आर्यसमाज के गौरव, वैदिक धर्मानुरागी एवं ऋषिभक्त स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती

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स्वामी प्रणवानन्द जी को 75वें जन्मदिवस पर बधाई
-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी (जन्म दिवस 7-7-1947) आर्यजगत् के विख्यात संन्यासी है। आपने अपना पूरा जीवन वैदिक धर्म और आर्यसमाज की सेवा में लगाया है। आप ने आर्ष पाठविधि से गुरुकुल झज्जर तथा गुरुकुल कांगड़ी, हरिद्वार में अध्ययन किया है। स्वामी ओमानन्द सरस्वती तथा डा. रामनाथ वेदालंकार जी आपके आचार्य रहे हैं। डा. महावीर जी, डा. रघुवीर वेदालंकार, डा. सोमदेव शास्त्री, डा. ज्वलन्तकुमार शास्त्री आदि आपके पुराने सहपाठी एवं सहयोगी विद्वान है। आचार्य वेदप्रकाश श्रोत्रिय जी आर्यजगत के अन्यतम विद्वानों में से एक हैं। आप भी स्वामी जी के निकटम मित्रों व सहयेागियों में से हंैं। स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी वैदिक विषयों के मर्मज्ञ विद्वान है। विगत अनेक वर्षों से आप गुरुकुल गौतम नगर, दिल्ली का संचालन कर रहे हैं। इस गुरुकुल की उन्नति एवं संचालन के साथ आपने समय-समय पर भारत के अनेक भागों में अनेक गुरुकुलों की स्थापनायें की हैं। वर्तमान में आपके द्वारा देहरादून के ग्राम पौन्धा में ‘‘श्री मद्दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकल” का संचालन भी किया जा रहा है। इस गुरुकुल की स्थापना स्वामी प्रणवानन्द जी ने जून, 2000 में की थी। विगत 20 वर्षों की अवधि में इस गुरुकुल ने अनेक कीर्तिमान स्थापित किये हैं। यंुवा आर्य विद्वन डा. आचार्य धनंजय आर्य जी गुरुकुल-पौंधा के यशस्वी आचार्य हैं। आचार्यों के रूप में उन्हें आचार्य डा. यज्ञवीर जी, आचार्य शिवकुमार वेदि तथा आचार्य शिवदेव आर्य आदि का सहयोग प्राप्त है। स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती और इन सभी आचार्यों के अध्यापन में यह गुरुकुल निरन्तर प्रगति पथ पर अग्रसर है।

गुरुकुल पौंधा के अतिरिक्त मंझावली-हरयाणा, वेल्लिपेषी-केरल, उड़ीसा, अलीगढ-उत्तर प्रदेश तथा मुजफ्फरनगर-उत्तर प्रदेश में भी गुरुकुल स्थापित किये गये हैं। यह सभी गुरुकुल गतिशील एवं प्रगति पथ पर अग्रसर हैं। उड़ीसा के बरगड़ स्थान पर स्वामी जी द्वारा स्थापित एक कन्या गुरुकुल एवं एक बालकों का गुरुकुल संचालित किया जाता है। इतने गुरुकुलों का संचालन आज के समय में आश्चर्यजनक है। आर्यसमाज की संस्थाओं में अर्थाभाव देखा जाता है। हम अनेक पुरानी संस्थाओं को जानते हैं जहां की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। उन्हें उतना दान प्राप्त नहीं होता जिससे वह संस्थायें सुगमतापूर्वक चल सकें। इसके लिये उन्हें सम्पत्ति को किराये पर भी देना पड़ता है। ऐसे समय में नये गुरुकुलों को स्थापित व संचालित करना, वहां आचार्यों की नियुक्ति और उनका विधि-विधान पूर्वक संचालन करने के लिये स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी निश्चय ही आर्यजगत की ओर से बधाई के पात्र हैं। सभी आर्यजनों को स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी की यथासम्भव आर्थिक सहायता करनी चाहिये जिससे ऋषि मिशन फले-फूले और आर्यसमाज की उन्नति में सर्वाधिक सहायक एवं महत्वपूर्ण हमारे सभी गुरुकुल बिना किसी बाधा के चलते रहे। यह गुरुकुल ही हमारी समाजों को पुरोहितों, विद्वान वक्ता, भनोपदेशक एवं ऋषिभक्त अधिकारी प्रदान करने के मुख्य स्रोत हैं। 

