जनसंख्या वृद्धि धर्म से नहीं अशिक्षा से जुड़ी समस्या

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तनवीर जाफ़री
केंद्र सरकार द्वारा पिछले दिनों देश की जनगणना के धर्म आधारित आंकड़े जारी किए गए। यह आंकड़े पिछली यूपीए सरकार के पास मार्च 2014 में भी मौजूद थे परंतु उस समय यूपीए सरकार ने इन आंकड़ों को किन्हीं कारणों से जारी करना मुनासिब न समझा। परंतु निकट भविष्य में बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव से पूर्व वर्तमान भाजपा सरकार ने यह आंकड़े जारी कर इसका राजनैतिक लाभ उठाने की कोशिश की है। इन आंकडा़े के जारी होते ही भाजपा को समर्थन देने वाली हिंदुत्ववादी शक्तियां पुन: मुखरित हो उठी हैं और भारत में मुसलमानों के बहुसंख्यक हो जाने का भय दिखाने लगी हैं। जबकि वास्तविकता तो यह है कि जनसंख्या के आंकड़ों को आधार बनाकर किया जाने वाला यह शोर-शराबा महज़ एक प्रोपेगंडा मात्र है। वास्तव में मुस्लिम समुदाय में जनसंख्या वृद्धि के मामले में गत् एक दशक में गिरावट आती देखी गई है। मुसलमानों की जनसंख्या का अनुपात पहले की तुलना में लगातार घटता जा रहा है। उदाहरण के तौर पर 1991 में यह जनसंख्या 34 प्रतिशत थी जो 2011 में 9.5 7 प्रतिशत घटकर 24.5 प्रतिशत रह गई है। अर्थात् मुस्लिमों की जनसंख्या वृद्धि 4.9प्रतिशत घटी है। हां इसकी तुलना में हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि 3.1 प्रतिशत घटी। इसके बावजूद जनसंख्या के हिसाब से हिंदू समुदाय की वृद्धि मुसलमानों की जनसंख्या से भी कहीं अधिक है। इन सरकारी आंकड़ों के बावजूद वर्तमान दशक में यदि 3.4 करोड़ मुसलमानों का इज़ाफा हुआ है तो हिंदुओं की संख्या 13.8 करोड़ बढ़ी है। अर्थात् मुसलमानों की आबादी से चार गुणा से भी अधिक हिंदू जनसंख्या में बढ़ोत्तरी हुई है।
परंतु मैं व्यक्तिगत् रूप से जनसंख्या वृद्धि के धर्म आधारित आंकड़ों की बहस में जाने के बजाए इसे केवल एक ही नज़रिए से देखता हूं कि भारतवासियों की जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि का होना इस बात का प्रमाण है कि हमारे देश में अभी भी शिक्षित समाज की भारी कमी है जिसके कारण जनसंख्या में निरंतर वृद्धि होती जा रही है। नि:संदेह कुछ मौक़ापरस्त व सांप्रदायिकता को आधार बनाकर राजनीति करने वाले राजनैतिक दल ऐसे विषयों को जलती हुई आग में घी के रूप में इस्तेमाल करते हैं। भारत में भविष्य में मुसलमान बहुसंख्या में हो जाएंगे इसी बात का भय दिखाकर हिंदुत्ववादी शक्तियां हिंदू समुदाय के लोगों से पांच शादियां व 25 बच्चे पैदा करने का आह्वान कई बार कर चुकी हैं। वर्तमान समय में मंहगाई,रोज़ी-रोटी,शिक्षा,स्वास्थय,आवास तथा रोज़गार की क्या स्थिति है यह बात किसी से छुपी नहीं है। इसके बावजूद मात्र लोगों की धार्मिक भावनाएं भडक़ा कर उनसे 25 बच्चे पैदा करने की अपील की जाती रही है। इन आंकड़ों के जारी होने के बाद एक बार फिर यही स्वर बुलंद किया जाएगा। भाजपा के वे रणनीतिकार जिन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव से पूर्व धर्म आधारति यह आंकड़ा जारी करना ज़रूरी समझा उन्हीं से एक सवाल यह ज़रूर पूछा जाना चाहिए कि यदि मुसलमान चार शादियां कर 40 बच्चे पैदा करते हैं तो वे यह