आईपीएस अफीसर एसोसिएशन में बजने लगे बर्तन!

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लिमटी खरे

भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों का संघ मध्य प्रदेश में काफी ताकतवर माना जाता है। इस संघ की एकता और संगठनात्मक क्षमता को समय समय पर सराहा भी जाता रहा है। हाल ही में आईपीएस आफीसर्स की सर्विस मीट का आयोजन किया गया। इस मीट में शामिल होने आए अधिकारियों और उनके परिवार जब बड़े तालाब में नौका विहार कर रहे थे, तभी उनकी नाव पलट गई। इस नाव में अनेक आला अधिकारियों की पत्नियां सवार थीं। यह तो गनीमत थी कि सभी ने लाईफ जैकिट पहनी थी, इसलिए वे डूबने से बच गईं। इस घटना के बाद आईपीएस अधिकारियों में रार होती दिख रही है। इसके बाद आईपीएस अधिकारी दो धड़ों में बटते नजर आ रहे हैं।

दरअसल, आईपीएस मीट के अंतिम दिन वोट क्लब पर वाटर स्पोर्टस का आयोजन किया गया था। बड़े तालाब में आयोजित इस कार्यक्रम को राज्य आपदा प्रबंधन दल के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक डीसी सागर के द्वारा कराया जा रहा था। बताते हैं इसी दर्मयान पुलिस महानिदेशक वीके सिंह, एडीजी विजय कटियार, राजेश चावला आदि की अर्धांग्नियां परिजनों के साथ नौका विहार के लिए निकल गईं। यह नाव कुछ दूर जाकर पलट गई।

प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र जैन ने इस मामले में एक खबर जारी की है। उनकी खबर के अनुसार बड़े तालाब में हुई नाव दुर्घटना के बाद आईपीएस एसोसिएशन में विवाद गहराने लगी और यह दो फाड़ होते होते बची। इसके पीछे उन्होंने यह कारण बताया कि पुलिस महानिदेशक वीके सिंह के द्वारा अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक डीसी सागर को इसके लिए दोषी मानते हुए इस मीट से डीसी सागर को दूर रखने के निर्देश दे दिए।

रविंद्र जैन लिखते हैं कि यह बात डीसी सागर को पता चली और उनका मन खिन्न हो गया। इधर, आईपीएस अधिकारियों ने डीजीपी वी.के. सिंह का आदेश को दरकिनार रखते हुए डीसी सागर को ससम्मान शाम के कार्यक्रम में शिरकत करने राजी कर लिया। डीसी सागर को कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुति दी जानी थी, पर उन्होंने परफार्म करने से इंकार कर दिया।

रविंद्र जैन ने आगे लिखा है कि आईपीएस आफीसर मीट के दूसरे दिन हुई इस दुर्घटना में एडीजी डीसी सागर के दल ने महज पंद्रह सेकन्डस में ही पानी में तैर रहे लोगों को बाहर निकाल लिया था। इसके बाद माना जा रहा था कि डीजीपी के द्वारा एडीजी डीसी सागर को सम्मानित किया जाएगा, पर इस घटना के कुछ देर बाद डीजीपी वीके सिंह ने एडीजी अरूणा मोहन राव को फोन कर इस मामले में डीसी सागर को दोषी मानकर अपनी नाराजगी से आवगत करा दिया। उन्होंने यह भी लिखा है कि डीजीपी वीके सिंह ने यह फरमान भी जारी कर दिया था कि शाम को डीसी सागर कार्यक्रम में दिखाई भी नहीं देना चाहिए।

वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र जैन ने लिखा है कि आईपीएस अधिकारियों ने आपस में बात की और यह निर्णय लिया कि डीजीपी के मोखिक आदेश को दरकिनार करते हुए डीसी सागर को शाम के कार्यक्रम में सम्मान के साथ ले जाया जाएगा। हुआ भी यही, डीसी सागर पहुंचे, उनकी बेटी ने प्रस्तुति दी पर वे इस दौरान खामोश ही रहे और प्रस्तुति नहीं दी। चर्चाओं के हवाले से रविंद्र जैन लिखते हैं कि ऐसी घटनाओं से किसी भी संगठन में दरार पड़ती है।

इसके साथ ही आईपीएस मीट विवादों में भी घिरती दिखी। इस मीट के दौरान उज्जैन के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सचिन अतुलकर का एक वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। इस वीडियो में एसएसपी सचिन अतुलकर शिव प्रस्तुति दे रहे हैं और उनका पैर शिवलिंग को स्पर्श कर रहा है। उधर, सचिन अतुलकर का कहना है कि उनका पैर शिवलिंग से काफी दूर था और उन्होने शिवलिंग को स्पर्श भी नहीं किया।

वैसे देखा जाए तो आईपीएस मीट में सचिन अतुलकर हर बार एक से बढ़कर एक प्रस्तुति देते आए हैं। पिछले साल वे बाहुबली के रूप में सामने आए थे, इस बार उन्होंने अपने आप को शिवभक्त के रूप में पेश करते हुए शिव तांडव किया। उनकी प्रस्तुति इस कदर जानदार थी कि दर्शक उनको एकटक निहारते रहे।

महाशिवरात्रि के एन पहले सचिन अतुलकर का यह वीडियो देखते ही बन रहा है। धोती पहने हाथ में धूनी लिए उज्जैन के एसएसपी सिक्स पेक्स भी दिखाते दिख रहे हैं। वे वालीवुड स्टार्स के समकक्ष ही माने जाते हैं और इंस्टाग्राम पर भी वे छाए ही रहते हैं। कहा जाता है कि उनके द्वारा दो बार बिग बॉस का आफर भी ठुकरा दिया गया है। बहरहाल, जिस तरह की बातें आईपीएस आफीसर्स मीट के उपरांत निकलकर सामने आई हैं, उसके बाद अब चर्चाओं का बाजार गर्मा गया है। भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों को संयमित, व्यवहार कुशल, दूरदर्शी, त्वरित निर्णय लेने वाले, सुलझे अधिकारी माना जाता है, पर जिस तरह की बातें सामने आ रही हैं, उससे एसोसिएशन की छवि प्रभावित हुए बिना नहीं है।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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