मोदी कुछ भी नहीं, पर सब कुछ

प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी ने जबसे शासन की बागडोर संभाली है तब से पूरे देश में इस बात की चर्चा है कि उनके आने के बाद देश में क्या बदलाव आया है? शासन-प्रशासन में कितना परिवर्तन देखने को मिल रहा है तथा लोगों की मानसिकता में किस तरह का बदलाव देखने को मिल रहा है। यदि ईमानदारी एवं निष्पक्षता के साथ प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी एवं उनकी सरकार का विश्लेषण किया जाये तो निःसंदेह यह कहा जा सकता है कि पूरे देश में एक सकारात्मक वातावरण का निर्माण हुआ है। देश को बोलने वाला प्रधानमंत्राी मिला है। डॉ. मनमोहन सिंह की मौनी बाबा वाली छवि से राष्ट्र उबर चुका है। प्रधानमंत्राी ने देशवासियों में भरोसा जगाया है। अब लोगों को लगने लगा है कि श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्र विश्व गुरु का दर्जा पुनः हासिल कर सकता है। जितनी भी जन-कल्याणकारी योजनायंे लागू हो रही हैं, वे जातीयता, धार्मिकता एवं क्षेत्राीयता की भावनाओं से परे हैं। यानी कि योजनाओं में ‘सबका साथ-सबका विकास’ देखने को मिल रहा है। किसी भी योजना से विभेद का भाव नहीं पनप सकता है। यदि कोई भी प्रधानमंत्राी एवं सरकार सबके लिए समदर्शी हो तो इससे बड़ा सौभाग्य देश एवं देशवासियों के लिए क्या हो सकता है?
इन बातों के परिप्रेक्ष्य में अगर देखा जाये तो देश में जन-कल्याणकारी योजनाओं की भरमार है। प्रधानमंत्राी जन-धन योजना मात्रा एक योजना ही नहीं, बल्कि एक अभियान का रूप ले चुकी है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की शुरुआत होने वाली है, पूरे देश में जिसकी बहुत चर्चा है।
एनडीए सरकार द्वारा शुरू की गयी ‘प्रधानमंत्राी जन-धन योजना’ के अतिरिक्त ‘मेक इन इंडिया’, ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’, ई-गवर्नेंस’, ‘शिक्षा’, औद्योगिक विकास’ सड़क, बिजली, कृषि एवं सिंचाई के अतिरिक्त अन्य तरह के अभियानों का भी श्री गणेश हो चुका है। गौरतलब है कि ये अभियान बहुत तेजी से आगे भी बढ़ रहे हैं।
प्रधानमंत्राी की अमेरिकी यात्रा इतनी शानदार एवं प्रभावी रही कि वे अमेरिका में छा गये। अमेरिका के अलावा प्रधानमंत्राी की अब तक जितनी भी विदेश यात्रायें संपन्न हुई हैं, वे सभी निहायत प्रभावी रही हैं। प्रधानमंत्राी की यात्राओं एवं उनकी सरकार द्वारा शुरू की गयी योजनाओं की जबर्दस्त सफलता का एक प्रमुख कारण यह है कि श्री नरेद्र मोदी को बुनियादी बातों की गहराई से समझ है, उनकी जमीनी पकड़ है, राष्ट्र, समाज एवं जन-मानस को समझने की क्षमता उनमें कूट-कूट कर भरी हुई है। कोई भी काम करने से पहले प्रधानमंत्राी उस विषय की बारीकियों का गहनता से अध्ययन एवं विश्लेषण करते हैं। अपने सहयोगियों से विषय-वस्तु के सिलसिले में विचार-विमर्श करते हैं। लोकसभा चुनाव से पहले श्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वे देश का मजदूर नंबर वन हैं। वे अपनी उस बात पर आज भी कायम हैं। प्रधानमंत्राी सिर्फ कहने के लिए ही मजदूर नंबर वन नहीं हैं, बल्कि वे वास्तव में हैं। अमेरिका में स्वयं नरेंद्र मोदी ने इस बात का इजहार किया कि उन्होंने अभी तक 15 मिनट की छुट्टी नहीं ली है। स्वतंत्राता दिवस के अवसर पर उन्होंने लाल किले की प्राचीर से कहा था कि यदि मेरे सहयोगी 12 घंटे काम करेंगे तो मैं तेरह घंटे करूंगा। प्रधानमंत्राी, उनके मंत्रियों एवं अन्य जन-प्रतिनिधियों की करनी से देशवासियों को यह आभास होने लगा है कि सत्ता ऐशो-आराम के लिए नहीं, बल्कि जन सेवा का माध्यम है। कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि प्रधानमंत्राी अपनी भूमिका का निर्वाह शासन-प्रशासन से लेकर सामाजिक संदेश देने तक सभी क्षेत्रों में कर रहे हैं।