ज़रूर बताएं कि उनकी पार्टी में शाहनवाज़ हुसैन व मुख़्तार अब्बास नक़वी ने क्या चार-चार शादियां की हैं? और क्या उन्होंने तीस-चालीस बच्चे पैदा किए हैं? भाजपाई क्या देश का किसी अन्य दल का कोई ऐसा मुस्लिम नेता या देश का कोई प्रमुख मुस्लिम व्यक्ति ऐसा बता सकते हैं जिसने चार शादियां कर चालीस बच्चे पैदा किए हों? हां यदि देश के बड़े नेताओं में सर्वाधिक बच्चे पैदा करने वाले किसी नेता का नाम लोग लेते भी हैं तो सर्वप्रथम लाूल प्रसाद यादव का नाम ज़रूर सामने आता है जिनकी 9 संतानें हैं। फिर आख़िर मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि का हौव्वा खड़ा कर देश में सांप्रदायिक दुर्भावना फैलाने का औचित्य ही क्या है? ज़ाहिर है मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि का भय दिखाकर हिंदू समुदाय के लोगों का मत हासिल करने की गरज़ से उनको अपने पक्ष में लामबंद करना, इसके सिवा और कुछ नहीं।
हिंदुत्ववादी राजनीति करने वाले तथा समाज को धर्म के नाम पर विभाजित करने वाली ताकतें हमेशा यही दुष्प्रचार करती रहती हैं कि मुस्लिम धर्म के लोग चार शादियां करते हैं और चारों पत्नियों से अनगिनत बच्चे पैदा करते हैं। परंतु दरअसल मंहगाई के इस दौर में न तो कोई मुसलमान चार शादियां करता है न ही बेतहाशा बच्चे पैदा करता है। हां इतना censusज़रूर है कि इस्लाम धर्म के उदय के समय मुस्लिम समाज को हरामकारी,बलात्कार तथा वेश्यावृति जैसी बुराईयों से रोकने के लिए यह व्यवस्था ज़रूर की गई थी कि यदि उसकी अपनी एक पत्नी से उसे कोई औलाद न हो रही हो,वह शारीरिक रूप से अक्षम या अपाहिज अथवा बीमार हो या कोई व्यक्ति लंबे समय के लिए व्यापार पर बाहर गया हो या किसी प्रकार की दूसरी ऐसी ही अपरिहार्य परिस्थितियों में अपनी आर्थिक हैसियत को मद्देनज़र रखते हुए व अपनी पूर्व पत्नी की रज़ामंदी होने के बाद एक से अधिक शादियां कर सकता है। परंतु यह व्यवस्था भी चौदह सौ वर्ष पूर्व की थी। आज उस व्यवस्था को धरातल पर नहीं लाया जा सकता। आज किसी व्यक्ति के लिए एक विवाह कर अपनी एक पत्नी व उससे होने वाले बच्चों की परवरिश करना वा एक-दो बच्चों को अच्छी शिक्षा देना ही एक मुश्किल काम है। ऐसे में एक से अधिक शादियों अथवा दर्जनों बच्चों की कल्पना भी कैसे की जा सकती है? परंतु निश्चित रूप से आज के दौर में भी कई अशिक्षित लोग विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे पाए जाते हैं जो 4-6 अथवा 8 बच्चों के पिता हों। परंतु यदि ऐसे माता-पिता से आप उनका धर्म जानने के बजाए उनकी शिक्षा के बारे में जानने की कोश्शि करें तो प्राय: यही पता लगेगा कि वह व्यक्ति पूरी तरह से अनपढ़ व जाहिल है। ऐसे व्यक्ति प्रत्येक धर्म व समुदाय में पाए जा सकते हैं। इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं बल्कि इसका सीधा वास्ता अशिक्षा से ही है।
