प्रदेश की राजनीति में गुम होते मुददे , तीखी होती आपत्तिजनक बयानबाजी

मृत्युंजय दीक्षित

ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उप्र का विधानसभा चुनाव जीतना लगभग सभी दलों के लिए इतना महत्वपूर्ण हो गया है कि अब वह विकास के रास्ते से भटककर कब्रिस्तान, श्मशान, कसाब तक पहुंच गया है। विधानसभा चुनावों की गतिविधियां प्रारम्भ होने के समय कांग्रेस पार्टी ने अकेले चलो का नारा दिया था और जनता के बीच जाकर कहा कि 27 साल यूपी बेहाल लेकिन खाट सभाओं व रोडशो का हाल देखने के बाद कांग्रेसी मन डोल गया और अपने सभी सपनों को दरकिनार करते हुए उसने समाजवादी दल के साथ केवल भाजपा रोको अभियान के तहत सपा से हाथ मिला लिया। वहीं कुछ दल इस गठबंधन में शामिल होने से बच गये । लेकिन सभी दलों का एक ही लक्ष्य है भाजपा को सत्ता में आने से रोकना । यही कारण है कि सभी दल अब अपने घोषणापत्रों को भूलकर केवल पीएम मोदी व भाजपा पर ही हमलावर होते जा रहे हैं जिसके कारण अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कहीें भाजप व पीएम मोदी के प्रति जनमानस में सहानूभूति की लहर तो नहीं चल रही है। ओडिशा के पंचायत चुनावों के परिणाम व महाराष्ट्र के परिणामों का असर देखने के बाद सभी भाजपा विरोधी दलोे में बैचेनी बढ़ गयी है।

भाजपा अपने स्टार प्रचारक पीएम नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित कंेद्रीय मंत्रियों के सहारे विरोधियों से निपट रही है। भाजपा के राजनैतिक इतिहास में संभवतः पहली बार ऐसा हो रहा है कि देश का प्रधानमंत्री एक राज्य मेंअपनी सरकार बनवाने के लिए छोटे -छोटे जिलों में बड़े टारगेट के साथ जनसभाओं को संबोधित कर रहा है। वहीं राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी लोकसभा चुनावों की सफलता को दोहराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है तथा रात दिन मेहनत कर रहे हैं। पीएम मोदी अपनी जनसभाओं के माध्यम से भ्रष्टाचार को मुददा बनाने में काफी सीमा तक सफल हो गये हैं। वह इस बात पर भी सफल होते दिखलायी पड़ रहे हैं कि भाजपा को छोड़कर सभी दल भ्रष्टाचार, कालेधन व देशद्रोही ताकतों का समर्थन कर रहे हैं । पीएम मोदी की जनसभाओं में केसरिया ज्वार उमड़ता दिखलायी पड़ रहा है।  अब तक के सभी चरणों से साफ पता चल रहा है कि जिस प्रकार से चरण दर चरण मतदान का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है उससे प्रदेश के राजनैतिक विश्लेषकों को परिवर्तन की आहट दिखलायी पढ़ने लग गयी है। यही कारण है कि पीएम मोदी के सभी विरोधी अखिलेश, राहुल , मायावती व अन्य छुटभैये नेताओं ने उनके खिलाफ आपत्तिजनक अमर्यादित बयानबाजी की झड़ी लगा दी है। देश के इतिहास का संभवतः यह ऐसा पहला चुनाव होने जा रहा है जिसमें सभी दलों व नेताओं के बीच  गालियां देने की होड़ शुरू हो गयी है। जनता से संबंधित सभी मुददे काफी पीछे छूट चुके हैं।

इन चुनावों में पीएम नरेंद्र मोदी अपनी जनसभाओं में भ्रष्टाचार , अपराध, महिला सुरक्षा व समाजवादी सरकार की नाकामियों पर तीखा हमला बोल रहे हैं। वह प्रदेश में व्याप्त गुंडाराज, युवाओं में तेजी से बढ़ रहे पलायन व रोजगार में हो रही कमी, जातिवाद और सांप्रदायिक आधार पर  हो रहे भेदभाव, कृशि उद्योग के पिछड़ेपन, खराब स्वास्थ्य सेवाओं का हवाला तो दे ही रहे हैं साथ ही साथ प्रदेशभर की परीक्षाओं में होने वाली नकलों पर भी हल्ला बोल रहे हैं। पीएम मोदी व भाजपा नेताओं की जनसभाआंे में आ रही भीड़ से विरोधियों में बैचेनी बढ़ रही है। पीएम मोदी ने अपनी पिछली कई जनसभाओं मंे उत्साह का नया संचार पैदा किया है। उदाहरण के तौर पर बाराबंकी व हरदोई की जनसभाओं में सपा पर तीखा हमला बोलते हुए उन्होंने कहाकि यूपी में पुलिस थानों को सपा का कार्यालय बना दिया गया है। जहां सपा के गुंडे थाने में बैठकर आदेश चलाते हैं।  यहां जाति पूछकर नौकरी दी जाती है। उन्होंनें किसानोें के प्रति हमदर्दी दिखाते हुए घोषणा कर दी कि जब प्रदेश में भाजपा की सरकार बनेगी तो मत्रिमंडल की पहली बैठक में ही किसानों का कर्ज माफ कर दिया जायेगा। पीएम मोदी अपनी जनसभाओं में स्थानीय महत्व के मुददों को जोर शोर से उठा रहे हैं।

वहीं दूसरी ओर सपा प्रवक्ता राजेंद्र चैधरी  व बसपा सुप्रीमो मायावती इसके विपरीत पीएम मोदी व अमित शाह को आतंकवादी , सीएम अखिलेश यादव सबसे अधिक झूठ बोलने वाला पीएम व यहां तक कि उन्हें गधहा कह रहे  हैं तो  वहीं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने एक जनसभा में कहाकि पीएम मोदी की आवाज तो चूहे से भी बदतर है। साथ ही राहुल गांधी ने दो कदम आगे बढ़ते हुए  आरएसएस पर भी तीखा हमला बोलना शुरू कर दिया है। वह आरएसएस को हिंदू विरोधी संगठन कहने लग गये हैं। इन सभी लोगों के बयानों से लगने लग गया है कि अब इन सभी दलों के पैरों तले जमीन खिसक चुकी है। यही कारण है कि बसपा नेत्री मायावती भी अब केवल पीएम मोदी को ही निशाना बना रही है और कह रही हैं कि वह चुनावों के बाद पीएम को वापस गुजरात भेज दंेगी। जनता के सामने वह अपने विचार व काम तो नहीं पेश कर रही लेकिनपीएम मोदी के फैसलोंके विपरीत वह अपने विचार जनता के सामने परोस रही हैं। बसपानेत्री मायावती के विचारों में अब तर्क व बौद्धिकता कम दिखलायी पड़ रही है अपितु व्यक्ति विशेष के प्रति कुंठा का प्रवाह अधिक दिखलायी पड़ रहा है। वह बैचेन हैं। वह केवल मुस्लिम तुष्टीकरण और आरक्षण बचाआंे का घिसा पिटा बाजा ही बजा रही है। उनके पास आधुनिकता का कोई नया विचार नहीं है। वह देश व प्रदेश के दलित व पिछड़े समाज को अपना वोटबंैक बनाकर रखना चाह रही हैं। डिजाइनर नेता बनने के चक्कर में उन्होनें पीएम मोदी के नाम का विश्लेषण करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी का मतलब होता है, निगेटिव दलित मैन । यह उनकी ओछी व गिरी हुई  मानसिकता का परिचायक है।

इन चुनावों में एक मजेदार बात ओर हो रही हे कि वामपंथी दल इस बार भाजपा रोको अभियान के तहत चुनाव लड़ रहे हैं तथा भाजपा पर हमलावर होकर अपनी भाषाई मर्यादा को ताक पर रख रहे हैं। वामपंथी नेत्री सुभाशिनी अली जिनकी अब कोई्र राजनैतिक हैसियत चुनावी राजनीति में नहीं बची है वह पीएम मोदी को पाकेटमार कहकर संबोधित कर रही है तथा 2019 के लोकसभा चुनावों में एक व्यापक महागठबंधन बनाने का सपना देख रही हैं।

इन चुनावों में सबसे बड़ा विवाद कब्रिस्तान और श्मशन को लेकर हो गया है। अपनी फतेहपुर की जनसभा में पीएम मोदी ने कहा था कि यूपी में जाति व धर्म के नाम पर सुविधाएं दी जा रही हैं।  उन्होनें एक जनसभा में कहाकि रमजान में बिजली मिले तो हांेली व दीपावलि पर भी बिजली दो। यही बात उन्होनें कब्रिस्तान व श्मशान पर भी कह दी। कब्रिस्तान व श्मशान भेदभाव करने के जब पीएम मोदी ने गंभीर आरोप लगाये तो सबसे अधिक गर्म बसपा सुप्रीमो मायावती हो गयीं। उन्होनंे पीएम व भाजपा के खिलाफ काफी  तीखे तेवर अपना लिये और मुस्लिम तुष्टीकरण की सभी पराकाष्ठाओं को पार कर गयीं। उन्होनें कहना शुरू कर दिया कि पीएम मोदी बतायें कि उनके शासित राज्यो में कितने श्मशान घाट बनवा दिये। मायावती ने भाजपा पर सांप्रदायिक आधार पर मतो का ध्रुवीकरण करने का भी आरोप लगा दिया जबकि वास्तकिता यह है कि सबसे अधिक मुस्लिम तुष्टीकरण और भय की राजनीति तो बसपा सुप्रीमो मायावती ही कर रही है। उनका पूरा चुनाव प्रचार केवल और केवल पीएम मोदी के विरोध व उनके खिलाफ अनर्गल बयानबाजी पर ही कंेद्रित है। भाषाई मर्यादा से वह कोंसो दूर चली गयी हैं।

पीएम मोदी  ने जो विचार व्यक्त किये वह पूरी तरह से समानता लाने पर आधारित थे। उनका कहना था कि सरकार की ओर जो सुविधाएं दी जायंे वह समानता पर आधारित हो तथा समाज के सभी वर्गो के लोगोें को बराबर लाभ मिले। लेकिन विरोधियों ने इसका भी मजाक उड़ाकर रख दिया। सबसे विकृत विचार तो सपा प्रवक्ता राजेंद्र चैधरी व्यक्त कर रहे हैं। उन्होनें पीएम मोदी  अमित शाह को आतंकवादी कहा, गुजराती जादूगर कहा। इसके बदले में जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कसाब की परिभाषा समझायी तो एक बार फिर बसपा सुप्रीमो मायावती भड़क गयी और उन्होंने सारी मर्यादाओं को तोड़ते हुए कहाकि सबसे बड़ा कसाब तो अमित शाह हैं।

वहीं नेताओं के वार -पलटवार के बीच  चुनाव आयोग के सामन केवल चेतावनी देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। एक प्रकार से चुनाव अब विकास, फ्री का सामान, देने के बाद एक बढकर एक गालियों तक पहुंच गया है और इसी बीच सभी दल तीन सौं सीटों का दावा रक रहे हैं। देखिये क्या लिखा है 11 मार्च के इतिहास में।

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