गाजियाबाद के डासना की शक्तिपीठ के महंत यति नरसिंहानंद इस समय अपनी स्पष्टवादिता और साहस के कारण विशेष चर्चा में हैं। यति नरसिंहानंद हिंदुत्व के लिए समर्पित व्यक्तित्व का नाम है। हिंदुत्व की मौलिक चेतना को जन-जन तक पहुंचाना और हिंदुत्व के शत्रुओं से उसकी प्रत्येक परिस्थिति में सुरक्षा करना वह अपने जीवन का उद्देश्य मानते हैं। उनका कहना है कि इसके लिए उन्हें चाहे जो भी बलिदान देना पड़े ,वह उसे देने को सदा तत्पर रहते हैं। वह किसी भी प्रकार की धर्मनिरपेक्षता, तुष्टीकरण और इस्लामिक भाईचारे या गंगा जमुनी संस्कृति के बहकावे के कड़े विरोधी हैं। क्योंकि यह छद्म छल या प्रपंच हिंदुत्व के लिए विनाशकारी साबित हुआ है। स्वामी जी इस सत्य को पूर्णतया अपने कथनों व भाषणों में प्रकट करते रहते हैं कि मुसलमान का भाईचारा केवल मुसलमान तक सीमित है । मुसलमान के इस भाईचारे का किसी भी का फिर से कोई संबंध नहीं है। यह सच है कि हिन्दू के लिए उसके पास
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केवल खून खराबा ,जिहाद, मारकाट और महिलाओं के साथ अत्याचार के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। वह उन हिंदुओं को भी उतना ही अधिक कोसते और लताड़ते हैं जो इस्लाम के किसी भी प्रकार के बहकावे में आकर हिंदू समाज के लिए खतरा पैदा करते रहते हैं।
अब यति नरसिंहानंद का सर कलम करने की घोषणा मुस्लिम कट्टरपंथी लोगों की ओर से की जा रही है । जिस पर पूरे देश का मुसलमान एक होता जा रहा है। मुस्लिमों की इस लामबंदी की प्रक्रिया में ओवैसी, अमानतुल्लाह खान और सभी मुल्ला मौलवी एक ही स्वर में एक ही आवाज निकाल रहे हैं ।जिससे देश का सांप्रदायिक परिवेश भी दूषित प्रदूषित होता जा रहा है। अमानतुल्लाह खान आम आदमी पार्टी का विधायक है जो कि यति नरसिंहानंद की गर्दन काटने और जुबान काटने की धमकी दे रहा है।
अमानतुल्लाह खान जैसे व्यक्ति के बारे में यहां पर यह प्रश्न बड़ी गंभीरता से पूछा जा सकता है कि जो व्यक्ति किसी पार्टी का विधायक हो क्या वह भी कानून को हाथ में लेने और संविधान की धज्जियां उड़ाने का हकदार है ? यदि नहीं, तो फिर सरकार ऐसे विधायक को अभी तक गिरफ्तार क्यों नहीं कर पाई है? समाज में किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध किसी दूसरे व्यक्ति को हिंसा के लिए उकसाना कानूनन अपराध है। जिसके लिए कानून को अपना काम करना चाहिए अर्थात जो लोग ऐसा कर रहे हैं उनकी गिरफ्तारी होनी चाहिए। अब अमानतुल्लाह का कहना है कि उसने यति नरसिंहानंद के लिए ऐसा अपनी शरीयत के आधार पर कहा है। स्पष्ट है कि अमानतुल्लाह ऐसा कह कर बच नहीं सकता क्योंकि भारत में शरीयत से नहीं बल्कि संविधान और कानून से देश को चलाया जाता है । देश के कानून और संविधान की उपेक्षा करना या उनकी धज्जियां उड़ाना किसी भी व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। इसके उपरांत भी यदि सरकार मौन होकर बैठी है तो इसे निश्चय ही गलत कहा जाएगा।
हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भारत के प्रत्येक व्यक्ति को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली है । यद्यपि यह स्वतंत्रता भारत की एकता और अखंडता को खतरा पहुंचाने की सीमा तक नहीं जा सकती। इसके उपरांत भी हम देखते हैं कि अमानतुल्लाह खान जैसे लोगों की मानसिकता जब किसी हिंदू संन्यासी या हिंदू सामाजिक कार्यकर्ता या राजनीतिक व्यक्ति या हिंदू समाज का जागरण करने वाले कार्यकर्ता का सिर उड़ाने या जुबान काटने की धमकी देती है और कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। ऐसा व्यक्ति राष्ट्रीय एकता और अखंडता को खतरा पैदा करता है और सामाजिक ताने-बाने को भी तार-तार कर देता है। हमारा मानना है कि यदि ऐसा सब कुछ हो रहा है तो यह भी सरासर कानून का अपमान है और यह देश की कीमत पर सांप्रदायिकता को सरकारी संरक्षण दिए जाने के समान है।
समाज में विद्वेष फैलाना कानूनी अपराध है। जबकि किसी किताब की समीक्षा करना या उसके उन प्राविधानों पर सवाल उठाना पूर्णतया वैधानिक है जो समाज में एक वर्ग के लोगों को मारने काटने या उनके माल को लूटने की अनुमति देते हैं । समीक्षा तर्कसंगत निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए की जाती है और हिंसा के लिए उकसाना समाज की शक्ति को विध्वंसात्मक रास्ते पर डालना होता है हमें दोनों के अंतर को समझ कर काम करना चाहिए। सभ्य समाज में किसी किताब की उन व्यवस्थाओं को स्वीकार्य नहीं किया जा सकता जो देश के कानून और संविधान के विरुद्ध हैं और मानवता को खून के आंसू रोने के लिए बाध्य करती हैं। यति नरसिंहानंद इसी दिशा में कार्य कर रहे हैं। उनका मानना है कि ईश्वर ने सबको समान अधिकार देकर भेजा है। अतः समान अधिकारों के साथ मनुष्य जीवन जीने का अधिकारी है। इसलिए किसी भी किताब की किसी भी ऐसी व्यवस्था को संसार के लिए उचित नहीं माना जा सकता जो एक वर्ग के लोगों को दूसरे लोगों पर अत्याचार करने के लिए उकसाती हैं।
बात यह भी उठाई जा रही है कि यति नरसिंहानंद भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन कर रहे हैं तो उनके बारे में हमें स्पष्ट करना चाहेंगे कि वह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन न करके उसकी रक्षा कर रहे हैं । क्योंकि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अपरिमित स्वतंत्रता धार्मिक संरक्षण या धर्म निरपेक्षता के नाम पर मुस्लिमों को मिले यह भी सरकारी संरक्षण में चलने वाली सांप्रदायिकता है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
यति नरसिंहानंद इतिहास के उस काले भूत को भारत की सोई हुई हिंदू जनता के सिर से उतार देना चाहते हैं जिसने ‘गंगा जमुनी संस्कृति’ के नाम पर इस देश को सदियों से छला है । किसी भी व्यक्ति को ऐसी खुली छूट नहीं दी जा सकती कि वह किसी हिंदू मंदिर में आए और हिंदुओं की आस्था की प्रतीक किसी मूर्ति पर आकर पेशाब करे। यदि आस्था का प्रश्न मुस्लिमों के लिए है तो वह हिंदुओं के लिए भी उतना ही सुरक्षित है। भारतीय संविधान जिस पंथनिरपेक्षता की बात करता है उसकी मूल आत्मा भी यही है।
भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपभोग यदि मुस्लिम किसी हिंदू मंदिर में जाकर हिंदू देवी देवता के किसी चित्र पर पेशाब करके कर सकते हैं तो फिर उसका उचित प्रतिकार करने का अधिकार यति नरसिंहानंद जैसे संतों को स्वाभाविक रूप से प्राप्त है। क्योंकि अन्याय का प्रतिकार करना भारतीय संस्कृति की मौलिक चेतना है और आज उसी मौलिक चेतना के संवाहक यति नरसिंहानंद हैं। देश की युवा पीढ़ी को इस बात को समझना चाहिए कि यदि आज औरंगजेब किसी न किसी रूप में जीवित है तो बंदा बैरागी भी उसका उचित प्रतिकार करने के लिए हमारे बीच उपस्थित है। देश में सच्ची पंथनिरपेक्षता भी स्थापित हो सकती है जब औरंगजेब और औरंगजेबी मनोवृति के लोग समाप्त कर दिए जाएंगे। इसके लिए सरकारों को अपने स्तर पर उचित कानूनी कार्यवाही करनी चाहिए।
स्वामी नरसिंहानंद जिस बात को कहते हैं उसको लेकर हमें कुछ मुस्लिम विद्वानों के मत भी जानने चाहिएं। अनवर शेख ने एक बार कहा था, “1947 मेरे जीवन का सबसे अंधकारमय समय था। हमें कहा गया था कि गैर-मुस्लिमों की हत्या करना, उनकी महिलाओं को पकडकर दूषित करना, उनकी सम्पतियों को जला देना, आदि जिहाद, यानि पवित्र युद्ध है, और यह जिहाद एक मुसलमान का सबसे पवित्र फर्ज है… जिहाद करते करते “शहीद” होने वालों के लिए जन्नत की हूरें और छोकरे समेत अन्य कई प्रलोभन दिये गए थे”। आगे कहते हैं, “अगस्त १९४७ के प्रथम सप्ताह के एक दिन, जब मैं लाहौर की रेलवे ऑफिस में क्लर्क था, मैंने पूर्व-पंजाब से एक ट्रेन आती हुई देखी। वह ट्रेन मुस्लिम पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के क्षत-विक्षत मृतदेहों से भरी हुई थी। इस दृश्य का मुझ पर एक भयानक प्रभाव पडा। घर पहुंचकर मैंने अल्लाह से प्रार्थना की और मेरे हिस्से की जन्नत की हूरें और छोकरे न भुल जाने की बिनती की… तुरंत मैं हाथ में एक डंडा और एक छुरी लेकर गैर-मुस्लिमों की खोज में निकल पडा… मुझे दो सिक्ख पुरुष – पिता और पुत्र – दिखाई दिए. मैंने दोनों को कत्ल कर दिया। अगले दिन मैं काम पर न गया… मैं कुछ और गैर-मुस्लिमों की हत्या करना चाहता था। दराबी रॉड पर मुझे एक और सिक्ख मिल गया और मैंने उनकी भी हत्या कर दी। कई बार जब उन दिनों की याद आ जाती है, मैं लज्जित हो जाता हूँ, और कई बार मैं पश्चाताप के आंसू बहा चुका हूँ। यदि मैं इस्लामी परम्परा से प्रेरित न हुआ होता तो शायद वे लोग आज भी जीवित होते… किसने मुझे सिखाया कि जिहाद – गैरमुस्लिमों की हत्या करना- एक उत्तम कार्य है?” अपने आपको पुछे गए इस सवाल के उत्तर में अनवर शेख कहते है – “कुरान की कुछ शिक्षाओं ने।”
अनवर शेख कहते हैं कि इस्लाम का सृजन अरब मूल्यों को गैर-अरब प्रजा पर थोपने के लिए किया गया था। गैर-अरब मुस्लिम अरब लोगों को अपने से उच्च मानकर चले यह सुनिश्चित करने के लिए पैगम्बर साहब ने मक्का को इस्लाम का केंद्र बना दिया और यह प्रचलित कर दिया कि स्वयं अल्लाह ने मानवजाति के आदि पुरुष आदम को मक्का स्थित काबा का निर्माण करने का आदेश दिया था। पयगम्बर साहब ने काबा की यात्रा [हज्ज] हर सक्षम मुसलमान के लिए अनिवार्य कर दी। इस्लाम-पूर्व की इस परम्परा को इस्लाम का अविभाज्य अंग बनाने के पीछे का वास्तविक उद्देश्य था अरब को आर्थिक लाभ पहुंचाना। इस्लाम विषयक गहन अध्ययन और चिंतन ने श्री शेख को “Islam: The Arab National Movement”, आदि पुस्तकें लिखने को प्रेरित किया।
