तमिलनाडु में हिन्दी लोकप्रिय?

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डॉ. मधुसूदन उवाच

ॐ प्रति वर्ष ६ लाख हिन्दी के परीक्षार्थी।

ॐ सर्वाधिक लोकप्रिय तृतीय भाषा

ॐ हिन्दी प्रचार सभा काफी व्यस्त

ॐ जपानी का देवनागरी आधार

ॐ जोड़नेवाली कड़ी संस्कृत है,

(१)

तमिल पुस्तकों से हिन्दी विरोधी व्यंग्यचित्र हटाने की माँग।

Remove anti-Hindi agitation cartoon: Says Karunanidhi.

आपने, करुणानिधि द्वारा, तमिलनाडु में, पाठ्य पुस्तकों से हिंदी-विरोधी (Cartoon) व्यंग्यचित्र हटवाने की माँग का, समाचार पढा होगा ही। राजनीतिज्ञ जब ऐसी माँग करते हैं, तो उसके पीछे कुछ कूटनैतिक कारण ही होने चाहिए। कहा जा सकता है, कि, इसका कारण है, तमिलनाडु के युवा छात्र, जो भारी संख्या में आज कल हिन्दी सीख रहें हैं। अर्थात प्रदेशका हिन्दी विरोधी दृष्टिकोण बदल रहा है; हिन्दी विरोध शिथिल पड रहा है।

(२)

तमिलनाडु में, हिन्दी की लोकप्रियता बढी है।

”फोर्ब्स इंडिया.कॉम ” पर फरवरी २२ -२०१० को एक आलेख छपा। लेखक थे, एस श्रीनिवासन,

वे कहते हैं; ”हिन्दी विरोधी आंदोलनों ने (१९६५ में) राजनीतिज्ञों को पद प्राप्ति करवाने में सफलता दिलवाई थी, पर अब तमिलनाडु प्रदेश, हिन्दी सीखने का आनन्द लेने के लिए उत्सुक प्रतीत होता है।”

जन मत के पवन की दिशा भाँपकर करुणानिधि और दूसरे नेताओं ने भी ऐसा निर्णय लिया हो; यह संभावना नकारी नहीं जा सकती, राजनीतिज्ञ जो ठहरे। और आज की सांख्यिकी सच्चाई, (Statistical Data) इसी की पुष्टि ही करती है।

”सारे प्रदेश में, युवा पीढी द्वारा , पढी जाने वाली भाषाओं में, सर्वाधिक लोकप्रिय तृतीय भाषा के रूप में हिन्दी उभर रही है। हर कोई जो पहले हिन्दी का विरोध करता था, आज उस के गुणगान गाता है, और अपनी संतानों को हिन्दी सीखने भेजता है।” कहते हैं, सी. एन. वी. अन्नामलाई, चेन्नै स्थित ”दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा” के कार्यवाह। हिन्दी के प्रबलातिप्रबल विरोध की स्थिति से ऐसा परिवर्तन स्वागतार्ह ही कहा जाएगा।

(३)

हिन्दी प्रचार सभा काफी व्यस्त

दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा काफी व्यस्त है। प्रति वर्ष (६००,०००) अर्थात ६ लाख छात्र, राज्य में, परीक्षाएं देते हैं, इतना ही नहीं उन की संख्या में प्रतिवर्ष , +२० % के अनुपात में वृद्धि हो रही है। १९६५ में जब हिन्दी विरोधी आंदोलन चरम पर था, २०,००० से भी संख्या में अल्प, परीक्षार्थी हुआ करते थे। ”हिन्दी विरोधी आंदोलन ने ही हिंदी के प्रति लोगों की उत्सुकता बढायी। उन्हें जाग्रत किया, और हमारे पास लाया।” कहते हैं अन्नामलाई।”

६००,०००/२०,००० =३० इसका अर्थ हुआ कि आज १९६५ की अपेक्षा ३० गुना युवा छात्र तमिलनाडु में हिन्दी सीख रहें हैं। यह समाचार काफी उत्साह जनक ही मानता हूँ।

इसका परिणाम विलम्बित ही होगा। जब आज की पीढी बडी होगी, तब आपको मुम्बई या अहमदाबाद की भाँति कुछ मात्रामें अच्छी हिन्दी सुनाई देगी। दीर्घ दृष्टिसे इस प्रक्रिया की ओर देखने की आवश्यकता है। यह आम का वृक्ष जो आज छोटा है, बडा होकर अच्छे फल दे सकता है।

(४)

तमिल छात्रों से जानकारी

मेरे विश्वविद्यालय में पढने आए तमिल छात्रों से मैं ने जाना कि, तमिलनाडु की, तमिल लिपि के व्यंजन मर्यादित हैं। इन छात्रों ने हिन्दी पढी हुयी है। वे नवीन पीढी के बढते, हिन्दी प्रेम की भी पुष्टि करते हैं। उनकी जानकारी के अनुसार, शासकीय शालाओ में नहीं, पर अन्य शालाओं में हिन्दी पढायी जाती है।

प्रदेश के शासक हिन्दी का विरोध करवाकर ही सत्ता में आये थे। इस लिए शासकीय शालाओ में हिन्दी पढाने के लिए लज्जा (?) एवं संकोच अनुभव करते होंगे। वैसे राजनीतिज्ञों के लिए लज्जा या संकोच का कोई अर्थ नहीं होता; पर मतों को लक्ष्य में रखकर अपनी दिशा परिवर्तित करना उनके लिए कोई कठिन नहीं। और जन-मत का पवन बदलते ही, व्यंग्यचित्र को हटाने की माँग, उनका पैंतरा, तटस्थ हो रहा है, यह प्रमाणित तो करती ही है।

(५)

तमिल लिपि की जानकारी

तमिल लिपि के १२ स्वर, और १८ व्यंजन होते हैं; और ६ विशेष व्यंजन होते हैं।

इसी मर्यादा के कारण संपूर्ण देवनागरी का उच्चारण जिसकी आवश्यकता उन्हें संस्कृत की पढाई के लिए भी होती ही है, कठिन हो जाता है।

(६)

उच्चारण बचपन के १० वर्ष

देवनागरी उच्चारण वर्ष १० की आयु तक ही सीखा जा सकता है। जो संस्कृत और हिन्दी दोनों में समान रूपसे उपयुक्त है, उसीको शुद्ध रीतिसे सीखने में उनका तिगुना लाभ है। एक तो संस्कृत के शब्द उनकी तमिल समृद्ध करते हैं, हिन्दी समृद्ध करते हैं, और संस्कृत की दिशा में पदार्पण होता है। रामायण महाभारत, और देशकी आध्यात्मिक धरोहर के साथ उन्हें जोडता है। देश की संस्कृति जो वैश्विक दृष्टि रखती है, उससे जुडने में कोई संकुचितता या संकीर्णता का अनुभव ना करें। देवनागरी सीखने पर अंग्रेज़ी उच्चार विशेष कठिन नहीं, पर अंग्रेज़ी रोमन लिपि सीखने पर हिन्दी उच्चारण अत्यंत कठिन होते हैं।

ऐसा करने पर, गायत्रि मंत्र भी

”ओम बुर्बुवा स्वाहा टट सविटुर्वरेन्यं बर्गो डेवस्य ढीमही” सुनने के लिए सज्ज रहें।

(७)

जपानी का देवनागरी आधार

जपान ने भी देवनागरी का अनुकरण कर अपने उच्चार सुरक्षित किए थे। आजका जपानी ध्वन्यर्थक उच्चारण शायद अविकृत स्थिति में जीवित ना रहता, यदि जपान में संस्कृत अध्ययन की शिक्षा प्रणाली ना होती।जपान के प्राचीन संशोधको ने देवनागरी की ध्वन्यर्थक रचना के आधार पर उनके अपने उच्चारणों की पुनर्रचना पहले १२०४ के शोध पत्र में की थी। जपान ने उसका उपयोग कर, १७ वी शताब्दि में, देवनागरी उच्चारण के आधारपर अपनी मानक लिपि का अनुक्रम सुनिश्चित किया, और उसकी पुनर्रचना की। —(संशोधक) जेम्स बक

लेखक: देवनागरी के कारण ही जपानी भाषा के उच्चारण टिक पाए हैं। जब आपकी लेखित भाषा चित्रमय हो, तो उसका उच्चारण आप कैसे बचा के रख सकोगे?

The Japanese syllabary of today would probably not exist in its present arrangement had it not been for Sanskrit studies in Japan.

Scholars of ancient Japan extracted from the Devanagari those sounds which corresponded to sounds in Japanese and arranged the Japanese syllabary in the devanagari order.

First appearing in a document dated 1204, this arrangement has been fixed since the 17th century.—James Buck

(८)

तमिल शिक्षा

और यदि केवल तमिल की ही प्राथमिक शिक्षा हुयी तो १०-१२ वर्ष की आयु के पश्चात उन्हें हिन्दी के उच्चारण सहजता से नहीं आते। तमिल भाषा में ”क-ख-ग-घ” के उच्चारण में स्पष्टता नहीं है। खाना खाया, और गाना गाया, दोनों आपको समान सुनाई दे सकता है। यदि आपको–”काना काया” सुनाई दे तो कोई अचरज नहीं। फिर उसका अर्थ आप संदर्भ से ही लगा सकते हैं। आरंभम्‌ को–> आरम्बं, अधिक को –>अदिकं या अदिगं (क –>क, ग, और ध–>द ), अभयम को अबयम (भ —>ब ), उपाध्याय को उबाद्दियायर् (प–>ब, ध्य –>द्दिया ), अर्थ को अर्त्तम् या अर्त्तम्, (थ –>त्त ) आकाश को आगायम् (क–>ग, श–>य) –ऐसे उच्चारण बदल जाते हैं। इन्हें तद्भव तो कहा जा सकता है, जो तमिल में ४० प्रतिशत (विद्वानों के अनुसार) हैं। १० % शब्द तत्सम भी हैं। विशिष्ट भाषा का प्रयोग हो, तो संस्कृत शब्दों का प्रमाण ५०% कहा जाता है।

अभी आप सोच भी सकते हैं, कि करूणानिधि, दयानिधि, राममूर्ति, कृष्णमूर्ति, सुब्रह्मण्यम इत्यादि नाम, और चिदम्बरं, कन्याकुमारी, उदकमण्डलम (ऊटकामण्ड), इत्यादि कहांसे आए? –पूरी सूचि दूं तो पन्ना भरजाए।

 

(९)

समस्या का हल अभी भी है, और पहले भी था।

संस्कृत भारत की (साम्प्रदायिक नहीं) पर आध्यात्मिक भाषा होने के कारण, उसका लाभ जनता को सहज समझ में आता है। जोडनेवाली कडी संस्कृत है, जो कडी हिन्दी को केरल, कर्नाटक, और तमिलनाडु से भी जोडती है। वहाँ की वेदपाठी शालाएं भी यही काम कर ही रही है।

