हर सिम्त चलते खंज़र, कैसा है खूनी मंज़र
हर दिल पे ज़ख्मेकारी, हर आंख में समंदर
दहशती कहकहे पर रक्स करती वसूलों की लाशें
इस दश्तेखौफ़ में, अमन को कहां जा के तलाशें
दम घुटता है इंसानियत का, वहशीपन जारी है
या खुदा कैसा ये वक्त है लहू का नशा तारी है
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।