वैश्विक वायु गुणवत्ता के नये दिशानिर्देश हुए जारी, लागु हुए तो बचेंगी लाखों जानें

0
143

वर्तमान वायु प्रदूषण के स्वीकार्य स्तरों को नये दिशानिर्देशों में प्रस्तावित स्तरों तक कम किया जाए तो दुनिया में PM₂.₅ से संबंधित लगभग 80% मौतों को टाला जा सकता है।

साल 2005 के बाद पहली बार विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपने वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों में संशोधन कर नये दिशानिर्देश जारी किये हैं। यह वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों का आकलन प्रदान करते हैं और प्रमुख वायु प्रदूषकों के लिए सीमा निर्धारित करते हैं, जो आगे चल के स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं। इन दिशानिर्देशों को कई सरकारें अपने देश के वायु गुणवत्ता मानकों को आधार बनाती हैं। हालांकि ये दिशानिर्देश देशों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन वायु गुणवत्ता मानकों के लिए यह नई सिफारिशें वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण के लिए नये दृष्टिकोण लेन के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ ला सकती हैं।

ध्यान रहे कि वायु प्रदूषण जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े पर्यावरणीय खतरों में से एक है। इसी क्रम में WHO के वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश (AQGs) मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण से होने वाले नुकसान के स्पष्ट सबूत प्रदान करते हैं और बताते हैं कि यह नुकसान पहले समझी गयी हानिकारक सांद्रता स्तर से भी कम सांद्रता पर हो जाती है। यह दिशानिर्देश प्रमुख वायु प्रदूषकों, जिनमें से कुछ जलवायु परिवर्तन में भी योगदान करते हैं, के स्तर को कम कर आबादी के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए नए वायु गुणवत्ता स्तरों का सुझाव देते हैं।

WHO की 2005 की पिछले वैश्विक अपडेट के बाद से, उन सबूतों में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है जो दिखाते हैं कि वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं को कैसे प्रभावित करता है। उस वजह से, और संचित सबूतों की एक व्यवस्थित समीक्षा के बाद, WHO ने, यह चेतावनी देते हुए कि नए वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश स्तरों को पार करना स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण ख़तरों से जुड़ा है, लगभग सभी AQG (एक्यूजी) स्तरों को नीचे की ओर समायोजित कर दिया है। इन नए दिशानिर्देशों के पालन से लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है।

अनुमान है कि हर साल वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से 7 मिलियन प्रीमैच्योर (समय से पहले होने वाली) मौतें होती हैं और जीवन के लाखों स्वस्थ वर्षों का नुकसान होता है। बच्चों में, इसमें फेफड़ों के बढ़ने और कार्य में कमी, श्वसन संक्रमण (सांस लेने की बीमारियां) और बढ़ा हुआ अस्थमा (दमा) शामिल हो सकते हैं। वयस्कों/बालिग लोगों में, इस्केमिक हृदय रोग और स्ट्रोक बाहरी वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली प्रीमैचोर मौत के सबसे आम कारण हैं, और डायबिटीज़ (मधुमेह) और न्यूरोडीजेनेरेटिव स्थितियों जैसे अन्य प्रभावों के सबूत भी सामने आ रहे हैं। यह वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारी के एट्रीब्यूशन (बोझ) को अस्वास्थ्यकर आहार और तंबाकू धूम्रपान जैसे अन्य प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य जोखिमों के बराबर बना देता है।

भारत की स्थिति

भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) का लक्ष्य 2024 तक, 2017 के स्तर को आधार वर्ष मानते हुए, पीएम2.5 और पीएम10 सांद्रता को 20-30% तक कम करना है। डब्ल्यूएचओ के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची से भारत के शीर्ष 10 प्रदूषित शहरों को शामिल करते हुए, NCAP के लिए 122 शहरों की पहचान की गई, जो 2011-15 की अवधि के लिए भारत के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) को पूरा नहीं करते थे। NAAQS मानकों को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा अन्य कारणों से “स्वास्थ्य की सुरक्षा” सुनिश्चित करने के लिए अधिसूचित किया गया था।