इन प्रदेशों की सारी प्रादेशिक जनता प्रादेशिक भाषा ही बोलती है। यहाँ के इस्लाम पंथी भी (अपवादों को छोडकर) प्रादेशिक भाषा ही बोलते हैं। इसी लिए संस्कृत को ही निष्कासित कर के हिन्दी को यहाँ प्रसारित करना महाकठिन है। इसी का अनुभव हम आज तक करते आए हैं।

(१०)

भाषावार प्रदेश रचना

भाषावार प्रदेश रचना का उद्देश्य कुछ भी रहा हो, पर उसी का दुरुपयोग हुआ और भारत में विघटनकारी ऊर्जाएं प्रोत्साहित हुयी, विभिन्न प्रदेशों का और भाषा-बोलियों का अनुचित मात्रा तक आग्रह भी उसी का परिणाम माना जाएगा। नेतृत्व के प्रति आदर रखकर ही, ऐसा कहा जा रहा है। पर गलतियों की ओर दुर्लक्ष्य़ कर कर देश की एकता को दृढ करने वाले अंगो की ही उपेक्षा करना, राष्ट्र की आत्महत्त्या को प्रोत्साहित करने बराबर ही है।

(११)

आभार प्रदर्शन:

पी. एच. डी. की छात्राएं: गौरी, और अनुराधा गोपाल कृष्ण, और भूतपूर्व छात्र पार्थसारथी सभीके सहकार से इस आलेख को सम्पन्न किया गया है। गौरी और अनुराधा दोनों ”भरत नाट्यम ” की अच्छी जानकार हैं, दीपावली के कार्यक्रमों में भारतीय संस्कृति का दीप भी यही युवतियाँ जलाती है।

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डॉ. मधुसूदन
मधुसूदनजी तकनीकी (Engineering) में एम.एस. तथा पी.एच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त् की है, भारतीय अमेरिकी शोधकर्ता के रूप में मशहूर है, हिन्दी के प्रखर पुरस्कर्ता: संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती के अभ्यासी, अनेक संस्थाओं से जुडे हुए। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (अमरिका) आजीवन सदस्य हैं; वर्तमान में अमेरिका की प्रतिष्ठित संस्‍था UNIVERSITY OF MASSACHUSETTS (युनिवर्सीटी ऑफ मॅसाच्युसेटस, निर्माण अभियांत्रिकी), में प्रोफेसर हैं।

32 COMMENTS

  1. नमस्कार डॉ. प्रतिभा जी।
    शत प्रतिशत सार समेट कर लिखी हुयी,टिप्पणी है, प्रतिभा जी, आप की।
    ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से आप ने टिप्पणी में सभी सार बिन्दु स्पर्श किए हैं।
    अनेकानेक धन्यवाद।

    मधुसूदन

  2. हिन्दी प्रेमी, श्री. बी. एन. गोयल जी–धन्यवाद।
    आप की टिप्पणी से जय ललिता की हिन्दी के विषय में जाना, जो, मुझे पता नहीं था।
    न्यूयोर्क भारतीय विद्याभवन के तमिल निदेशक डॉ. जयरामन भी संस्कृत प्रचुर और शुद्ध हिन्दी ही, बोलते हैं।
    कॉइम्बतूर से निकली,(हिन्दी)आयुर्वैदिक पुस्तक की प्रस्तावना में लेखक कहता है; पुस्तक राष्ट्र भाषा हिन्दी में लिखने से केरलीय आयुर्वेदका प्रचार होगा।
    वहाँ पंचकर्म की मालिश करनेवालों को हिन्दी जानने के लिए, प्रोत्साहित किया जाता है। और भी काफी उदाहरण दिए जा सकते हैं।
    टिप्पणी के लिए आप ने समय निकाला। हृदयतल से धन्यवाद।
    मधुसूदन

  3. भारत एक भौगोलिक इकाई होने साथ ही ,उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक एक ही संस्कृति से अनुशासित होता है .गंगा से कावेरी तक हिमाचल से कन्याकुमारी तक कहीं कोई अलगाव नहीं. साहित्य ,धार्मिक और सामाजिक मान्यताएँ भी समान हैं .
    इतन बड़े देश में भाषाई भिन्नता होना बहुत स्वाभाविक है ,लेकिन प्राचीन काल से .व्यापारिक ,धार्मिक और अन्य कारणों से सारे देश में जन आवागमन अबाध चलता रहा है और .आपसी संवाद के लिए हिन्दी प्रयोग में आती रही .हिन्दी ने संस्कृत का दाय पाया है और दक्षिण की भाषाओँ का भी संस्कृत से भी घनिष्ठ संबंध रहा .और जनसंख्या का सबसे बड़ा भाग .राजनीति और निहित स्वार्थों क कारण अगर अलगाव के स्वर न उठें तो हिन्दी सारे भारत को एक सूत्र में बाधने में पूर्ण समर्थ है .अब लोकजीवन प्रादेशिकता की सीमा में बँध कर नहीं रह सकता ,सारे देश में अबाध संवाद और संचार अनिवार्य आवश्यकता है जिसे हिन्दी के माध्यम से ही पूरा किया जा सकता है.तमिल और संस्कृत भाषा का प्राचीन काल से चला आ रहा अभिन्न संबंध हिन्दी से उसके घनिष्ठ संबंध का सूचक है ,ऊपरी मनोमालिन्य उस मूल के जुड़ाव को विलंबित भले ही कर लें बाधित नहीं कर सकते. …..

