अब शरद को चांटा

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एल.आर.गाँधी

भ्रष्ट तंत्र से त्रस्त हरविंदर सिंह ने महंगाई के प्रतीक केंट्रीय खाद्य मंत्री के टेढ़े मुंह पर सपाट चांटा जड़ दिया.

शनिवार को हरविंदर दूरसंचार के पूर्व भ्रस्टाचार मंत्री सुखराम को भी चांटा रसीद कर चुके हैं. अब हरविंदर अपना तीसरा शिकार किस ‘सिक-यू-लायर भ्रष्ट नेता को बनाएँगे…महंगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त ‘ भारतियों’ को इंतज़ार रहेगा. आज नौंवी पातशाही गुरु तेगबहादुर जी का शहीदी दिवस है. … आज ही के दिन गुरु जी ने उस वक्त के हुक्मरान ज़ालिम मुगलों के अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ बुलंद की और मजलूमों की रक्षा के लिए कुर्बान हो गए. आज के हुक्मरानों के भ्रष्टाचार और महंगाई की मार से आज आम आदमी त्रस्त है . यह खतरे की एक घंटी है…. सभी राजनेता इस ‘काण्ड’ को कितना ही नकारें …मगर सब्र का बाँध टूट रहा है…भ्रत्सना करने से राजनैतिक जवाबदेही चुकने वाली नहीं… राजनेताओं की प्रतिक्रियाओं में ‘डर और पाप’ साफ़ झलक रहा है.

न क्षुधा सम: शत्रु … आचार्य चाणक्य ने ठीक ही कहा है … भूख के समान शत्रु नहीं…हमारे खाद्य मंत्री शरद पवार जी आज महंगाई और भूख का प्रतीक बन गए हैं… संचार मंत्रालय में २ जी के सबसे बड़े घोटाले के बाद पूर्व संचार मंत्री सुख राम ‘भ्रष्टाचार’ के ‘ रोल माडल ‘ के रूप में सामने आए हैं जिन पर पिछले १५ साल से कोई कार्यवाही नहीं की गई. अब भूख और भ्रष्टाचार से त्रस्त आम आदमी अपने गुस्से का इज़हार करेगा तो ‘गांधीजी के अनुयायियों ‘ को अपना दूसरा गाल भी तैयार रखना होगा ? Mark Twain had rightly said ‘ The lack of money is the root of all evil.

राज कुमार के अंग राक्षक भी अब चौकन्ने हो जायेंगे … अब वे राज कुमार को कार का शीशा नीचे कर किसी भिखारी से यह पूछने का रिस्क नहीं उठाने देंगे ‘ भैया आप किस प्रदेश से हो’. कब कोई भूखा- भिखारी ‘ अपना भिख्शा पात्र मुंह पर दे मारे तो ?…. पवार साहेब जी की महानता देखो ..वे तो थप्पड़ को चांटा मानने को ही तैयार नहीं !!!!

कांग्रेस अपने गिरेबान में अब भी झाँकने को तैयार नहीं लगती .. दोष बी.जे.पी नेता यशवंत सिन्हा पर मढ़ा जा रहा है जिन्होंने हाल ही में चेताया था की महंगाई -भ्रष्टाचार से त्रस्त लोग हिंसक हो सकते हैं.. हुक्मरानों को जनता के विश्व व्यापी मूड परिवर्तन को समझाना होगा … अरब क्रांति का सन्देश साफ़ है … त्रस्त भूखी,बीमार, लाचार जनता अब केवल मरेगी नहीं …..मारेगी भी !!!

तुमसे पहले जो यहाँ तख़्त नशीं था

उसको भी अपने खुदा होने पर इतना ही यकीं था.