ग्रीनपीस इंडिया के एक विश्लेषण के अनुसार दुनिया के 100 शहरों में से 92 शहरों ने डब्ल्यूएचओ के संशोधित वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों को पार कर लिया है। 2020 में दिल्ली का वार्षिक PM2.5 रुझान WHO के 2021 के 5 ug/m3 दिशानिर्देशों से 16.8 गुना अधिक था, जबकि मुंबई का 8 गुना, कोलकाता 9.4, चेन्नई 5.4, हैदराबाद 7 गुना और अहमदाबाद 9.8 गुना से अधिक था।

दुनिया भर के 10 शहरों में वायु प्रदूषण के कारण समय से पहले होने वाली मौतों और वित्तीय नुकसान की गणना करते हुए, दिल्ली में साल 2020 में 57,000 के आंकड़े के साथ सबसे अधिक मौतें हुईं। साथ ही वायु प्रदूषण के कारण सकल घरेलू उत्पाद में 14% का नुकसान हुआ।

वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन

वायु प्रदूषण जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े पर्यावरणीय खतरों में से एक है। वायु गुणवत्ता में सुधार से जलवायु परिवर्तन को कम करने के प्रयासों को बढ़ावा मिल सकता है, और उत्सर्जन को कम करने से वायु गुणवत्ता में नतीजात सुधार होगा। इन दिशानिर्देश स्तरों को प्राप्त करने का प्रयास करके, देश स्वास्थ्य की रक्षा करने के साथ-साथ वैश्विक जलवायु परिवर्तन को बेअसर भी कर पाएंगे।

विशेषज्ञों की राय

अपनी प्रतिक्रिया देते हुए, नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर इंप्लीमेंटेशन रिसर्च ऑफ नॉन कम्युनिकेबल डिसीसेस, आईसीएमआर के निदेशक डॉक्टर अरुण शर्मा कहते हैं, “एक साधारण सी समझ है कि हम वायु प्रदूषण से जितना दूर रहेंगे, उतने ही सेहतमंद भी रहेंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने नये एक्यूजी के तहत पीएम2.5 और पीएम10 के एक्स्पोज़र लेवल में कटौती करके हवा में पार्टिकुलेट मैटर की मौजूदगी को नियंत्रित करने के और ज्यादा प्रयास करने की जरूरत पर फिर से जोर दिया है। मगर भारत जैसे देशों के लिए पार्टिकुलेट मैटर संबंधी इन कड़े दिशा-निर्देशों का पालन कर पाना बहुत बड़ी चुनौती है। फिर भी मुझे उम्मीद है कि सभी हितधारकों की तरफ से प्रयासों में और तेजी लाई जाएगी ताकि पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण के नव निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में ईमानदारीपूर्ण प्रयास किए जा सकें।”

आगे, पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़ के पर्यावरण स्वास्थ्य विभाग में प्रोफेसर डॉक्टर रवींद्र खैवाल की मानें तो, “विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायु प्रदूषण के प्रमुख घटकों के लिए और भी ज्यादा कड़े मानक सुझाए हैं। जैसे कि 24 घंटे में पीएम 2.5 का सुरक्षित संघनन औसत 25ug/ प्रति घन मीटर के बजाय अब 15ug/घन मीटर निर्धारित किया गया है। यह महत्वपूर्ण है और इससे हवा की बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सख्त और फौरी कदम उठाने पर ध्यान दिया जाएगा। वायु प्रदूषण असामयिक मृत्यु और बीमारियों का प्रमुख जोखिम कारक बन गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की नई ग्लोबल एयर क्वालिटी गाइडलाइंस का पालन करना बेहद चुनौतीपूर्ण लगता है लेकिन नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत भारत अपने शहरों के वायु प्रदूषण में 20 से 30% तक की कटौती करने के लिए संकल्पबद्ध है। वायु प्रदूषण को कम करने के लिए संयुक्त प्रयासों की जरूरत है ताकि हमें बेहतर जलवायु और अच्छा स्वास्थ्य मिल सके।”

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के सेंटर फॉर एनवायरमेंटल हेल्थ उपनिदेशक डॉक्टर पूर्णिमा प्रभाकरण का मानना है कि, “भारत के मौजूदा नेशनल एंबिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स (एनएएक्यूएस) विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पूर्व में निर्धारित वायु गुणवत्ता संबंधी दिशानिर्देशों के मुकाबले पहले ही काफी ढीले ढाले हैं। इससे शहरों को वायु प्रदूषण के स्थानीय स्रोतों के आकलन के जरिए अंतरिम लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए और बढ़े हुए प्रयासों के बारे में सोचने का मौका मिलता है। वर्ष 2022 में जब भारत के एनएएक्यूएस में प्रस्तावित सुधार किये जाएंगे तब डब्ल्यूएचओ के और अधिक कड़े दिशानिर्देश वायु प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में और अधिक ध्यान देने को मजबूर करेंगे।”