    • नमस्कार डॉ. प्रतिभा जी।
      शत प्रतिशत सार समेट कर लिखी हुयी,टिप्पणी है, प्रतिभा जी, आप की।
      ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से आप ने टिप्पणी में सभी सार बिन्दु स्पर्श किए हैं।
      अनेकानेक धन्यवाद।

      मधुसूदन

  4. डॉ मधुसूदन जी – आप के लेख पूरी तरह से तार्किक और व्यवस्थित हैं । यदि हिंदी अभी तक अभी तक देश में सर्वग्राह्य नहीं हो सकी तो इस का मुख्य कारण केवल राजनीति ही है। देश में हिंदी के पिछड़ेपन के लिए केवल राजनेता ही उत्तरदायी हैं । हिंदी के नाम से यात्रा भत्ता आदि सभी सांसद लेते हैं लेकिन ये सब हिंदी का कितना भला चाहते हैं यह एक विचारणीय प्रश्न है। हिंदी के सन्दर्भ में प्रायः तमिल नाडु की चर्चा काफी की जाती है लेकिन कितने लोग यह जानते हैं कि तमिलनाडु की मुख्य मंत्री सुश्री जयललिता स्वयं बहुत अच्छी, सरल और सुस्पष्ट हिंदी बोलती हैं। चुनाव के दिनों में उन्हें उत्तर भारत में चुनाव सभा को सम्बोधित करते हुए देखा जा सकता है। उन्हें यह मालूम है कि देश की अखण्डता और एकता के लिए हिंदी आवश्यक है।

    • हिन्दी प्रेमी, श्री. बी. एन. गोयल जी–धन्यवाद।
      आप की टिप्पणी से जय ललिता की हिन्दी के विषय में जाना, जो, मुझे पता नहीं था।
      न्यूयोर्क भारतीय विद्याभवन के तमिल निदेशक डॉ. जयरामन भी संस्कृत प्रचुर और शुद्ध हिन्दी ही, बोलते हैं।
      कॉइम्बतूर से निकली,(हिन्दी)आयुर्वैदिक पुस्तक की प्रस्तावना में लेखक कहता है; पुस्तक राष्ट्र भाषा हिन्दी में लिखने से केरलीय आयुर्वेदका प्रचार होगा।वहाँ पंचकर्म की मालिश करनेवालों को हिन्दी जानने के लिए, प्रोत्साहित किया जाता है। और भी काफी उदाहरण दिए जा सकते हैं।
      टिप्पणी के लिए आप ने समय निकाला। हृदयतल से धन्यवाद।
      मधुसूदन

    • हिन्दी प्रेमी, श्री. बी. एन. गोयल जी–धन्यवाद।
      आप की टिप्पणी से जय ललिता की हिन्दी, के विषय में जाना, जो, मुझे पता नहीं था।
      न्यूयॉर्क भारतीय विद्याभवन के तमिल निदेशक डॉ. जयरामन भी संस्कृत प्रचुर और शुद्ध हिन्दी ही, बोलते हैं।
      कॉइम्बतूर से निकली,(हिन्दी)आयुर्वैदिक पुस्तक की प्रस्तावना में लेखक कहता है; पुस्तक राष्ट्र भाषा हिन्दी में लिखने से केरलीय आयुर्वेदका प्रचार होगा।
      वहाँ पंचकर्म की मालिश करनेवालों को हिन्दी जानने के लिए, प्रोत्साहित किया जाता है। और भी काफी उदाहरण दिए जा सकते हैं।
      टिप्पणी के लिए आप ने समय निकाला। हृदयतल से धन्यवाद।
      मधुसूदन

  5. आदरणीय मधुसूदन जी का ये आलेख भी सदा की भाँति ज्ञानवर्धक, उत्साहवर्धक एवं
    प्रेरणाप्रद है । उनकी संस्कृत-हिन्दी के उन्नयन हेतु निरन्तर की जा रही साधना फलवती हो
    रही है । नवीन सूचनाएँ सुखद और आशान्वित करने वाली हैं ।
    उनके अप्रतिम वैदुष्य को सादर नमन !!

  6. आदरणीय मधुसूदन जी का यह आलेख भी सदा की भाँति अत्यन्त ज्ञानवर्धक , प्रेरक एवं
    उत्साहवर्धक है । साथ ही वैश्विक भाषाओं तथा संस्कृत – हिन्दी के कुछ अज्ञात रहस्यों तथा
    तथ्यों को भी उद्घाटित करता है । कुछ सूचनाएँ अत्यन्त सुखद हैं , जो भविष्य के लिये आशान्वित करती हैं । संस्कृत-हिन्दी के लिये निरन्तर परिश्रम से की जा रही उनकी साधना
    और वैदुष्य को मेरा सादर नमन !!
    ” क्रियासिद्धि: सत्त्वे भवति , महतां नोपकरणे ।”

  7. very good article.

    As per Google transliteration, Hindi’s simplicity lies in Nuktaa and Shirorekhaa free Gujarati script.
    Also lots of foreigners learn Sanskrit in Roman script.

