डॉ. मधुसूदन
(एक) एक चुनौती भरी कठिन प्रस्तुति:
कवि की कल्पना कविकल्पना ही कहलाती है. कवि जो देखता है वो रवि भी नहीं देख सकता. एक ऐसी ही थोडी कठिन कविता प्रस्तुत करता हूँ. कुछ बौद्धिक व्यायाम होगा. पर बिना बौद्धिक व्यायाम वास्तव में मनोरंजन भी संभव नहीं होता. कुछ पाठक तो लाभान्वित होंगे ही, ऐसी सोच इस प्रस्तुति के पीछे है. धीरे धीरे आत्मसात करें.
गुजराती के एक मूर्धन्य कवि ने, कुछ संस्कृत धातुओं में जो देखा , उस पर कविता ही रच डाली. पर उस कविता ने, मुझे भी गूढ अगम्य रोमांच से भर दिया. उसी कविता के बीज पर आज हिन्दी में कविता लिख कर प्रवक्ता के पाठकों के सामने प्रस्तुत करता हूँ. साथ साथ कविता का विवेचन भी प्रस्तुत है. इस कविता का मौलिक बीज उस कविता से लिया गया है. आंशिक अनुवाद भी लिया है. पर रचना का भी काव्य सुलभ स्वातंत्र्य (पोएटिक लायसन्स) ले कर प्रस्तुत है रचना. कविता में कुछ अगम्य गूढता की झाँकी भी अपेक्षित है.
(दो) गुजराती के मूर्धन्य कवि श्री उमाशंकर जोशी.
गुजराती के एक मूर्धन्य कवि हुए. श्री उमाशंकर जोशी. जिन्हें प्रायः ७ पारितोषिकों से सम्माना गया था.
उन्हें पंखियों के भोर के स्वरों में पाणिनि के विशेष धातुओं का आभास हुआ. अचरज है ना? और उस पर आपने कविता ही रच डाली. यही अचरज की बात है . ऐसे कितने कवि होंगे? पर कविता पढने पर आप भी चकित और हर्षित हुए बिना नहीं रहेंगे.
(तीन) पंखियों के स्वरों में *च * का प्रधान उच्चारण:
आपने अनुभव किया होगा, कि, पंखियों के स्वरों में *च * का उच्चारण प्रधान होता है. और संस्कृत के कुछ धातु, जैसे सिच, (सिंचना), विच (चुनना), पच (पकाना), रिच (स्वच्छ या शुचिर्भूत होना), मुच (मुक्त होना), ऐसे प्रत्येक धातु में भी *च* का उच्चारण प्रधान है. आप कविता पढ कर ही, जाँच पाएंगे, और आनंद ले पाएंगे. मैंने काव्य-बीज उन से लेकर रचना की है. पंक्ति पंक्ति पर विश्लेषण करते करते पढने का अनुरोध है.
पंखी- लोक
भोर की अनुभूति:
(१)
कान को क्या आँखे होती हैं ?
जो शब्द उन्हें प्रकाश दिखते ?
तो, भोरकी, आधी-नींद में भी,
पंछी स्वर फिर क्यों चमकते?
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(२)
तनिक जाग कर, परखने ,
आंँगन, वृक्ष-झुण्ड तले पहुँचा,
तो, पंखियों का सहगान,
प्रारंभ हो चुका था.
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(क्षमा करें, देर हो गयी)
(३)
वृक्षों वृक्षों के गुरुकुल में,
शाख शाख पर देखा मैंने,
पंक्ति बद्ध बैठा पंखी,
मुक्त पाठ कर रहा था.
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(४)
तमस तंद्रा बिंधकर के
डालियाँ चम चम चमकती थीं.
पंखी के स्वर दीप बनकर
भोर किरणें प्रकट हो रही थीं.
(५)
पंछी करते पाठ ..पच् मुचि रिच्
’….पच् मुचि रिच् वच् विच् सिच् …!’
काम मे लगो, जागो -संदेश देता,
पाणिनि धातु पाठ चल रहा था.
[ ये, इन धातुओं के अर्थ भी हैं,और
पंखियों की बोली में कवि सुनता भी है .]