लंग केयर फाउंडेशन के संस्थापक और चेस्ट ऑनको सर्जरी एंड लंग ट्रांसप्लांटेशन के चेस्ट सर्जरी इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष डॉक्टर अरविंद कुमार कहते है, “एक डॉक्टर के रूप में हमने अपने मरीजों पर वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को करीब से देखा है। यह एक जन स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थिति है, जिससे पूरी दुनिया के लोगों की जिंदगी पर असर पड़ रहा है। इसका सबसे बुरा प्रभाव दक्षिण एशिया पर पड़ रहा है। जीवाश्म ईंधन का उपयोग वायु प्रदूषण और जलवायु संकट दोनों ही का प्रमुख कारण है। दक्षिण एशियाई देशों की सरकारों के लिए यह जरूरी है कि वे अपने वायु गुणवत्ता संबंधी राष्ट्रीय मानकों को विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताजा दिशा-निर्देशों के अनुरूप ढालें और एक क्षेत्रीय रवैया अपनाएं जिसमें वायु प्रदूषण संकट से निपटने और उसका समाधान करने के लिए निर्धारित किए जाने वाले कदमों में स्वास्थ्य को केंद्र में रखा जाए। हमें इस दिशा में कल ही काम कर लेना चाहिए था लेकिन हमने वह मौका गंवा दिया। अब भविष्य की पीढ़ियों के लिए हमें सब कुछ करने की जरूरत है, ताकि इस संकट को जल्दी से जल्दी हल किया जा सके। अगर हमने आज सार्थक और ठोस कदम नहीं उठाए तो इसका भारी खामियाजा हमारी आने वाली पीढ़ियां भुगतेंगी।”

अपनी प्रतिक्रिया देते हुए आईआईटी कानपुर में प्रोफेसर और नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की स्टीयरिंग कमेटी के सदस्य प्रोफेसर एसएन त्रिपाठी कहते हैं, ” इस बात को साबित करने के लिए अनेक वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि वायु प्रदूषण की वजह से सेहत पर गंभीर प्रभाव पड़ रहे हैं और पूरी दुनिया की 90% आबादी प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है। वायु प्रदूषण स्वास्थ्य संबंधी बेहद गंभीर संकट है और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वायु की गुणवत्ता से संबंधित नए दिशानिर्देशों ने इस मुद्दे को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है। आज हालत यह है कि भारत में पीएम2.5 के मौजूदा शिथिल मानक 40ug/घन मीटर है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2005 में इसकी वार्षिक सीमा 10ug/घन मीटर निर्धारित की थी। आज हालात यह हैं कि भारतीय शहर उन पुराने स्तरों को भी प्राप्त करने में विफल साबित हुए हैं। हमें अपने हेल्थ डेटा को और मजबूत करना होगा और उसके मुताबिक नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम को और बेहतर बनाना होगा।

WHO के नए दिशानिर्देश 6 प्रदूषकों के लिए वायु गुणवत्ता के स्तर की सलाह देते हैं, जहां सबूत एक्सपोजर (संपर्क) से स्वास्थ्य प्रभावों पर सबसे अधिक उन्नत हुए हैं। जब इन तथाकथित मान्य प्रदूषकों – पार्टिकुलेट मैटर (PM), ओज़ोन (O₃), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) – पर कार्रवाई की जाती है, तो इसका अन्य हानिकारक प्रदूषकों पर भी प्रभाव पड़ता है।

10 और 2.5 माइक्रोन (µm) व्यास (क्रमशः पीएम₁₀ और पीएम₂.₅) के बराबर या उससे छोटे पार्टिकुलेट मैटर से जुड़े स्वास्थ्य जोखिम विशेष रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रासंगिकता के हैं। PM₂.₅ और PM₁₀ दोनों फेफड़ों में गहराई से प्रवेश करने के लायक़ हैं, लेकिन PM₂.₅ रक्तप्रवाह में भी प्रवेश कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप मुख्य रूप से हृदय और श्वसन संबंधी प्रभाव होते हैं, और अन्य अंगों को भी प्रभावित होते हैं। PM मुख्य रूप से परिवहन, ऊर्जा, घरों, उद्योग और कृषि सहित विभिन्न क्षेत्रों में ईंधन के दहन से उत्पन्न होता है। 2013 में, बाहरी वायु प्रदूषण और पार्टिकुलेट मैटर को WHO की इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) द्वारा कार्सिनोजेनिक के रूप में वर्गीकृत किया गया था।

दिशानिर्देश कुछ प्रकार के पार्टिकुलेट मैटर (उदाहरण के लिए, ब्लैक कार्बन / एलिमेंटल कार्बन, अल्ट्राफाइन पार्टिकल्स, रेत और धूल भरी आंधी से उत्पन्न होने वाले कण) के प्रबंधन के लिए अच्छी प्रथाओं को भी हाईलाइट करते हैं, जिसके लिए वर्तमान में वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश स्तर निर्धारित करने के लिए अपर्याप्त मात्रात्मक सबूत हैं। वे विश्व स्तर पर आउटडोर (बाहरी) और इनडोर (भीतरी) दोनों वातावरणों पर लागू होते हैं, और सभी सेटिंग्स को कवर करते हैं।

WHO के महानिदेशक डॉ टेड्रोस एडहानॉम घेब्रेयसस ने कहा, “वायु प्रदूषण सभी देशों में स्वास्थ्य के लिए खतरा है, लेकिन यह निम्न और मध्यम आय वाले देशों में लोगों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। WHO के नए वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए, जिस पर सारा जीवन निर्भर करता है, एक साक्ष्य-आधारित और व्यावहारिक उपकरण हैं। मैं सभी देशों और उन सभी लोगों से जो हमारे पर्यावरण की रक्षा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं से विनती करता हूं के वे दुख को कम करने और जीवन बचाने के लिए इसका इस्तेमाल करें।”

रोगों का एक असमान बोझ

निम्न और मध्यम आय वाले देशों में सबसे ज़्यादा बीमारियों के बोझ के एट्रीब्यूशन के साथ, स्वस्थ ज़िन्दगी के करोड़ों साल के जीवन खो गए हैं। जितना ज़्यादा वे वायु प्रदूषण के संपर्क में आते हैं, उतना ही उम्रदराज़ लोगों, बच्चों और गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ विशेष रूप से क्रॉनिक (दीर्घकालीन) स्थितियों (जैसे अस्थमा, दीर्घकालीन ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी (अवरोधक फेफड़ा विषयक) रोग और हृदय रोग) वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य पर अधिक प्रभाव पड़ता है।

यूरोप के लिए WHO के क्षेत्रीय निदेशक डॉ हंस हेनरी पी. क्लूज ने कहा, “WHO का अनुमान है कि प्रतिवर्ष लाखों मौतें वायु प्रदूषण के प्रभाव से होती हैं, मुख्य रूप से गैर-संचारी रोगों से। स्वच्छ हवा एक मौलिक मानव अधिकार और स्वस्थ और उत्पादक समाज के लिए एक आवश्यक शर्त होनी चाहिए। पर पिछले तीन दशकों में हवा की गुणवत्ता में कुछ सुधारों के बावजूद, लाखों लोग समय से पहले मर रहे हैं, और अक्सर सबसे कमज़ोर और हाशिए पर रहने वाली आबादी प्रभावित होती है। ये दिशानिर्देश नीति-निर्माताओं को इस दीर्घकालिक स्वास्थ्य बोझ से निपटने के लिए ठोस सबूत और आवश्यक उपकरण प्रदान करते हैं।”

दिशानिर्देश का लक्ष्य सभी देशों के लिए अनुशंसित वायु गुणवत्ता स्तर प्राप्त करना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा किए गए एक रैपिड सिनेरियो एनालिसिस (त्वरित परिदृश्य विश्लेषण) के अनुसार, अगर वर्तमान वायु प्रदूषण के स्तर को अद्यतन दिशानिर्देशों में प्रस्तावित स्तर तक कम कर दिया जाए, तो दुनिया में PM₂.₅ से संबंधित लगभग 80% मौतों से बचा जा सकता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here