  8. प्रिय अवनीश,
    एक युवा, जो अभी अभी कुछ माह पूर्व ही स्नातक हुए हो, ऐसे आप की ओर से, इतनी समझदारी भरी टिपण्णी ने मुझे आज प्रभात में पुलकित कर दिया|
    बात बिलकुल सही कही| हम लोग आम के वृक्ष का बीजारोपण ही कर सकते हैं, {आम खाने के लिए मुझे मिलेंगे नहीं}
    किन्तु मुझे विश्वास भी है, कि जब शासन और देश के नागरिक देखेंगे कि हिंदी एवं जन भाषा ओं से ही भारत आकाश छू सकता है, तो तुरंत यह अंग्रेज़ी चोला झटक कर उतार फेंकेंगा|
    हिंदी समृद्ध होगी, और प्रादेशिक भाषाओं से जुड़ेगी संस्कृत के द्वारा, और हिंदी भारत के सभी प्रदेशों के लिए सर्व समन्वयकारी, संपर्क भाषा होगी|
    आज से हम चाहते हैं, कि संसद में, केवल हिंदी ही बोली जाए, जिन्हें प्रादेशिक भाषा बोलना हो, वे दुभाषिया साथ रखे, जो उनकी बात हिंदी में प्रस्तुत करें, और हिंदी को उनकी अपनी भाषा में|
    अंग्रेजी पर प्रतिबन्ध लगाया जाए, संसद में|
    जब—->यूनो में चीनी, रूसी, फ्रांसीसी, स्पेनी, अंग्रेज़ी इन भाषाओं को इसी प्रकार बोला जाता है|अनुवादक साथ होता है|
    अटलजी ने यूनो में पहली बार हिंदी में बोला था| भारत का सर गौरव से ऊंचा उठा था|

    परन्तु आपकी टिपण्णी मुझे विभोर कर गयी|
    वाह! वाह! वाह !
    शुभाशीष|
    “कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर ।.
    समय पाय तरुवर फरै, केतिक सींचौ नीर || “.

      • अभी आपने वैयक्तिक सफलता प्राप्त करना है| जिससे लोग आपकी बात सहज स्वीकार कर पाएंगे|
        अंग्रेजी भी पढ़कर उसके गुणावगुण जानना है|
        संस्कृत -हिंदी-अंग्रेजी तो पढ़ना ही है|
        जब आप अंग्रेजी पढ़कर उसकी बात करेंगे, तो पाठक स्वीकार करेंगे|
        अपनी क्षमता भी बढ़ाना है|
        संस्कृत पढ़ना शीघ्र प्रारम्भ करें
        कभी इ मेल डालिए|
        आशीष|

        • jजी,
          वैयक्तिक सफलता और भाषा पर पकड़ दोनों जरुरी हैं|
          वैयक्तिक सफलता बात का वजन बढ़ा देती है, ऐसा बड़े-बुजुर्ग भी कहते हैं और मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी यही है|

        • कहते हैं इंग्लिश पूरे देश की संपर्क भाषा है, मगर नहीं। इंग्लिश एलीट तबके की संपर्क भाषा हो सकती है, आम लोगों की नहीं। जस्टिस काटजू ने इस संदर्भ में एक घटना का जिक्र किया है। जब वह मद्रास हाई कोर्ट के जज थे, एक दिन उन्होंने एक दुकानदार को फोन पर हिंदी में बात करते सुना। उसके फोन रखने पर जस्टिस काटजू ने तमिल में उससे पूछा कि वह इतनी अच्छी हिंदी कैसे बोल लेता है? दुकानदार ने जवाब दिया, नेता कहते हैं हमें हिंदी नहीं चाहिए पर हमें बिजनस करना है, इसलिए मैंने हिंदी सीख ली है।

          कुछ समय पहले जस्टिस काटजू ने चेन्नै के किसी आयोजन में अपने भाषण में तमिलभाषियों के हिंदी सीखने की जरूरत पर बल दिया था। इसका वहां कुछ लोगों ने विरोध किया। जस्टिस काटजू ने उन्हीं विरोधियों के तर्कों का जवाब देने के लिए अखबार में यह टिप्पणी लिखी थी। इसमें उन्होंने स्पष्ट किया है कि वह तमिलनाडु ही नहीं, कहीं भी किसी पर भी हिंदी थोपने के खिलाफ हैं और नहीं मानते कि हिंदी भाषा तमिल से बेहतर है। वे हर भाषा का समान आदर करते हैं, किसी को ऊपर या नीचे नहीं रखते। उनके मुताबिक तमिल की हिंदी से तुलना नहीं की जा सकती इसलिए नहीं कि हिंदी बेहतर है, बल्कि इसलिए कि हिंदी कहीं ज्यादा व्यापक है। तमिल सिर्फ तमिलनाडु में बोली जाती है, जिसकी आबादी 7.2 करोड़ है। जबकि हिंदी न केवल हिंदी भाषी इलाकों में, बल्कि गैर हिंदी भाषी राज्यों में भी दूसरी भाषा के रूप में इस्तेमाल होती है। हिंदी भाषी राज्यों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में 20 करोड़, बिहार में 8.2 करोड़, मध्य प्रदेश में 7.5 करोड़, राजस्थान में 6.9 करोड़, झारखंड में 2.7 करोड़, छत्तीसगढ़ में 2.6 करोड़, हरियाणा में 2.6 करोड़ और हिमाचल प्रदेश में 70 लाख लोग हिंदी बोलते हैं। अगर पंजाब, प. बंगाल और असम जैसे गैर हिंदी भाषी राज्यों के हिंदीभाषियों को जोड़ लिया जाए, तो संख्या तमिल भाषियों के मुकाबले 15 गुनी ज्यादा हो जाती है। तमिल एक क्षेत्रीय भाषा है जबकि हिंदी राष्ट्रभाषा है और इसकी वजह यह नहीं कि हिंदी तमिल के मुकाबले बेहतर है। इसके पीछे कुछ ऐतिहासिक और सामाजिक कारण हैं।

          सम्बंधित लिंक यहाँ है –
          https://navbharattimes.indiatimes.com/dont-try-to-confine-hindi/articleshow/16711151.cms

  9. दीवारें कमजोर साबित हो रही हैं, खाईयाँ पट रही हैं, मैत्री के नए पुलों का निर्माण हो रहा है|
    देश नये सिरे से बद्ध हो रहा है और यह जुड़ाव बहुत ही शान्ति के साथ बिना किसी शोरगुल के हो रहा है| पर आपकी पैनी दृष्टि से वो भी नहीं छिप सकता| आपके प्रयत्नों को साधुवाद

