नाम गुम जाएगा

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डॉ. कविता कपूर

अक्तूबर का महिना था, दिल्ली में अभी ठण्ड ने दस्तक दी ही थी, पर पठानकोट से जब मैं ट्रेन में चढ़ी, पठानकोट की ठण्ड ने मुझे कोट की याद दिला दी | सुबह के पाँच बज रहे थे, समय बिताने के लिए मैं खिड़की से बहार देखने लगी | मेरे डिब्बे में एक फौजी बैठा था, हम दो ही यात्री उस डिब्बे में थे | वह फौजी मुझे देखता…..जब मेरी नजरें मिलती तो झेंप जाता……कितनी अजीब बात है, दो अजनबी यात्री सफ़र में जिज्ञासा से कुश्ती लड़ रहे होते हैं, सफ़र लंबा हो तो जिज्ञासा जीत ही जाती है |अगले स्टेशन से कुछ युवा पुलिस कर्मी ट्रेन में चढ़े | थोड़ी देर बाद वे अपनी वर्दी में तैनात, अपनी नींद और ड्यूटी के बीच तालमेल बनाने के प्रयास में बर्थ पर सुस्ताने लगे | तभी पहले से डिब्बे में बैठे फौजी ने उनसे पूछा,” तुम्हारी ड्यूटी कहाँ लगी है?” एक पुलिस वाले ने जवाब दिया, “म्हारा क्या है भाई म्हारी तो कभी-भी और कही-भी ड्यूटी लगा दी जात्ती है |” बस फिर क्या था, मुझे अपना पसंदीदा कार्य मिल गया इन युवा यात्रियों के हाव-भाव देखकर मनोविज्ञान की गंगा में मैं गोते लगाने लगी | डिब्बे में बैठे फौजी ने बड़े संतुष्ट भाव से कहा, “हमारी तो जितनी कठिन ड्यूटी है उतना ही आराम भी है, अब मैं छुट्टियों पर घर जा रहा हूँ |”इस बार मैंने भी चुप्पी तोड़ी और अपनी उपस्थिति दर्ज करते हुए उनके कोर्स टैनिंग आदि के विषय में जानकारी ली | फौजी ने मुझसे पूछा, “मैडम आप कौन-से कॉलेज में हैं और कौन-सा कोर्स कर रही है?’’ “मै….पढ़ती नहीं पढ़ाती हूँ और मेरे तुम्हारी उम्र के बच्चे भी हैं |” फौजी दंग रह गया, “हैं! ….मैं तो सोच रहा था आप केवल बीस-पचीस की उम्र की होंगी |’’ “कहाँ की रहने वाली हैं?” मैंने कहा “दिल्ली की”….. दिल्ली का नाम सुनते ही एक लगभग अठारह-उन्नीस की उम्र का अन्य पुलिस-कर्मी मासूमियत और अपनेपन से बोल पड़ा, “आपकी बोली सुनकर मैंने पहले ही अंदाजा लगा लिया था कि आप दिल्ली से हैं ….मेरी मम्मी भी दिल्ली की हैं, आप ही की तरह बोलती हैं|’’…….“आपके घर में कौन-कौन हैं?’’ “मेरी दो बेटियाँ और हम पति-पत्नी |”…..‘‘कोई बेटा नहीं?’’ इस प्रश्न को फौजी के चेहरे पर चिंता और दुःख के भावों ने गंभीरता दे दी |

मैंने कहा,“ लड़का-लड़की आज के समय में एक बराबर हैं |”

विषयांतर करने के विचार से मैंने लड़कों से पूछा, “पुलिस और फ़ौज में भर्ती हेतु क्या-क्या योग्यताएँ चाहिए?….और जिस तरह तेजी से पुलिस भर्ती में  लडकियाँ बढ़ी हैं, क्या फ़ौज में भी नारीशक्ति दिखाई दे रहीं हैं?’’ दोनों पक्षों ने अपने-अपने जवाब आदर्श विद्यार्थियों की तरह दिए | “ पुलिस में तो नारियों की संख्या बढ़ी है किन्तु फ़ौज में कम है …..केवल अधिकारी के उच्च पदों पर वे नियुक्त हैं |’’ पुलिस-कर्मी तीन स्टेशन के बाद उतर गए | अब तक फौजी की आँखों में मेरे लिए सम्मान और अपनत्व की भावना आ चुकी थी |

उसने मेरा शुभचिंतक बनते हुए मुझसे कहा, “ मैडम आपका एक बेटा तो होना ही चाहिए था, आपका वंशज, बुढ़ापे में आपका सहारा और आपकी बेटियों का रक्षक |’’

“बुढ़ापे में बेटी भी आपका सहारा बन सकती है | अगर माँ-पिता बच्चों की परवरिश में लड़का-लड़की का भेद-भाव नहीं करते तो तो बुढ़ापे में बेटे के न होने पर बेटी से सहायता लेने में कैसा संकोच?…मेरी बहन भी मेरी माँ का पूरा ध्यान रखती हैं, हम बहनें ही भाई बनकर एक-दूसरे का सुख-दुःख में साथ देतीं हैं |”

“चलो आपकी बात मान ली, हमारे राजस्थान के गाँव में भी एक छोरी है जो पुलिस में काम करती है, पूरे परिवार का ध्यान रखती है ……..पर वंश तो नहीं चला सकती न ….पुरखों का नाम तो वहीं ख़त्म हो गया ना?”………

आधा मोर्चा मैं जीत चुकी थी ….क्योंकि उसने मान लिया था, लड़कियां भी लड़कों की तरह परिवार का ध्यान रख सकती हैं | ….कुछ देर तक दोनों के बीच चुप्पी रही, हम दोनों ही विचार-मंथन करते रहे |…..मैंने उससे पूछा, “तुम्हारे दादाजी का नाम क्या है?”…. “शिवदास सिंह,” उसने उत्साहपूर्वक कहा |

“और तुम्हारे दादा के दादा का?” …….बेचारा फौजी सोच में पड़ गया |…..मैंने कहा, “नहीं बता पाए न ?…….तो मुझे बताओ होगा कोई ऐसा जो अपनी पुश्तों के नाम गिना सके?….फिर कैसा नाम और कैसा वंश जिसके लिए हम सृष्टि के नियम को ठुकराएँ? ईश्वरकी मर्जी की अवहेलना करें |….नाम एक दिन गुम जायेगा….” मेरे इस विचार के समक्ष वह नदमस्तक हो गया | उसका जवाब था, “ जब मेरा ब्याह होगा न मैडम जी सबसे पहली बात मैं अपनी पत्नी को यही बताऊँगा कि मुझे एक मैडमजी मिली थी, जिन्होंने मुझे इतनी बड़ी बात समझाई है | इतना ही नहीं गाँव के लोगो को, अपने मित्रों को भी आपका यह सन्देश दूँगा, “ नाम गुम जाएगा |”……

 

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