
डॉ कौस्तुभ नारायण मिश्र
भारतीय की वर्तमान विदेश नीति की एक और बड़ी सफलता। पुलवामा आतंकी घटना के 75 दिन बाद पूरी दुनिया ने पाकिस्तान को केन्द्र मानकर अपनी गतिविधि चला रहे मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी मान लिया गया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने मसूद अजहर को अब अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने जैश-ए- मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर के खिलाफ इस प्रकार की सख्त कार्रवाई भारत की कूटनीटिक सफलता और प्रयास का परिणाम है।जैश-ए-मोहम्मद ने बीते 14 फरवरी को पुलवामा में आतंकी हमला किया था। पहले भी, किन्तु इसके बाद से विशेष रूप से भारत लगातार मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित कराने की कोशिश कर रहा था। इसमें सबसे बड़ी बाधा चीन था; किन्तु अब 75 दिन बाद भारत को कामयाबी मिल गई है। भारत की यह सफलता, भारत की आतंकवाद पर जीत के साथ-साथ, चीन पर भी कूटनीतिक वैदेशिक नीतिगत विजय है। मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा समिति के सदस्य देशों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस लगातार भारत की कोशिश के साथ मिलकर कदमताल कर रहे थे; लेकिन बार-बार चीन इस पर वीटो लगा रहा था। बीते लगभग 10 वर्षों में चीन चार बार वीटो लगा चुका था। लेकिन पाँचवीं बार मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव पर न केवल वह राजी हुआ, बल्कि भारत की कूटनीतिक योजना और सयुंक्त राष्ट्र संघ जैसे वैश्विक मंच पर भी भारत के सामने नतमस्तक हुआ।संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले राजदूत सैयद अकबरूद्दीन ने इसकी जानकारी ट्विटर पर दिया। उन्होंने कहा, ‘मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कर दिया गया है, सहयोग के लिये सभी सदस्य देशों को धन्यवाद।’ मसूद अजहर का कश्मीर कनेक्शन बहुत ही भयावह रहा है। कन्धार काण्ड हो या फिर पुलवामा में बीता बड़ा आतंकी हमला; 90 के दशक से ही मसूद अजहर जम्मू-कश्मीर आतंक का पर्याय बनकर अतिशय सक्रिय रहा है। 1998 में उसे श्रीनगर से गिरफ्तार किया गया था; लेकिन कन्धार काण्ड के बाद भारत सरकार को देश के नागरिकों के हवाई सुरक्षा के मद्देनजर उसे रिहा करना पड़ा था। उसी के बाद से वह भारत के लिए चिन्ता का विषय बना हुआ था। भारत से रिहा होने के बाद मसूद अजहर ने जैश-ए- मोहम्मद नाम का संगठन बनाया; जिसने अभी तक हिन्दुस्तान में अनेक आतंकी वारदातों को अंजाम दिया है।भारत में जिन हमलों के पीछे जैश-ए-मोहम्मद का हाथ रहा है; उनमें प्रमुख हैं- 2001 में भारतीय संसद पर हमला; 2016 में पठानकोट हमला; 2018 में द्वितीय पठानकोट हमला और 2019 में पुलवामा आतंकी हमला। इनकी पृष्ठभूमि में 1998 का कन्धार काण्ड ही है। ये तो वो आतंकी हमले हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा; लेकिन इसके अलावा भी कश्मीर में रोजाना जो छोटे आतंकी हमले होते रहे हैं या सेना के साथ मुठभेड़ होती रही है। उसमें भी जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी शामिल रहे हैं।एक महत्वपूर्ण सवाल सबके मन में जरूर उपजता है कि हाफिज सईद के मुकाबले, और अधिक दुर्दान्त एवं हिंसक आंतकवादी मसूद अजहर पर ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रतिबन्ध क्यों लगाया? इसका भारत की दृष्टि से उत्तर यह बनेगा कि तुलनात्मक रूप से मसूद अजहर भारत के लिये अधिक खतरनाक रहा है और इसी कारण भारत ने वैश्विक कूटनीतिक वातावरण सबसे पहले मसूद अजहर के खिलाफ बनाया; जिससे पाकिस्तान और उसका साहस बढ़ा रहे चीन का नकारात्मक मनोबल टूटे। आगे हाफिज सईद लक्ष्य में शामिल होगा, भारत की परिवर्तित विदेश नीति जरूर इस पर कार्य करेगी, देश को इस बात पर पूरा भरोसा है।