    इसी तरह होने वाले धीमे परिवर्तनों के ही बारे में शायद कबीर ने कहा है –
    “कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर ।
    समय पाय तरुवर फरै, केतिक सींचौ नीर || “

  10. प्रोफ मधुसूदन जी का यह लेख सभी हिंदी प्रेमिओं के लिए एक अत्यंत शुभ समाचार का सन्देश वाहक लगेगा. हिंदी की दुर्दशा ,राज नीतिगत कारणों से की जारही विकृतियों के समाचार तो प्रायः मिलते ही रहते हैं.पर तमिल नाडू में हिंदी प्रेम इस प्रकार बढेगा ऐसा सोचना भी कठिन था मधुसूदन जी को अनेक धन्यवाद
    हिंदी और जापानी में बहुत गहरा सम्बन्ध है. जापान जाने से पूर्व जब मैंने जापानी भाषा सीखना आरम्भ किया तो जापानी लिपि काताकाना हीरागाना सीखना अत्यंत सरल लगा क्योंकि उनके स्वर और व्यंजन उसी क्रम में हैं जैसे हिंदी में.आ ई ऊ ऐ औ इत्यादि. मैं अपने किसी जापानी भाषाविद आचार्य से अनुरोध करूंगा की इस विषय पर एक लेख प्रवक्ता के लिए दें.अन्य पाठक भी जिनका हिंदी तथा जापानी पर सामान अधिकार रखने वाले आचार्यों से निकट सम्बन्ध हो यदि ऐसा प्रयत्न करें तो मैं आभारी हूँगा

    • सत्त्यार्थी जी नमस्कार.
      वैसे मलय, कम्बूज देश, सियाम, बाली, श्रीलंका, इत्यादि देशो पर संस्कृत का प्रत्यक्ष प्रभाव है|
      जानने में आप को हर्ष होगा, की
      ++==>कम्बूज देश की राष्ट्र भाषा ६ वी से १२ वी शताब्दी तक देव वाणी संस्कृत ही थी| जब हम परतंत्र थें|<==++ प्रत्येक भारतीय युवक को यह बताना है|

      और हमारे भारत में हम हिंदी का भी सम्मान स्वतंत्र होकर ६५ वर्ष हुए —कर नहीं पाए|

      चीन, कोरिया, मंचूरिया जापान—-सारे स्थानों पर "सिद्धं" लिपि जो ब्राह्मी और देवनागरी से प्रभावित थी, बुद्ध धर्म के अनुवादों के कारण पहुंची थी|
      बुद्ध मंदिरों में देवनागरी "अ" को केंद्र में लिखकर कमल फूल की पंखुडियाँ परिधि पर रंग कर, भित्ति पर चित्रित करते हैं, उसपर ध्यान लगाकर पद्मासन में बैठा जाता था/है|
      इसी "अ" को ताम्बे की थाली के मध्य बनाकर, परिधि पर बेल बनाकर जापान में ध्यान के लिए प्रयोग किया जाता है|
      लम्बी हो गयी टिपण्णी|
      आप को उत्तर देनेमें भी देर हुयी|
      नमस्कार|

  11. आदरणीय प्रो. मधुसुदन जी,
    कृपया गौरी, अनुराधा, गोपाल, पार्थसारथी के बारे में कुछ परिचय एक टिपण्णी में दे देवें की वे कहाँ के छात्र हैं.

    एक निवेदन यह है की हम भारत विकास परिषद् की एक स्मारिका का प्रकाशन कर रहे हैं. उसमें आपके इस लेख को प्रकाशित करने की अनुमति आपसे चाहिए. उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी.

    • डॉ. कपूर जी,
      अवश्य|
      जितने भी पाठकों के पास यह आलेख पहुंचे उतना अच्छा ही मानता हूँ|
      जय “राष्ट्र भाषा भारती”

  12. हिंदी को जीवन भर कॅनडा से पुरस्कृत करने वाले हिन्दी-भक्त श्रीमान मोहन गुप्ता जी,

    और दिन रात हिन्दी संवर्धन में संगणक पर हिन्दी और देवनागरी पर दुर्लभ सुविधाएं सुलभ बनाने में समर्पित अनुनाद सिंह जी,

    विद्यालयों के न्यास पर विभूषित ऐसे श्री अनिल गुप्ता जी,

    और तमिलनाडु में व्यावसायिक कारण से पहुंचकर हिन्दी के विषय में सजगता से अवलोकन करनेवाले शिवेन्द्र मोहन सिंह जी,

    एवम बिना हिचक अपना दृष्टिकोण रखने वाले डॉ. धनाकर ठाकुर जी,

    सभी मित्रों को हृदय तल से धन्यवाद देता हूं।
    हम सब, मिलकर सौ सुनार की चोटें लगाएं।
    मानस शास्त्र कहता है, विचार परिवर्तित होने पर ही आचार परिवर्तित होता है। हम सभी मिलकर विचारों को परिवर्तित करने का काम करें। पता नहीं कब समाज जगकर इसी बात का समर्थन करने लगे?
    किसने कब, सोचा था कि बर्लिन की दिवाल गिरेगी, सोविएत रूस के १३ टुकडे होंगे?
    पर हुआ ही ना? हम मिलकर डटे रहें।
    आप सभी का आभार मानता हूँ।
    सौ सुनारकी —लगाते रहिए।

