ओम बिड़ला का लोकसभा अध्यक्ष बनना

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– ललित गर्ग –

नरेन्द्र मोदी उच्च पदों के लिये व्यक्तियों का चयन करते हुए न केवल अंचभित करते रहे हैं, चैंकाते रहे हैं, बल्कि सारे राजनीतिक गणित को फेल करते रहे हैं। सत्रहवीं लोकसभा के अध्यक्ष पद को लेकर भी उन्होंने ऐसा ही किया। जैसी ही यह खबर आई कि ओम बिड़ला अगले लोकसभा अध्यक्ष होंगे, सभी राजनीतिक पंडितों के आंकलन फेल हो गए। क्योंकि राष्ट्रीय राजनीति में बिड़ला कोई स्थापित नाम नहीं है, उनका कोई लम्बा राजनीतिक इतिहास भी नहीं है, न वे सुर्खियों में रहने वाले नेता हैं। लेकिन उनकी विशिष्ट पहचान सामाजिक एवं संवेदनशील कार्यकर्ता के रूप में रही हैं। वे भारतीय राजनीति के जुझारू एवं जीवट वाले नेता हैं, यह सच है कि वे राजस्थान के हैं यह भी सच है कि वे भारतीय जनता पार्टी के हैं किन्तु इससे भी बड़ा सच यह है कि वे विलक्षण विशेषताओं के धनी हैं। देश की वर्तमान राजनीति में वे दुर्लभ व्यक्तित्व हैं। उदात्त संस्कार, लोकजीवन से इतनी निकटता, इतनी सादगी, सरलता और इतनी सचाई ने उनके व्यक्तित्व को बहुत और बहुत ऊँचा बना दिया है और वे लोकसभा के अध्यक्ष बन गये हैं।
ओम बिड़ला राजस्थान के कोटा से सांसद हैं। बीजेपी ने उनका नाम तय किया है। सिर्फ दो बार के सांसद बिड़ला को लोकसभा का अध्यक्ष बनाकर भाजपा ने संदेश दिया है कि अहम पदों के लिए सिर्फ अनुभव ही नहीं और भी समीकरण मायने रखते हैं। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी संसदीय दल की बैठक में जब गुणवत्ता, निपुणता और तत्परता पर सबसे अधिक फोकस करने की बात कही थी, तभी यह संदेश सामने आ गया था कि वरिष्ठता ही जिम्मेदारी सौंपने का एकमात्र पैमाना नहीं है। यही कारण है कि लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी, राधामोहन सिंह, रमापति राम त्रिपाठी, एस. एस. आहुलवालिया और डाॅ. वीरेंद्र कुमार जैसे कई बड़े नामों की चर्चा के बीच अचानक से भाजपा की ओर से ओम बिड़ला का नाम चैंकाने वाला रहा। मोदी और शाह के लिए एक बात जो लगातार कही जाती है कि वह यह है कि वो दोनों ऐसे निर्णय लेने में माहिर है जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता है। उदाहरण के तौर पर थोड़ा पीछे चलते हैं और याद करते हैं 2017 को जब राष्ट्रपति पद को लेकर सभी कई नामों में भी मोदी-शाह ने रामनाथ कोविंद का नाम आगे कर तमाम अटकलों को धता बता दिया। ओम बिड़ला के संदर्भ में भी ठीक ऐसा ही हुआ है।
अब तक लोकसभा के अध्यक्ष पद उसी व्यक्ति को दिया गया है जिन्हें संसदीय राजनीति का लंबा अनुभव रहा हो। जैसे बलराम जाखड़, शिवराज पाटिल, मनोहर जोशी, पीए संगमा, सोमनाथ चटर्जी, मीरा कुमार और सुमित्रा महाजन। ऐसे में ओम बिड़ला का नाम विपक्ष को भी चैंकाने वाला रहा फिर भी विपक्ष ने उनके खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया है।