अब प्रश्न यह पैदा होता है कि यदि यति नरसिंहानंद इस्लाम के बारे में ऐसा कह रहे हैं जो इस्लामिक विद्वानों की दृष्टि में अनुचित है तो उन्हें इस्लामिक विद्वान अनवर शेख के उपरोक्त कथन पर भी विचार करना चाहिए। जिन्होंने इस्लाम को बहुत निकटता से देखा और इस्लाम की सच्चाई को देखकर उसे कलम के माध्यम से हमारे सबके बीच उतार दिया। अनवर शेख की भाँति अन्य कई विद्वान हैं जिन्होंने इस्लाम की सच्चाई को लोगों के सामने बताने में कोई संकोच नहीं किया है और यह स्वीकार किया है कि इस्लाम काफिरों को खत्म कर दुनिया पर एकछत्र राज्य स्थापित करना चाहता है। इसके लिए उसे काफिरों पर जितना भी अत्याचार करना पड़ेगा , वह करेगा। इसके लिए जिहाद और आतंकवाद उसके हथियार हैं।
मुस्लिम साहित्यकार ने सलमान रूश्दी ने भी कहा है कि इस्लामिक आतंकवाद भी इस्लाम का एक रूप है और इसके खात्मे के लिए इस सच्चाई को स्वीकार करना जरूरी है। भारतीय मूल के प्रसिद्ध ब्रिटिश लेखक सलमान रुश्दी ने कहा कि- इस्लाम का हिंसक उत्परिवर्तन भी इस्लाम है। जो पिछले 15-20 वर्षों के दौरान बहुत ही ताकतवर बनकर उभरा है।
सलमान रुश्दी ने अपनी साहसिक लेखनी शैली के माध्यम से ‘सैटेनिक वर्सेज’ को लिखा और उसमें स्पष्ट रूप से उन्होंने कहा कि यदि ऐसी आयतें खुदा ने भेजी हैं ,जिनसे संसार में खून खराबा होता हो तो यह आयतें शैतान की आयतें ही कहीं जाएंगी।
अब इन्हीं आयतों के विरुद्ध कानून का सहारा लेकर मुस्लिम विद्वान न्यायालय में जा चुके हैं कि जब तक कुरान में ऐसी आयतों का भी प्रावधान बना रहेगा तब तक संसार में शांति नहीं हो सकती। यह अच्छी बात है कि इस्लाम के भीतर भी ऐसे लोग हैं जो वास्तव में शांति चाहते हैं और कुरान की उन आयतों को उचित नहीं मानते जो संसार में खून खराबा करने के लिए उकसाती हैं। जब कुरान की किन्ही आयतों के सहारे संसार पर अत्याचार करने वाले इस्लाम के भीतर से यह आवाज आ रही हैं कि इनको यथाशीघ्र कुरान से हटा देना चाहिए तब यति नरसिंहानंद की बात को इस दृष्टिकोण से देखना चाहिए कि वह और उनका वर्ग तो इन आयतों से होने वाले अत्याचार को सहन करने वाले रहे हैं। अत: ऐसे में साफ है कि अत्याचार को अब तक झेलने वाला वर्ग इन आयतों का विरोध करने का पहला हक रखता है इसलिए प्रदेश की योगी सरकार को देश में वास्तविक पंथनिरपेक्षता की रक्षा के लिए न केवल इन आयतों पर प्रतिबंध लगाने के लिए आवाज उठानी चाहिए बल्कि यति नरसिंहानंद के विरुद्ध का सर कलम करने और जुबान काटने की धमकी देने वाले लोगों के विरुद्ध भी कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। इससे पहले कि कोई कानून को अपने हाथ में ले, कानून के रक्षक और कानून को लागू करने वाले लोग सक्रिय होकर कानून के तोड़ने वालों को ‘तोड़’ दें।
यदि नरसिंहानंद जी के विषय में सारे समाज को एक होना चाहिए। हम पूर्व में कमलेश तिवारी जैसे कई अपने योद्धाओं को खो चुके हैं । यदि कहीं से भी कोई ऐसी आवाज आ रही है जो फिर इतिहास को दोहराने की मांग कर रही है तो उसके विरुद्ध लामबंद होना समय की आवश्यकता है।
डॉ राकेश कुमार आर्य