8 COMMENTS

  1. सरकार के मंुह पर थप्पड़!
    कमाल है। कहते हैं। हमारे देश में लोकतंत्र है। सुना है लोकतंत्र में सब बराबर होते हैं लेकिन यहां तो मंत्री लोग आज भी खुद को खुदा समझे बैठे हैं। आम आदमी कहीं भी कभी भी कुत्ते बिल्ली की मौत मारा जाता है तो कुछ नहीं और वह भूख से मर जाये तो कोई हंगामा नहीं होता। वह दवाई न मिलने से मर जाये तो कहीं कोई पत्ता नहीं खड़कता। उसको पुलिस पूछताछ के नाम पर थर्ड डिग्री देकर मार दे तो कोई बात नहीं।
    वह बेमौत दंगे में मारा जाये, सेना के लोग उसको मणिपुर और कश्मीर में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम के तहत केवल शक की बिना पर मौत के घाट उतारदें, पुलिस फर्जी मुठभेड़ में मार गिराये, बड़े लोग उसको किसी बदमाश से सुपारी देकर मरवादें, आतंकवादी -नक्सलवादी उसे गाजर मूली की तरह काटदें। नेताओं के बनाये हालात से तंग आकर वह एक किसान और बेरोज़गार होकर आत्महत्या कर ले, वीआईपी कार से टकराकर मर जाये तो कोई बात नहीं लेकिन एक मंत्री को बेईमान और भ्रष्ट होने पर महंगाई खुलेआम बयान दे देकर बढ़ाकर आम आदमी का जीना मुहाल करने पर एक सिरफिरा आदमी चांटा मार दे तो आसमान सर पर उठालो।
    हिंसा नहीं होनी चाहिये लोकतंत्र में लेकिन केवल नेताओं के साथ? खुद नेता सत्ता की खातिर कितनी हिंसा करा रहे हैं यह सोचा कभी? संसद और विधानसभाओं में कुर्सी और माइक कौन फेंकता है एक दूसरे पर? चुनाव में हिंसा कौन कराता है? मंदिर मस्जिद और आरक्षण के नाम पर हिंसा किसने कराई थी? भूल गये? हम फिर भी थप्पड़ की निंदा करते हैं। मगर यह बात तो नेता जानें कि यह सिलसिला निंदा से रूकेगा या नहीं क्यांेकि अब पानी सर से उूपर बह रहा है। किसी शायर ने कहा है-
    0उनका जो काम है वो एहले सियासत जानें,
    मेरा पैगाम मुहब्बत है जहां तक पहुंचे।।
    इक़बाल हिंदुस्तानी,संपादक,पब्लिक ऑब्ज़र्वर,नजीबाबाद।

  2. (१)
    किसी भी समस्या की ३ अवस्थाएँ मान सकते है|
    प्रथम, मध्यम और चरम |
    (२)
    और अनेक समस्याएँ पूरी प्रणाली में फैली हुयी( होती) है| कार्य कारण की कड़ियों का जाल भी सारे शासन-तंत्र और समाज में फैला हुआ है|
    (३)
    सारा का सारा, किसी एक सुधारसे सुधरने वाला नहीं|
    *इस सच्चाई को स्वीकार कर भी, इतना तो, निश्चित कहा जा सकता है. कि इस थप्पड़ को, एक संकेत के रूपमें स्वीकार करते हुए समस्या का हल ढूंढना चाहिए|
    (४)
    एक नहीं अनेक लेन-देन की गांठो में भ्रष्टाचार का जाल फैला हुआ है|
    (५)
    ऐसी समस्याओं की जड़ें भी अनेक है| उदाहरणार्थ:
    समाज के एक विशेष (कृषक) अंग को लाभ पहुंचाना, विशेष जन समूह के वोट के बदले अनुचित सुविधाएँ देना, जाति या धर्म आधारित आरक्षण देना, यह सारे हमारे भारत के विघटन के बीज प्रतीत होते हैं |
    (६)
    संविधान भी न्याय की भांति “अंधा” होना चाहिए, जो नहीं है|
    (७)
    थप्पड़ तो सूक्ष्म संकेत है| यदि हम थप्पड़ से सीख ना ले –तो भारत में शायद “पाकिस्तान” जैसी घिनौनी हिंसात्मक प्रतिक्रियाएं होंगी|
    (८)
    सावधान–आग लगाने के बाद कुआँ खोदने से काम सफल नहीं होगा|
    यह गंभीर चेतावनी है|
    थप्पड़ से न चेते तो गोलियों के लिए सिद्ध हो जाइए| किसी हिंसा का समर्थन नहीं, पर मैं गोलियों की अपेक्षा थप्पड़ हज़ार बार पसंद करूँगा|
    जय भारत|