  13. हिंदी को जीवन भर कॅनडा से पुरस्कृत करने वाले हिन्दी-भक्त श्रीमान मोहन गुप्ता जी,
    और दिन रात हिन्दी संवर्धन में संगणक पर हिन्दी और देवनागरी पर दुर्लभ सुविधाएं सुलभ बनाने में समर्पित अनुनाद सिंह जी,
    विद्यालयों के न्यास पर विभूषित ऐसे श्री अनिल गुप्ता जी,
    और तमिलनाडु में व्यावसायिक कारण से पहुंचकर हिन्दी के विषय में सजगता से अवलोकन करनेवाले शिवेन्द्र मोहन सिंह जी,
    एवम बिना हिचक अपना दृष्टिकोण रखने वाले डॉ. धनाकर ठाकुर जी,
    सभी मित्रों को हृदय तल से धन्यवाद देता हूं।
    हम सब, मिलकर सौ सुनार की चोटें लगाएं।
    मानस शास्त्र कहता है, विचार परिवर्तित होने पर ही आचार परिवर्तित होता है। हम सभी मिलकर विचारों को परिवर्तित करने का काम करें। पता नहीं कब समाज जगकर इसी बात का समर्थन करने लगे?
    किसने कब, सोचा था कि बर्लिन की दिवाल गिरेगी, सोविएत रूस के १३ टुकडे होंगे?
    पर हुआ ही ना? हम मिलकर डटे रहें।
    आप सभी का आभार मानता हूँ।
    सौ सुनारकी —लगाते रहिए।

  14. दक्षिण भारत में हिंदी भाषा के विरोध का एक कारण यह था के पच्मिकृत लोग जो अंग्रेजी भाषा में पूरी तरह अंग्रेजी भाषा में र्रंगे हुए थे बह लोग नहीं चाहते के हिंदी भाषा रास्ट्रा भाषा और राज्य भाषा का दर्जा प्राप्त करे और चाहते थे अंग्रेजी भाषा भारत में हमेश के लिए बनी रहे. इन लोगो ने ऐसी अफवाह फेल्ला दी के हिंदी भाषी लोग दक्षिण भाषी लोगो की तुलना में प्रमुख स्थान पा लेंगे. ऐसी अफवाह के कारन दक्षिण राज्यों में हिंदी का विरोध होना स्वाभिक था. ऐसी हालात में कुछ पार्टियों और लोगो ने राजनेतिक लाभ उठाने के लिए हिंदी का विरोध किया और अपने इस विरोध के कारन तमिलनाडु में १९६५/६६ वर्ष में राजनेतिक सत्ता भी प्राप्त की. अब स्थिथि बदल रही हैं. तमिलनाडु राज्य में शास्किया विदाल्यो में हिंदी नहीं पढाई नहीं जाती. इसमें अब बदलाब आना चाहिए. यदि पुस्तको में से व्यंग चित्रों को हाटने की मांग कर सकते हैं तो उन्हें शास्किया विदाल्यो में हिंदी शिक्षा को पड़ाने का भी पर्बंध करना चाहिए . कंप्यूटर के लिए देवनागरी लिखित संस्कृत भाषा बहुत उपयुक्त मानी जाती . जापान ने भी देवनागरी लिपि से लाभ उठाया हैं. इस बात को देखते हुए तमिल और अन्य भारतीय भाषाओ को देवनागरी लिपि को अपनाने के बारे में विचार करना चाहिए कय्नके संस्कृत और देवनागरी लिपि अद्यात्मिक हैं और संस्कृत और हिंदी को सम्प्रधिकता से कुछ लेना देना नहीं हैं.. कांग्रेस और नेहरु परिवार ने बहुत कम ऐसे निर्णय लिए हैं जिस से देश को लाभ हुआ हो . भाष्बार राज्यों के दुस्परिनाम अब धीरे धीरे सामने आ रहे और इस भाषाबार राज्यों के स्ताफ्ना के कारण भारत के बिभाजन चाहने बाले लोगो को बल मिल रहा हैं. बहुत से लोग विदेशो में आने के बाद यह सोचना और कहना आरम्भ कर देते हैं के हमें भारत छोड़ दिया हैं और हमें भारत से कुछ लेना देना नहीं हैं. जब भगवन राम चन्द्र जी लंका पर विजय प्राप्त की थी तब लाक्स्मन ने भगवान् राम चन्द्र जी से कहा के लंका बहुत सुंदर देश हैं इसलिए हम येही रुक जाते हैं क्योंके पता नहीं के भरत अयोध्या लोटने पर कैषा व्याबार करे तब भवान रन चन्द्र जी ने कहा था के जिस स्थान पर जनम हुआ हैं उस स्थान से बढ़ कर कोई स्थान नहीं हैं.
    श्री मधु सुदन जी बिदेश में रहते इस पर इस भी इस व्यक्ति की भारत की संस्कृति और संस्कृत और हिंदी भाषाओ के उत्थान के लए क्यिया गया योग दान किसी भारतीय व्यक्ति से कम नहीं हैं.. श्री मधु सुदन जी उच्च कोटि के लेखो के लिए धाई के पात्र हैं.

