राज्यसभा की प्रासंगिकता पर सवाल क्यों?

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ललित गर्ग-
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा उम्मीदवारों को लेकर विवाद होना और सवाल उठना स्वाभाविक है। इस मसले ने एक बार फिर राज्यसभा की उपयोगिता एवं प्रासंगिकता पर भी सवाल खड़े कर दिये हैं। भारत में लोकतांत्रिक प्रणाली के तहत जिस तरह की शर्मनाक घटनाएं घट रही हैं, इसमें आम आदमी पार्टी के द्वारा राज्यसभा सदस्य बनाने की स्थितियों ने एक दाग और जड़ दिया है। इस तरह की शर्मनाक स्थितियों की वजह से लोगों की आस्था संसदीय लोकतंत्र के प्रति कमजोर होना स्वाभाविक है। लोकतंत्र के मूल्यों के साथ हो रहे खिलवाड़ की वजह से भविष्य का चित्र संशय से भरपूर नजर आता है। मूल्यहीनता की चरम सीमा पर पहुंचकर राजनीतिक पार्टियां अलग-अलग विचारधारा एवं नाम का वर्गीकरण रखते हुए भी राष्ट्रीय हित की उपेक्षा करने के मामले में एक जैसी हैं। व्यक्तिगत एवं दलगत हितों को सर्वोपरि मानते हुए ये पार्टियां सर्वसाधारण जनता एवं राष्ट्र के हितों के साथ उपेक्षापूर्ण बर्ताव कर रही हैं। आम आदमी पार्टी ने सिद्धांतों एवं आदर्शों की दुहाई देने वाली पार्टियां के रूप में अपने आपको प्रस्तुत किया लेकिन वह न केवल राज्यसभा के सदस्य बनाये जाने के मामले में बल्कि अन्य व्यावहारिकता के धरातल पर स्वार्थपूर्ति की राजनीति में उलझी हुई नजर आई हैं। किसी भी कीमत पर वैध-अवैध तरीके अपनाकर सत्ता की प्राप्ति ही उसका एवं उसके राजनेताओं का लक्ष्य बन चुका है।
आप पार्टी में कुछ समय से उम्मीदवारी के लिए जो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में थे, उन सबको किनारे कर जिन लोगों के नाम सामने आये, उन्होंने न केवल आप की प्रतिष्ठा पर सवाल खडे़ किये बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों को भी धुंधलाया है। कोई पार्टी राज्यसभा या किसी सदन के लिए किसे अपना प्रत्याशी बनाती है, यह उसका आंतरिक मामला हो सकता है। आमतौर पर सभी दल यही दलील पेश करते रहे हैं। लेकिन आप की ओर से जो दो नए नाम सामने आए हैं, उनके चुनाव पर न केवल दूसरे दलों को पार्टी पर अंगुली उठाने का मौका मिला है, बल्कि शुरुआती दिनों से पार्टी के साथ रहे और अब किसी न किसी वजह से बाहर हो गए कई लोगों ने भी आश्चर्य व्यक्त किया है। माना जा रहा था कि पार्टी नेता आशुतोष के अलावा, मतभेद की तमाम खबरों के बावजूद, कुमार विश्वास को राज्यसभा के लिए उम्मीदवार बनाया जा सकता है। लेकिन तमाम संभावनाओं को दरकिनार कर संजय सिंह के अलावा सुशील गुप्ता और नारायण दास गुप्ता को चुना जाना अनेक सवालों को खड़ा कर रहा है। सुनने में आ रहा है कि आप के जिन तीन नामों को चुना गया है उससे पहले आप की ओर से रघुरामन राजन, शरद यादव और कैलाश सत्यार्थी के अलावा मीडिया और न्यायपालिका जैसे अलग-अलग क्षेत्रों से कई बड़ी हस्तियों  से राज्यसभा जाने के लिए संपर्क किया गया, लेकिन उनमें से कोई तैयार नहीं हुआ। अगर इसमें सच्चाई है तो आम आदमी पार्टी को आत्ममंथन करना चाहिए कि आखिर किन वजहों से लोगों का भरोसा उस पर से डिग रहा है? क्यों आप के प्रस्ताव को इन लोगों ने ठुकरा दिया? क्या आप की विश्वसनीयता इतनी कमजोर हो गयी है?
गलत साधन से शुद्ध साध्य की प्राप्ति कैसे संभव है? लोकतंत्र में सामान्यजन का प्रतिनिधित्व होना अनिवार्य होता है। परन्तु भारत में बाहुबल एवं धनबल के सहारे ऐसे लोग संसद, राज्यसभा या विधानसभा में पहुंच जाते हैं, जिन्हें जनता का वास्तविक समर्थन प्राप्त नहीं है। धन बल के जरिए राज्यसभा पहुंचने की प्रवृत्ति ने भारतीय लोकतंत्र की मौलिक भावनाओं को एक हद तक विकृत बना दिया है। इससे एक बात स्पष्ट है कि भारी पैमाने पर रुपये खर्च करने वाले उम्मीदवार इसी आशा के साथ राज्यसभा पहुंचते हैं कि वे अवैध तरीके से ज्यादा-से-ज्यादा कमाई कर सकें या अपने हितों को पूरा कर सके। नैतिक मूल्यों का उनके लिए कोई महत्व नहीं रह जाता है। लोकतांत्रिक प्रणाली के साथ हो रहे इस तरह के मजाक पर प्रबुद्ध वर्ग चिंता व्यक्त करता रहा है। कुछ लोग प्रणाली में संशोधन करने का सुझाव देते रहे हैं। उनका मानना रहा है कि भारतीय लोकतंत्र में राज्यसभा का कोई औचित्य नहीं है।
भारत में जब अंग्रेजी हुकूमत थी तो उस समय अंग्रेजों ने ही लोकसभा और राज्यसभा को कायम किया था। आज के परिवेश में हमारा देश आजाद है लेकिन सारे अंग्रेजी हुकूमत के तौर-तरीके आज भी पालन हो रहे हंै जो कहीं से भी ठीक नहीं है। देश की जनता जब सीधे चुनाव के द्वारा लोकसभा के सदस्यों को चुनती है और लोकसभा के सदस्य इस देश के कानून बनाने में सक्षम हैं तो राज्यसभा का क्या औचित्य है? राज्यसभा में वही लोग चुनकर आते हैं जो ज्यादातर जनता द्वारा नकारे हुए होते हैं। वे लोग राज्यसभा में चुने जाते हैं, जो भारी मात्रा में रुपये खर्च कर वहां पहुंचते हैं। राज्यसभा का एक ही काम रह गया है और वह यह है कि लोकसभा द्वारा पारित किए गए कानूनों को रोककर उनमें देरी करना, बेवजह अराजक स्थिति पैदा करना। जब लोकसभा में भारत की जनता 540 सदस्य चुनकर भेजती है तो फिर जनता की गाढ़ी कमाई पर राज्यसभा के इन 280 सदस्यों की क्या जरूरत है? देश को सही दिशा में ले जाने के लिए राज्यसभा की जरूरत पर सार्थक बहस होनी ही चाहिए।

राज्यसभा की सदस्यता के लिए हर तरह के हथकंडे का प्रयोग किया जा रहे हंै। देश की सेवा का दंभ भरने वाले कई राजनेताओं के लिये अब देशसेवा या मानवसेवा का मार्ग नहीं रह गया है, अपने प्रतिभा से राष्ट्र को मजबूती देने की स्थितियां भी अब नदारद है। अब भारत में राजनीति ने एक गलत पेशे का रूप धारण कर लिया है। राष्ट्र का प्रबुद्ध वर्ग राजनीति के ऐसे पतन से उद्विग्न हो उठा है। यदि राजनीति की लगाम इसी तरह गलत लोगों के हाथों रहेगी तो समाज और राष्ट्र का भविष्य खतरे में फंस सकता है।