मसूद अजहर को लेकर अन्तर्राष्ट्रीय तनातनी के आसार स्वाभाविक हैं। चीन ने यदि समर्थन किया है तो। निश्चित ही व्यापक दबाव में किया होगा। अमेरिकी के प्रस्ताव पर, चीन ने समर्थन तो किया; लेकिन इस प्रकार आगे किसी अन्य प्रस्ताव पर नहीं देगा चीन साथ। ऐसा यदि चीन मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने के बाद कहता है, तो इसका आशय है कि वह कूटनीटिक वैश्विक मामलों में अवसादग्रस्त है एवं अलग-थलग पड़ता जा रहा है। भारत ही नहीं, विश्व के लिये भी मोस्ट वॉन्टेड आतंकी मसूद अजहर की खूनी दास्तान और जैश- ए- मुहम्मद की करतूतें दुनिया में किसी से छिपी नहीं है। जैश- ए- मुहम्मद एक प्रकार से आई एस आई का बहुत बड़ा एजेण्ट है और वह इसको संरक्षण देता है। बीते दिनों श्रीलंका में हाई अलर्ट के बीच एक और बम धमाका क्या प्रमाणित करता है? आई एस ने दावा किया है कि- श्रीलंका में मारे गये तीन आत्मघाती हमलावर उसी के थे। श्रीलंका हमले में शामिल 6 संदिग्धों की फोटो जारी हुई, जिसमें 3 महिलाएँ भी शामिल थीं। आतंक के खात्मे के लिये श्रीलंका भी सख्त तेवर अपना रहा है और अवैध विदेशी मौलवी खोज-खोजकर बाहर किये जा रहे हैं। निश्चित रूप से भारत के प्रयास से श्रीलंका के भी मनोबल काफी बड़ा है और उसको कहीं न कहीं यह आशा भी है कि भारत इस मामले में उसका भरपूर सहयोग करेगा।काश भारत 50-60 के दशक में गुटनिरपेक्षता की नीति और मिश्रित अर्थव्यवस्था की नीति न अपनाया होता! और यदि अपना भी लिया होता तो 60-70 के दशक में उसका त्याग कर दिया होता और एक नये वैदेशिक और वैश्विक, विदेश एवं अर्थ नीति के साथ कार्य किया होता तो न तो भारत के पास कश्मीर जैसी समस्या होती, न आतंकवाद भारत में ताण्डव करता, न भारत में नक्सलवाद पैर फैलाता और न ही उग्रवामपन्थ जिस थाली में खाता उसी में छेद कर पाता। भारत विश्वगुरु होता। आज की सफलता पर प्रधानमन्त्री, उनकी सरकार की विदेश नीति, राष्ट्रवाद की जीत है। भारत के कण-कण और जन-जन की जीत है।इस दार्शनिक सिद्धान्त पर प्रत्येक व्यक्ति को ध्यान देना चाहिये कि, ‘पक्ष होना एक बात है, निष्पक्ष होना दूसरी बात है, निरपेक्ष (तटस्थ) होना तीसरी बात है। निष्पक्ष होना, तटस्थ होना नहीं है; कोई मतलब न रखना निरपेक्ष होना है।’ नेहरू ने निरपेक्ष होना स्वीकार किया था; जो देश के लिये घातक था। जब नेहरू को पता था कि उस समय दो बड़ी वैश्विक शक्तियाँ हैं; तो यह बचकाना निर्णय कैसे हुआ कि हम किसी के साथ नहीं रहेगें? भारत को अपना पक्ष; निरपेक्ष होकर नहीं, निष्पक्ष होकर तय करना चाहिये था। नेहरू ने व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को ऊपर रखा और अपने वाह्य एवं आन्तरिक मनोवैज्ञानिक स्वभाव के अनुसार सब कुछ देश की कीमत पर फिट करना चाहा! भोग और विलासिता को लेकर वे पूँजीवाद के हिमायती थे और देश को दिखाने एवं अपनी राजनीतिक गणित के लिये वे साम्यवादी थे। उन्होंने यह सोचकर कि दोनों से लाभ लेंगे, लेकिन कहीं के नहीं रहे और न ही देशहित में देश की विदेश एवं आर्थिक नीति को खड़ा कर पाये। भारत की विदेश नीति को इन्दिरा गाँधी और नरसिम्हा राव ने बदलने की कोशिश जरूर किया; लेकिन असफल रहे। विदेश नीति के मामले में जो नींव अटल बिहारी वाजपेयी ने डाला था, अब उस पर नरेन्द्र मोदी ने भव्य भवन खड़ा किया है, यह देश के गौरव का विषय है।भारत के यशस्वी प्रधानमन्त्री को असीमित बधाई एवं शुभकामनाएँ।
लेखक गोरखपुर विश्वविद्यालय में भूगोल पढ़ाते हैं
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