मध्यावधि उपचुनाव

0
185

 

 विजय कुमार,

विरोधी पक्ष के बड़े-बड़े लोग सिर जोड़कर बैठे थे। विषय वही था 2019 का चुनाव। महाभारत की घोषणा भले ही न हुई हो, पर उसके होने में अब कुछ संदेह बाकी नहीं था। तब तो श्रीकृष्ण ने युद्ध टालने की बहुत कोशिश की। आधे राज्य के बदले पांच गांव पर ही समझौता करना चाहा; पर होई है सोई, जो राम रचि राखा। अतः युद्ध होकर ही रहा। लेकिन इस बार दोनों पक्ष महाभारत के लिए तैयार हैं। मजे की बात ये है कि दोनों खुद को पांडव और दूसरे को कौरव बता रहे हैं।इसलिए सब विरोधी दल सिर जोड़कर बैठे हैं। मोदी और शाह की जोड़ी को कैसे हराएं ? यद्यपि पिछली कुछ झड़पों में उन्हें गहरे घाव लगे हैं; पर इससे वे निराश या हताश नहीं हैं। जहां विपक्षी अभी तक अपना सेनापति ही तय नहीं कर पाए हैं, वहां अमित शाह ने नये महारथी ढूंढने शुरू कर दिये हैं।विरोधियों को सिर जोड़कर बैठे काफी समय हो गया; पर सेनापति के अभाव में बात का कुछ सिर-पैर ही पकड़ में नहीं आ रहा। एक टोलीनायक ने काजू और किशमिश से भरा समोसा खाते हुए कहा कि अभी जल्दी क्या है; सेनापति युद्ध के बाद तय कर लेंगे। युद्ध में हममें से कौन बचेगा और कौन नहीं, ये कहना कठिन है। इसलिए जो बचेंगे, उनमें से कोई सेनापति चुन लेंगे। कई लोग इस पर हंसे। एक ने कहा कि ऐसी रेलगाड़ी हमने नहीं देखी, जिसमें इंजन ही न हो। सेनापति के बिना रणनीति कौन बनाएगा और युद्ध में नेतृत्व कौन करेगा ? इसलिए सेनापति तय होना चाहिए।कुछ लोग चाहते थे कि उनके टोलीनायक ही सेनापति घोषित कर दिये जाएं। एक जमाने में उनकी टोली का बड़ा दबदबा था; पर जब से उन्होंने काम संभाला है, तबसे उनकी टोली पीछे ही खिसक रही है। अतः बाकी लोग उनके नेतृत्व में काम करने को तैयार नहीं थे। उनका भुलक्कड़पन भी प्रसिद्ध है। उन्होंने कैलास मानसरोवर यात्रा पर जाने की घोषणा तो कर दी; पर उसका फार्म नहीं भरा। युद्ध में भी वे कुछ भूल गये तो.. ?फिर वे अभी विदेश से छुट्टी बिताकर भी नहीं लौटे थे। खतरा ये भी था कि कहीं युद्ध के दौरान ही उन्हें छुट्टी की जरूरत न पड़ जाए। उनकी छुट्टी का कुछ पता नहीं लगता था। वहां से बुलावा आने पर उन्हें जाना ही पड़ता था। वे कहां जाएंगे और कब लौटेंगे, ये भी ठीक पता नहीं। छुट्टी न हुई मानो घर वाली का हुकम हो गया। मानो तो मुसीबत, और न मानो तो डबल मुसीबत।इसलिए कई नायक उनके नेतृत्व में काम करने को तैयार नहीं थे। सचमुच महाभारत जैसा दृश्य था। वहां कर्ण ने कह दिया था कि जब तक भीष्म पितामह सेनापति हैं, तब तक मैं नहीं लड़ूंगा। और जब कर्ण सेनापति बने, तो कई नायक उन्हें छोटी जाति का बताकर युद्ध से बाहर हो गये। कुछ लोग इस बार उत्तर की बजाय पूर्व की उग्र नायिका या पश्चिम के सरल सरदार को आगे रखना चाहते थे। कुछ लोग दक्षिण भारत से कोई सेनापति आयात करने के पक्ष में थे। सुबह से शाम हो गयी। लंच के बाद चाय और फिर डिनर की तैयारी होने लगी; पर सेनापति तय नहीं हुआ।हमारे परम मित्र शर्मा जी भी वहां खानपान की व्यवस्था में लगे थे। उनका दिमाग ऐसी समस्याओं में खूब चलता था; पर बड़े लोगों के बीच उन्हें कौन पूछता ? डिनर के दौरान उन्होंने सुझाव दिया कि इन दिनों विपक्ष को मुख्य चुनाव में तो पराजय मिल रही है, लेकिन उपचुनावों में उसका पलड़ा भारी हो रहा है। अतः विपक्ष 2019 के चुनाव को ‘मध्यावधि उपचुनाव’ मानकर लड़े।दिन भर की दिमागी कसरत से थके लोगों को उनका सुझाव काफी अच्छा लगा। अतः उन्होंने अगली बैठक में इस पर गंभीरता से विचार करने का निर्णय लिया। तबसे शर्मा जी उस बैठक की प्रतीक्षा में हैं, जिसमें उनके ‘मध्यावधि उपचुनाव’ वाले सुझाव पर विचार होगा। उन्हें विश्वास है कि इस टोटके से 2019 में बेड़ा पार हो जाएगा।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,011 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress