—विनय कुमार विनायक
सुभाष कटक के बेटे उड़िसा की शान,
भारत के बलिदानी सपूत तुम महान!
तुम गए बर्लिन, जर्मनी और जापान,
देश की आजादी के लिए दे दी जान!
हिन्दी राष्ट्रभाषा हो ये तुम्हारे पैगाम,
पर क्षेत्रीय भाषियों ने किए गुमनाम!
तुम अति प्रतिभाशाली जननायक थे,
गुलाम देश के सरकार-ए-हिन्दुस्तान!
तुमसे चले मुद्रा-डाक-तार-रेडियो सेवा,
दर्जनों देशों के दर्जा से गोरे परेशान!
तेरे नेतृत्व से घबराए नहीं सिर्फ गोरे
यूरोपीय, बल्कि काले देशी हुक्मरान!
छद्म सम्मान दिया नेताजी कहकर,
और साजिश करके कर दिए बेनाम!
तूने दिल्ली चलो कहके गोरे भगाए,
आज कोलकाता चाहे अंग्रेजी पहचान!
तो क्यों ना बिहारी अस्मिता के नाम,
फिर पटना राजधानी बने देशी शान!
जब अंग-बंग-कलिंग सहित मगध में,
विलीन था बर्मा-पाक-अफगानिस्तान!
जब विद्यापति थे तो मगही,मैथिली,
अंगिका,उड़िया,बांगला भाषाएं समान!
गोरों की गुलामी के पहले कोलकाता,
अलग नहीं थी कोई संस्कृति स्थान!
आज छद्म भाषाई, जातीय, संस्कृति,
अस्मिता के हमलों से देश है हैरान!
आजादी में जिनका नहीं था योगदान,
जो अंग्रेजी गुणगान से पाते सम्मान!
वही आजादी के दीवानों को बांध रहे,
प्रांत भाषा जातीय अस्मिता के नाम!
सुभाष सिर्फ नायक नहीं जन-मन के
पराक्रमी अधिनायक गुलाम वतन के!
सुभाष कटक के बेटे उड़िसा की शान,
बंगाल नहीं संपूर्ण देश के स्वाभिमान!