  3. + आपको किसने परमिट दिया है साथियों के कपड़े फाड़ने का , पेपर एवं पेपरवैट फेंकने का, फाइले फाड़ने का , चेयर से पेपर छीन लेने का , कुर्सियां मेज माइक तोड़ने का– कितनी ही खूनी घटनाएं देश टीवी पर देख चुका सदनों के भीतर की —— फिर एक विवश ( शायद मानसिक रोगी ) के प्रति यह व्यवस्था इतनी निर्मम हो जाएगी कि शायद उसकी जान लेलेगी और हमारे मीडिया में एक छोटी सी खबर छपेगी फिर सब भूल जाएंगे- फिर भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में करोड़ों टन गेहूं सड़ेगा, चूहे और सूअर खाएंगे और देश में प्रतिदिना करोड़ो लोग भूखे पेट सोएंगे- बच्चे भूख से दम तोड़ेगे कोई मा अपनी लाज बेचेगी और सीमा पर एक भावुक फौजी अपनी जान दे देगा –और ये अपनी अरबों की कोठियों में सुख चैन की नींद सो रहे हौंगें फौजी की विधवा तमाम तरह के प्रमाणपत्रों के लिए भूखी प्यासी घूम रही होगी– स्टेशन पर आपके फेंके हुए पत्ते चाटने के लिए कई भिखमंगे आपस में ही लड़ मर रहे होगे –एक अदालत इस बेचारे को जाने जाने किस किस धारा के तहत सजा सुना देगी– ——-

