नया नहीं है राहुल का ‘खाट’ प्रेम

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rahul-gandhi3संजय सक्सेना

कांगे्रस महासचिव राहुल गांधी का खाट (खटिया-चारपाई) से मोह काफी पुराना है। भले ही आज राहुल की खाट पंचायत की चैतरफा चर्चा हो रही हो, लेकिन वह खाट पंचायत की तर्ज पर पहले भी खाट चैपाल लगा चुके हैं। खाट पर बैठकर दलितों के यहां भोजन का स्वाद लेते अखबारों में प्रकाशित राहुल की तस्वीरों को जनता को आज भी याद हैं। चुनावी मौसम में कई बार उनका गांवों मंे रात्रि विश्राम भी हो चुका है। तब भी उनकी नींद खाट पर ही पूरी होती थी। कोई भी चुनाव आता है तो उससे पांच-छहः महीने पूर्व राहुल का जनता को लुभाने के लिये इस तरह का उपक्रम शुरू हो जाता है। चाहें 2009 के लोकसभा चुनाव हों या फिर 2012 के विधान सभा से पहले का समय अथवा 2014 के लोकसभा चुनाव से पूर्व की बात, चुनवी मौसम में अक्सर गाॅव, किसान, दलित,मजदूरों का दुख-दर्द राहुल को बेचैन कर देता है,मगर चुनाव जाते ही उनकी बातें और वायदे ठंडे बस्ते में चले जाते हैं। ऐसे लगता है कि राहुल गांधी ‘ रात गई, बात गई’ के मुहावरे की तर्ज पर ‘चुनाव गये, राहुल गये ’ की परम्परा आगे बढ़ाने में लगे है।
बरसाती मेंढक की तरह चुनावी मौसम में राहुल गांधी की गांव-देहात में जाकर ‘टर्र -टर्र ’ करने की आदत पुरानी हैं। देवरिया से दिल्ली तक की यात्रा के दौरान राहुल गांधी करीब ढाई सौ विधान सभाओं में खाट पंचायत लगायेंगे। 2014 के लोकसभा चुनाव में सबसे कम सीटें जीतने का श्रेय विरोधी भले ही कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को दे रहे हों,लेकिन राहुल इससे विचलित नहीं हुए हैं। वह एक बार फिर 2017 के लिये कमर कमर कसने लगे हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की छिन चुकी सियासी जमीन को वापस पाने और यूपी की अखिलेश सरकार को उखाड़ फेंकने की कसरत के तहत राहुल ने अपनी सबसे लंबी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर प्रहार के साथ की तो राजनैतिक पंडितों का माथा चकरा गया कि आखिर राहुल लड़ किससे रहे हैं। यूपी में तो बीजेपी सत्ता में है ही नहीं, यहां समाजवादी सरकार है,परंतु राहुल ने सपा के खिलाफ एक भी शब्द नहीं कहा। बसपा के प्रति भी वह खामोश रहे। अभी यात्रा लम्बी है हो सकता है कि आगे के कार्यक्रमों में उनके रूख में बदलाव देखने को मिले,लेकिन राहुल को करीब से जानने वाले तो यही कहते हैं कि राहुल को पीएम मोदी पर हमला करने में ज्यादा ही मजा मिलता है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के चुनावी अभियान का औपचारिक आगाज करते हुए राहुल गांधी ने किसानों के सामने स्लोगन के रूप में झुनझुना बजाते हुए कहा कि अगर यूपी में कांगे्रस की सरकार बनती है तो किसानों का,‘ कर्ज माफी,बिजली का बिल हाफ ’ हो जायेगा। अंदाज लगाया जा सकता है कि कि कांग्रेस यूपी चुनाव में किसानों की समस्याओं को सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने जा रही है। 2017 का विधान सभा चुनाव फतह करने के लिये राहुल ने खाट सभाओं और रोड शो के जरिए यूपी की जनता के साथ अपने रिश्तों का तार जोड़ने की कोशिशें शुरू की है। अपने पहले भाषण में राहुल ने कहा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी किसानों से किया वादा भूल गए हैं। केन्द्र सरकार एमएसपी के दाम मुनासिब नहीं बढ़ा रही है जिसकी वजह से किसानों को लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा। किसानों की फसल कम दर पर बिकने के बाद बाजार में उसकी पांच गुनी से ज्यादा कीमत के लिए दाल का उदाहरण देते हुए राहुल ने कहा कि बिचैलिए बीच की रकम खा रहे हैं। मगर उनके पास शायद इस बात का कोई जबाव नहीं होगा कि बिचैलिये तो कांगे्रस की ही देन हैं। आज नहीं दशकों से बिचैलिये मलाई मार रहे हैं, जब कांगे्रस की सत्ता थी तब उसने इन पर कभी लगाम नहीं लगाई तो अब वह किस मंुह से इसके लिये मोदी का कसूरवार ठहरा सकते हैं।
