“आर्यसमाज से जुड़े श्री ओम् प्रकाश गैरोला को सभी बैंको की राष्ट्रीय स्तर की संयुक्त हिन्दी निबंध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार”

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मनमोहन कुमार आर्य,

श्री ओम् प्रकाश गैरोला हमारे 40 वर्षों से अधिक समय से एक घनिष्ठ एवं प्रिय मित्र हैं। हम दोनों एक साथ जनवरी, 1978 में भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून (आईआईपी) में लिपिक के पद पर नियुक्त हुए थे। मैं तब से इसी कार्यालय में कार्य करता रहा और कुछ समय बाद मेरी तकनीकी सहायक के रूप में नियुक्ति हुई थी और इस पद पर कार्य करते हुए पांच पदोन्नतियां भी हुईं। श्री गैरोला जी आरम्भ से बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। वह आईआईपी में नियुक्ति के कुछ समय बाद ही आईटीबीपी पुलिस में इंस्पेक्टर बनकर आशुलिपिक के रूप में कार्य करने चले गये थे। उसके कुछ समय बाद उनका न्यू बैक आफ इण्डिया में चयन हुआ। वह वहां काम करने लगे। सन् 1993 में न्यू बैंक आफ इण्डिया का पंजाब नैशनल बैंक में विलय हुआ। तब से आप पंजाब नैशनल बैंक में कार्यरत हैं। नवम्बर, 2018 में आप बैंक सेवा से सेवानिवृत हो रहे हैं। आप का हिन्दी लेखन पर अच्छा अधिकार है। आप आरम्भ से ही हिन्दी की अनेक प्रकार की परीक्षाओं एवं प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे हैं और प्रायः प्रथम आते रहे हैं। जिन दिनों आप आईआईपी में कार्यरत थे, हम दोनों व हमारे अनेक मित्रों ने प्रतिष्ठित आर्य विद्वान एवं अनेक पुस्तकों के लेखक डॉ. सूर्यदेव शर्मा, डी.लिट्., अजमेर द्वारा संचालित चार परीक्षाओं में उच्चतम् ‘‘विद्या वाचस्पति” की परीक्षा दी थी। मैं देहरादून के परीक्षा केन्द्र का संचालक था। इस परीक्षा में अनेक लोगों ने भाग लिया था। इन परीक्षाओं के विदेशों में भी अनेक स्थानों पर केन्द्र थे। जब परीक्षा परिणाम आया तो श्री ओम् प्रकाश गैराला जी पूरे विश्व में विद्या वाचस्पति परीक्षा में सर्व-प्रथम आये थे। इसका प्रकाशित किया गया एक मुद्रित परीक्षा परिणाम हमें प्राप्त हुआ था जिसमें उत्तीर्ण परीक्षार्थियों के नाम व प्राप्तांक दिये हुए थे। उन दिनों श्री गैरोला जी आर्यसमाज से प्रभावित थे और बाद में वैचारिक दृष्टि से आर्य बने। आप आरम्भ में आर्यसमाज, धामावाला, देहरादून के सदस्य बने थे। जब आप लखनऊ मे कार्यरत थे तब आप वहां ऋषिभक्त श्री इंजी. सत्यदेव सैनी जी के साथ आर्यसमाज लालबाग जाया करते थे। आप इस समाज के भी कई वर्षों तक सदस्य रहे। आप आर्यसमाज की देहरादून स्थित संस्थाओं गुरुकुल पौंधा व वैदिक साधन आश्रम, तपोवन के कार्यक्रमों में भी समय समय पर भाग लेते रहे हैं। आप दयानन्द सन्देश, परोपकारी, आर्य जगत्, वेद प्रकाश, आर्ष ज्योति आदि मासिक एवं साप्ताहिक अनेक पत्र-पत्रिकाओं के पाठक रहे हैं। सन् 1970-1980 के दशक में आपका आर्यसमाज के शीर्षस्थ दो विद्वानों कीर्तिशेष डॉ. भवानीलाल भारतीय और कीर्तिशेष पंडित राजवीर शास्त्री जी आदि से पत्राचार हुआ करता था। आपके पत्र व शंकाओं के उत्तर भी दयानन्द सन्देश में प्रकाशित होते थे।

 

श्री गैराला जी ने वेद प्रचार समिति, देहरादून के सत्संगों में कुछ अवसरों पर भाग लिया और उसमें प्रवचन भी किये। वेद प्रचार समिति का संचालन हम किया करते थे। आईआईपी में हमारे कुछ मित्रों ने एक वेद प्रचार समिति गठित कर वहां समय-समय पर आर्य विद्वानों व संन्यासियों के प्रवचन तथा योगाभ्यास के शिविर लगाये थे। इसमें हमारे एक वरिष्ठ अनुभवी मित्र कीर्तिशेष श्री चन्द्रदत्त शर्मा के साथ श्री गैरोला जी की प्रमुख भूमिका थी। अपने लखनऊ प्रवास काल में श्री गैरोला जी ऋषिभक्त श्री सत्यदेव सैनी जी से जुड़े रहे। श्री सैनी जी ने लखनऊ में आर्यसमाज का सघन प्रचार किया। श्री सैनी लखनऊ में जिला आर्य उपप्रतिनिधि सभा के प्रधान रहे। श्री सैनी जी लखनऊ व देहरादून में सत्य का प्रचार और असत्य का विरोध व खण्डन प्रखर होकर करते रहे।

 

