चीन की हरकतों पर यदि ध्यान दिया जाए तो लगता है कि यह तीसरा विश्व युद्ध करा कर दुनिया के लिए महान खतरा बन चुका है । यह भी स्पष्ट होता जा रहा है कि चीन के नेतृत्व का इस समय दिमाग फिर गया है । तभी तो वह अपने हर पड़ोसी के साथ किसी न किसी प्रकार का विवाद खड़ा करने की हरकत दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है । अब अपनी इसी सोच के अंतर्गत उसने रूस के ब्लादिवोस्टक शहर पर अपना दावा जताया है ।ऐसा दावा करते हुए चीन ने कहा है कि 1860 से पहले रूस का यह शहर उसका था । इसलिए इस क्षेत्र पर भी हमारा ही अधिकार होना चाहिए ।
चीन के सरकारी समाचार चैनल सीजीटीएन के संपादक शेन सिवई ने दावा किया कि रूस का व्लादिवोस्तोक शहर 1860 से पहले चीन का हिस्सा था। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि इस शहर को पहले हैशेनवाई के नाम से जाना जाता था , जिसे रूस ने एकतरफा संधि के तहत चीन से छीन लिया था। यूं तो चीन और रूस के बीच सैन्य संबंध अच्छे माने जाते रहे हैं लेकिन अब उसे लेकर ड्रैगन का रवैया रुखा होने लगा है। खासकर तब जब भारत और रूस के बीच सैन्य संबंध गहरा रहे हैं।
चीन के इस प्रकार के बढ़ते जा रहे दावे निश्चय ही विश्व के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं हैं , क्योंकि रूस भी इस समय विश्व की एक बड़ी शक्ति है ,उसके साथ चीन का इस प्रकार पढ़ना ने केवल चीन के लिए भारी पड़ सकता है बल्कि दुनिया के लिए भी खतरनाक हो सकता है। खतरनाक इस लिए कि यदि इस बार विश्व युद्ध हुआ तो वह निश्चय ही परमाणु युद्ध में बदल सकता है जिससे मानवता के लिए भारी संकट खड़ा हो सकता है।
अब जब कि चीन रूस के साथ ऐसी हरकतों पर उतर आया है तो इससे भारत को एक लाभ हो सकता है कि अब रूस खुलकर भारत के साथ आ सकता है। यद्यपि वह अभी तक प्रत्येक समय पर भारत का साथ देता रहा है , पर कम्युनिस्ट विचारधारा होने के कारण चीन के विरुद्ध भारत को सहायता देने में उसे कुछ हिचक हो रही थी । अब रूस भी संभावित भारत चीन युद्ध में भारत के साथ खड़ा हो सकता है।
ध्यान रहे कि चीन में जितने भी मीडिया संगठन हैं सभी सरकारी हैं। इसमें बैठे लोग चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के इशारे पर ही कुछ भी लिखते और बोलते हैं। कहा जाता है कि चीनी मीडिया में लिखी गई कोई भी बात वहां के सरकार की सोच को दर्शाती है। ऐसी स्थिति में शेन सिवई का ट्वीट अहम हो जाता है। निश्चय ही उसके द्वारा किया गया यह ट्वीट सरकारी संकेत पर ही किया गया है। जिससे भविष्य में रूस और चीन के बीच भी कुछ वैसे ही विवाद उभरते हुए दिखाई दे सकते हैं जैसे विवाद उसके भारत सहित अपने कई अन्य पड़ोसियों के साथ हैं। हाल के दिनों में रूस के साथ चीन के संबंधों में खटास भी आई है।
रूस ने कुछ दिन पहले ही चीन के खुफिया एजेंसी के ऊपर पनडुब्बी से जुड़ी टॉप सीक्रेट फाइल चुराने का आरोप लगाया था। इस मामल में रूस ने अपने एक नागरिक को गिरफ्तार भी किया था जिसपर देश द्रोह का आरोप लगाया गया है। आरोपी रूस की सरकार में बड़े ओहदे पर था जिसने इस फाइल को चीन को सौंपा था।
एशिया में चीन की विस्तारवादी नीतियों से भारत को सबसे ज्यादा खतरा है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण लद्दाख में चीनी फौज के जमावड़े से मिल रहा है। इसके अलावा चीन और जापान में भी पूर्वी चीन सागर में स्थित द्वीपों को लेकर तनाव चरम पर है। हाल में ही जापान ने एक चीनी पनडुब्बी को अपने जलक्षेत्र से खदेड़ा था। चीन कई बार ताइवान पर भी खुलेआम सेना के प्रयोग की धमकी दे चुका है। इन दिनों चीनी फाइटर जेट्स ने भी कई बार ताइवान के हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया है। वहीं चीन का फिलीपींस, मलेशिया, इंडोनेशिया के साथ भी विवाद है।
रूस का व्हादिवोस्तोक शहर प्रशांत महासागर में तैनात उसके बेड़े का प्रमुख बेस है। रूस के उत्तर पूर्व में स्थित यह शहर प्रिमोर्स्की क्राय राज्य की राजधानी है। यह शहर चीन और उत्तर कोरिया की सीमा के नजदीक स्थित है। व्यापारिक और ऐतिहासिक रूप से व्लादिवोस्तोक रूस का सबसे अहम शहर है। रूस से होने वाले व्यापार का अधिकांश हिस्सा इसी पोर्ट से होकर जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध मे भी यहां जर्मनी और रूस की सेनाओं के बीच भीषण युद्ध लड़ा गया था।
वास्तव में चीन एक साम्राज्यवादी देश है जो अपने किसी भी पड़ोसी को एक पड़ोसी देश में मानकर उसकी संप्रभुता को वे नष्ट करने की योजनाएं बनाता सोचता रहता है । किसी भी देश के शासकों की ऐसी सोच ही विश्व शांति के लिए खतरा बनती रही है। विश्व इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब-जब साम्राज्यवादी शक्तियां प्रबल हुई हैं या बेलगाम होकर होने अपने पड़ोसियों को तंग करना आरंभ किया है तब तब विश्व भारी विनाश की ओर बढ़ा है । अब समय आ गया है जब चीन की इस प्रकार की साम्राज्यवादी नीतियों पर विश्व समुदाय को एक होकर लगाम लगानी चाहिए। इतना ही नहीं कम्युनिस्ट विचारधारा के माध्यम से जिस प्रकार चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग संसार में अस्त व्यस्तता और अशांति को प्रोत्साहित कर रहे हैं वह भी अपने आप में बहुत अधिक विचारणीय है । कहना न होगा कि इस विचारधारा के द्वारा भी लोगों के जीवन को भारी खतरा है , इसलिए विश्व समुदाय को कम्युनिस्ट सोच को भी विदा करने के लिए एकता का परिचय देना होगा।
डॉ राकेश कुमार आर्य