(६)
सिच सिच सिच सिच
सिंचो अपने आँगनों को
रिच रिच रिच रिच रिच
स्नानादि कर स्वच्छ हो जाओ
विच विच विच विच
फूल चुन पूजा सजाओ,
—
घोर वृक्ष घटाएँ ,ऐसी
प्रकाश बूंदें थीं टपकाती।
क्या,पंखियों के पाठ से इस,
दिवस ऊगने बाध्य था?
और प्रभात मंगल हो रहा था?
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और,
पंखी न करते …….पाठ यदि तो,
कहो; दिवस , ….. कौन ऊगाता?
पंखियों के ….मंत्रपाठ से ही;
प्रभात, …..मंगल-प्रभात होता है.
आप को भी पंखियों की बोली का आभास होगा. कल भोर में प्रयोग कर देखिए. आप का ध्यान लग जाएगा.
और आपकी चेतना को ऊपर उठा देगा.
{धातु हमारे शब्दों की जड माने जाते हैं. इस बिन्दुपर पर्याप्त आलेख डाल चुका हूँ; और उसका विस्तार भी कर चुका हूँ }
लेखक ने अपनी मति से छोटा ही प्रयास किया है. श्री उमाशंकर जोशी असामान्य कोटि के कवि थे. उनकी पूरी कविता बडी लम्बी है. और उन्हों ने काफी परिश्रम भी किया है.
पर, ध्यान खींचना चाहता हूँ, कि, संस्कृत , मात्र हिन्दी को ही समृद्ध नहीं करती, गुजराती में भी ७०% प्रतिशत शब्द संस्कृतजनित होते हैं.
यह भारतीय एकता का सशक्त साधन हम उपेक्षित करते आ रहे हैं.
भाषा भाषाओं के बीच के वाद विवाद इसी उपेक्षा का अवांछित फल है.
संदर्भ: समग्र कविता –उमाशंकर जोशी (गुजराती ग्रंथ)
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परिशिष्ट:(एक)
एक गुजराती के कवि को, पंखियों के भोर के स्वरो में संस्कृत के धातुओं का पाठ सुनाई देता है, उन्हों ने जिन धातुओं को, भोर में पंखियों के स्वरों में प्रतिबिम्बित होते सुना उन स्वरों को पहचानने में सुविधा हो, इस लिए आप भी नीचे के स्वर बोल कर परख सकते हैं. पंखियों की बोली में *च* की बहुलता होती है.
और पाणिनि के धातुओं में कुछ धातुओं में भी च की बहुलता है. जैसे सिच सिच सिच (सिंचना) विच विच विच ( बिनना) पच पच पच (पकाना) मुच मुच मुच (मुक्त होना) रिच रिच रिच ( स्वच्छ होना)
(क) कल्पना की पराकोटि:
पहले, कवि कानों को आँख कल्प लेता है.
पूछता है; *कान यदि आँखे होती तो क्या होता?*
तो, शब्दों को सुनने के बदले हम शब्द देख पाते.
वाह ! क्या बात है?
आगे कहता है; शब्दों को यदि आप देखते, भोर के पंछियों के मीठे स्वर चम चम चमकते प्रतीत होते.
इस पर तीसरी कल्पना भी जोडी जा सकती हैं.
जो इन धातुओं के अर्थों से निःसृत होती हैं.
जो पंछियों की बोली में च च च उच्चारण की बहुलता से जुडी है.
संस्कृत के निम्न धातु जो हैं, उन में प्रत्येक धातु में, च का उच्चारण है.
(सिच) ===> सिंचन करना सिंचना
(रिच)===>स्वच्छ होना या स्वच्छ करना
(विच) ===>बिनना पृथक करना (मराठी में वेंचणे चलता है)
(पच) ==>पकाना, पचाना दोनों अर्थो में चलता है.
(मुच)===>मुक्त होना और मुक्त करना. (मोचन विमोचन इत्यादि.)
भाग्यवशात यदि आप इन धातुओंके अर्थ भी लगाएँ तो इन धातुओं के अर्थ से जुडे सारे काम सबेरे ही किए जाते हैं.
परिशिष्ट:(दो)
(एम. आर. काले की Higher Sanskrit Grammar से)
(पच) पकाना, पचाना दोनों अर्थो में चलता है.
(मुच)मुक्त होना और मुक्त करना. (मोचन विमोचन इत्यादि.)
(रिच) स्वच्छ होना या स्वच्छ करना
(विच) फूल बिनना, तोडना, पृथक करना (मराठी में वेंचणे चलता है)
(सिच) सिंचन करना सिंचना