एक पत्र बरखा रानी के नाम

प्रिय बरखा रानी,

तोहरे वियोग में हम पागल होके कमरे में बंद हूँ, तुम्हारा  भाई लू, लट्ठ लेकर पीछे पड़ा है, तुम्हारी महतारी गर्मी हाथ धोकर पीछे पड़ गई है और तुम्हारा बाप बादल आवारागर्दी कर रहा है — आकाश के जिस कोने में चाहे, विचरण कर रहा है। एक तुम्हीं हो जो सिर्फ तड़पा रही हो, पास आने का नाम नहीं ले रही हो। तुम्हारे आने की तारीख महीनों पहले हिन्दुस्तान के नामी मौसम वैज्ञानिकों ने बता दी थी, बड़ी खुशी हुई थी कि तुम पिछले साल से दस दिन पहले ही आ जाओगी। जेठ के महीने में भी आषाढ़ की फुहार आंखों के सामने नाचने लगी। प्रचंड गर्मी में भी जनवरी की सिहरन महसूस होने लगी। इन्तज़ार करते-करते आषाढ़ भी आधा हो गया, लेकिन तुम नहीं आई। अभी-अभी खबर मिली है कि तुम पटना में आकर ठिठक गई हो। तोके कैसे बतायें कि जवन मज़ा मोदी के बनारस में है वह लालू के पटना में कभियो नहीं मिलेगा। उहां ढेर दिन टिक जाओगी तो १२वीं या हाई स्कूल में टाप कराके जेल में बंद करा देंगे। नीतीश के राज में सोमरस के लिए तड़पती रह जाओगी। सुना है कि तुम केरल, कर्नाटक और मुंबई में भी आ गई हो। समझ में नहीं आ रहा है कि तोके काशी में कैसे बुलाएं। यहां का लंगड़ा कार्बाइड में झुलस गया है, रविदास पार्क में रोज रोमांस करने वाले प्रेमी युगल अस्सी पर गंगा-आरती देखने के लिए मज़बूर हो गए हैं, सारनाथ सूना हो गया है और हम पाकिट में प्याज रखकर एटीएम जा रहे हैं। तुमको तनिको तरस नहीं आ रहा है? अरे मेरी रानी। जेतना दुष्यन्त शकुन्तला से, रोमियो जूलियट से, हीर अपनी रांझा से और मजनू लैला से करता था, ओसे तनिको कम हम तुमसे मुहब्बत नहीं करते हैं। आशिक को ज्यादा तड़पाना ठीक नहीं है। तुम आंधी के साथ आओ, बिजली के साथ आओ, बाप बादल की पीठ पर सवार होकर आओ, लेकिन आओ। हम तोके कचौड़ी गली की कचौड़ी खिलाऊंगा, लंगड़ा आम खिलाऊंगा, गोदौलिया की मलाई वाली भांग की ठंढ़ई पिलाऊंगा, रामनगर की लस्सी पिलाऊंगा और लंका के केशव का बनारसी पान खिलाऊंगा। तुम कहोगी तो आईपी माल में ले जाकर हाफ गर्लफ़्रेंड भी दिखा दूंगा। लहंगा-चोली – जो कहोगी सिलवा दूंगा, विवो का स्मार्ट फोन भी दिला दूंगा, होटल ताज में डिनर भी कराऊंगा। बस, अब आ जाओ। राहुल बाबा जैसे इटली में ठहर गये हैं, उसी तरह पटना में ही मत रुकी रहो। एक हमहीं तोहर आशिक नहीं हैं, पूर्वांचल के करोड़ों युवक ही नहीं, बच्चे, बूढ़े, औरत-मर्द सब तुम्हारे प्रेमी हैं। करोड़ों का दिल तोड़ना अच्छा नहीं है। कालिदास के मेघदूत की प्रेमिका ने इसी आषाढ़ में काले-काले मेघों के माध्यम से अपने प्रेमी को संदेश भेजा था। मैं भी आषाढ़ के महीने में ही सोसल मीडिया के माध्यम से अपना प्रेम-पत्र भेज रहा हूं। आ जा, अब विलंब न कर। मुकेश के दर्दभरे गीतों से काम नहीं चल रहा है। हम घर, आंगन, दुअरा, खेत, खलिहान, राजपथ, पगडंडी — हर जगह तुम्हारा नृत्य देखना चाहते हैं।

कम लिखना, ज्यादा समझना।

इति।

तुम्हारा पुराना प्रेमी

चाचा बनारसी

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