रमेश पाण्डेय
देश और दुनिया में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाए जाने को लेकर कशमकश जारी है। सामाजिक संगठन से लेकर राजनैतिक संगठनों द्वारा इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया जा रहा है। समाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे आए दिन भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर आन्दोलन करते रहते हैं। योग गुरु बाबा रामदेव भी भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर आवाज उठाते रहते हैं। बावजूद इसके भी भ्रष्टाचार पर कोई अंकुश लगता नजर नहीं आ रहा है। सच है अगर ऐसे ही रहा तो भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लग सकेगा और वह आने वाली पीढ़ी के लिए नासूर बन जाएगा। हर परिवार में बच्चे को जहां जीवन में सत्य और ईमानदारी का अनुपालन करने का संस्कार दिया जाता है, निश्चित रुप में आने वाले दिनों में बच्चों को इसके बजाय भ्रष्टाचार करने का संस्कार स्वमेव प्राप्त हो जाएगा। दरअसल भ्रष्टाचार की मूल में जन सामान्य का भ्रष्ट आचरण ही जिम्मेदार है, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है। पंचायत से लेकर राज्य और केन्द्र की सरकारों के निर्वाचन में जब मतदाता बिना सोचे समझे मतदान करता है, अपना काम बनाने के लिए हर अनैतिक सहारे को लेने के लिए तैयार हो जाता है तो भ्रष्टाचार पर अंकुश कैसे लग सकेगा। यह एक गंभीर सवाल है। इन सबके बीच छत्तीसगढ़ की सरकार ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए एक सराहनीय पहल की है। इस पहल से और कुछ हो या न हो पर इतना जरुर होगा कि अफसरशाही के बीच भ्रष्टाचार को लेकर एक खौफ पैदा होगा। छत्तीसगढ़ सरकार ने भ्रष्ट अफसरों की संपत्ति को कुर्क करने के लिए विधानसभा के पटल पर एक विधेयक पेश किया है। इस विधेयक के पास होते ही यह व्यवस्था कानूनी रुप धारण कर लेगी। इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि राज्य सरकार लोक सेवकों की अनुपातहीन संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा भी कर सकेगी। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की गैर-मौजूदगी में संसदीय कार्यमंत्री अजय चंद्राकर ने 11 मार्च 2015 को इससे संबंधित छत्तीसगढ़ विशेष न्यायालय विधेयक, 2015 विधानसभा में पेश किया। इस विधेयक में लोक सेवकों द्वारा भ्रष्ट साधनों से अर्जित चल-अचल अनुपातहीन संपत्ति को जब्त या राजसात करने का प्रावधान किया गया है। विधेयक में कुल 28 धाराएं शामिल की गई हैं। विधेयक में ऐसे मामलों के लिए विशेष न्यायालय के गठन का प्रावधान किया गया है, जो इस प्रकार के मामलों की सुनवाई करेगा। इन मामलों का निराकरण एक वर्ष के भीतर किया जाएगा। विधेयक में प्रावधान किया गया है कि ऐसे मामलों में संपत्ति कुर्क करने की पुष्टि एक माह के भीतर विशेष न्यायालय द्वारा की जाएगी। इसके साथ ही विशेष न्यायालय ऐसी कुर्क-अधिगृहीत संपत्ति को प्रबंधन के लिए जिला मजिस्ट्रेट अथवा उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति को सौंपेगा। अपचारी लोक सेवक को विशेष न्यायालय में सुनवाई का समुचित अवसर दिया जाएगा। प्रभावित व्यक्ति द्वारा विशेष न्यायालय के आदेश के विरुद्ध एक माह के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की जा सकेगी। छत्तीसगढ़ सरकार का यह कदम भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की दिशा में सराहनीय तो है ही, साथ ही देश के अन्य राज्य की सरकारों के लिए एक संदेश भी है कि अगर वहां की राज्य सरकारे भी चाहें तो ऐसे विधेयक को सदन में पेश कर उसे कानूनी अमलीजामा पहना सकते हैं। पिछले कुछ सालों में पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में घटी कुछ घटनाओं पर नजर डाले तो ऐसा प्रतीत होता है कि अफसरशाही का एक बड़ा वर्ग भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में शामिल है। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश में हुआ खाद्यान्न घोटाला, मनरेगा घोटाला, एनआरएचएम घोटाला (इस घोटाले में सीएमओ स्तर के तीन अधिकारियों की हत्या भी हुई थी) जैसे मामले प्रमुख है। उत्तर प्रदेश के ही नोएडा के एक अभियंता यादव सिंह का मामला तो देश ही नहीं दुनिया में सुर्खियों में छाया रहा। इन अफसरों ने व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार करके जनहित की योजनाओं के संचालन के लिए मिले करोड़ों की धनराशि का दुरुपयोग किया। दुखद है कि अकेले उत्तर प्रदेश ही नहीं, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्यों में अफसरों द्वारा भ्रष्टाचार किए जाने के मामले सामने आ रहे हैं। पश्चिम बंगाल में शारदा चिटफंड घोटाले का मामला भी कम गंभीर नहीं है। इस घोटाले में भी राजनीतिक और अफसरशाही की तिकड़ी शामिल रही है। इन परिस्थितियों के बीच अगर देश के सभी राज्य की सरकारें छत्तीसगढ़ सरकार की तरह अफसरशाही के भ्रष्ट आचरण पर अंकुश लगाने के दिशा में ऐसा ही प्रयास करें तो कुछ हद तक भ्रष्टाचार की बढ़ती प्रवृत्तियों पर कुछ अंकुश लग पाना संभव हो सकता है। हम विचार करें तो पाएंगे कि समाज में भ्रष्टाचार की शुरुआत अफसरशाही से ही होती है। रातोंरात पैसे कमाने की चाहत में अफसर गलत फैसले देते हैं और उसका परिणाम यह दिखता है कि गलत करने वाला ही सफल हो जाता है। इसकी देखादेखी अन्य लोग भी उसी रास्ते को अपनाने लगते है। धीरे-धीरे भ्रष्टाचारियों की एक चेन तैयार हो जाती है। अगर अफसरशाही के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा तो निश्चित रुप से समाज के हर क्षेत्र में इसका प्रभाव देखने को मिलेगा। अफसर भ्रष्ट नहीं होगा, तो वह सही निर्णय लेगा और सही फैसले देगा। अफसर के सही फैसले से समाज में भी भ्रष्ट आचरण करने वालों पर अंकुश लग सकेगा।
अधिकारियों के भृ शटाचार को तो रोकने के प्रबध हो गए किन्तु नेताओं के बारे में क्या?जो नेता राजनीती में आने के बाद अकूत संपत्ति के मालिक हो जाते हैं उनकी अनुपातहीन सपत्ति की गिनती कैसे होगी?असल में बिना नेताओं की शाह और छत्रछया के अधिकारी अनाप शनाप कमा ही नहीं सकते? भ्रष्टाचार का एक और स्तर औद्योगिक घरानो में भी है. उद्योग या कारखाने खोलने के नामपर कम दरों पर जमीने लेना ,कम दरों पर बिजली लेना ,करों में छूट लेना,कम ब्याज दर पर ऋण लेना ,और ४-५ साल बाद उस कारखाने को बंद करना। यह भी एक उद्योग है. इसकी भी जप्ती की व्यस्था हो।
तमाम सरकारी योजनाओ में भ्रस्टा चार की मजबूत जड़े गड़ी हुई है !
सरकार ने महिलाओको अनेक पद पर बिठाया लेकिन सब कामकाज तो उसके पतिदेव या ससुर या भाई या बाप करता है !! ऐसा क्यों ?
आज़ादीके ६० सालोंके बाद भी अनपढ़ ऐसे पदो पर क्यों !!
तालुका पंचायत और जिलापंचायत में प्रमुख बनने के लिए कोई अभ्यास की जरुरत नहीं मगर क्लर्क बनाने के पढाई जरुरी है !!!
जो अनपढ़ लोग ऐसी जगह पर बैठेंगे तो पढ़े हुए अफसर भ्रस्ट बन ही जायेंगे !!!
सभी भ्रस्ट नहीं होते मगर अनपढ़ नेतागीरी के चलते भ्रस्ट होना पड़ता है !!!
अगर इन सड़क छाप नेताओ की न माने तो खेमकाजी के जैसी दशा हो जाती है !!!