
—–विनय कुमार विनायक
नारी तुम वामांगी!
कदम-कदम की सहचरी नर की
न पीछे,न आगे,बायीं ओर चलो
सुदिन-दुर्दिन में भी बनी रहो तुम तारामती!
हमें बनने दो चाण्डाल सेवक हरिश्चंद्र
ईमानदारी पूर्वक मृत्यु कर वसूलने दो
अपने आत्मज और आत्मीय जन से भी!
बचा लेने दो बदनाम होती हमारी जाति को
भाई-भतीजावाद/घूस-तरफदारी के आरोप से
इस कफनचोर श्मशान में,
पास हो लेने दो मुझे सत्य के इम्तहान में!
नारी तुम वामांगी!
कदम-कदम की सहचरी,
तुम सीता बनो राम की!
साथ दो,हम विचरेंगे वन-उपवन में
पितृभक्ति/मातृऋणमुक्ति/बंधुस्नेह/जनसेवा कार्य से
समय-समय पर हम देंगे दक्षता परीक्षण!
और तुम गुजरोगी अग्नि परीक्षा से
जन आरोप की जांच पर
हम सहज स्वीकारेंगे निलंबन आदेश
तुम झेलोगी निर्वासन का दंड
और हम खरे उतरेंगे साथ-साथ आखिरी इम्तहान में
जब मातृभूमि पर निछावर हो देगी
तुम पवित्र भू कन्या होने का प्रमाण!
हम करेंगे कर्मयज्ञ अंतिम सांस तक
बायीं छाती में तुम्हारी स्वर्ण प्रतिमा बसाकर
इस दहकते रेगिस्तान में
सांस लेने दो मुझे खुले आसमान!
नारी तुम वामांगी!
कदम-कदम की सहचरी घर-बाहर की/रण की!
तुम नहीं दुपहिया वाहन की पहिया
न आगे की/न पीछे की
न ट्रैक्टर के छोटे या बड़े चक्के
न कार की लहराती-फरफराती टायर
तुम तो जीवन रथ के सारथी कृष्ण हो!
तुम्हारे ही भक्ति-स्नेह-आदेश-निदेश-प्रेरणा से
हम महारथी सा महाभारत लड़ते!
तुम्हारे ही शक्ति-आश्वस्ति-विश्वास से
हम सियाचिन-कारगिल ग्लेशियर में कट मरते
मातृस्वरुपा कश्मीर-सतबहना प्रांत के खातिर
हम क्षत-विक्षत लाश हो/दुश्मन की बांस में
मरे ढोर सा लटके/पड़े होते बर्फीले टीले पर
इस कफनचोर कब्रिस्तान में
बेकफन हो सो लेने दो मातृभूमि के सम्मान में!
नारी तुम वामांगी!
कदम-कदम की सहचरी हो नर की
न आगे,न पीछे,बायीं ओर चलो!
तुम प्रकृतिसिद्ध अधिकारिणी हो वाम दिशा की
मत भागो दाहिनी ओर जिधर खास खतरे हैं
तुम्हारे लिए अशुभ यमद्वार/कठोर पहाड़/
लारी-बस-रिमोट के राक्षस,
सारे नारीपन के विरुद्ध/सृष्टि विध्वंसक!
यमद्वार तोड़ने दो मुझे,कठोर पहाड़ फोड़ने दो
रिमोट के राक्षस से देह रगड़ने दो मुझे
तुम करो वृद्धजन की सेवा/बच्चों की हिफाजत/
पढ़ाई-लिखाई आदि शुभ कर्म
और हमारे दीर्घायुपन की कामना!
यमजेता सावित्री की तरह
भूत-भविष्य-वर्तमान हाथ में थामकर!
दावा है कदमों में होंगे चांद-सितारे!
इस सिमटते आसमान में जरा रो लेने दो
इस मिस इंडिया/खोए भारत की शान में!