दलित वोटरों की ‘पीठ’ पर चढ़़ मुस्लिम तुष्टिकरण की सियासत करती माया और भीम आर्मी

0
170

संजय सक्सेना

   उत्तर प्रदेश में दलित वोटर हमेशा से निर्णायक भूमिका में रहे हैं। दलितों के सहारे कांगे्रस ने दशकों तक यूपी पर राज किया। कांगे्रस से मुंह मोड़ने के बाद दलित वोटरों ने थोड़े समय के लिए भाजपा का तो उसके बाद बसपा का दामन थाम लिया। आज भी दलित बसपा के कोर वोटर माने जाते हैं तो सपा-कांगे्रस और भारतीय जनता पार्टी की नजर भी हमेशा दलित वोटरों पर रहती है। खासकर भारतीय जनता पार्टी ने पिछले छहः-सात वर्षो में दलितों को अपनी तरफ खींचने की काफी कोशिश की है। केन्द्र की मोदी और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार दलितों को लुभाने का कोई भी मौका छोड़ते नहीं हैं। मोदी और योगी सरकार दलितों के उत्थान के लिए तमाम योजनाएं तो बनाती ही रहती है। इस बात का भी ध्यान रखती है की दलितों के सामाजिक हित और सम्मान सुरक्षित रहे। इसी लिए दलितों पर अत्याचार की घटनाओं को योगी सरकार गंभीरता से लेती है,जिसकी ताजा मिसाल है जौनपुर और आजमगढ़ की घटनाएं जहां एक वर्ग विशेष के लोगों ने दलितों पर अत्याचार और उनकी बेटियों के साथ छेड़छाड़ का कृत्य किया तो योगी सरकार ने अराजक तत्ववों पर रासुका लगाकर उन्हें जेल भिजवा दिया,जबकि तब तक बसपा सुप्रीमों मायावती मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते पूरे प्रकरण से चुप्पी साधे हुई थीं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि मोदी-योगी के दलित पे्रम के चलते दलितों ने बसपा से पूरी तरह से मुंह मोड़ लिया हो।     मोदी-योगी के दलित पे्रम के बाद भी आज तक इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि बहुजन समाज पार्टी की मुखिया और करोड़ो की सम्पति की मालिक मायावती तमाम ऐसे लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं जो दलित परिवार में जन्म लेने के कारण हीन भावना से ग्रस्त रहते हैं। मायावती ने कभी दलित होने को अभिशाप नहीं समझा। बल्कि अपनी सूझबूझ से माया ने दलित परिवार में जन्म लेने को भी एक सुनहरे मौके में बदल दिया। दलित चिंतक और नेता मान्यवर काशीराम को जब मायावती में अपनी ‘सियासी परछाई’ दिखाई दी तो उन्हें इस बात की तसल्ली हो गई कि जिस दलित मिशन को वह(काशीराम) बढ़ती उम्र के कारण मुकाम तक नहीं पहुंचा पाए हैं, उसे मायावती वह मुकाम दिलाएंगी,ताकि दलित समाज में शान से जी सके। इसी लिए काशीराम ने अपने जीतेजी उस मायावती को दलितों की आवाज बना दिया जो एक आईएएस अधिकारी बनकर देश-दुनिया को यह बताना चाहती थी कि दलितों में भी काबलियत की कमी नहीं है। बस उन्हें मौके की तलाश है।     काशीराम ने मायावती को सियासी जामा पहनाया तो माया ने अपनी काबलियत के बल पर मजबूत दलित वोट बैंक तैयार कर दिया। इसी वोट बैंक के सहारे माया ने चार बार उत्तर प्रदेश की बागडोर संभाली। माया ने कभी एतराज नहीं किया कि उन्हें लोग दलित की बेटी कहते हैं। राजठाठ से रहले वाली मायावती को चिढ़ तो तब होती थी,जब लोग उन्हें दौलत की बेटी कहते थे। हाॅ, जब माया को सियासी रूप से यह लगने लग कि सिर्फ दलित वोट बैंक के सहारे सत्ता की सीढ़िया नहीं चढ़ी जा सकती हैं तो माया ने अन्य जातियों के मतदाताओं को लुभाने के लिए भी खूब पैतरेबाजी की। उनके द्वारा बनाई गई भाई-चारा कमेटी को कौन भूल सकता है। कभी वैश्य-ब्राहमणों पर डोरे डाले तो कभी क्षत्रिय वोटरों को लुभाया। सत्ता हासिल करने के लिए मायावती ने ‘सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाया’ का नारा भी खूब उछाला, लेकिन माया को सबसे अधिक दलित-मुस्लिम गठजोड़ की सियासत रास आई।     