श्रीराम तिवारी
विगत दिनों जब राजस्थान एसटीएफ़ और सीबीआई ने मालेगांव बलोस्ट, अजमेर बलोस्ट, मक्का मसजिद और समझौता एक्सप्रेस के कथित आरोपियों के खिलाफ वांछित सबूतों को अपने-अपने ट्रैक पर तेजी से तलाशना शुरू किया और तत्पश्चात संघ से जुड़े कुछ कार्यकर्ताओं के नाम; वातावरण में प्रतिध्वनित होने लगे; तो संघ परिवार-भाजपा, वीएचपी, तथा शिवसेना ने इसे हिंदुत्व के खिलाफ साजिश करार दिया था. उनके पक्ष का मीडिया और संत समाजों की कतारों से भी ऐसी ही आक्रामक प्रतिक्रिया निरंतर आती रही हैं; जब इस साम्प्रदायिक हिंसात्मक नर संहार के एक अहम सूत्रधार (असीमानंद) ने अपनी स्वीकारोक्ति न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दी तो एक बारगी मेरे मन में भी यह प्रश्न उठा कि यह स्वीकारोक्ति बेजा दवाव में ही सम्पन्न हुई है ….
उधर देश और दुनिया की वाम जनतांत्रिक कतारों ने समवेत स्वर में जो-जो आरोप, जिन-जिन पर लगाए थे वे सभी आज सच सावित हो रहे हैं. आज देश के तमाम सहिष्णु हिन्दू जनों का सर झुका हुआ है; मात्र उन वेशर्मों को छोड़कर जो प्रतिहिंसात्म्कता की दावाग्नि में अपने विवेक और शील को स्वःहा कर चुके हैं. उन्हें तो ये एहसास भी नहीं कि-दोनों दीन से गए …..जिन मुस्लिम कट्टरपंथियों को सारा संसार और समस्त प्रगतिशील अमन पसंद मुसलिम जगत नापसंद कर्ता था; वे अब सहानुभूति के पात्र हो रहे हैं, और जिन सहिष्णु हिन्दुओं ने ”अहिंसा परमोधर्मः ”या मानस की जात सब एकु पह्चान्वो ….या सर्वे भवन्तु सुखिनः कहा वे बमुश्किल आधा दर्जन दिग्भ्रमित कट्टर हिंदुत्व वादियों कि नालायकी से सारे सभ्य संसार के सामने शर्मिंदा हैं.
यत्र-तत्र धमाकों और हिन्दू युवक युवतियों के मस्तिष्क को प्रदूषित करते रहने वाले असीमानंद (स्वामी?) महाराज यदि इस तरह सच का सामना करेंगे तो शंका होना स्वाभाविक है; खास तौर पर जबकि पुलिस अभी ऐसी कोई विधा का अनुसन्धान नहीं कर सकी कि पाकिस्तानी आतंकवादी कसाब से सर्व विदित सच ही कबूल कर सके.
सी बी आई कि भी सीमायें हैं; आयुषी तलवार के हत्यारे चिन्हित नहीं कर पाने के कारण या अप्रकट कारणों से अन्य अनेक प्रकरणों कि विवेचना में राजनेतिक दवाव परिलक्षित हुआ पाया गया. अब असीमानंद कीस्वीकारोक्ति के पीछे कोई थर्ड डिग्री टार्चर या प्रलोभन की गुंजायश नहीं बची.
यह बिलकुल शीशे की तरह पारदर्शी हो चुका है कि पुलिस के हथ्थ्ये चढ़ने और हैदरावाद जेल में असीमानंद को एक निर्दोष मुस्लिम कैदी के संपर्क में आने से सच बोलने की प्रेरणा मिली. किशोर वय कैदी कलीम खान ने असीमानंद को इल्हाम से रूबरू कराया. यह स्मरणीय है कि कलीम को पुलिस ने उन्ही कांडों कि आशंका के आधार पर पकड़ा था जो स्वयम असीमानंद ने पूरे किये थे. हालांकि कलीम निर्द्सोश था और उसकी जिन्दगी लगभग तबाह हो चुकी है. असीमनद को जेल में गरम पानी लाकर सेवा करने वाले लडके से जेल में आने कि वजह पूंछी तो पता चला कि मालेगांव बलोस्ट, अजमेर शरीफ बलोस्ट मक्का मस्जिद और समझोता एक्सप्रेश को अंजाम देने वाले असीमानान्दों कि कलि करतूतों कि सजा वे लोग भुगत रहे हैं जो धरम से मुस्लिम हैं बाकी उनका कसूर भी इतना ही था कि वे इस्लाम को मानने वालों के घरों में पैदा हुए. असीमानंद ने भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रपतियों को पत्र भी लिख मारे हैं, उन्होंने पाकिस्तान के राष्ट्रपति को तो