डा. राधेश्याम द्विवेदी
मोदी के दिल्ली आ जाने से कई धुरविरोधी नेता एक दूसरे के करीब आ रहे हैं। इनमें सबसे बड़े नाम हैं लालू प्रसाद यादव और नीतिश कुमार। 23 साल बाद ये दोनों साथ हैं। मोदी-विरोधी मंच को बड़ा करने में जी-जान से जुटे समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह ने बसपा सुप्रीमो मायावती को आमंत्रण भेजा है। कहा है कि यदि उत्तर प्रदेश मे दोनों का साथ हो गया तो भाजपा कहीं नहीं टिकेगी। मगर क्या मायावती इस आमंत्रण को स्वीकारेंगी ? क्या वे भूल पाएंगी लखनऊ का वह गेस्ट हाउस कांड ? 1993 में सपा-बसपा ने मिलकर यूपी में गठबंधन सरकार बनाई थी। लेकिन 1995 में कुछ ऐसा हुआ कि मायावती के लिए मुलायम सिंह राजनीतिक और निजी तौर पर दुश्मन नंबर-1 बन गए. सपा से खींचतान से खफा मायावती उस समय लखनऊ गेस्ट हाउस में सरकार से समर्थन वापसी का एलान करने जा रही थीं। उनके यह एलान करते ही सपा समर्थकों ने गेस्ट हाउस पर हल्ला बोल दिया । मायावती को बंधक बना लिया। उनके साथ काफी अभद्रता की गई। अगर कुछ नेता और पुलिस अधिकारियों ने ऐन वक्त पर उनकी मदद ना की होती तो मायावती के साथ कोई बड़ी घटना हो सकती थी। उस घटना के बाद से मायावती ने मौके-बेमौके मुलायम सिंह को गुंडा कहकर ही संबोधित किया।
माया का झुकाव बीजेपी की ओर :- 2017 के चुनाव अभी दूर हैं। मायावती की एक दुखती नस उनके खिलाफ चल रहा सीबीआई केस भी है। यूपीए सरकार के अंतिम दिनों में मुलायम तो ऐसे ही केस से मुक्त हो गए, लेकिन मायावती का मामला लटका हुआ है। 1997 और 2002 में मुख्यमंत्री बनने के लिए उन्होंने बीजेपी का समर्थन लेने से गुरेज नहीं किया। भले ही वो हमेशा बीजेपी की राजनीति के खिलाफ रही हों. मोदी सरकार बनने के बाद से मायावती एक रहस्यमय चुप्पी साधे हुए हैं। गौरतलब है कि लोकसभा में बीजेपी की शानदार जीत का सबसे बड़ा नुकसान बिहार और उत्तर प्रदेश के नेताओं को हुआ। बिहार में नीतीश की जेडीयू और आरजेडी का सूपड़ा साफ हो गया। यूपी में सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी केवल 5 सीटों पर सिमट कर रह गई। जबकि बीएसपी को एक भी सीट हासिल नहीं हुई। बावजूद इसके मायावती किसी गठबंधन की जल्दबाजी में नहीं हैं।
1995 में लखनऊ में गेस्टहाउस काण्ड
संघ बीजेपी और हिंदुत्व खराब नही:- 2 जून 1995 को लखनऊ के राज्य अतिथि गृह में गेस्टहाउस कांड हुआ था। गेस्टहाउस कांड मायावती के जीवन पर आधारित अजय बोस की किताब ‘बहनजी का अंश’ में प्रकाशित किया है। किताब के हिंदी अनुवाद के पृष्ठ 104 और 105 पर छपा ये अंश गेस्टहाउस में उस दिन घटी घटनाओं का पूरा ब्योरा है।जब सपाई गुंडों ने दलित महिला मायावती को कमरे में बंद करके मारा था और उनके कपड़े फाड़ दिए थे ,रेप होने ही वाला था । तब मायावती को अपनी जान पर खेलकर सपाई गुंडों से अकेले भिड़ने वाले बीजेपी विधायक ब्रम्हदत्त द्विवेदी ही थे। उनके पर जानलेवा हमला हुआ फिर भी वो गेस्टहाउस का दरवाजा तोड़कर मायावती जी को सकुशल बचा कर बाहर निकाले थे। यूपी की राजनीती में इस काण्ड को गेस्टहाउस काण्ड कहा जाता है और ये भारत के राजनीती पर कलंक है। खुद मायावती ने कई बार कहा है की जब मै मुसीबत में थी तब मेरी ही पार्टी के लोग गुंडों से डरकर भाग गये थे, लेकिन ब्रम्हदत्त द्विवेदी भाई ने ही अपनी जान की परवाह किये बिना मेरी जान बचाई थी। ये बात मै उन दलित मित्रो को याद दिलाने के लिए लिख रहा हूँ, जो कुछ मुस्लिम लोगो के बहकावे में आकर संघ और बीजेपी और हिंदुत्व के बारे में बहुत खराब लिख रहे है। ब्रम्हदत्त द्विवेदी संघ के संघसेवक थे और उन्हें लाठीबाजी आती थी। इसलिए वो एक लाठी लेकर कट्टा राइफल लिए हुए गुंडों से भीड़ गये थे। मायावती ने भी उन्हें हमेशा अपना बड़ा भाई माना और कभी उनके खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा नही किया ।