जन्मभूमि का नजराना देकर नजीर पेश करे मुस्लिम समाज

हाल ही में श्रीराम जन्मभूमि मामले में उच्चतम न्यायालय ने मामले के दोनों पक्षों से कहा है कि इस मामले को वे परस्पर चर्चा व सहमति से निपटाएं. इस हेतु न्यायालय ने 31 मार्च तक का समय भी तय कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश श्री खेहर ने जब सुनवाई के दौरान जब यह कहा तो यह स्मरण में आता है कि न्यायालय का यह प्रस्ताव कोई पहली बार नहीं आया है. 1986 के बाद यह 11 वां अवसर है जब इस मामले की पेचीदिगियों व संवेदनशीलता से परेशान होकर न्यायालय ने यह रूख अपनाया है. यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि कोर्ट इस मामले की संवेदनशीलता व विस्तृत प्रभाव-दुष्प्रभाव से दूर रहनें के लिए इस मामले में निर्णय सुनाने से बचने का प्रयास कर रहा है. ऐसा होना स्वाभाविक भी है. अंततः यह मामला सौ करोड़ हिन्दुओं की आस्था से जुड़ा हुआ मामला है. इस मामले की पेचीदगी को इस बात से भी समझा जा सकता है कि 2010 में इस मामले पर निर्णय सुनाते समय जस्टिस एस. यु. खान ने कहा था कि “यह 1500 वर्ग गज भूमि का टुकड़ा (राम जन्मभूमि का) ऐसा है जहां से देवता भी गुजरने से डरते है.

भारतीय जनता पार्टी एवं संघ परिवार राम जन्मभूमि मामले पर सदा से कृतसंकल्पित रहा है और यह बात वह समय समय पर प्रकट भी करते रहा है. हाल ही में संपन्न हुए उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में भी यह विषय समय समय पर उठा था. भाजपा के  शीर्ष पुरुष नरेंद्र मोदी ने तो पूरे विधानसभा प्रचार  अभियान के दौरान एक बार भी जन्मभूमि का नाम नहीं लिया किन्तु उनका मानस सदा से जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण का स्पष्ट रहा है. उप्र विधानसभा के दुसरे स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ पुरे प्रचार अभियान के दौरान मुखरता के साथ जन्मभूमि के विषय को उठाते रहें हैं और यह माना जा सकता है कि उप्र का चुनावी परिणाम जन्मभूमि के पक्ष में आया जनादेश है. स्पष्ट है कि उप्र ही नहीं अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र का अधिसंख्य हिन्दू अब अयोध्या में टाट तिरपाल तले विराजे श्रीराम को देखकर लज्जित, अपमानित व आक्रोशित अनुभव कर रहा है. यह सौ करोड़ हिन्दुओं की लज्जा, अपमान व आक्रोश का ही परिणाम है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय को एक बार फिर परस्पर चर्चा व सहमति के पाले में डाल दिया है.

अब जबकि भारत के उच्चतम न्यायालय ने श्री रामजन्म भूमि मामलें में समाज से आग्रह कर दिया है कि वह इस मामले को परस्पर चर्चा से सुलझाए तब जन्मभूमि प्रकरण को नए चश्मे से व नए नजरिये से देखनें की आवश्यकता इस सम्पूर्ण भारतीय समाज और विशेषतः मुस्लिम समाज को है.

मुस्लिम समाज को यह बात समझ लेना चाहिए कि तकनिकी रूप से क़ानूनी  निष्कर्ष जो भी निकलता हो किन्तु पुरातात्विक खुदाई से इस स्थान पर विशाल मंदिर के होने व मंदिर को ध्वस्त करके मस्जिद निर्माण के स्पष्ट प्रमाण मिल गए हैं. पुरातात्विक खुदाई में इस स्थान में ॐ के प्रतीक चिन्ह, स्वस्तिक, कलश, मयूर सहित कई ऐसे निर्माण व चिन्ह मिले हैं जिससे इस स्थान के हिन्दू मंदिर होने की धारणा पुष्ट ही नहीं बल्कि प्रमाणित हो जाती है. यह भी एक आश्चर्य जनक तथ्य है कि यहां से मुस्लिमों की घृणा के प्रतीक सूंवर/डुक्कर की मूर्ति (जिसे हिन्दू धर्म साहित्य में श्रद्धा पूर्वक वराह कहा जाता है)भी पुरातात्विक खुदाई में यहां मिली है. सूंवर/वराह की मूर्ति मिलने के बाद तो मुस्लिमों को इस स्थान से विमुख ही हो जाना चाहिए था. सच्चे मुस्लिम धर्मगुरु व अमनपसंद आम मुसलमान इस तथ्य को जानने के पश्चात जन्मभूमि पर दावे से हट भी जाना चाहते हैं किन्तु कट्टरपंथी मुसलमान व वोट बैंक की राजनीति कर रहे चंद मुस्लिम नेता अपनी राजनैतिक दूकान चलाने की फिराक में इस मुद्दे को छोड़ना नहीं चाहते हैं.

