—विनय कुमार विनायक
राम में हमारी आस्था राम से हमें वास्ता
सोते जगते राम कहते मरते वक्त हे राम कहते
मरने के बाद चिता तक राम नाम सत्य गुहारते
राम हमारी मान्यता राम हमारा पिता
हम राम को मरते दम तक मानते
आस्था और मान्यता के लिए
प्रमाण की जरूरत नहीं सिर्फ विश्वास चाहिए
लोग अपने जैविक परदादा को भी नहीं जानते
धर्म क्या सबका साथ और सबका विश्वास
हम सदियों से करोड़ों करोड़ हैं एक साथ
हम करोड़ों करोड़ का है सदा एक विश्वास
कोई देवी देवता नहीं बन जाते हैं अनायास
पहले किसी पेड़ के नीचे कोई पिंडी
पूजित होती और प्राण प्रतिष्ठित हो जाती
फिर धीरे-धीरे मठ मंदिर देवालय बन जाता
आस्था और पूजा के लिए जरूरी नहीं
कोई शुभ लग्न और कोई शुभ मुहूर्त
जब आस्था जगी विश्वास हुआ जब आँखें खुली
तभी सबेरा हुआ तभी शुभ मुहूर्त समझो
अशुभ मुहूर्त अधूरा मंदिर कहकर पूजा आराधना
प्राण प्रतिष्ठा को टालने वाले तुम कौन हो
जो भी हो हमारे आराध्य से बड़े कदापि नहीं हो
धर्म मेरा गुणधर्म है
आराधना मेरी आस्था मेरे आराध्य देव के प्रति
ऐसे में तुम मेरे धर्म के धर्माधिकारी कैसे हो सकते
अब भी समय है संभलने का संभलना ही होगा
नहीं तो किसी के बगैर भी हमें पूजा आराधना आती
जब भाषा है हमारी हमने मातृभाषा विकसित की
तो व्याकरण तुम्हारा हम क्यों मानें
तुम्हारे व्याकरण की ऐसी की तैसी
ध्यान हमें लगाना तो मंत्र तुम्हारा क्यों जपना
हमें अभ्यास है अलग छंद गायत्री बनाने की
हमने आस्था की वजह से अपने राम को चुना
हमारे राम के बीच तुम एकमात्र बिचौलिया हो
तुम्हारी घृणाद्वेष जातिवादी कट्टरता की वजह से
हमारे करोड़ों साथी स्वधर्मी साथ छोड़ विधर्मी हो गए
तुम साथ दो हाथ बटाओ पुरोधा बनो या नहीं
तुम अप्रासंगिक हो चुके काबिल नहीं ताली बजाने के भी जो नहीं हमारे राम के तो