मजे की बात ये की पुरे यूपी में मायावती बीजेपी का विरोध करती थी, लेकिन फर्रुखाबाद में ब्रम्हदत्त जी के लिए प्रचार करती थी। जब सपाई गुंडों ने बाद में उनकी गोली मारकर हत्या करदी थी ,तब मायावती उनके घर गयी थी और खूब फुट फुटकररोई थी। उनकी विधवा जब चुनाव में खड़ी हुई थी तब मायावती ने उनके खिलाफ कोई उम्मीदवार नही उतारा था। लोगो से अपील की थी की मेरी जान बचाने के लिए दुश्मनी मोल लेकर शहीद होने वाले मेरे भाई की विधवा को वोट दे।
संघ का क़र्ज़ भूली माया:-जब इज़्ज़त बचाई थी संघ ने जानिए जब सपा के गुंडों से माया को बचाया था संघ लट्ठमार ने समाजवादी पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती के दोबारा साथ आने की संभावनाओं का अंत हो गया। मायावती ने बुधवार को लखनऊ गेस्टहाउस कांड का याद कर मुलायम से दोस्ती से इनकार कर दिया। लखनऊ गेस्टहाउस कांड का हवाला देकर ही वह दोनों नेताओं की दोस्ती के अगुवा लालू प्रसाद यादव पर भी जमकर बरसीं। उन्होंने कहा कि वैसी घटना लालू की बहन-बेटी के साथ हुई होती तो वह गठबंधन की बात कभी नहीं करते। माया-मुलायम की अदावत के कारण लखनऊ गेस्टहाउस की यादें फिर ताजा हो गईं हैं।
गेस्ट हाउस कांड के आरोपी को ही माया ने टिकटदिया:- जान के दुश्मन कब जान से प्यारे हो जाएं, राजनीति में कोई नहीं जानता। उत्तर प्रदेश के चर्चित माफिया डॉन अन्ना शुक्ला को ही लीजिए। एक वक्त मुलायम का करीबी रहा ये बाहुबली मायावती के हाथी पर सवार हुआ है। साल 1995 का सनसनीखेज गेस्ट हाउस कांड कौन भूल सकता है। मायावती पर जानलेवा हमला हुआ और आरोप लगा कि हमलावर समाजवादी पार्टी के थे। उन्हीं आरोपियों में एक नाम आया- अरुण शंकर शुक्ला उर्फ अन्ना शुक्ला का। लेकिन आप ये जानकर हैरान हो जाएंगे कि वही अन्ना महाराज शुक्ला मायावती के हाथी पर बैठकर संसद में जाने की तैयारी में रहा हैं। अन्ना का लंबा आपराधिक इतिहास है हालांकि तमाम बाहुबलियों की तरह वो भी खुद पर लगे आरोपों को झूठा बताते हैं। उनके मुताबिक ऐसा पहली बार हो रहा है कि लोग इस बारे में पूछ रहे हैं जबकि बात में दम नहीं है। सच्चाई नहीं है। हम गरीबों, अमीरों, व्यापारी वर्ग सबके साथ राजनीतिक तौर पर काम कर रहे हैं। इन बातों से हमें कोई लेना-देना नहीं है। अन्ना जो कहें लेकिन सच्चाई ये है कि पुलिस रिकॉर्ड में उनका नाम खासा पुराना है। अन्ना की हिस्ट्रीशीट लखनऊ के हसनगंज थाने में 1982 में खुली। उस वक्त अन्ना के खिलाफ 50 मामले थे। अन्ना के खिलाफ मामलों में हत्या, जान से मारने की कोशिश, अपहरण और फिरौती जैसे संगीन मामले शामिल हैं। अन्ना गैंगस्टर एक्ट और रासुका में जेल की हवा खा चुके हैं। समाजवादी पार्टी के साथ सियासी सफर शुरू करने के बाद दिसंबर 2008 में अन्ना बीएसपी में शामिल हो गए। मायावती कहती हैं कि वो सुधर गए हैं और उन्हें मौका दिए जाने की ज़रूरत है। लेकिन अन्ना के खिलाफ लड़ रहे उम्मीदवार इससे इत्तेफाक नहीं रखते। सबको पता है पहली बार सांसद का चुनाव लड़ रहे अन्ना का असली मकसद इलाके का विकास नहीं बल्कि सियासी छत्रछाया में अपना वजूद बचाना है। बीएसपी के 80 उम्मीदवारों में से 20 ब्राह्मण हैं, 14 मुस्लिम हैं और 6 ठाकुर हैं। ये मायावती की सोशल इंजीनियरिंग है लेकिन मायावती की एक एंटीसोशल इंजीनियरिंग भी है जिसके तहत अन्ना शुक्ला जैसे डेढ़ दर्जन उम्मीदवार आते हैं।