इस विषय में हमें एक बार गुजरात के सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण व उसमें देश के प्रथम गृहमंत्री लौहपुरुष वल्लभभाई पटेल की भूमिका का पुनर्स्मरण करना होगा. यह ध्यान करना होगा कि वल्लभभाई की दृष्टि में वे एक मंदिर मात्र का पुनर्निर्माण नहीं कर रहे बल्कि एक विदेशी आक्रान्ता द्वारा देश के एक महत्वपूर्ण मानबिंदु के अपमान का व विदेशी शक्ति का प्रतिकार कर रहे थे. सोमनाथ का एक केन्द्रीय मंत्री द्वारा पुनर्निर्माण कराया जाना वस्तुतः भारतीय स्वाभिमान को पुनर्स्थापित करने का एक बहुआयामी प्रयास था. इसी दृष्टि से अब हमें अयोध्या की श्रीराम जन्मभूमि के विषय को भी देखना चाहिए.

भारतीय मुस्लिमों के समक्ष भी उच्चतम न्यायालय के समझौते के आग्रह के बाद एक बड़ा महत्वपूर्ण व एतिहासिक अवसर बनकर आया है. भारतीय मुस्लिमों को यह बात विस्मृत नहीं करना चाहिए कि बाबर (जिसके नाम पर वह बदनुमा दाग रुपी बाबरी मस्जिद थी) महज एक विदेशी आक्रमणकारी व लूटेरा था. भारतीय मुस्लिमों की रगों में बाबर का खून नहीं बल्कि उनके भारतीय (पूर्व हिन्दू) पुरखों का रक्त बहता है. भारतीय मुसलमान उस समाज से हैं जिनके पुरखों ने कभी बलात होकर, कभी मजबूर होकर, कभी भयभीत होकर तो कभी बेटी बहु व सम्पत्ति की रक्षा करनें के उद्देश्य से जबरिया बाबर और  औरंगजेब का इस्लाम ग्रहण किया था. जब हमारें पुरखे एक हैं तो आज हमें हमारा भविष्य भी एक ही बनाना चाहिए. उच्चतम न्यायालय ने भारतीय मुस्लिमों के समक्ष एक स्वर्णिम अवसर दिया है कि वे स्वयं आगे आकर अयोध्या की विवादित भूमि को हिन्दुओं के हाथों में सौंप देवे. यद्दपि इस मार्ग में अड़चने अनेक हैं, कई कट्टर मुस्लिम नेता, हिन्दुओं का भय बताते हुए मुस्लिम नेता और कई अवसरवादी मुस्लिम नेता अपनी नेतागिरी की दूकान बंद होनें के डर से इस मार्ग में रोड़े अटकाएंगे तथापि मेरा विश्वास है कि अमनपसंद भारतीय मुसलमान इस बार इन दोगले कट्टर नेताओं की बातों में आकर सम्पूर्ण विश्व के सामनें मुस्लिमों की एक नई पहचान व नई तहजीब को व्यक्त करेगा.

बाबरी एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने तो सुप्रीम कोर्ट के चर्चा वाले प्रस्ताव को लगभग नकार ही दिया है और एक और हर जगह दूध में दही डालने वाले मुस्लिम नेता असदुद्दीन ओवेसी ने भी न्यायालय की पहल को नकार दिया है. यह स्वाभाविक भी है यदि इन नेताओं ने और इन जैसे अन्य कट्टर और सियासती भूखे मुस्लिम नेताओं ने यदि अड़ंगे न डाले होते तो अमनपसंद आम मुसलमान कभी का इस मुद्दे पर हिन्दू समाज के साथ एक पंगत एक संगत में बैठ चुका होता. आशा है सुचारू परस्पर संवाद के इस दौर में भारतीय मुस्लिम एक प्रगतिशील रूख अपनाकर इस विषय में अपनी सोच को चंद कट्टर मुस्लिम नेताओं की सोच से ऊपर आकर व्यक्त भी करेगा और सिद्ध भी करेगा.

 

1 COMMENT

  1. बहुत सुन्दर| मेरा दृढ़ विश्वास है कि प्रत्येक शांति-प्रिय भारतीय प्रवीन गुगलानी जी के विचारों से सहमत होगा| कितना अच्छा होगा जब शीघ्र से शीघ्र सभी धर्मों के अनुयायी सौहार्दपूर्ण एक दूसरे के साथ मिल एक विशाल श्रीराम मंदिर की स्थापना में अपना यथायोग्य योगदान दें|

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