वैश्य बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले सिर्फ दो बार के सांसद रहे ओम बिड़ला को लोकसभा अध्यक्ष बनाना एक नये राजनीतिक इतिहास का सृजन है। उनके कम अनुभव के सवाल पर कहा जा रहा है कि वह राजस्थान सरकार में संसदीय सचिव रहे हैं। इस दौरान उन्होंने लीक से हटकर कई नई पहल की और अपनी राजनीतिक क्षमता एवं योग्यता को उजागर किया। 2014 में उन्हें प्राक्कलन समिति, याचिका समिति, ऊर्जा संबंधी स्थायी समिति, सलाहकार समिति का सदस्य बनाया गया था। इसके अलावा उनकी प्रबंधन क्षमता भी अच्छी है। बड़े नेताओं से रिश्ते भी अच्छे हैं। ऊर्जावान भी हैं। इन सब कारणों से उन्हें लोकसभा अध्यक्ष बनाने का फैसला किया गया। राजनीतिक कैरियर की बात करें तो चार दिसंबर 1962 को जन्मे ओम बिड़ला 2014 में 16वीं लोकसभा के चुनाव में पहली बार सांसद बने। इससे पहले 2003,  2008 और 2013 में कोटा से ही विधायक बने। इस प्रकार वह कुल तीन बार विधायक और दो बार सांसद रह चुके हैं। वे सहकारी समितियों के चुनाव में भी रुचि रखते हैं। 1992 से 1995 के बीच वह राष्ट्रीय सहकारी संघ लिमिटेड के उपाध्यक्ष रहे। वे अखिल भारतीय जनता युवा मोर्चा के लगातार 6 वर्ष तक प्रदेशाध्यक्ष रहे। वे नेहरू युवा केंद्र नई दिल्ली के संयुक्त सचिव भी रहे। उन्होंने नेहरू युवा केंद्र के माध्यम से सम्पूर्ण देश के ग्रामीण क्षेत्रों में खेलकूद एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन की विस्तृत योजना बनाकर ग्रामीण प्रतिभाओं को आगे बढाने के अभियान का नेतृत्व किया। कोटा में सहकारी समितियों में आज भी उनका दखल बताया जाता है। परिवार की बात करें तो पत्नी अमिता बिड़ला पेशे से चिकित्सक हैं। पिता का नाम श्रीकृष्ण बिड़ला और माता का नाम शकुंतला देवी हैं। दो बेटे और दो बेटियां हैं।
शिक्षा की काशी कहे जाने वाले कोटा का व्यापक परिवर्तन एवं उसे विकास के शिखर देने वाले ओम बिड़ला जुझारू एवं संवेदनशील व्यक्तित्व हैं। वे समाज की पीड़ा को हरने वाले एवं शीतलता की छांव देने वाले बरगद हैं। बिड़लाजी ने एक व्रत लिया था कि कोटा में कोई भूखा नहीं सोएगा और वे इसके लिये एक प्रसादम नाम की योजना चलाते हैं जो आज भी चल रही है। उन्होंने राजनीति का केंद्र बिंदु जन आंदोलन से ज्यादा जनसेवा को बनाया। बारां जिले के सहरीया आदिवासी क्षेत्र में कुपोषण समाप्त करने के लिए भी उन्होंने कार्य किया। जनवरी 2001 में गुजरात में आये भयंकर भूकम्प पीड़ितों की सहायतार्थ चिकित्सकों सहित लगभग 100 से अधिक स्वयंसेवकों के राहत दल का नेतृत्व करते हुए उन्होंने लगातार 10 दिन तक दिन -रात भूकम्प पीड़तों की सहायता की तथा उन्हें खाद्य एवं चिकित्सा सामग्री वितरित की। जब केदारनाथ का हादसा हुआ तो बिड़लाजी अपनी टोली के साथ उत्तराखंड में समाज सेवा के लिए लग गए और अपने कोटा में भी अगर किसी के पास ठंड के सीजन में कंबल नहीं है तो रातभर कोटा की गलियों में निकलकर जन भागीदारी से लोगों को कंबल पहुंचाते रहे हैं। विभिन्न अवसरों, जयन्तियों एवं आवश्यकतानुसार रक्तदान शिविरों का भी उन्होंने समय-समय पर आयोजन करवाया। शहर की कच्ची बस्तियों में अस्थाई रूप से रहने वाले निर्धन परिवारों के बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए जन सहयोग से बस्ती में ही ‘मेरी पाठशाला’ के नाम से स्कूल स्थापित किया। वर्ष 2014 में ओला वृष्टि के कारण फसल खराब होने के कारण हताशा एवं आर्थिक परेशानियों से घिरे किसानों को जन सहयोग से सबल