  4. इस थप्पड़ की गूंज सुनी तुमने……. मैं व्यक्तिगत तौर पर इस घटना की निंदा करता हूं, किंतु आमजन की लाचारी का यह प्रतीकात्मक प्रतिरोध है आखिर बुरे से बुरे नेता को भी चुनते तो हम ही हैं ना– तो दोष किसका ?
    अगर यह माना जाए कि मंहगाई के लिए कोई एक व्यक्ति दोषी है तो वह अकेला तो नहीं होगा न, उसके साथ हमारे और भारतवासी भी होंगे न – क्या हमें अपने अपने गिरेबानों में नहीं झांकना चाहिए कि हम कितने ईमानदार हैं ? कितने विलासी हैं कितने फिजूलखर्ची हैं ? कितने भोगी हो गए हैं , हर अनावश्यक चीज, वस्तु, भोज्य पदार्थ , विलासिता, वैभव हमें अपने लिए अनिवार्य लगने लग गया है और उसे पाने के लिए हम कुछ भी करने को तैयार रहते हैं – नैतिकता लुप्त प्रजाति के सफेद शेर हो गई है। मेरा तो स्पष्ट मानना है कि हमारा राजा बैसा ही होता है जैसा हम उसे बनाते हैं- अब यह एक शहादत से खत्म नहीं हो जाएगा- इस व्यवस्था की नींव ही गलत पड़ गई- हमें स्वतंत्रता का, लोकतंत्र का अर्थ समझ में आया नहीं और हम स्वेच्छाचारी हो गए- और एक सोची समझी षणयंत्रकारी योजनाओं का हिस्सा बन गए- आजादी के इतिहास के गलत लेखन से- हमें क्रांति, शहादत, त्याग , समर्पण के बजाए कांग्रेस का कलंकित इतिहास महिमामयी पैंकिग में पढ़ाया गया तो हम ऐसे ही हो गए जैसे कि अंग्रेजों के समय में थे- कुछ भी अंतर नहीं पड़ा । आज एक भावुक व्यक्ति ने ऐसा कर दिया तो हाय तोबा मच रही है हमारे माननीय संसद एवं विधानसभाओं में क्या क्या करते हैं, अरबों खरबों का धन बर्बाद करते हैं, देश की संपप्ति की तोड़ फोड़ करते हैं- ये लोग भी तो इन 65 सालों में अपने विरोध को शालीनता से व्यक्त करना , तर्क कर विवेकपूर्ण परिणित तक पहुंचाना नहीं सीख पाए तो एक आम निराश हताश व्यक्ति का ही कसूर क्यों ? देश की कई विधानसभाओं और संसद में जो हम देखते हैं क्या वह सही है तो फिर यह घटना इन्हे इतनी बड़ी क्यों लग रही है ? मैं पुनः स्पष्ट करदूं कि मैं माननीयों के आचरण का विरोधी हूं इस लिए इस घटना का भी विरोधी हूं किंतु प्रश्न अधूरा रह जाएगा कि आखिर जनता करे तो क्या करे ? बलवान के विरुद्ध हिंसा ही की जा सकती है क्यों कि उसके ऊपर विचार का कोई असर नहीं होता और आज दूध का धुला है कौंन- नेताओं के पिछलग्गुओं के तो अपने स्वार्थ होते हैं जो उनसे पूरे हो रहे होते हैं वर्ना कौंन किसकी हकीकत नहीं जानता। अब शास्त्री जी तो हैं नहीं जिन्होंन प्रधानमंत्री आवास में अपने बच्चों के चावल खाने पर रोक लगा दी थी या मोटर कार के डीजल के पैसे खजाने में जमा कराए थे या ललिता जी के लिए उस मिल से एक सस्ती सूती साड़ी लाए थे जिसका कि उद् घाटन करने गए थे– अब तो आपकी सारी असिलयत जनता जानती है महोदय तो सम्मान कैसे पैदा हो- यह तो मीडिया जिस दिन ईमानदार हो जाए उस दिन देश की तस्वीर बदलने लगेगी- यह भी तो अपने नफे नुकसान से खबरें कुक करता है और राजसत्ता के टुकड़ो में ही रस पाता है । कल किसी का बयान आजतक पर चल रहा था कि लोकतंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं हैं- आपने सही फरमाया माननीय तो यह बताएं कि लोकतंत्र में भूख गरीबी बेबसी लाचारी लूट हत्या बलात्कार भ्रष्टाचार व्यभिचार विलासिता सत्तामद अहंकार निर्लज्ज प्रदर्शन बेहयाई बैईमानी मंहगाई—————— का स्थान किस किताब में लिखा है-क्या आप जानते हैं कि संसद में कैंटीन में खाने का क्या रेट है,क्या देश चलाने वाले लगभग 10 हजार माननीय कभी किसी बाजार हाट पेंठ सेल में आपको नजर आए- तो इन्हे क्या पता मंहगाई क्या है , कभी आपको कोई पुरानी दिल्ली स्टेशन या हाबड़ा पर रात को 2 बजे मिला तो उसे क्या पता कि कितने करोडं लोग रात कितने कष्टों में बिताते हैं- क्या इनकी नजर कभी रेल के काले शीशों से बाहर गई है कि कितनी करोड़ों महिलाएं अपनी लाज शर्म छिपाती रेल किनारे दैनिक कर्म करने को अभिशप्त हैं इन्हे किसी को दिखेगा कैसे – ये लोग तो जहाज में होते हैं और जब जमीन पर होते है तो काले चश्मे और काले शीसे से देखते हैं और सट से कहीं भी पहुंच जाते हैं —-। व्यक्तिगत हिंसा का विरोध करते हुए मैं यह कहना चाहुंगा कि दबने पर तो चींटी भी काटती है यह एक चेतावनी है अगर इस थप्पड़ की गूंज सत्ता ने नहीं सुनी तो ——–. मेरे प्रिय मित्र गिरधर जी कह रहे है कि पाकिस्तान जैसी क्रांति या मिस्त्र जैसी क्रांति– भाई हालात नहीं सुधरे तो क्या रोक लेंगे क्या- आप दूसरे पक्ष का उनके आचरण का वचाव करते नजर आ रहे हैं और भूखे को उपदेश दे रहे है। भगवान बुद्द के उपदेश में एक व्यक्ति विल्कुल घ्यान नहीं दे रहा था, आनंद ने कहा कि भाई तुम कितने अभागे हो भगवान को नहीं सुन रहे हो और तथागत से शिकायत करदी, तथागत ने उस व्यक्ति को बुलाया और उसके चेहरे को देखकर उसे पहले खाने को दिया और फिर कहा घर जाओ कल आना, आश्यर्यचिकत आनंद ने पूछा प्रभु यह क्या – एक तो उसने आपके विचार न सुनकर आपका अपमान किया और आपने उसे भोजन करा कर घर भेज दिया- भगवान बोले भूखे के लिए कोई धर्म नहीं होता कोई उपदेश उसे आवश्यक नहीं है – उसका सब कुछ भूख है । अब क्या होगा सुरक्षा घेरे और क़ड़े होते जाएंगे—और एक दिन आएगा हमें हमारे नेता सांसद मंत्री सिर्फ वीडियो कांफ्रेस में ही नजर आया करेंगे अपने किलों में से ये निकलेंगे ही नहीं- इनके चेले चपाटे चमचे इनके फोटो लेकर वोट मांग लिया करेंगे— किधर जा रहा है मेरा देश और लोकतंत्र ?

