मुस्लिम तुष्टिकरण

-जगत मोहन

जिस देश का गृहमंत्री अपने ही देश के बहुसंख्यक समाज को आतंकवादी कहे जबकि वह उसी समाज का हिस्सा है, तो यह सोचना होगा कि वह कहीं मानसिक दिवालियेपन का शिकार तो नहीं हो रहे या फिर इसके पीछे उनका कोई स्वार्थ है। लेकिन इस दिवालियेपन का शिकार तो उस सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी है जिन्होंने उन लोगों को स्वायत्ताता अर्थात लगभग आजादी का आश्वासन दे दिया है जो भारत का तिरंगा जलाते है, भारत की फौज पर हमला करते है, भारत मुर्दाबाद के नारे लगाते है। किसी भी देश की सरकार के इस प्रकार के बयानो को क्या देशहित मे कहेंगे जो देश को पुन: विभाजन की और धकेल रहे है।

आजादी के समय से ही इस सोच का भारत में विकास होना शुरू हो गया था। वर्तमान सरकार के पितृपुरुष तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरुजी ने इसकी नींव कश्मीर में रखी थी। 20 अक्टुबर 1947 को पाकिस्तानी सेना व कबाईलियो ने कश्मीर पर कब्जा करने के लिये हमला किया महाराजा की सेना के मुस्लिम सिपाहियो ने पाक सेना के साथ चली गयी। पाकिस्तानी सेना के इस हमले का करारा जवाब हमारी फौजो ने देना ही शुरु किया था कि नेहरु जी ने आल इन्डिया रेडियों पर घोषणा कर दी कि भारतीय फौजे जहाँ है वही रुक जाये, हम शान्ति विराम की घोषणा करते है साथ ही जनमत संग्रह का आश्वासन कश्मीरी जनता को देते है। उनकी इस घोषणा के बाद कश्मीर का एक तिहाई क्षेत्र पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। तबसे आज तक पाकिस्तान भारत पर निगाहे गढ़ाये बैठा है। हमारी सरकार ने भी कश्मीरियों को भारत से जोड़ने के नाम पर उस राज्य के अन्य क्षेत्र जम्मू और लद्दाख की इतनी उपेक्षा की जिसकी हद नहीं। जरा इन आंकड़ो का ध्यान करें :

– जम्मू कश्मीर राज्य का क्षेत्रफल 1947 में 2,22,236 वर्ग कि.मी. था जो आज घटकर 1,01,387 वर्ग कि.मी. रह गया है। आज पाकिस्तान ने 78,114 वर्ग कि.मी. व चीन ने 42735 वर्ग कि.मी भूमि पर कब्जा किया हुआ है। यह हमारी राजनैतिक कमजोरी का परिणाम है।

– जम्मू का क्षेत्रफल 26,293 वर्ग कि.मी., कश्मीर का क्षेत्रफल 15853 वर्ग कि.मी. व लद्दाख का क्षेत्रफल 59241 वर्ग कि.मी. है।

– जम्मू की जनसंख्या लगभग 25 लाख व कश्मीर की जनसंख्या 24 लाख के आसपास है इसमें से लगभग 5 लाख कश्मीरी पण्डित पूरे देश में विस्थापितों का जीवन बिता रहे है। दोनो क्षेत्रो की लगभग समान जनसंख्या होने के बावजूद 37 विधानसभा सीटे जम्मू में, 4 विधानसभा सीटे लद्दाख में व 46 सीटें कश्मीर में रखी गयी। इन नौ सीटो के अन्तर ने आज तक गैर कश्मीरी और गैर मुस्लिम को जम्मू कश्मीर राज्य का मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया। क्या यह बगैर योजना के सम्भव है।

– जम्मू और लद्दाख के साथ यह भेदभाव अन्य क्षेत्रों में भी बरता गया है। जैसे राजस्व प्राप्ति जम्मू से 70 प्रतिशत व कश्मीर से 30 प्रतिशत होती है। लेकिन विकास के नाम पर जम्मू पर 28 प्रतिशत, लद्दाख पर 10 प्रतिशत व कश्मीर पर 62 प्रतिशत खर्च होता है।

– पूरे जम्मू में व्यवस्था देखने के लिये 4 कमिश्नर है जबकि कश्मीर में 31 कमिश्नर/सचिव है।

– रोजगार के नाम पर केवल 10 प्रतिशत कर्मचारी ही जम्मू से प्रशासनिक सेवाओं में है जबकि कश्मीर से 90 प्रतिशत।

– केन्द्र सरकार से सम्बन्धित सभी विभागों एवं 13 राज्य निगमों के मुख्यालय कश्मीर में है जिसमें सभी कर्मचारी कश्मीरी है।

इस तुष्टिकरण के बाद भी कश्मीर शांत नहीं है। कश्मीर घाटी का यह विवाद जिसका खामियाजा आज पुरा भारत आतंकवाद के रुप में भुगत रहा है, इसे प्रधानमंत्री स्वायत्ताता के नाम पर हवा दे रहे है। क्या यह भारत को पुन: विभाजन की और धकेलना नही है।

क्या यह तुष्टिकरण कभी रुकेगा जिसके अनुगामी केवल नेहरू गांधी वंशज ही नही अन्य नेता भी हो रहे है। मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर शुरू हुये इस सत्ता के खेल ने आज हिन्दु समाज को भी भगवा आतंकवादी करार दे दिया है। कहीं इस तुष्टिकरण ने हिन्दु समाज को एक समुह मे इकठ्रठा कर दिया तो नेहरू गांधी वंशज व उनके विचार के अनुगामी नेता सोच ले उनका किया हश्र होगा।

2 COMMENTS

  1. आप तुश्तिक्रद के पीछे जो पूरा देश भाग रहा है उसकी नीव कांग्रेस ने ही डाली बाकि दल तो मजबूरी में इस नीट पैर चलने में अपनी भलाई समझी.और इसके फस्ल्स्वरूप देश का कितना अहित हो रहा है,इसका आकलन नहीं किया जा sakta.l;lekin कांग्रेस ko yen–ken prakared bhodu rahul gandhi ko pradhan mantri kii kurdi पैर baithana है uske liye जो na karana pade thoda है. do karod bangla deshio ko isi liye vote dene का adhikar diya gaya.

  2. ऐसी बकवास के क्या मायने ?किसी का भी हित नहीं ,हिदू समाज का तो कतई नहीं .इस्लाम के अनुयाई हमारे{कट्टर } मन माफिक आचरण करें यह उसी तरह संभव नहीं जिस तरह हम हिन्दुओं का व्यवहार {कट्टर }मुस्लिमों के अनुकूल नहीं
    ख हिन्दू मोहि राम प्यारा .तुर्क कहे रहिमाना -संतो देखो जग BORANA

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