मेरे हृदय का एक कोना

daughterमेरा नाम प्रियांशी है। मै एक एहसास हूँ अपनी माँ के सपनों का, भावनाओं का.और ये मेरा नाम भी मैंने अपनी माँ से ही लिया है.हर माँ अपनी बेटी को अपने तरीके से संजोना चाहती है पर मेरी माँ तो बस मुझे अपनी कल्पनाओं में ही सवारतीं रहती है। मै अपनी माँ के दिल का वह कोना हूँ जो माँ सबसे छुपा के रखती है। माँ मुझसे कहती है कि : ‘तू मेरी सबसे अच्छी दोस्त है.जब मैं उदास होती हूँ तो तू चुपके से कही से आ जाती है और अकेले में मेरा साथ देती है.’

आज की दुनियाँ में जहां पर औरतों, लड़कियों के साथ इतना बुरा बर्ताव हो रहा है वही मेरी माँ औरों की माँओ से अलग है.आज का माहौल देख कर माँयें बेटी पाने से इंकार करती हैं; वो इंकार इसलिए नहीं करती कि वो उसे लाना या पाना नहीं चाहती बल्कि इसलिए कि इस समाज में लड़कियां सुरक्षित नहीं पायी जा रही है.हर दिन कोई न कोई घटना सुनने में आती है जो इस समाज पर कालिख तो लगाती ही है, साथ में हमारे हृदय को दग्ध कर देती है कि हम अपनी बेटियों को बचाएं तो बचाएं कैसे? इन सबके बींच मेरी माँ बस यही चाहती है कि उसकी बेटी जो हो वह बिलकुल मेरे जैसी हो.

मेरी माँ थोड़ी उदास रहती है.वह बहुत कुछ खोकर भी मुझे पाना चाहती है.कभी कभी वह रोती है, चीखती व चिल्लाती है अकेले में बैठकर कि मैं कब उसके आँगन में आऊँगी? पर ये क्या? समाज के चौखट पर तो बस बेटा ही मांगा जाता हैं.पर यह समाज क्यों कहता है कि बेटा होना फक्र कि बात है? पर मेरी माँ कहती हैं कि मेरे लिए बेटा या बेटी कोई भी हो, कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि एक माँ के लिए माँ होना जरूरी होता है.एक स्त्री के लिए माँ होना गरीमा की बात होती है.बेटा या बेटी होना माँ को परिभाषित नहीं करता.

माँ कहती है , ‘मैंने वर्षों से तुम्हें चाहा है; तुम्हें मांगा है अपनी हर मन्नतों में.हर दुआवों में तुम्हें कबूल करने की सिफ़ारिश की है.’मेरी इस दुनियाँ में आने से पहले ही मेरी माँ मुझे इतना प्यार देती है.मैं कभी कभी यह सोचती हूँ कि जब मैं उनके आँगन में सचमुच कदम रखूंगी तो क्या वाकही में मुझे इतना प्यार देंगी? या फिर कहीं न कहीं समाज, परिवार, पिता, पति इन सब रिश्तों की वजह से माँ मेरे साथ समझौता कर लेंगी? अभी तो मैं एक कल्पना हूँ पर हकीकत क्या होगी, यह मुझे पता नहीं.पर एक बात तो तय है कि मेरी माँ मुझे बहुत चाहती है.मैं भले ही अपनी माँ एक काल्पनिक बेटी हूँ पर मैं एहसास सच्चा हूँ.मैं भले ही माँ का अधूरा सपना हूँ पर सपना मैं सच्चा हूँ.समाज चाहे जैसा भी हो मैं एक माँ का हृदय हूँ और अपनी माँ को माँ का एहसास देने का हौसला भी रखती हूँ, वह चाहे काल्पनिक ही सही हो ।

तो बस इस हौसलें के लिए मैं उनके आँगन में आऊँगी.जिस माँ ने मुझे अपनी कल्पनाओं में इतनी जगह दी है उसका जीवन मेरे लिए पूजनीय होगा.मैं, एक लड़की, जो एक माँ के लिए जन्म लेती हूँ, मैं कल्पना ही सही मगर हर माँ का अभिमान हूँ.मैं वह तस्वीर हूँ जो हर माँ अपनी बेटी में खुद को देखती हैं.मेरी माँ कभी कभी मेरे उदास होने पर वह मुझे डाटती भी है, ‘कि प्रियांशी तुझे कहा था न कि हिम्मत मत हारना.मेरी हिम्मत तो तू है, अगर तू ही हार गयी तो मैं भी कमजोर पड़ जाऊँगी.’ ये सच है कि मेरे ना होने से मेरी माँ कमजोर है.

मेरी माँ डरती भी है कि कहीं उसकी बेटी इस दुनियाँ में आ गयी तो ये जो संस्कारो, रिवाजों, प्रथाओं के नाम पर बेटियों के साथ होता है कहीं वो मेरे साथ भी ना हो.मेरी माँ मुझे दुनिया में लाना तो चाहती हैं पर साथ ही साथ वह डरती भी है और कभी कभी तो मुझसे कहती भी है कि अच्छा है जो तू अभी ईश्वर के पास है, कम से कम महफूज तो है.

यह है मेरी माँ. मेरा अस्तित्व पता नहीं होगा कि नहीं पर, मेरी माँ का जो मेरे प्रति एहसास है वो मैं प्रकट कर रही हूँ और मैं अपनी माँ से यह कहना चाहती हूँ कि मैं रहूँ या ना रहूँ पर हमेशा तुम्हारी यादों मे सुमार रहूँगी. क्योंकि मेरी माँ मैं तेरा ही अंश हूँ.

 

अनुप्रिया अन्शुमान

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