प्रधानमंत्राी एवं उनकी सरकार द्वारा इतना सब कुछ करने के बावजूद विपक्ष का रवैया प्रधानमंत्राी एवं उनकी सरकार के प्रति नकारात्मक ही दिख रहा है। उनकी एवं उनकी सरकार की आलोचना का विपक्ष कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता। सरकार के अच्छे कामों की प्रशंसा में विपक्ष दो शब्द भी बोलना नहीं चाहता, उलटे कांग्रेस के नेता कहते हैं कि प्रधानमंत्राी यूपीए सरकार की योजनाओं का ही नाम बदलकर लागू कर रहे हैं। यह बात सत्य है कि प्रधानमंत्राी जो भी योजना लागू कर रहे हैं, पूरी तैयारी एवं प्रभावी तरीके से कर रहे हैं। विपक्ष को इस बात के लिए खुश होना चाहिए कि जो काम सत्ता में रहते हुए वे लोग नहीं कर पाये, उसे एनडीए सरकार कर रही है किंतु ऐसा लग रहा है कि विपक्ष ने संभवतः यह निश्चय कर रखा है कि उसे सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभानी ही नहीं है, उसे तो सिर्फ आलोचना ही करनी है। हालांकि, प्रधानमंत्राी ने हमेशा विपक्ष को पूरी तरजीह दी है और सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर विपक्ष को साथ लिया है किंतु जिन्हें सत्ता में ही रहने की लत पड़ चुकी हो, वे सकारात्मक विपक्ष की भूमिका कैसे निभा सकते हैं?
बात सिर्फ विपक्ष की नहीं है। प्रधानमंत्राी की अपनी पार्टी एवं सरकार में भी स्वार्थी तत्वों की संख्या कम नहीं है? ऐसे लोगों का मन जन सेवा में कम एवं निज सेवा में अधिक लगता है। यदि ऐसे लोगों के मकसद पूरे नहीं होते तो जनता को गुमराह भी करने लगते हैं। जनता को गुमराह करने में ऐसे लोगों को कामयाबी भले ही न मिले किंतु ये लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आते हैं। ऐसी स्थिति में ऐसे स्वार्थी तत्व विपक्ष से भी खतरनाक भूमिका का निर्वाह करते हैं। पार्टी एवं सरकार में तमाम ऐसे लोग मिल जायेंगे जो कहते हैं कि प्रधानमंत्राी न तो चैन से बैठ रहे हैं न ही औरों को बैठने दे रहे हैं। जाहिर-सी बात है कि जिन्हें आज तक कामचोरी की आदत पड़ी है वे इतनी स्पीड से काम कैसे कर सकते हैं? इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्राी चाहे जितना भी काम कर लेें, वे थकने का नाम नहीं लेते, किंतु यह भी सत्य है कि उन्होंने सत्ता एवं संगठन में तमाम लोगों को थका जरूर रखा है। मात्रा अपने स्वार्थों के लिए सत्ता एवं संगठन में घुसे लोगों को निश्चित रूप से यह आभास हो रहा है कि वे बहुत बुरे फंस गये हैं। ऐसे लोग प्रधानमंत्राी एवं उनकी सरकार की मार्केटिंग किस तरह करेंगे, आसानी से समझा जा सकता है। इस मानसिकता के लोग विपक्षी लोगों से ज्यादा नुकसानदायक साबित होते हैं। ऐसे लोगों से सतर्क रहने की आवश्यकता है क्योंकि अपना स्वार्थ पूरा नहीं होने की स्थिति में ये जनता को गुमराह करने का काम करते हैं। इस प्रकार देखा जाये तो एक तरफ विपक्ष, दूसरी तरफ सत्ता एवं संगठन में शामिल स्वार्थी तत्वों का जमावड़ा सरकार के अच्छे कामों को प्रचारित करने से रोकने में किस हद तक अवरोधक बन सकता है, इस तरफ विशेष रूप से ध्यान दिये जाने की अति आवश्यकता है। अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान उपवास रहते हुए प्रधानमंत्राी ने जिस ताजगी के साथ बिना रुके एवं थके काम किया, अपने आप में मिसाल है। प्रधानमंत्राी के समक्ष आज जितने अवरोध हैं उनको झेलते हुए अपने कार्यों को निरंतर अंजाम देते रहना क्या आसान काम है, किंतु ताज्जुब की बात तो यह है कि सभी अवरोधों को तोड़ते हुए प्रधानमंत्राी अपने मिशन में लगातार आगे बढ़ते जा रहे हैं।