देने के लिए एक मुठ्ठी अन्न राहत अभियान भी उन्होंने चलाया। उन्होंने निर्धन, असहाय एवं जरूरतमन्द व्यक्तियों को निःशुल्क उपचार एवं दवाइयां उपलब्ध कराने के लिए जनसहयोग से ‘मेडिसिन बैंक’ प्रकल्प की स्थापना भी की। युवा पीढी में राष्ट्रीय भावना जागृत करने, शहीदों के बलिदान को सदैव याद रखने तथा नई पीढी में राष्ट्रीय चरित्र निर्माण की भावना स्थापित करने के उद्देश्य से कोटा शहर में स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र भक्ति से ओत-प्रोत कार्यक्रम ‘‘आजादी के स्वर’’ का पिछले 13 वर्षों से उनके नेतृत्व में आयोजन किया जा रहा है। कोटा शहर में आई.आई.टी की स्थापना के लिए भी उन्होंने व्यापक आन्दोलन चलाया। इसके अलावा बूंदी जिले को चम्बल नदी का पानी उपलब्ध कराने के लिए भी उन्होंने काम किया। तभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ओम बिड़ला को सक्रिय और सामाजिक कार्यों से जुड़े रहनेवाला शख्स बताया।
ओम बिड़ला तो कर्मयोगी हैं, देश की सेवा के लिये सदैव तत्पर रहते हैं, किसी पद पर रहे या नहीं, हर स्थिति में उनकी सक्रियता एवं जिजीविषा रहती है, एक राष्ट्रवादी सोच की राजनीति उनके इर्दगिर्द गतिमान रहती है। वे सिद्धांतों एवं आदर्शों पर जीने वाले व्यक्तियों की शंृखला के प्रतीक हैं। आज तक वे किसी मंत्री पद पर नहीं रहे। अब वह सीधे लोकसभा अध्यक्ष बन रहे हैं तो उनकी इस उपलब्धि को राजनैतिक जीवन में शुद्धता की, मूल्यों की, राजनीति में सिद्धान्तों की, आदर्श के सामने राजसत्ता को छोटा गिनने की या सिद्धांतों पर अडिग रहकर न झुकने, न समझौता करने की मौलिक सोच की उपलब्धि ही कहा जायेगा। हो सकता है ऐसे कई व्यक्ति अभी भी विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे हों। पर ऐसे व्यक्ति जब भी रोशनी में आते हैं तो जगजाहिर है- शोर उठता है, नये कीर्तिमान स्थापित होते हैं। ओम बिड़ला ने स्वल्प समय में सक्रिय राजनीति, सेवा की राजनीति करते रहे, पर वे सदा दूसरों से भिन्न रहे। घाल-मेल से दूर। भ्रष्ट राजनीति में बेदाग। विचारों में निडर। टूटते मूल्यों में अडिग। घेरे तोड़कर निकलती भीड़ में मर्यादित। उनके जीवन से जुड़ी विधायक धारणा और यथार्थपरक सोच ऐसे शक्तिशाली हथियार है जिसका वार कभी खाली नहीं गया, इस बार तो उन्हें ऐसे शिखर पर स्थापित कर दिया कि सभी आश्चर्यचकित हैं।
ओम बिड़ला के जीवन की खिड़कियाँ राष्ट्र एवं समाज को नई दृष्टि देने के लिए सदैव खुली रहती है। इन्हीं खुली खिड़कियों से आती ताजी हवा के झोंकों का अहसास देश का सर्वोच्च लोकतांत्रिक सदन लोकसभा महसूस करेगा। वे लोकसभा को संचालित करने में खरे उतरेंगे, इसमें कोई सन्देह नहीं हैं। वे इस सदन को अनुशासित भी करेंगे और अनुप्रेरित भी करेंगे और निष्पक्ष होकर अपनी भूमिका का निर्वहन भी करेंगे। उनके कार्यकाल में सदन देश के लिए उत्तम से उत्तम तरीके से काम कर सकेगा और वे इस सदन की गरिमा को नए स्तर तक ले जाने में सक्षम होंगे, ऐसा विश्वास है। 
प्रेषकः

 (ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
25 आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92

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