यूपी के सियासी गलियारों में हमेशा इस बात की चर्चा होती रहती है कि समाजवादी पार्टी यादव-मुस्लिम तो बसपा दलित-मुस्लिम वोट बैंक के सहारे ही सियासत में सम्मानजनक स्थान हासिल कर पाए थे। उत्तर प्रदेश में मायावती पिछले तीन दशकों से दलित वोटरों की अकेली ‘ठेकेदार’ बनी हुई हैं। उन्हें कहीें से कोई विशेष चुनौती नहीं मिली। बीते कुछ वर्षो में अगर मायावती को किसी ने थोड़ा-बहुत परेशान किया है तो वह हैं भीम आर्मी के प्रमुख चन्द्रशेखर रावण। रावण अपने आप को मायावती का भतीजा भी बताता है और उनके दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश भी करता रहता हैं। दलित ही नहीं, माया की तरह मुस्लिम वोट बैंक पर भी रावण गिद्ध दृष्टि जमाए हुए हैं। इसी लिए नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जब कुछ मुसलमानों ने संघर्ष का बिगुल बजाया तो रावण भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल दिया। तब्लीगी जमात पर जब कोरोना फैलाने का आरोप लगा तब भी रावण ने इसके विरोध में हंगामा किया।   बहरहाल, यह किसी ने नहीं सोचा था कि मायावती हों या फिर भीम आर्मी के मुखिया चन्द्रशेखर रावण दोनों मुस्लिम तुष्टिकरण की सियासत के चलते अपने कोर दलित वोटरों के साथ होने वाले अत्याचार से भी आंखें मंूद सकते हैं। अगर ऐसा न होता तो माया और रावण जौनपुर और आजमगढ़ में कुछ मुस्लिमों द्वारा दलितों के घर जलाए जाने और दलित बेटियों के साथ अभद्रता के मामले मेें चुप्पी नहीं साधे रहते। खैर, दलितों पर अत्याचार की खबरों से चन्द्रशेखर रावण और मायावती की जुबान पर लगा ‘मजबूरी का ताला’, भले नहीं खुला हो, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना का पता चलते ही आनन-फानन में उक्त घटना को अंजाम देने वालों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून(एनएसए) और  गैंगेस्टर एक्ट लगाने में देरी नहीं की। इस बीच इतना जरूर हुआ की जब माया को लगा की कहीं योगी दलित सियासत में बाजी मार नहीं ले जाएं तो उन्होंने सोशल मीडिया पर एक बयान जरूर जारी कर दिया कि उक्त घटना में लिप्त लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। मायावती ने ट्वीट किया, यूपी में चाहे आजमगढ़, कानपुर या अन्य किसी भी जिले में खासकर दलित बहन-बेटी के साथ हुए उत्पीड़न का मामला हो या फिर अन्य किसी भी जाति व धर्म की बहन-बेटी के साथ हुए उत्पीड़न का मामला हो, उसकी जितनी भी निंदा की जाये, वह कम है,बहरहाल, जब तक माया का ट्वीट आया तब तक योगी सरकार बदमाशों पर एनएसए और गैंगेस्टर एक्ट लगाने का आदेश दे चुकी थी। वैसे भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश में दलितों पर हो रहे अत्याचार तथा अपराध के मामले में बेहद सख्त हैं। जौनपुर में दलितों के साथ मारपीट के बाद घर जलाने के आरोपतियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत कार्रवाई की गई तो आजमगढ़ में भी दलित बालिकाओं के साथ छेड़छाड़ करने के मामले में एक दर्जन लोगों को अंदर भेजने के साथ एनएसए लगाया गया है।  दर्जन भर से अधिक लोगों को गिरफ्तार भी किया जा चुका था।    लब्बोलुआब यह है कि अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ अराजक तत्वों द्वारा अनुसूचित जाति के परिवारों पर जुल्म ढाए जाने की घटना तो निंदनीय है हीं, उससे अधिक दुखद यह है कि जो राजनीतिक दल दशकों से अनुसूचित जातियों का दशको तक भावनात्मक शोषण करते रहे, वह नेता दलितों के घर फूंके जाने और उनकी बेटियों की इज्जत के साथ खिलवाड़ किए जाने पर इसलिए सधे लहजें में प्रतिक्रिया दे रहे थे कि कहीं पीड़ित दलितों के पक्ष में उनकी दी गई बयानबाजी से मुस्लिम वोटर नाराज न हो जाएं। दलितों के साथ इससे बड़ा धोखा और क्या हो सकता है कि जिन दलों और नेताओं पर बार-बार विश्वास करके उन लोगांे(दलितों ने) ने सत्ता की सीढ़िया चढ़ने में मदद पहुंचाई, वे दल इतने घटिया स्तर की वोटबैंक राजनीति कर रहे हैं कि दलितों की जान-माल और बहू-बेटियों की इज्जत पर हमलों का डंके की चोट पर विरोध करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। पीड़ित दलित परिवार के लोगों को  इस बात का जरूर संतोष हुआ होगा कि मुख्यमंत्री ने उन पीड़ितों की भरपूर सहायता की,लेकिन यह बात मायावती को कैसे रास आ सकती थी,इस लिए उन्होंने नया शिगूफा छोड़ दिया। बसपा प्रमुख ने कहा कि आजमगढ़ में दलित बेटी के साथ हुए उत्पीड़न के मामले में कार्रवाई को लेकर यूपी के मुख्यमंत्री देर आए पर दुरुस्त आए, यह अच्छी बात है. लेकिन बहन-बेटियों के मामले में कार्रवाई आगे भी तुरन्त व समय से होनी चाहिये तो यह बेहतर होगा।     