स्वामी प्रणवानन्द जी सरल स्वभाव के संन्यासी है। आपने अपने जीवन में अनेक आर्यसमाजी वृद्ध विद्वानों की सेवा की है। स्वामी जी को जीवन में कई बार गम्भीर रोग हुए परन्तु उपचार के बाद वह स्वस्थ हो गये। एक बार हमने उनसे पूछा था तो उन्होंने बताया था कि उन्होंने जीवन में आर्यसमाज के अनेक वृद्ध लोगांे की सेवा की है। इस सेवा व आशीर्वाद के कारण ही उन्हें लगता था कि वह बड़ी बड़ी व्याधियों पर भी विजय पा लेते हैं। हम विगत बीस वर्षों में अनेक अवसरों पर गुरुकुल गौतमनगर-दिल्ली, मंझावली एवं गोमत-अलीगढ़ के गुरुकुलों में भी गये हैं। स्वामी जी के साथ हम एक बार एटा के गुरुकुल भी गये थे। इन सब स्थानों में जाकर हमने स्वामी जी के अपने प्रति सद्व्यवहार को अनुभव किया है। उनके सद्व्यवहार एवं ऋषि मिशन के महनीय कार्यों को होते देखकर हमारे मन में उनके प्रति गहरे सम्मान की भावना उत्पन्न होती है। गुरुकल गौतम के उत्सव में हम जब जब गये हैं, वहां हमारा निवास अत्यन्त सुखद रहा है। स्वामी जी ही एक ऐसे विद्वान संन्यासी हैं जिनके पास हम निःसकोंच भाव से चले जाते हैं और वहां जाना हमें सुखदायक लगता है। ईश्वर से हमारी प्रार्थना है कि स्वामी जी सदा स्वस्थ रहें और दीर्घायु हों। वह आर्यसमाज में जो कार्य रहे हैं वह अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक है। वह जारी रहने चाहियें। हम स्वामी जी के द्वारा संचालित सभी गुरुकुलों की उन्नति की कामना भी करते हैं। 

स्वामी जी देश की आर्यसमाजों एवं आर्य संस्थाओं के आयोजनों में पधारने के साथ विदेशों की आर्य संस्थाओं के आयोजनो में भी जाते रहते हैं। स्वामीजी का देश-विदेश के सभी प्रमुख ऋषिभक्तों से परिचय एवं आत्मीय संबंध हैं। उनके सद्व्यवहार एवं कार्यों के कारण ही उन्हें गुरुकुलों के संचालन में सबसे सहयोग प्राप्त होता है। स्वामी जी को गुरुकुल गौतमनगर का संचालन करते हुए लम्बी अवधि हो चुकी है। आप युवावस्था में ही इसके आचार्य बने थे और इसे जर्जरित अवनत अवस्था से वर्तमान उन्नत अवस्था में पहुंचाया है। आर्यसमाज का सौभाग्य है कि उसके पास एक समर्पित ऋषिभक्त संन्यासी स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती हंै जो रात-दिन आर्यसमाज की उन्नति के लिये भाग-दौड़ करते रहते हैं। हमें इस बात का भी सन्तोष है कि दिल्ली का गुरुकुल स्वामी जी के द्वारा उत्तमता से चलाया जा रहा है। इस गुरुकुल से आर्यजगत् को अनेक योग्य स्नातक मिले हैं जो अनेक संस्थाओं व स्थानों ंपर अपनी सेवायें दे रहे हैं। कुछ स्नातक विदेशों में भी निवास कर रहे हैं और उनके द्वारा वहां आर्यसमाज का प्रचार व संगठन की उन्नति के कार्य किये जा रहे हैं। 

आज ऋषिभक्त, वैदिकधर्म के अनुरागी एवं वैदिक धर्म के प्रचार व प्रसार में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने वाले स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी का 75वां जन्म दिवस है। स्वामी जी ने आज अपने जीवन के प्रशंसनीय एवं यशस्वी 74 वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। कोरोना के कारण वर्तमान में कोई वृहद आयोजन व समारोह नहीं किया जा सकता। यदि कोरोना न होता तो हम आज गुरुकुल गौतमनगर दिल्ली में जन्म दिवस व अमृत महोत्सव का एक भव्य आयोजन होने का अनुमान करते हैं जिसमें हम आर्यजगत के बड़ी संख्या में विद्वान व ऋषिभक्त सम्मिलित होते। आज के पावन अवसर पर हम स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी को उनके 75वें जन्म दिवस पर अपनी हार्दिक शुभकामनायें देते हैं। स्वामी प्रणवानन्द जी स्वस्थ, दीर्घायु एवं यशस्वी हों, यह हमारी सर्वशक्तिमान एवं सब सद्कामनाओं को सिद्ध करने वाले ईश्वर से प्रार्थना है।

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