पंजाब नैशनल बैंक में आने के बाद श्री गैरोला जी बैंक की राष्ट्रीय स्तर की हिन्दी निबन्ध प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे। आप अखिल भारतीय स्तर पर निबन्ध प्रतियोगिताओं में अनेक वर्षों तक प्रथम आते रहे। इस वर्ष भी पंजाब नैशनल बैंक द्वारा सभी बैंकों की एक संयुक्त निबन्ध प्रतियोगिता राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित की गई। इस परीक्षा में भी आप प्रथम स्थान पर आये। श्री ओम् प्रकाश गैरोला जी को बैंक की ओर से अखिल भारतीय हिन्दी निबन्ध प्रतियोगिता में सर्वप्रथम आने पर बैंक के शीर्ष अधिकारियों ने सम्मानित व पुरस्कृत किया। उन्हें बैंक के प्रधान कार्यालय में राजभाषा समारोह में पुरस्कार दिया गया। इस वर्ष निबन्ध का विषय था ‘‘ बैंकिंग, साइबर खतरे और सुरक्षा इस विषय पर आपका हिन्दी में लिखा निबन्ध संयुक्त बैंक परीक्षा में प्रथम स्थान पर आया है। आपका यह निबन्ध पीएनबी की राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित पत्रिका में भी प्रकाशित होगा। आप बैंकिंग से सम्बन्धित विषयों पर बैंक द्वारा प्रचारित व प्रसारित इस पत्रिका में लिखते रहते हैं। इस वर्ष 14 सितम्बर, 2018 के अवसर पर विज्ञान भवन नई दिल्ली में हिन्दी दिवस समारोह का आयोजन हुआ। इस आयोजन में बैंक की ओर से राजभाषा कीर्ति पुरस्कार माननीय उपराष्ट्रपति महोदय से पीएनबी के प्रबन्ध निदेशक व मुख्य कार्यपालक अधिकारी श्री सुनील मेहता जी द्वारा ग्रहण किया गया। हम यहां यह भी बता दें की पंजाब नैशनल बैंक की स्थापना आर्यसमाज को माता और ऋषि दयानन्द को अपना पिता मानने वाले देश भक्त पंजाब केसरी लाला लाजपतराय जी ने की थी। लाला लालपत राय जी ने आर्यसमाज और इसके प्रमुख विद्वान पं. गुरुदत्त विद्यार्थी जी व अन्यों लोगों पर अनेक लेख व पुस्तकें भी लिखी। आजादी के इतिहास में लाला लाजपत राय व शहीद भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह ही दो ऐसे देश भक्त थे जिन्हें अंग्रेजों ने देश निकाला व जला वतन की सजा दी थी। यह सजा किसी कांग्रेसी व अन्य दल के व्यक्ति को नहीं मिली।

 

अपने हिन्दी प्रेम एवं राष्ट्रीय स्तर पर अनेक बार पुरस्कृत होने के कारण गैरोला जी की छवि पूरे बैंक में एक विद्वान एवं कर्मठ अधिकारी की है। बैंक के शीर्ष स्तर के अधिकारी भी उन्हें उनकी योग्यता व प्रतियोगिताओं में बार-बार सफलता के कारण सम्मान देते हैं। यह भी बता दें की श्री गैरोला जी को राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित निबन्ध प्रतियोगिता में 10 में से 8 बार पुरस्कार मिला है। सन् 2017 में भी उन्हें प्रथम पुरस्कार मिला था। सन् 2016 में वह द्वितीय स्थान पर रहे थे। श्री गैरोला जी को बैंक की ओर से कुछ वर्ष पूर्व वियतमान जाने का अवसर भी मिला है। ऐसे समर्पित विद्वान अधिकारी को इस प्रकार से सम्मान मिलना ही चाहिये।

 

सन् 2012 में श्री ओम् प्रकाश गैरोला जी बैंक की टिहरी गढ़वाल की भागीरथी पुरम् शाखा प्रबन्धक के रूप में कार्यरत थे। उन दिनों सितम्बर, 2012 में उस शाखा में कुछ दिन के लिये अग्रिम पोर्टफोलियों में 1351 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी (जो कई बार अस्थाई रूप से हो जाता है)।  इस उपलब्धि के लिये आपको बैंक से नगद पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। देहरादून में बैंक की एक शाखा के शाखा प्रबन्धक के रूप में भी आपने शाखा के व्यवसाय में प्रशंसनीय वृद्धि की जिसके लिये नगद पुरस्कार आदि से आपको पुरस्कृत किया गया। श्री गैरोला जी से मित्रता एवं सम्बन्धों पर हमें गौरव है। श्री मुकेश आनन्द जी ने श्री गैरोला जी को प्रत्येक रविवार को आर्यसमाज के सत्संग में आने की प्रेरणा की है। श्री गैरोला जी ने नवम्बर, 2018 में सेवा निवृत्ति के बाद नियमित रूप से आने का अपना निश्चय हमें सूचित किया है। हम आशा करते हैं कि सेवानिवृत्ति के बाद श्री गैरोला जी आर्यसमाज के साहित्य का गहन स्वाध्याय व अध्ययन करेंगे और लेखन व आर्यसमाज के सत्संगों में व्याख्यानों से स्वयं व आर्यसमाज को लाभान्वित करेंगे। हम श्री गैरोला जी के परिवार सहित स्वस्थ व सुखी जीवन सहित स्वर्णिम भविष्य की कामना करते हैं।

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