावारिस जहाजों का आखिर वारिस कौन है, इस रहस्य से पर्दा उठाना जरूरी है? अन्यथा यह सिलसिला बरकरार रह सकता है, जो कई खतरों और आशंकाओं को जन्म देता रहेगा।
दरअसल समुद्री सीमा में 12 समुद्री मील के बाद सुरक्षा की जवाबदेही नौसेना पर होती है और पांच से 12 समुद्री मील की चौकीदारी का काम तटरक्षक (कोस्ट गार्ड )करते हैं। आतंकवादियों की घुसपैठ पर अंकुश बनाए रखने की दृष्टि से कुछ समय पहले ही समुद्री पुलिस का भी गठन किया गया है। इसका काम भी नाजायज घुसपैठ पर निगरानी रखना व रोकना है। लेकिन हैरानी होती है कि तीन तरह की चौकसियां समुद्री सतह पर मौजूद होने के बावजूद कोई छोटीमोटी नाव या व्यक्ति नहीं तीनतीन जहाजी बेड़े भारतीय सीमा में घुसते चले आए। एमवी पवित तो पूरे चार दिन हमारी सीमा में तैरता रहा और सुरक्षा एजेंसियों की नजरों में भी नहीं आया। ये चूकें लापरवाही की ऐसी चेतावनियां हैं जो आतंकियों की घुसपैठों को प्रोत्साहित कर सरल बना सकती हैं। क्योंकि यही वह मार्ग है जिससे होकर पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्करए-तैयबा से 10 आतंकवादियों ने मुंबई पहुंचकर 26/11 का विध्वंसकारी तांडव रचा था। आतंकवादियों से लेकर जहाजी पोतों की ये घुसपैठें ऐसी मानवीय भूलें हैं, जो बरदाश्त से बाहर होती जा रही हैं।
इन राष्ट्रीय खतरों पर उपकरण व कुछ तकनीकी संसाधनों का अभाव जताकर पर्दा डालने की कोशिश की जाती रही हैं, लेकिन किसी व्यक्ति या मामूली घुसपैठ को तो तकनीक के अभाव में एक बार जायज ठहराया जा सकता है किंतु हजारों टन के लावारिस जहाज भी सीमा का उल्लघंन कर घुसे चले आएं इसे किसी भी हाल में सहीं नहीं ठहराया जा सकता और न ही ऐसी किसी लापरवाही को नजरअंदाज किया जाना चाहिएै। यह सीधेसीधे मानवीय भूल का परिणाम है। ये भूलें जोखिम उठाने के खतरों से बचने के प्रति भी आगाह करती हैं। हालांकि सीएजी भी तटीय सुरक्षा से जुड़ी खामियों को पूर्ति के लिए कई बार रक्षा मंत्रालय व तटरक्षक बलों के कार्य व्यवहार पर अंगुली उठा चुकी है। दरअसल सुरक्षा संबंधी खामियों की आपूर्ति करने की दृष्टि से 14 नए तटरक्षक अड्े बनाने और तटीय सीमा में राडार व अन्य निगरानी उपकरण लगाने की अनुमतियां तो पहले ही दी जा चुकी हैं, लेकिन इन पर पूरी तरह अमल आज तक नहीं हुआ है, हालांकि पांच नए तटरक्षक स्टेशन अब तक खोले जा चुके है। यहीं नहीं तटीय सुरक्षा के मामले में मछुआरे तक अदालत में दस्तक दे चुके हैं। हालांकि एमवी पवित और विजडम जहाजों के घुसे चले आने और मीडिया में हल्ला मचने के बाद रक्षा मंत्रालय कुछ चैतन्य हुआ है। रक्षामंत्री एके एंटनी ने नौसेना के साथ बैठक कर इन घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इस वाबत सख्त हिदायत दी है। तटीय सुरक्षा चौकस करने की दृष्टि से तत्काल सभी 46 राडार स्टेशनों पर राडार लगाने की इजाजत भी मिल गई है। तटरक्षक बल व नौसेना की और क्षमताएं ब़ें ,इसके लिए भी समयबद्ध तकनीक संसाधन जुटाए जाने के फैसले लिए हैं ।
भारतीय समुद्री सीमा में घुसे चले आए जहाजों पर निगरानी रखना सुरक्षा की दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है ही, पर्यावरण को दूषित करने के नजरिए से भी इन पर नजर रखना जरूरी है। क्योंकि एमवी रैक जहाज से जो फर्नेस तेल का फैलाव समुद्री सतह पर हो रहा है वह सुंदरी ( मैंग्रोव ) वृक्षों और कई जलीय जीवजंतुओं को हानि पहुंचा रहा है। इस रिसाव से पारिस्थितिकी तंत्र भी गड़बड़ा जाने का खतरा पैदा हो गया है। करीब पांच सौ मीट्रिक टन तेल के अब तक हुए रिसाव ने समुद्री किनारों को प्रभावित करने के साथ हजारों मछुआरों के सामने आजीविका का भी संकट खड़ा कर दिया है। हजारों समुद्री जीव मरकर समुद्री सतह पर तैर रहे है।
एमवी पवित और विजडम जहाज जिस तरह से लावारिस रूप में घुसे चले आए हैं उससे लगता है इन्हें साजिशन भारत की सीमा धकेला गया है। क्योंकि उम्रदराज हुए जहाजों को गुजरात में नष्ट किया जाता है। दरअसल ऐसे जहाजों को अपने ही देश में नष्ट करने पर कई देशों ने प्रतिबंध लगाया हुआ है। लिहाजा 105 से भी ज्यादा देश अपनी उम्र पूरी कर चुके जहाजों को भारत भेज देते है। ऐसे जहाजों को नष्ट करने में पर्यावरणविद अंड़गे लगाते हैं। अदालतों से स्थगन ले लेते हैं। इसलिए संदेह पैदा होता है कि अब कुछ देशों ने जहाजों को भारतीय सीमा में लावारिस छोड़ देने की तरकीब निकाल ली है। इस साजिश में कुछ भारतीय व्यापारी भी शामिल हो सकते हैं। बहरहाल शंका समाधान के लिए लावारिस जहाजों की घुसपैठ की गंभीरता से पड़ताल जरूरी है।
हम कितना बार आपनी गलती को छुपाते रहेंगे ये सरकार ही निकम्मी है तो रक्षा मंत्रालय कितना आच्छा होगा .
२६/११ के बाद हम समुद्री तट पर कितने सजग हुए है इसके जीते जागते उदाहारण ये लावारिस जहाज हैं.कल्पना कीजिये की इन जहाज़ों के द्वारा आतंकवादी भेजे गए होते तो क्या होता?हम बड़ी बड़ी बड़ी बातें भले ही कर लें,पर हमारा रवैया वैसा का वैसा ही रहेगा.जहां तक पर्यावरण की बर्बादी का प्रश्न है तो यहाँ इसको कितने भारतीय समझते हैं.हमलोग तात्कालिक लाभ के अतिरिक्त अन्य किसी चीज पर कभी ध्यान नहीं देते. जो लोग मजबूरी बस जहाज तोड़ने के कार्य में लगे हुए हैं और जिस अमानवीय वातावरण में वे कार्य करते हैं वह पत्थर को को भी पिघला सकता है,पर जिनको उससे लाभ मिल रहाहै वे इस पर ध्यान देने की भी आवश्यकता महसूस नहीं करते.यह सब तबतक होता रहेगा,जबतक हम अपने अधिकार के साथ अपने कर्तव्य को भी नहीं समझेंगे.