आज देश में अनेक कानून मात्र राज्यसभा के कारण नहीं बन रहे हंै जिससे दिन प्रतिदिन विधि व्यवस्था में गिरावट आ रही है। राज्यसभा विकास की बजाय अवरोध का जरिया बनती जा रही है। तलाक का कानून लोकसभा में पारित होने के बावजूद राज्यसभा में अटक गया है। गलत राजनीति ही हमारे देश को पीछे ले जा रही है जिसे सुधार करना बहुत ही अनिवार्य है। सभी अपनी-अपनी राजनीतिक रोटी सेकने में मशगूल हैं। कोई राजनीतिक दल राज्यसभा की अप्रासंगिकता के विषय पर गंभीर नहीं दिखते। इस विषय को देश की जनता को ही कदम उठाने होगे और अपनी आवाज उठाकर सरकार को बताना पड़ेगा तभी बिना मकसद वाली राज्यसभा इस देश में समाप्त हो सकतंी है अन्यथा नहीं।
राज्यसभा को समाप्त करने का प्रश्न इसलिये भी उठता रहता है कि आम आदमी पार्टी ही नहीं अनेक पार्टियां मोटी रकम के बदले लोगों को राज्यसभा भेजती है। लेकिन आम आदमी पार्टी ने भी अगर देश की राजनीति में घर कर रही एक घातक प्रवृत्ति से बचने की कोशिश नहीं की तो उस पर सवाल ज्यादा तीखे खड़ेे हुए हैं। आखिर आप के गठन के समय या उससे पहले से ही इसके नेता अरविंद केजरीवाल का सबसे बड़ा दावा क्या रहा है? भारतीय राजनीति में पसरे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के साथ ही उन्होंने लोगों के बीच एक नई राजनीति की शुरुआत के लिए भी उम्मीद जगाई थी। इसके उलट, आज अगर वे पैसे लेकर टिकट बांटने के अलावा अपनी पार्टी के ही कई नेताओं पर लगने वाले भ्रष्टाचार के आरोपों की विश्वसनीय काट नहीं कर पा रहे हैं तो इसकी क्या वजह हो सकती है? क्या कारण है इस पार्टी के सार्वजनिक जीवन में पाखंड, झूठ, छल, भ्रष्टाचार, अनैतिकता जैसे दुर्गुणों का बोलबाला बढ़ गया है। सत्तामोह में फंसकर वह भूल गई हैं कि वे दोषपूर्ण साधन का सहारा लेकर शुद्ध साध्य तक नहीं पहुंचा जा सकता हैं। जब अनैतिकता का सहारा लिया जाता है, लालच का सहारा लिया जाता है, तब लोकतंत्र की मर्यादा को ठेस पहुंचती है। यह एक कड़वी सच्चाई है कि मर्यादाहीन आचरण करने वाले राजनेता अपनी राजनीतिक ताकत जुटाने के लिए किसी भी तरीके का इस्तेमाल करने से नहीं हिचकते। ऐसा लगता है कि वक्त गुजरने के साथ-साथ आप और उसके नेताओं को अपनी साख की कोई फिक्र नहीं रह गई है। और यह पार्टी भारतीय राजनीति की उन्हीं बीमारियों से दिनोंदिन और भी ग्रसित होती जा रही है जिन्हें दूर करने का उसने दावा किया था। आखिर किन वजहों से लोगों का भरोसा उस पर से डिग रहा है। आवश्यक है लोकतांत्रिक प्रणाली के साथ खिलवाड़ बंद किया जाए ताकि उसकी गरिमा की रक्षा सुनिश्चित हो सके। राज्यसभा क्यों, प्रश्न पर भी मंथन जरूरी है।

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