अविनाश ब्यौहार
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फूट रहे आज
बाँस में करैल।
झर रहे झरने
रोते हैं शैल।।
पेड़ हुए उदास
चुपचाप खड़े।
पथरीली राहें
चट्टान अड़े।।
सींगें फँसा
हुंकारते हैं बैल।
सन्नाटे उग
रहे हैं शूल से।
फुनगी लड़ने
लगी है मूल से।।
पुरवा पछुआ भी
हुईं हैं दगैल।
आज टोली में
हो गया तनाव।
बच्चे भी भूल गए
आव भाव।।
रक्त का पिपासु
होता है ज़ैल।
अविनाश ब्यौहार
रायल एस्टेट कटंगी रोड
जबलपुर।