  15. श्री मधुसुदन जी द्वारा सुदूर अमेरिका में रहकर भी हिंदी और संस्कृत के लिए जो प्रयास किया जा रहा है वह स्तुत्य है. वस्तुतः अमेरिका में रहने वाले अनेकों भारतीय बंधू सप्रयास हिंदी को प्रोत्साहन देते हैं. मेरे एक सम्बन्धी इंटेल में कार्यरत हैं और ओरेगोन राज्य में बीवरटन में रहते हैं. उनकी दो बेटियां हैं. जिनमे से बड़ी बेटी ने स्नातक की परीक्षा पूरी करली है और वो भारत नाट्यम में पारंगत है..श्री अरविन्द जी के पिताजी एक कसबे में शिक्षक थे. और घर में प्रति सप्ताह यज्ञ होता था. अरविन्द जी ने अमेरिका में अपनी बेटियों को हिंदी सिखाने के साथ अपने आस पास के भारतियों से भी अपने बच्चों को हिंदी सिखाने का आग्रह किया और इस निमित्त प्रति सप्ताह स्वयं हिंदी की कक्षाएं लेना शुरू किया. वो जब भी भारत आते हैं उन सभी ‘विद्यार्थियों’ के लिए उनके स्तर के अनुरूप हिंदी की पाठ्य पुस्तकें ले जाते हैं. अभी दो दिन पूर्व मुझे केलिफोर्निया के बे क्षेत्र में कसी के घर जाने का अवसर मिला. उनका बेटा जो पांचवी कक्षा में पढता है विद्यालय से आने के बाद घर में हम से इतनी अच्छी हिंदी में बातें करता रहा की आश्चर्य हुआ कि आजकल भारत में भी बच्चे इतनी शुद्ध हिंदी नहीं बोलते हैं.जबकि वो बालक अमेरिका में ही पैदा हुआ था. और वहीँ रह रहा है.
    तमिलनाडु में साठ के दशक में हिंदी विरोधी आन्दोलनों को सी आई ऐ द्वारा पोषित पल्लवित किया गया था.अब वहां हिंदी का विरोध काफी कम हो गया है. और हिंदी सीखने वालों कि संख्या में वृद्धि हो रही है. इस सम्बन्ध में श्री मधुसुदन जी द्वारा आंकड़ों के साथ जो जानकारी उपलब्ध करायी है वह हिन्दीप्रेमियों का उत्साह वर्धन करेगी ऐसा विश्वास है.श्री मधुसुदन जी को सुदूर देश में बैठकर संस्कृत और हिंदी कि इस सेवा के लिए कोटिशः साधुवाद.
    एक बात और. मैंने पिछले दिनों पढ़ा था कि अमेरिका में कुछ संस्कृत प्रेमियों ने संस्कृत कि व्याकरण और पाणिनि अष्टाध्यायी से प्रभावित होकर अंग्रेजी के लिए भी ऐसी ही शुद्ध और पूर्ण व्याकरण बनाने का बीड़ा उठाया है. कितना सफल होगा ये तो भविष्य ही बताएगा. लेकिन जैसा कि श्री मधुसुदन जी ने जानकारी दी है कि जापानी भाषा के लिए उच्चारण का मानकीकरण उनके द्वारा संस्कृत से प्रेरित होकर किया गया था तो संभवतः अंग्रेजी के लिए भी सुदूर भविष्य में ऐसा संभव हो सकेगा.

  16. अत्यन्त उत्साहवर्धक विश्लेषण।

    आपके लेख से बहुत सी नई बातें जानने को भी मिलीं। साधुवाद।

    विनोबा जी इसीलिए कहते थे कि देवनागरी विश्वनागरी बनेगी। किन्तु हमारे अपने ही तथाकथित ‘नेता’ ऐसा होने नहीं देना चाहते।

    लेकिन अन्त में सत्य ही विजयी होता है। और उसके संकेत आने भी लगे हैं।

  17. मधुसुदन जी बहुत सुंदर लेख के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद, आपके बिलकुल ठीक बात कही की स्वर तो पूरे के पूरे हिंदी वाले ही हैं लेकिन व्यंजन कम होने के कारण उच्चारण में भिन्नता आ जाती है. एक बात और देखी है मैंने यहाँ पर की लिखने और पढने वाले ज्यादा हैं बनिस्बत हिंदी बोलने वाले के. बहुत लोग ऐसे हैं जो हिंदी पढ़ लेते हैं लेकिन समझ नहीं पाते. और एक बात यहाँ के मुस्लिम्स भी बहुत अच्छी हिंदी बोलते हैं या तो उर्दू के कारण या कोई और हो लेकिन हिंदी बोलने वालों में मुस्लिम्स की संख्या भी अच्छी है. आपका प्रयास बहुत ही सराहनीय है.

  18. एक सारगर्भित,व्यवस्थित और ज्ञानवर्धक लेख के लिए लेखक को हार्दिक साधुवाद। भारत में ही नहीं अपितु विश्व की सभी भाषाओं की जननी संस्कृत है । लेखक अपने इस लेख के माध्यम से और ऐसे अन्य लेखो के माध्यम से राष्ट्रभाषा हिन्दी की अनुपम सेवा कर रहे है ।ऐसा प्रयास सार्थक ही कहा जाएगा।

    • ईश्वर की कृपा है।
      कृतज्ञता अनुभव करता हूँ।
      आप के शब्दों के अनुरूप अपेक्षित प्रयास करता रहूंगा।
      धन्यवाद।

  19. मधुसूदन जी! आपके हिन्दी-प्रेम और हिन्दी सेवा को मैं नमन करता हूं। आप अपनी रचनाओं के माध्यम से दुर्लभ सूचनाएं और ज्ञान देते हैं। आपके शोध की जितनी भी प्रशंसा की जाय, वह कम ही होगी। ऐसे ही हमलोगों का ज्ञानवर्द्धन करते रहिए।

    • बिपिन जी —माँ की सेवा करना प्रत्येक का कर्तव्य ही है।
      कभी त्रुटियाँ भी बताने में संकोच ना करें।
      कृतज्ञता सह धन्यवाद।

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