उज्ज्वला रसोई गैस योजना दिखावटी:- बहुजन समाज पार्टी (बसपा) मुखिया मायावती ने केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार की ‘उज्ज्वला योजना’ को आज ‘ऊँट के मुँह में जीरा’ करार देते हुए रसोई गैस के बजाय सिर्फ कनेक्शन ही मुफ्त दिये जाने को सरकार के दिखावापूर्ण रवैये की निशानी बताया।मायावती ने एक बयान जारी कर कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने देश भर में ग़रीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने वाले (बीपीएल) लोगों में से महज पांच करोड़ को अगले तीन सालों में गैस सिलिंडर देने के लिये उज्ज्वला योजना की शुरुआत गत एक मई को प्रदेश के बलिया जिले से की। बसपा मुखिया ने कहा कि पहले वर्ष में देश के करीब डेढ़ करोड़ लोगों को इस योजना का लाभ देने का इरादा है। यह संख्या बेहद कम है। इसके अलावा 22 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में 80 में से प्रधानमंत्री समेत भाजपा के 73 सांसद हैं। इस लिहाज से उत्तर प्रदेश के हिस्से में उज्ज्वला योजना का थोड़ा लाभ आ पायेगा। यह योजना उत्तर प्रदेश के साथ-साथ देश के लिये भी ‘ऊँट के मुँह में जीरा’ ही मानी जायेगी।उन्होंने कहा कि रसोई गैस की सुविधा मुफ्त नहीं देकर, उन्हें केवल गैस कनेक्शन ही मुफ्त दिया जा रहा है, जो कि भाजपा सरकार की इन ग़रीबों के प्रति उदासीन तथा दिखावटी रवैये को ही उजागर करता है। मायावती ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में कुछ लोगों को ई-रिक्शा बांटा है। परन्तु उत्तर प्रदेश के अन्य सभी 79 लोकसभा क्षेत्र का तिरस्कार कर दिया गया। यह प्रदेश के लोगों व क्षेत्रों के साथ भेदभाव नहीं तो और क्या है? उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि यही काम कांग्रेस के नेतान पहले किया करते थे और अमेठी, रायबरेली आदि क्षेत्र के लोगों का उपकृत करते रहे थे और यही काम यहां सपा सरकार के मुखिया (अखिलेश यादव) भी लगातार करते रहे हैं।
मायावती मोदी फेक्टर से चिन्तित:- मायावती ने जो प्रेस वार्ता लखनऊ में सम्पन्न किया किया उसको देखकर यह साफ साफ निष्कर्ष निकाला जा सकता है की अब मायावती भी यूपी के आगामी विधान सभा चुनाव को लेकर बीजेपी से बेहद डरी हुयी हैं। पूरे प्रेस वार्ता के दौरान उनकी विशेषकर बातें बीजेपी के इर्द-गिर्द ही घूमती नज़र आयीं। हालांकि उन्होने सपा पर भी अपने तंज़ कसकर केवल खाना पूर्ति किया, मगर हिन्दी के हर शब्द को पढ़-पढ़ कर बोलने वाली हिंदीभाषी बीएसपी अध्यक्ष मायावती पूरे वार्ता में बीजेपी को ही कोसती नज़र आई। इससे साफ होता है की भले वो ऊपर से इंकार करें लेकिन अंदर से वो भी मोदी फेक्टर से चिन्तित हैं। अगर आपने ध्यान दिया हो तो पाएंगे की पूरे वार्ता के दौरान उन्होने एक बहुत ही अच्छी बात यह कहीं की अब अगर उनकी सरकार यूपी में आई तो वो अब नए पार्कों का निर्माण नहीं कराएंगी बल्कि बिजली-पानी व सड़कों आदि पर अपना ध्यान फोकस करेंगी। इसका मतलब साफ है की उन्हे अंदर ही अंदर अपने द्वारा पूर्व में की गई गलतियों का एहसास शायद हुआ है। जग जाहीर है की पार्क प्रेमी मायावती हर बार सत्ता में आने पर जनता के पैसे को पार्कों के नाम पर पानी की तरह बहाती हैं, लेकिन अब आगे ऐसी भूल करने से शायद डर रही हैं ये बात अलग है की वो इस पर खुलकर सामने नहीं आना चाहती हैं लेकिन उन्होने अपने प्रेस वार्ता में इस बात को साफ करने की कोशिश किया है। देखना यही है की अब यूपी की जनता किसके गोद में जाकर बैठती है।