इन दिनों देश के गुजरात राज्य में पटेल समुदाय के लोग आरक्षण की मांग को लेकर सडक़ों पर उतरे हुए हैं। यह मुसलमान नहीं बल्कि हिंदू आबादी का हिस्सा हैं। ज़ाहिर है इस समुदाय के युवाओं में इस बात का रोष है कि उन्हें रोज़गार के अवसर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। यही स्थिति अन्य कई हिंदू धर्म से संबंध रखने वाले समुदायों की भी है। निश्चित रूप से मुसलमानों में भी बेरोज़गारों की संख्या कम नहीं है परंतु उनकी ओर से फ़िलहाल देश के किसी क्षेत्र में आंदोलन होता नहीं देखा जा रहा है। सवाल यह है कि जिस हिंदू समाज के लोग वर्तमान समय में अपने रोज़गार की समस्या से चिंतित होकर अपनी जान पर खेलकर सडक़ों पर उतर आए हों उसी समाज के लोगों को इस बात के लिए उकसाया जाए कि तुम और अधिक बच्चे पैदा करो अन्यथा दूसरा समुदाय जनसंख्या के मामले में तुमसे अधिक हो जाएगा, आख़िर राजनीति का इससे घटिया पैमाना और क्या हो सकता है? अफ़सोस की बात तो यह है कि एक ओर तो हमारे देश में दशकों से जनसंख्या को नियंत्रित करने हेतु प्रत्येक वर्ष सैकड़ों करोड़ रुपये ख़र्च कर तरह-तरह की योजनाएं सरकारी स्तर पर चलाई जाती हैं। विश्व सवास्थय संगठन भी ऐसी योजनाओं को संचालित करने हेतु भारत सरकार की सहायता करता है। परंतु उसके बावजूद हमारे देश में सक्रिय हिंदुत्ववाद शक्तियां हिंदू समाज में दूसरे समुदाय की जनसंख्या वृद्धि का भय फैलाकर उन्हें अपनी आबादी बढ़ाने हेतु आमादा करती हैं। हद तो यह है कि हमारे देश की संसद में भी ऐसे कई लोग मौजूद हैं जो हिंदुओं से अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने की अपील करते रहते हैं। ऐसे लोगों से देश के संविधान व क़ानून की रक्षा तथा सरकारी योजनाओं के कार्यान्वन की आख़िर क्या उम्मीद की जा सकती है?
देश में यदि जनसंख्या नियंत्रण के अनुपात को और अधिक बढ़ाना है तो बिना यह सोचे समझे हुए कि कौन सा व्यक्ति किस धर्म या समुदाय से संबंध रखता है, सर्वप्रथम सभी धर्मों व समुदायों के ग़रीब,दलित व अशिक्षित समाज को शिक्षित बनाने की ज़रूरत है। जब तक हमारे देश से ग़रीबी व अशिक्षा समाप्त नहीं होगी उस समय तक अशिक्षित लोगों में जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणामों के बारे में सोचने-समझने की शक्ति पैदा नहीं हो सकती। आज यदि एक शिक्षित व्यक्ति यह सोच कर अधिक बच्चे पैदा नहीं करता कि वह अपने एक से अधिक बच्चों को किस तरह पढ़ाए-लिखाएगा या कैसे उसकी अच्छी परवरिश करेगा ठीक इसके विपरीत एक अशिक्षित मां-बाप यह सोचकर अधिक बच्चे पैदा करते हैं कि उनके अधिक से अधिक बच्चे मेहनत-मज़दूरी कर अपना पालन-पोषण भी करेंगे और अपने माता-पिता का सहारा भी बनेंगे। गोया उन्हें बच्चों के उज्जवल भविष्य के संबंध में किसी प्रकार का कोई ज्ञान नहीं होता। ज़ाहिर है इस प्रकार की सोच पैदा करने हेतु केवल शिक्षा की ही ज़रूरत है। नि:संदेह जनसंख्या वृद्धि की समस्या धर्म नहीं बल्कि शिक्षा से जुड़ी समस्या है।

3 COMMENTS

  1. तनवीर जाफरी साहब ने तथ्यों और तर्कों से जो निष्कर्ष निकाला है वो बिलकुल ठीक है लेकिन गुप्ता जी ने जो मिसाल दी है वो अपवाद हो सकती है।
    भारत सरकार के आंकड़े गवाह हैं गरीब हिन्दू और मुस्लिम की आबादी तेज़ी से बढ़ रही है
    जबकि शिक्षित और सम्पन्न हर वर्ग परिवार नियोजन अपना रहा है।
    फिर भी अगर कोई न मानें तो उस से पुछा जा सकता है कि मांग किस से कर रहे हैं अब तो आपकी मोदी सरकार है
    तुष्टिकरण क्यों कर रहे हो
    वोटबैंक की सियासत क्यों कर रहे हो
    आपको भी मुस्लिम कट्टरपन्थियों के वोट चाहिये क्या?