कुछ सलाह इत्यादि भी दी डाली है. मिलने का समय भी माँगा है और इस्लामिक जेहादियों के बरक्स कुछ दिशा निर्देश भी दिए हैं. ये सारे फंडे उन्होंने अपने दम पर किये हैं; भाजपा या संघ-दिग्विजय या राहुल भले ही अपने-अपने लक्ष्य से प्रेरित होकर आपस में अग्नि वमन कर रहें हों किन्तु मुझे नहीं लगता कि असीमानंद जैसे अन्य २-४ और दिग्भ्रमित भगवा आतंकियों ने शायद ही-मालेगांव, समझोता, अजमेर और मक्का मस्जिद ब्लोस्टों के लिए श्री मोहन भागवत, अशोक सिंघल, प्रवीण तोगड़िया या लाल क्रष्ण आडवानी से आज्ञा ली होगी. यह विशुद्ध प्रतिक्रियात्मक विध्वंस थे जो भारत में इस्लामिक आतंक द्वारा संपन्न रक्तरंजित तांडव के खिलाफ एक रिहर्सल भर थी. यह इस्लाम के नाम पर कि गई हिंसा का मूर्ख हिंदुत्ववादियों का हिंसक जवाब था हालाँकि इस्लामिक आतंक दुनिया भर में अलग-अलग कारणों सेभले ही फैला हो किन्तु भारत में यह ६ दिसंबर १९९२ के बाद तेजी से फैला और इसके लिए वे लोग ही जिम्मेदार हैं जो हिंदुत्व का रथ लेकर विवादस्पद ढांचा ढहानेअयोध्या पहुंचे थे. स्वामी असीमानंद ने किसी दवाब या धोंस में आकर नहीं बल्कि मानवीय मूल्यों में बची खुची आस्था के कारण उसके सकारात्मक आवेग को स्वीकार कर पुलिस और क़ानून के समक्ष यह अपराध स्वीकार किया है. कलिंग युद्द उपरान्त लाशों के ढेर देखकर जो इल्हाम अशोक को हुआ था वही वेदना जेलों में बंद सेकड़ों बेकसूरों को. निर्दोष कलीमों को देखकर असीमानंद को हुई और अब वे वास्तव में अपने अपराधों के लिए कोई और सजा भुगते यह असीमानंद की जाग्रत आत्मा को मंजूर नहीं;इसीलिये शायद अब उन्हें ” स्वामी” असीमानंद कहे जाने पर मेरे मन में कोई संकोच नहीं. हिन्दुओं को बरगलाने वाले. साम्प्रदायिकता को सत्ता कि सीढ़ी वनाने वाले हतप्रभ न हों. ये तो भारतीय जन-गण के द्वंदात्मक संघर्षों की सनातन प्रक्रिया है, जिसमें-दया, क्षमा, अहिंसा करुना और सहिष्णुता को सम्मानित करते हुए वीरता को हर बार कसौटी पर कसे जाने और चमकदार होते रहने का ’सत्य ’रहता है. यही भारत की आत्मा है.यही भारत के अमरत्व की गौरव गाथा का मूल मन्त्र है. जो लोग इस प्रकरण में सी बी आई के दुरूपयोग की बात कर रहे थे. कांग्रेस, राहुल और दिग्विजय सिंह पर व्यर्थ भिनक रहे थे और वामपंथियों की धर्मनिरपेक्षता पर मुस्लिम परस्ती का आरोप लगा रहे थे, छद्म धर्मनिरपेक्षता और तुष्टीकरण जैसे शब्दों के व्यंग बाण चला रहे थे वे सभी ओउंधे मुंह रौरव नरकगामी हो चुके हैं स्वामी असीमानंद से उन्हें कोई रियायत नहीं मिलने जा रही है, असीमानंद ने इकबालिया बयान जिन परिस्थितियों में दिया है उसमें कट्टर साम्प्रदायिकता का बीभत्स चेहरा बेनकाब हो चुका है.भारत का सभ्य समाज, भारत की धर्म निरपेक्षता, अजर अमर है …बाबाओं, महंतों, संतों, गुरुओं, मठ्धीशों, इमामों मौलानाओं को हिंसात्मक गतिविधियों से परे अपने-अपने धरम में यथार्थ रमण करना चाहिए राजनीत और धर्म की मिलावट से निर्दोष कलीम की जिन्दगी बर्वाद हो सकती है और गुनाहगार को सत्ता शरणम गच्छामि ………
नहले पे देहला
किसका गुस्सा किस पर फूटेगा पुरोहित जी ये तो वक्त बताएगा ;अभी तो आपके वजीर को जेल में ही मामूली प्यादे ने निबटा दिया और खिसयाने से कुछ भी हासिल न होगा ,अभी भी वक्त रहते चेत जाओ और कट्टरपंथ को हवा देना बंद करो …..इसी में देश की और हिन्दुओं की और पुरोहितों -तिवारिओं की भलाई है ……….
