प्रभुजी, वे चाकू हम खरबूजा

0
141

नाटक देखना किसे अच्छा नहीं लगता। गीत और संगीत, हास्य और रुदन, व्यंग्य और
करुणा से लिपटे डायलाॅगों के साथ अभिनय का सामूहिक रूप यानि नाटक। कई नाटक
तो इतने प्रभावी होते हैं कि बीच में से उठने का मन ही नहीं करता। नाटक में जितने
लोग परदे के आगे होते हैं, उससे अधिक परदे के पीछे। नाटक पूरा होने पर विधिवत
सबका परिचय कराया जाता है। तब कहीं जाकर नाटक पूरा होता है।
पर भारत के दक्षिणी राज्य कर्नाटक में जो नाटक पिछले 15 दिन से चल रहा है, वह
गजब है। वहां (न जाने किसकी) कांग्रेस और कुमारस्वामी के 15 विधायक हाथ में
त्यागपत्र लिये खड़े हैं; पर अध्यक्षजी उन्हें लेने को राजी नहीं है। कलियुग में त्याग के
ऐसे नमूने शायद ही कहीं मिलें। लोग विधायक बनने के लिए न जाने कितने पापड़ बेलते
हैं; पर त्याग की ये मूर्तियां विधायकी छोड़ने के लिए कचरी तल रही हैं। रामजी और
भरत होते, तो अपना सिर पीट लेते।
इन नाटक में कौन परदे के आगे है और कौन पीछे, ये भी ठीक से नहीं पता।
कुमारस्वामी इसे भा.ज.पा. की चाल बता रहे हैं, तो भा.ज.पा. वाले कांग्रेस की। कांग्रेस
वालों की समझ में ही नहीं आ रहा कि वे क्या करें ? जिस नाव का कप्तान ही बीच
मंझधार में नाव छोड़कर फरार हो गया हो, उसका मालिक तो फिर ऊपर वाला ही है।
कर्नाटक में तो नाटक अभी चल ही रहा है; पर गोवा में नाटक समाप्ति की घोषणा के
बाद, बिना पात्रों का परिचय दिये परदा गिरा दिया गया है। सुना है नाटक का अगला
प्रदर्शन भोपाल और जयपुर में होगा। कांग्रेस वाले इसी से भयभीत हैं; पर उनकी समस्या
है कि वे अपनी व्यथा कहें किससे ? मजबूरी में बेचारे एक दूसरे के कंधे पर सिर रखकर
ही गम गलत कर रहे हैं।
हमारे प्रिय शर्माजी इससे बहुत दुखी हैं। कल मैं उनके घर गया, तो वे खरबूजा खा रहे
थे। उन्होंने दो फांकें मुझे भी थमा दीं।

  • वर्मा, देखो ये कर्नाटक और गोवा में क्या हो रहा है ?
  • क्या हुआ शर्माजी ?
  • क्या हुआ; अरे अब होने को बाकी बचा ही क्या है ? नरेन्द्र मोदी और अमित शाह
    लोकतंत्र की हत्या कर रहे हैं। गोवा और कर्नाटक के खेल के पीछे उनका ही हाथ है।
  • शर्माजी, ये तो समय-समय की बात है। कभी नाव पानी में, तो कभी पानी नाव में।
    किसी समय कांग्रेस वालों का हाथ मजबूत था, तो वे विरोधी सरकारों को जब चाहे चींटी
    की तरह मसल देते थे। अब भा.ज.पा. बुलंदी पर है, तो वे भी यही काम कर रहे हैं।
    इसमें कांग्रेस वालों को बुरा नहीं मानना चाहिए। किसी संत ने ठीक ही कहा है – जैसी
    करनी वैसा फल, आज नहीं तो निश्चित कल।
  • तुम बेकार की बात मत करो।
  • शर्माजी, चाहे चाकू खरबूजे पर गिरे या खरबूजा चाकू पर, कटता बेचारा खरबूजा ही है।
    भारतीय राजनीति में इन दिनों यही हो रहा है और जब तक खरबूजा पूरी तरह कट नहीं
    जाएगा, तब तक शायद यही होता रहेगा।
    यह सुनकर शर्माजी आपे से बाहर हो गये। उन्होंने खरबूजे के छिलकों से भरी प्लेट मेरे
    मुंह पर दे मारी। गनीमत ये हुई कि चाकू उनके हाथ में नहीं आया। वरना…। ऐसे
    माहौल में मैंने वहां से खिसकना ही उचित समझा।
    रास्ते में एक मंदिर में भजन का कार्यक्रम चल रहा था। भजनकार बड़े करुण स्वर में गा
    रहे थे – प्रभुजी तुम मोती हम धागा, जैसे सोने में मिलत सुहागा। मुझे लगा भारत के
    कई विधायक और सांसद भी बड़ी दीनता से कह रहे हैं – मोदी शाह न जैसा दूजा, प्रभुजी
    वे चाकू हम खरबूजा।
  • विजय कुमार, देहरादून

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

12,688 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress