पवार के मोदी से मिलने के मायने

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-निरंजन परिहार

वैसे तो देश के दो बड़े नेताओं का मिलना कोई बड़ी खबर नहीं बनता, लेकिन नेता अगर शरद पवार हो, मुलाकात अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हो और मामला महाराष्ट्र का हो, तो सचमुच बड़ी खबर तो बन ही जाता है। क्योंकि महाराष्ट्र में तीन दलों की खिचड़ी सरकार के गठबंधन की गांठ पवार ही है, और बीजेपी उस सरकार के कभी भी गिरने के सपनपाले बैठी है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात प्रधानमंत्री आवास पर हुई। दोनों नेताओं की करीब एक घंटा मीटिंग चली। इससे एक दिन पहले शरद पवार ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और पीयूष गोयल से मुलाकात की थी। अब इन मुलाकातों के कई मायने निकाले जा रहे हैं। और सबसे बड़ी चर्चा यही है कि बीजेपी-एनसीपी मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बना सकते हैं, जो कि बीजेपी चाहती भी है।

प्रधानमंत्री मोदी से पवार की इस मुलाकात पर कांग्रेस के दिग्गज नेता सुशील कुमार शिंदे ने कहा है कि पवार साहब और मोदी जरूर मिले होंगे। लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है। क्योंकि पवार साहब गुगली फेंकने में माहिर हैं। वे ऐसी गुगली कई बार फेंक चुके हैं। शिवसेना ने भी कहा है कि महाविकास आघाड़ी सरकार में सब कुछ ठीक चल रहा है और साथी पार्टियों के मंत्रियों को जितनी छूट इस सरकार में मिली है, उतनी किसी सरकार में नहीं मिली है। कहा तो पवार की पार्टी के प्रवक्ता नवाब मलिक ने भी है कि बैंक नियामक प्राधिकरण में हुए परिवर्तन को लेकर चर्चा करने के लिए पवार मोदी से मिले हैं। लेकिन बीजेपी इस बात को हवा दे रही है कि आनेवाले दिनों में महाराष्ट्र सरकार गिर सकती है और बीजेपी फिर से सत्ता में आनेवाली है।

वैसे, पीएम मोदी और शरद पवार की मुलाकात के प्रकट कारण कुछ भी बताए जा रहे हैं, लेकिन राजनीतिक मायने यही है कि हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ है, जिसमें महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को मंत्री बनाए जाने की जबरदस्त चर्चा रही। लेकिन मोदी ने फडणवीस को अपनी सरकार में हिस्सा नहीं बनाया। मतलब साफ है कि मोदी भी फडणवीस को प्रदेश में ही बनाए रखना चाहते हैं। महाराष्ट्र में जबसे बीजेपी को छोड़कर शिवसेना ने कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस का दामन थामा है, तब से ही बीजेपी के राजनीतिक समीकरण सुधरने के साथ ही उसकी सरकार फिर से बनने के संकेत दिखाए जाते रहे हैं। शिवसेना ने भी बीच में कहा था कि वह अब भी वहीं पर खड़े होकर इंतजार कर रही है जहां से बीजेपी ने उसका साथ छोड़ा था। लेकिन उसकी अपनी शर्तें हैं।

बीजेपी के महाराष्ट्र में सत्ता में आने की ललक इतनी मजबूत है कि बीजेपी के नेता शिवसेना के दूर चले जाने के बावजूद उसके प्रति अपना प्रेम दर्शाने से कभी नहीं चुकते। वे अकसर शिवसेना के प्रति अपना पुराना स्नेह भाव दिखाते रहते हैं। लेकिन शिवसेना राज्य में बीजेपी के साथ सरकार बनाने के मामले में अपना 50 – 50 वाला फॉर्मूला छोड़ने को बिल्कुल तैयार नहीं है। इसका साफ मतलब है कि ताजा हालात में देवेंद्र फडणवीस शिवसेना के साथ गठबंधन में मुख्यमंत्री नहीं बन सकते। अब बात अगर पवार की पार्टी की करें तो देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बन सकते हैं। माना जा रहा है कि इसलिए वे केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए और शरद पवार ने दिल्ली में प्रधानमंत्री से मिलने से पहले पीयूष गोयल और राजनाथ सिंह से अलग अलग मुलाकात की। इसीलिए माना जा रहा है कि कुछ खिचड़ी जरूर पक रही है। क्योंकि बीजेपी पवार की पार्टी एनसीपी के साथ महाराष्ट्र में सरकार बनाएगी, तभी देवेंद्र फडणवीस दोबारा मुख्यमंत्री बन सकते हैं।

लेकिन ये सारी बातें लगभग सपने जैसी अविश्वसनीय है, और कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस और शिवसेना की राजनीतिक हालत देखते हुए तीनों का साथ रहना तीनों के लिए जरूरी है। लेकिन यह भी सच है कि बीजेपी हर हाल में सत्ता में आना चाहती है। क्योंकि 2024 में होनेवाले अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हर हाल में पिर से केंद्र में सत्ता में आना ही है। सो, महाराष्ट्र की 48 सीटों में से ज्यादातर पर जीतना जरूरी है। सो, अपना मानना है कि अगले लोकसभा चुनाव से साल भर पहले उद्धव ठाकरे की सरकार तो गिरेगी, और हर हाल में गिरेगी, और बीजेपी शिवसेना या राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ फिर से सत्ता में आएगी। वरना मोदी की 2024 में देश में दिग्विजय यात्रा पूरी होना आसान नहीं है।

1 COMMENT

  1. मुख्य कारण अजीत पंवार और देश मुख पर कसता जा रहा शिंकजा है पंवार उससे मुक्ति पाने के लिए कुछ चुग्गा डालने की जुगत में हैं वे भा ज पा के साथ कहीं नहीं जाने वाले हैं वे जानते हैं कि उस सरकार में उनका वह रुतबा नहीं रहने वाला है जो आज है

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