    नहीं तो बनाओ सब के लिये अनिवार्य परिवार नियोजन का क़ानून
    लेकिन हम जानते हैं मोदी ऐसा नहीं करेंगे
    अगर ऐसा क़ानून बन गया तो फिर ये मुस्लिम आबादी का हव्वा कैसे खड़ा करेंगे????

    • यह सही है कि अगर हालात को काबू में करना है तो अनिवार्य जनसँख्या नियंत्रण नीति बनानी ही होगी और इसके लिए कानून भी बनाना पड सकता है.लेकिन बेहतर होगा कि समाज के लोग स्वयं ही इस दिशा में पहल करें!अन्यथा आप ही शिकायत करते नज़र आएंगे कि “मोदी सरकार मुस्लिमों का उत्पीड़न कर रही है”.रही बात हिन्दुओं और मुस्लिमों दोनों के गरीबों की जनसँख्या तेज़ी से बढ़ने की तो भाई इक़बाल जी कृपया बताने का कष्ट करें कि हिन्दुओं में जनसँख्या वृद्धि दर १६.४% और मुस्लिमों में २४.८% क्यों है?पिछले दशकों के आंकड़े भी यही बताते हैं कि मुस्लिम जनसँख्या वृद्धि की दर हिन्दुओं की वृद्धि दर से डेढ़ गुना रही है और यह वृद्धि अनुपात लगातार बना हुआ है! अगर बांग्ला देश में जनसँख्या वृद्धि दर १४% है तो क्या वहां मुस्लमान गरीब नहीं है या सभी उच्च शिक्षित और संपन्न हैं? भाई कोई तो वजह है जो भारत में मुस्लिम समाज के लिए कोई भी प्रगतिशील कदम उठाये जाने पर उसका तीव्र विरोध चालू हो जाता है जबकि उससे भी कहीं अधिक कठोर कदम पाकिस्तान, बांग्लादेश अथवा किसी अन्य मुस्लिम देश में सहज रूप से स्वीकार हो जाते हैं! अगर ऐसे में हिन्दू यह शिकायत करते हैं कि यह सब ‘दारुल हरब’ हिंदुस्तान को ‘दारुल इस्लाम’ हिंदुस्तान बनाने की साज़िश के तहत किया जाता है तो इसमें कुछ तो बल है!

  2. तनवीर साहब के अपने तर्क हैं! लेकिन मेरे विचार में मुस्लिम समाज में अधिक सन्तानोपत्ति के पीछे परिवार नियोजन को गैर इस्लामिक मानने की भ्रांत धरना ही प्रमुख कारण है! मई ऐसे अनमों पढ़े लिखे उच्च पदों पर स्थित मुसलमानों को जनता हूँ जो उच्च शिक्षा और अच्छे ओहदे के बावजूद दस-दस और बारह बारह बच्चों के पिता हैं!कुछ वर्ष पूर्व मेरठ में व्यापर कर के ट्रिब्यूनल में एक मुस्लिम न्यायाधीश तैनात थे जो वरिष्ठ अपर जिला अधिकारी के पद से प्रतिनियुक्ति पर ट्रिब्यूनल में आये थे.उनके एक दर्जन बच्चे थे! क्या यह अशिक्षा के कारण था! ऐसे और भी उदहारण मेरी जानकारी में हैं लेकिन मैं उन सबका उल्लेख यहाँ करके उन सभी महानुभावों को शर्मसार नहीं करना चाहता हूँ! भारत में मुस्लिमों की जनसँख्या वृद्धि २००१-२०११ के दशक में २४.८% रही है जो पाकिस्तान के २०% और बांग्लादेश के १४% से भी कहीं ज्यादा है! तो ऐसे में अगर कुछ हिन्दू संगठन यह निष्कर्ष निकालते हैं कि इस जनसँख्या वृद्धि की जड़ में अपना संख्याबल बढ़ाकर भारत में जनसँख्या के संतुलन को मुस्लिम समाज के पक्ष में मोड़ना है तो क्या गलत है?सरकार को एक कड़ी जनसँख्या नीति बनाकर उसे कानून के द्वारा सभी वर्गों पर सख्ती से लागू करना चाहिए.अन्यथा जनसँख्या का वर्तमान प्रवाह आने वाले समय में न केवल अर्थी बल्कि सामाजिक राजनीतिक समस्याएं भी खड़ी करेगा!

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