तिवारी जी jaise to aise hi shor machate rahenge sochana hame है की gandhi जी की tarah एक gaal par thappad khane के baad doosara gaal saamane karenge ya phir BHAGAT SINGH, CHANDRASHEKHAR AZAD JAISE KRANTIKARIYO KE TARAH SAAMANE VAALE KE GAAL PAR THAPPD DHARENGE
तिवारी जी, सिर आपका शर्म से झुका होगा हमारा नहीं, जो काम आम हिन्दू को करना चाहिए वह एक सन्यासी को करना पड़ा (अभी इसमे शक है, क्योंकि जिन बातो को सीबीआई ने स्वामी असीमनान्दा के सिर मढ़ा है उन्हें पहले ही सफ़दर नागौरी स्वीकार कर चूका है)
तिवारी जी भारत में दंगो की शुरुआत १९९२ से नहीं उससे पहले से जारी थे, पुरानि देहली अलीगढ मीरुत में दंगे तब बंद हुए जब वहां के हिन्दू समाज ने मुस्लिम दंगियो का प्रतिकार किया, यह सब १९९० से पहले हो चूका था १९९२ हिन्दुओ के जागने का एक पड़ाव है,
जागो हिन्दुओ जागो, agar नहीं jaage to जैसे कश्मीर से निकाले गए कहीं इन आतंकवादी मुसलमानों के कारण पुरे देश से न निकले जाओ
तिवारी जी jaise to aise hi shor machate rahenge sochana hame है की gandhi जी की tarah एक gaal par thappad khane के baad doosara gaal saamane karenge ya phir BHAGAT SINGH, CHANDRASHEKHAR AZAD JAISE KRANTIKARIYO KE GAAL PAR THAPPD DHARENGE
तिवारी जी प्रणाम!
बहुत खूब लिखा- कड़वा सच लिखने की हिम्मत रखते हैं आप
“”आज देश के तमाम सहिष्णु हिन्दू जनों का सर झुका हुआ है; मात्र उन वेशर्मों को छोड़कर जो प्रतिहिंसात्म्कता की दावाग्नि में अपने विवेक और शील को स्वःहा कर चुके हैं””
आँख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती,
काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता,
मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता
और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता।
कुछ भगवा पुजारी, देशद्रोही, ये आस्तीन के सांप अभी भी बचे हुय हैं जल्द ही इन पर भी शिकंजा कसा जायगा और इन बेशर्मो को भी मुह की खानी पड़ेगी
जैसे की अब असीमानंद ने थूक का चाट लिया वेसे ही और भगवाधारी बेनकाब होंगे
(धन्यवाद प्रवक्ता)
तिवारी जी नमस्कार
आपको भी मुस्लिम तुस्टीकरण की आदत पद गई है अगर एक स्वामी अस्सेमानंद aaj है तो कल लाख पैदा होंगे क्योंकि यही वक्त की मांग है आज उससे पुन्चिये जिसने आतंकवादी हमलो में अपना खोया हो फिर देखिये उसकी गंधिबाद में कितनी आस्था है.
इस्वर ने आपको वो दिन नहीं दिखाए है शायद इसलिए आप ऐसी बाते कर रहे है
मई ईस्वर से प्रर्थनअ करूँगा की किसी इस्लामी हमलो में आपका अपना निशाना बने ;
अस्सीमंद is ग्रेट परसों हम इंडियन उन पैर प्रौद करते hai
किन्तु भारत में यह ६ दिसंबर १९९२ के बाद तेजी से फैला और इसके लिए वे लोग ही जिम्मेदार हैं जो हिंदुत्व का रथ लेकर विवादस्पद ढांचा ढहानेअयोध्या पहुंचे थे
२ लाख कश्मीरी पंडितो को किस प्रतिकिर्या में भगाया था??
हा हा क्या नोटंकी है??किसी मुल्ले ko तो मेने नहीं सुना आज तक ह्रदय परिवर्तन होते हुवे…………….क्या कसाब क्या अफजल क्या सल्लौधीन ya अभी का गढ़धर विनायक सेन…………….चलो ab sabut मिल गया है न तो पकड़ो संघ के विहिप के नेताओ को???कोई भी सबूत नहीं है ,जरा सा भी नहीं…………….होता तो अब तक तो कब के सारे स्वयं sevak जेल में ठूस diye होते ,इस इटेलियन छाप सरकार ने…………….कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है ये अलग बात है की हजारो अधिवासियो के विरोध को मिडिया बोक्ग भले ही कर दे लेकिन जल्द ही गुबार फूटेगा ,कलीम-सलीम सब बेनकाब होंगे ,इस कतामुल्लो के कारन ही इस desh का व्बिभाजन हुवा था ओउर us समय भी नेहरू जैसे मुर्ख नेता थे जो हिन्दू को मुसलमान के बराबर तोलते थे नतीजा सबके सामने है ……….ओउर जरा उन सब सबूतों का क्या हुवा जो सरकार ने पाकिस्तान को दिए थे,अमेरिका ने सरकार को बताये थे,हेडली ने कबूले थे,हेडली की बीवी ने बताये थे,सफरदार नागोरी ने स्वीकार किये थे हा साहब स्वीकार किया था उसने ……………………………कितना ज्यादा झूठ बोलेंगे…………..और जिसे न्यायलय ने गद्दार घोषित कर दिया है उसके बारे में ????इन सेक्युलर छाप नेताओ को देश का जन मानस देख रहा है और जल्द ही उसका गुस्सा फूटेगा fir मत कहियेगा की हम पर अंगुली को उठाते हो………………….