बहरहाल,यूपी के पिछले दो विधानसभा और पिछले लोकसभा चुनावों में पूरी कोशिश के बाद भी राहुल कांग्रेस को चैथे नंबर की पार्टी से आगे नहीं बढ़ा सके हैं।अबकी वह अपने नये रणनीतिकारों के सहारे ऐसा कर पायेंगे,यह देखने वाली बात होगी। कांग्रेस की सिकुडती जमीन को बचाने के लिए राहुल इस बार उत्तर प्रदेश का चुनाव आर पार की लडाई जैसा लड़ रहे है। इसलिए देवरिया से दिल्ली तक की 2500 किलोमीटर की इस यात्रा में राहुल 39 जिलों के 55 लोकसभा क्षेत्रों और 233 विधानसभा सीटों से होकर गुजरेंगे। शुरूआत पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के रुद्रपुर में किसानों के साथ पहले खाट सम्मेलन से राहुल ने तीन हफ्ते की अपनी किसान यात्रा का आगाज कर दिया है। राहुल ने किसानों के हालात का ठीकरा सरकार पर फोड़ते हुए कहा कि अकेले यूपी के किसानों पर 59 हजार करोड रुपए का कर्ज है। उन्होंने कहा कि केन्द्र ने 1 लाख 14 हजार करोड रुपए के बैंकों के एनपीए माफ कर दिए हैं जिन्हें बडे पंजीपूतियों ने कर्ज के रुप में लिया था और नहीं चुकाया। राहुल ने कहा कि किसानों की कर्ज माफी के साथ बिजली का बिल भी वह आधा कराने की कोशिश करेंगे। मतलब, क्रांगे्रस 70 वर्षो के बाद भी किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिये प्लान बनाने की बजाये उन्हें कर्ज माफी के सहारे लुभाने की कोशिश कर रही है, जबकि पीएम मोदी किसानों की आय दो गुनी करने के लिये योजनाएं बना रहे हैं।
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने देवरिया के रुद्रपुर से यात्रा निकालकर पूर्वी उप्र को साधने की भले पहल की है लेकिन यहां उनकी राह आसान नहीं है। यूपी में कांगे्रस के पिछले 27 वर्षो से सत्ता से बाहर ही नहीं रहने बल्कि यूपी की सियासत में हासिये पर चले जाने के कारणं पूर्वाचल में कांग्रेस की जमीन खिसक चुकी है। उसके कद्दावर नेताओं ने अन्य दलों का दामन थाम लिया है। 2012 में कांगे्रस के टिकट से चुनाव जीतने वाले तमाम विधायकों ने पाला बदल कर लिया है।ंयूपी के पूर्वांचल के जिले कुशीनगर के खड्डा विधायक विजय दुबे, बस्ती के रुधौली विधायक संजय जायसवाल और बहराइच की नानपारा विधायक माधुरी वर्मा ने अपने सुरक्षित सियासी भविष्य के लिये भाजपा की तरफ हाथ बढ़ाया तो भाजपा ने इन नेताओं को पार्टी में शामिल करा दिया। कभी पूर्वांचल में कांग्रेस के पास दिग्गत नेताओं की लम्बी-चौड़ी फौज हुआ करती थी, लेकिन उनके स्वर्ग सिधारते और कांगे्रस पार्टी में उचित महत्व नहीं मिलने के बाद इन दिग्गज नेताओं के परिवार के सदस्यों ने पाला बदल लिया। पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय और पूर्व मंत्री राज मंगल पाण्डेय अब इस दुनिया में नहीं रहे तो उनके परिवार के लोग भगवा रंग में रंग गयें हैं। वीरबहादुर सिंह के पुत्र पूर्व मंत्री फतेहबहादुर सिंह, कल्पनाथ राय की पुत्रवधू सीता राय और राजमंगल पाण्डेय के पुत्र सांसद राजेश पाण्डेय की गिनती भाजपा के प्रमुख नेताओं में होती है। डुमरियागंज के सांसद जगदंबिका पाल ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पूर्व ही भाजपा का दामन थाम लिया था। दलित नेता महावीर प्रसाद के निधन के बाद इस पूरे अंचल में कोई दूसरा दलित नेता उभरा है। कांगे्रस फिल्म अभिनेता से नेता बने राजब्बर, यूपी के चुनाव प्रभारी बनाये गये गुलाम नबी आजाद और यूपी में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिये आगे की गई बुजुर्ग नेत्री शीला दीक्षित के सहारे यूपी की जंग जीतना चाहती है,लेकिन इन तीनों ही नेताओं ने यूपी में कोई संघर्ष नहीं किया है। इस आधार पर इनकी गणना बाहरी नेताओं के रूप में हो रही है। उधर, यूपी के दिग्गत नेताओं में शुमार पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, सलमान खुर्शीद, आरपीएन सिंह,संजय सिंह जैसे दिग्गज नेताओं को कोई महत्व नहीं दिया जा रहा है। यह बात भी अखरने वाली है। कुल मिलाकर राहुल गांधी को बस अपने रणनीतिकार पीके पर ही भरोसा नजर आ रहा है और उनके ही कहे अनुसार वह चल भी रहे हैं।

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मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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