(ब्रजदर्शन के बाद )
जे वृन्दावन धाम नहीं है वैसो,
कान्हा के समय रहो थो जैसो
समय बदलते बदले सब हाल
वृन्दावन हुओ अब बेहाल।
कान्हा ग्वालों संग गैया चराई,
वो जंगल अब रहो नही भाई
निधिवन सेवाकुंज बचो है,
राधा कृष्ण ने जहां रास रचो है।
खो गई गलियां खो गये द्वारे,
नन्दगाॅव की पीर कौन बिचारे।
सघनकुंज की छाया को सब तरसे,
बृजवासी ही बृजभाषा को अब बिसरें।
बृज की पीव सब गलिया खो गई,
ब्रज मंडल में यमुना जी रो रही
मलमुत गटर सब जामे मिल रहो
यमुना की अकुलाहट न कोई सुन रहो ॥
आत्माराम यादव पीव