आजमगढ़ और जौनपुर में दलितों पर अत्याचार और उसको लेकर माया की पहले चुप्पी और फजीहत पर मायावती ने घटना में लिप्त लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग भले कर दी हो,लेकिन मायावती का असली चेहरा और मकसद तो सब समझ ही गए। इसी लिए जानकार तो यही कह रहे हैं कि  मुसीबत की घड़ी में दलित वोट बैंक की सियासत करने वाले नेता चुप रह,े इस बात का मलाल पीड़ितों और दलित चिंतकों को उतना नहीं हुआ होगा, जितना यह देखकर हो रहा होंगा ट्विटर पर लगातार सक्रिय मायावती ने उसी बीच ट्वीट कर जेएनयू और जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी की रैंक बेहतर होने पर उक्त संस्थाओं को बधाई दी लेकिन, जौनपुर में अनुसूचित वर्ग के लोगों के घर जलाने के प्रकरण पर सहानुभूति जताने के लिए मायावती की जुबान से दो शब्द निकले में काफी समय लग गया। ऐसे मसलों पर अक्सर कूच का एलान करने वाले भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर को भी आजमगढ़ व जौनपुर के  अपने समाज की पीड़ा का अहसास नहीं हुआ। अक्सर मुखर रहने वाले इन नेताओं की खामोशी ने अनुसूचित जातियों से उनके वोटबैंक की सियासत के चलते मायावती और चंद्रशेखर जैसे  नेताओं के रवैये को लेकर सवाल उठने लगें है।माया-रावण के इस कृत्य से दुखी रिटायर्ड आइपीएस और पूर्व डीजीपी बृजलाल ने ट्वीट कर मायावती और चंद्रशेखर पर निशाना साधा। उन्होंने लिखा सुश्री मायावती आपने सियासी मंच पर दशकांे खुद को दलित की बेटी कहकर सत्ता का मजा लिया है। आज आजमगढ़ की दलित बेटियां आपको पुकार रही है। और आप चुप है। गेस्ट हाउस कांड की पीड़ा से कम यह दर्द नहीं है। बहनजी। आजमगढ़ में मुस्लिम लड़कों ने दलितों को बेरहमी से पीटा, जो कि अपनी बालिकाओं से की जा रही  छेड़छाड़ का विरोध कर रहे थे। इनती संवेदनशील घटना पर मायावती और प्रो. दिलीप मंडल चुप्पी साधे हैं। बृजलाल ने भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर को भी कठघरें में खड़ा किया। उन्होंने लिखा दलित वर्ग कह रहनुमाई की नुमाइश करने वाले बहुरूपिए भीम आर्मी चीफ जौनपुर व आजमगढ़ की लोमहर्ष घटना पर खामोश हो? जौनपुर-आजमगढ़ की घटनाओं पर बसपा सुप्रीमों मायावती की चुप्पी और दबाव पड़ने पर उक्त घटना की आलोचना के कई मायने हैं। दरअसल, मायावती मुस्लिम-दलित गठजोड़ के सहारे 2022 में फिर से सत्ता हासिक करने का सपना  देख रही हैं। इसी क्रम में बीते वर्ष हुए लोकसभा चुनावों में प्रदेश के 19 प्रतिशत मुस्लिम वोटों को हासिल करने के लिए टिकटों के बंटवारे में उनकी बड़ी हिस्सेदारी तय की गई थी मुस्लिम वोटों का बिखराव रोकने के लिए ही उन्होंने गत लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से भी गठबंधन किया था। इसी तरह भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर भी इसी समीकरण के सहारे खुद को बसपा का विकल्प बनाने की कोशिश में लगे है। इसी लिए चन्द्रशेखर ने पहले नागरिकता सुरक्षा कानून और फिर कोरोना संक्रमण के दौर में तब्लीगी जमात का खुला समर्थन कर मुस्लिमों में पकड़ बनाने की कोशिश की ।  जौनपुर और आजमगढ़ की घटनाओं को लेकर बसपा सुप्रीमों मायावती और भीम आर्मी के चन्द्रशेखर रावण की ही नहीं कांगे्रस की महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका वाड्रा और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादवकी चुप्पी भी सताती रही। अगर यूपी में किसी को छींक भी आ जाए तो प्रियंका वाड्रा मोदी-योगी को कोसने-काटने लगती हैं,लेकिन मुस्लिम वोटों के सहारे यूपी में पैर जमाने की मंशा के चलते प्रियंका इस मुद्दे पर मुंह सिले बैठी हैं।् बात-बात पर मोदी-योगी सरकार के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बनाने वाली प्रियंका के लिए संभवता दलित बेटियों का सम्मान मायने नहीं रखता होगा। वर्ना दंगाइयों के घर जाकर मातम मनाने वाली प्रियंका वाड्रा यों शांत नहीं रहती। 

Previous articleदेवीभक्त लांगुरा का उपहास करते लांगुरिया गीत
Next articleवत्स ! क्या अब तुम वह नहीं!
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,749 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress