शकुनि मामा पाशा फेंको ना

—विनय कुमार विनायक
शकुनि मामा पाशा फेंको ना,
अपने गांधार जाकर देखो ना,
गांधार में आज भी कुटिलता
जस की तस पैरों को फैलाई!

तुम्हारी एक बहन गांधारी ने
दोनों आंख में पट्टी बांधी थी,
आज तुम्हारी सारी बहू-बेटियां
फिर से आंखों में पट्टी बंधाई!

शकुनि मामा पाशा फेंको ना,
अपने गांधार जाकर देखो ना,
तुम्हारे पाशों की मनहूसियत
आज भी गांधार में वैसे छाई!

जब चेहरे पर पट्टी बांध कर
बहन गांधारी ने सारे पुत्रों को,
तुम्हारे हाल हवाले में कर दी,
तब तुमने पट्टी नहीं हटवाई!

अपने सभी भांजों को तुमने,
ऐसी तालिबानी पट्टी पढ़ाई,
कि वे सब बन गए अताताई,
तुमने भाईयों में शत्रुता बढ़ाई!

शकुनि मामा पाशा फेंको ना,
अपने गांधार जाकर देखो ना,
तुम्हारे वंशधर पठान; बनकर
तालिबान सबकी नींद उड़ाई!

देखो कैसे वहां अंधेर मचा है,
वहां कोई नही किसी का भाई,
सब कोई कानून हाथ में लेके
करने लगे आपस में हाथापाई!

कब कौन वहां किसको मारेगा,
कब कौन वहां किस से हारेगा,
कोई ना भविष्यवाणी कर पाए,
समझ सकते नहीं कोई खुदाई!

तेरे पिता की अस्थियों के पाशें,
देखलो बोतल के जिन्नात जैसे,
कैसे समय-समय में निकल के
अफ़रा-तफ़री की माहौल बनाई!

शकुनि मामा पाशा फेंको ना,
अपने गांधार जाकर देखो ना,
तुम्हारी बहन का शाप फला,
तेरे वंश की अब नहीं भलाई!

आर्थिक व्यवस्था गिर चुकी,
अफीमची की कौम बन गई,
हवाला और नशीले पदार्थ से
जीवन यापन को देते दुहाई!

शकुनि मामा पाशा फेंको ना,
अपने गांधार जाकर देखो ना,
अब गांधार में सब हैं मुल्ला,
कोई नहीं बिरादर सब कसाई!

शकुनि मामा पाशा फेंको ना,
अपने गांधार जाकर देखो ना,
तेरे वंशज सब हो चुके हिंसक
बुरे कर्म की सजा तुमने पाई!
—-विनय कुमार विनायक

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