यदि परिस्थितियों को देखते हुए विश्लेषण किया जाये तो कहा जा सकता है कि इतने विरोधों को झेलते हुए इतना सब कुछ कर पाना किसी सामान्य व्यक्ति के वश की बात नहीं है। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्राी पर किसी दैवीय शक्ति की कृपा है। वही दैवीय शक्ति प्रधानमंत्राी से सब कुछ करवा रही है। वे मात्रा माध्यम बने हैं। यह सब एक ईश्वरीय संकेत है। कहने का आशय यही है कि भले ही प्रधानमंत्राी सब कुछ कर रहे हैं, लेकिन एक तरफ यह भी कहा जा सकता है कि वे कुछ भी नहीं कर रहे हैं। यानी कि ईश्वरीय कृपा उनके माध्यम से देश पर है। यह बात पूर्ण रूप से सत्य है कि इतने झंझावातों को झेलते हुए श्री नरेंद्र मोदी इतना सब कुछ कर पाने में कामयाब हो पाये हैं तो यह सब ईश्वर की इच्छा से ही संभव है।
ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ प्रधानमंत्राी बनने के बाद ही उनके समक्ष इतने अवरोध उत्पन्न हुए हैं। जिस समय वे गुजरात के मुख्यमंत्राी थे, उस समय भी उन्हें घेरने के प्रयास हुए किंतु वे सभी बाधाओं को दूर करते हुए अपने मिशन में कामयाब रहे। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें जिस प्रकार घेरने के प्रयास हुए पूरा देश जानता है। आज वे जो कुछ कर रहे हैं उससे कुछ लोगों को दिक्कत हो सकती है, किंतु अंततः इसका पूरा लाभ राष्ट्र एवं समाज को मिलेगा। महात्मा गांधी की जयंती 2 अक्तूबर को पूरे देश में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की शुरुआत होने वाली है। कुछ लोग इस बात से बेहद दुखी हैं कि उनकी एक दिन की छुट्टी का नुकसान होगा किंतु अधिकांश लोग खुश हैं कि राष्ट्र एवं समाज के हित में एक बेहतर अभियान की शुरुआत होने वाली है।
प्रधानमंत्राी ने यह बात स्वयं कही है कि वर्षों पुरानी आदतों एवं मानसिकता को इतनी जल्दी नहीं बदला जा सकता है। इसके लिए वक्त लगेगा। सरकारी कर्मचारियों से उन्होंने निवेदन भी किया है कि वे अपने सेवा भाव को सर्वोपरि रखें क्योंकि वर्तमान वातावरण में सेवा भाव उतना देखने को नहीं मिल रहा है। जिन लोगों ने सरकारी दफ्तरों को मौज-मस्ती एवं पिकनिक का माध्यम बना रखा है, उन्हें यदि ईमानदारी एवं परिश्रम से काम करना होगा तो दिक्कत होगी ही लेकिन इतना तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्राी जो कुछ भी कर रहे हैं, दीर्घकालिक रूप से राष्ट्र को उसका लाभ मिलने वाला है।
कुछ लोगों का तो यहां तक मानना है कि भारत को पुनः विश्व गुरु बनाने के लिए दैवीय शक्ति प्रधानमंत्राी से वह सब कुछ करवा रही है, जो अब तक नहीं हुआ है। हिन्दुस्तान के कुछ प्रांतों में उप-चुनाव हुए जिसमें भाजपा को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिल सकी तो विपक्ष कहने लगा कि मोदी जी का जलवा समाप्त हो चुका है। अब हरियाणा एवं महाराष्ट्र में मोदी जी के प्रचार करने की खबर मात्रा से ही विपक्षी दलों के होश फाख्ता हो गये हैं। जाहिर-सी बात है कि उप-चुनावों में प्रधानमंत्राी ने चुनाव प्रचार नहीं किया तो भी उसका ठीकरा उनके ऊपर फोड़ा गया। अब वे चुनाव प्रचार का मन बना रहे हैं तो भी विपक्षी दलों को परेशानी हो रही है। आखिर इस तरह का दोहरा मापदंड क्यों है? वर्तमान हालातों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्राी जो कुछ कर रहे हैं, वह स्व हित की बजाय राष्ट्र हित में है। अतः समस्त देशवासियों का नैतिक कर्तव्य बनता है कि तहेदिल से उनका सहयोग एवं समर्थन करें क्योंकि ऐसा अवसर बार-बार नहीं आता है और अवसर को गंवाना भी बहुत नुकसान देह साबित हो सकता है।

अरूण कुमार जैन

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