उस मनहूस रात को करीब से देखा मैंने …
न जाने कितने गुनहगारों को लील गयी वो
अपने ही हाथों से मौत को फिसलते हुए, करीब से देखा मैंने…
धरती कों प्यासा छोड़ गयी वो
भूख से तडपते हुओ को करीब से देखा मैंने …
शहर का हर वो कोना जिसमे बस लाशें ही लाशें
क्योंकि लाशे से पटती धरती कों करीब से देखा मैंने …..
चिमनी से निकलता हुआ वो ज़हरीला धुँआ
शहर को मौत की आगोश में सोते हुए, करीब से देखा मैंने ..
२६ साल से बाकी है अभी वो दर्द
लोगो को आंधे, बहरे और अपंग होते हुए, करीब से देखा मैंने ….
याद आता है माँ का वो आंचल
माँ के आसुओं को बहते हुए, करीब से देखा मैंने ….
– ललित कुमार कुचालिया
(मेरी यह कविता भोपाल गैस त्रासदी के के ऊपर लिखी गयी है, जिसको २ & ३ दिसंबर को पूरे २६ वर्ष होने जा रहे हैं ….)
.वर्ष १९८४ की वह मनहूस रात कों यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक सयंत्र से मिथाईल आइसोनाइड गैस का रिसाव होने से हज़ारों लोगों की मौत हो गयी थी
(लेखक युवा पत्रकार है। आपने हाल ही में माखनलाल चतुर्वेदी विश्विधालय भोपाल से प्रसारण पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की है।)
bahut sundar mitra . aise hi likhte raho………….
मैंने भी इसे महसूस किया है……………….