  5. सरकारी चांटे का जवाब जनता का चांटा ही है। सरकार देश की जनता के मुंह पर हर रोज़ थप्पड़ मारती चली आ रही है। आज जनता में से एक व्यक्ति ने ज्यादा जोश में आकर एक भ्रष्ट वरिष्ठ नेता को झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद कर दिया जिसकी गूंज वर्षों तक राजनैतिक गलियारों में बनी रहेगी।

    रामलीला मैदान में बाबा रामदेव के अनुयाइयों को आधी रात को नींद में पी. चिदम्बरम ने दिल्ली पुलिस के सहारे पिटवाया था, उसके बाद भी वह आज देश के गृहमंत्री जैसे महत्वपूर्ण आसन पर विराजमान हैं जबकि उस भ्रष्ट व्यक्ति की सही जगह तिहाड़ जेल में ए.राजा के बगल वाली कोठरी ही हो सकती है।

    प्रश्न यही है कि हमारी सरकार हर रोज़ जनता को थप्पड़ मारती रहती है तो कभी कभी नेता भी थप्पड़ का स्वाद चख लें तो क्या बुराई है? रही बात अराजकता की तो आज देश में पहले से ही जो अराजकता फैली पड़ी है, उसमें और वृद्धि हो ही नहीं सकती ! अब तो इस अराजकता में से ही क्रांति का सूत्रपात होगा । जनता को योग्य नेतृत्व चाहिये ताकि इस गुस्से को सही दिशा मिल सके।

  6. कुछ लोग शरद पवार को थप्पड मारने वाले को शाबाशी दे रहे हैं, खुल कर पर नाज जाहिर कर रहे हैं, माना कि जो कुछ हो रहा है वह जाहिर तौर पर जन आक्रोश ही हे, वह सब वक्त की नजाकत है, उसके लिए पूरा सिस्टम जिम्मेदार है, मगर ऐसी हरकतों का समर्थन करके आज भले ही गौरवान्वित हो लें, मगर कल हम अराजकता के लिए तैयार रहें, अचरज तो तब होता है जब अपने आपको गांधीवादी कहने वाले अन्ना हजारे भी यह कह कर अराजकता का समर्थन कर रहे हैं कि बस एक ही थप्पड, यदि यह सही है तो हमको पाकिस्तान जैसी सैनिक क्रांति या मिस्र जैसी क्रांति के लिए तैयार रहना चाहिए

  7. इस थप्पड़ के बहाने मै भी कुछ कहना चाहूँगा
    यह आवाज है उस गुस्से की जो लोगों के सीनों में दबी हुई है इसे अनसुना नहीं करे यह कभी बाबा रामदेव या कभी अन्ना हजारे के रूप में या अब हरविंदर के रूप में आती ही रहेगी सारी दुनिया में पूंजीवाद का नंगा खेल चल रहा है भारत में भी रोज गिनती हो रही है कि कितने करोड़पति बन रहे है यह सब कैसे हो रहा है क्या यह सही तरीके से हो रहा है? नहीं
    इसके पीच्छे पूंजीवाद का वीभत्स चेहरा बाजारवाद है वो बाजार जहाँ सब कुछ बिकता है –इमां धर्म न्याय रिश्ते नाते सब कुछ बिकाऊ है नेता लोग तो दलाली का काम कर रहे है वे कहते है कि प्रजातंत्र में हिसा का कोई स्थान नहीं है पर इनसे कोई पूछे कि प्रजातंत्र है कहाँ ? क्या पांच या जो भी समय हो के बाद वोट डलवा लेना वह भी वोटरों को लालच दे कर कुछ रुपये दे कर कुछ उपहार दे कर यानि किसी भी प्रकार से वोट अपने पक्ष में कर लेना और फिर अपनी मनमानी करना आज नेता समाज का सबसे निंदनीय व्यक्ति समझा जाने अग है उसको देख कर आदर उत्पन्न नहीं होता है वे कहीं भी जाते है तो अपने आगे पीछे सुरक्षा गार्ड का काफिला ले कर चलते है इससे नफरत ही पैदा होती है नेता बनने के लिए किसी क्वालिफिकेशन कि जरूरत नहीं है सिर्फ आप किसी नेता के बेटा होना चाहिए पता नहीं इस देश में कौन सा तंत्र चल रहा है
    बिपिन कुमार सिन्हा

  8. अब लोग चर्चा कर रहे हैं की, हरविंदर पाजी का चांटा खाने के बाद शरद पवार का चेहरा सीधा हुआ की नहीं??

    हमारी रीढविहीन मन्नू सिंह को असली सरदार हरविंदर से सीखना चाहिए.
    हर-हर, बम-बम.

    जब आम आदमी होगा बेहाल
    तो बोलेगा ऐसे ही ..सत श्री अकाल.

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