हरीश चन्द्र बर्णवाल
दो दिन पहले एक फिल्म देखी – “चलो जीते हैं” प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जीवन पर आधारित ये फिल्म एक अनोखी, प्रेरणादायी और पॉजिटिविटी का संचार करने वाली फिल्म है। बच्चों के जीवन में सहज रूप से कई सवाल होते हैं। इतने सवाल कि मां-बाप सवालों से परेशान तक हो उठते हैं। चांद-तारों पर ही इतने सवाल होते हैं कि जवाब देते नहीं बनता। बहुत कम ऐसे होते हैं जो ये सवाल पूछ बैठें कि – आप किसके लिए जीते हैं? जाहिर है ऐसे सवाल पूछने वाला शख्स ही नरेन्द्र मोदी बनता है।
गौर करने वाली बात ये है कि बचपन में पूछे जाने वाले सवालों की लिस्ट निकाल लें तो आप किसी इंसान का पूरा का पूरा व्यक्तित्व समझ जाएंगे। कहा भी जाता है होनहार बिरवान के होत चिकने पात यानि जो पौधा आगे चलकर बड़ा वृक्ष होनेवाला होता है, छोटा होने पर भी उसके पत्तों में कुछ-न-कुछ चिकनाई होती है। अब जरा सवालों के हिसाब से देखिए तो बचपन कई प्रकार के हो सकते हैं। एक प्रकार के बच्चे वो होंगे जो हमारी आपकी तरह चांद-तारों के सवाल अपने माता-पिता से करते होंगे। दूसरे प्रकार के वो बच्चे होंगे, जो नरेन्द्र मोदी की तरह बचपन से ही ऐसे विशिष्ट प्रकार के और भव्य सवाल भी करते होंगे। तीसरे प्रकार के बच्चे वो होंगे, जो शीशे के घरों में पैदा हुए होंगे। जाहिर तौर पर इसमें राहुल गांधी और उनकी युवा टीम में राजपरिवार से शामिल लोग आएंगे। अब ऐसे लोग बचपन में कैसे सवाल करते होंगे। आज के शहरी परिवेश को ध्यान में रखकर देंखे तो मुझे लगता है कि इन्होंने अपने मम्मी-पापा या फिर पालने-पोसने वाले नौकर-चाकर से कुछ इस प्रकार के सवाल पूछते होंगे – दूध फैक्ट्री में क्यों बनाया जाता है, पेड़ में क्यों नहीं उगता? रामू काका ने जब नल ऑन ही नहीं किया तो बगीचे में ऊपर से पानी कौन बरसाने लगा? आदि, आदि।
आप पूछेंगे कि मैं “चलो जीते हैं” फिल्म की बात करते-करते राहुल गांधी के जीवन पर क्यों आ गया? दरअसल इसके पीछे एक रहस्य है, जिसका पोस्टमॉर्टम करना जरूरी है। राहुल गांधी आजकल ऐसी हरकतें कर रहे हैं, जो असामान्य तो नहीं हैं, लेकिन उनकी उम्र में फिट नहीं बैठतीं। इस देश में बहुत सामान्य है कि कॉलेज जाने वाले कुछ टपोरी किस्म के लड़के-लड़कियां एक-दूसरे को छेड़ते नजर आ जाते हैं। ये भी बहुत सामान्य है कि बच्चे अपने सामने आने वाले हर शख्स से ऊटपटांग सवाल करें। लेकिन एक उम्र बीतने के बाद जब चीजें समझ में आने लगती हैं तो खुद-ब-खुद झेंप महसूस होती है, लेकिन गौर से देखिए राहुल गांधी के जीवन में सब उल्टा चल रहा है। जो बचपन में करना चाहिए वो 40 साल की उम्र में कर रहे थे, जो कॉलेज जाते समय करना चाहिए, वो 50 साल की उम्र में कर रहे हैं। सीधे-सीधे संसद में दिए उनके कुछ बयान लीजिए, उनकी हरकतें देखिए और उनके चरित्र का आकलन कीजिए –
1. मैं बोलूंगा तो भूकंप आ जाएगा।
2. प्रधानमंत्री मेरी आंख में आंख डालकर नहीं देख सकते।
3.प्रधानमंत्री के सामने जाकर उन्हें उठने के लिए जिस प्रकार बोल रहे हैं, मानो कुश्ती के रिंग में अपने सामने वाले पहलवान को ललकार रहे हैं।
4.जबरन प्रधानमंत्री के गले पड़ जाना और
5.बैठने के बाद अपने साथियों को आंख मारना।
जाहिर है राहुल गांधी की इन हरकतों से एक बात फिर सिद्ध होती है कि वे बॉलीवुड की किसी पुरानी फिल्म के हीरो की तरह खुद को प्रोजेक्ट कर रहे हैं, जो नया-नया कॉलेज जाता है और फिर उसकी इच्छा होती है कि वो अपने 4-5 बलिष्ठ मित्रों के जरिए कॉलेज के सैकड़ों विद्यार्थियों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर ले। लेकिन ऐसा न कर पाने की स्थिति में ऊटपटांग हरकत करने लगता है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, इसे भी समझने की जरूरत है।
राहुल गांधी का जन्म 1970 में हुआ और इसके बाद का उनके जीवन का घटनाक्रम देखें। ये वो पल था जब उनकी दादी हर तरफ अपना वर्चस्व स्थापित करने में जुटी थीं। 1971 के चुनावों में जहां उन्होंने वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर पार्टी पर पूरी तरह से आधिपत्य स्थापित कर लिया, वहीं बांग्लादेश की जंग के बाद उनके वफादारों ने पूरे देश में यह मैसेज फैलाने की कोशिश की कि इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा यानि भारत मतलब इंदिरा गांधी ही है। राहुल गांधी का बचपन ऐसे गुजरा मानो पूरा देश उनकी बपौती हो।
इसके बाद जब 1984 में दादी की हत्या हुई तो कांग्रेसी वफादारों ने एक पायलट को देश का प्रधानमंत्री बना दिया। उस समय राहुल गांधी किशोरावस्था से गुजर रहे थे। जाहिर तौर पर देश की संसद हो या राष्ट्रपति भवन या फिर प्रधानमंत्री का दफ्तर – हर तरफ उनके लिए प्लेग्राउंड जैसा ही माहौल था। यही वजह है कि प्रचंड बहुमत मिलने के बाद भी जिस संसद में घुसने पर नरेन्द्र मोदी शीश झुकाते हैं, वहां राहुल गांधी आंख मारकर छिछोरापन दिखाते हैं।
फिर जब राजीव गांधी की हत्या 1991 में हुई तो इन्हीं वफादारों ने बिना पूछे सोनिया गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया। मुझे लगता है ये एक ऐसा पल रहा होगा जब राहुल गांधी ने जीवन को गंभीरता से समझा होगा। लेकिन 1998 में जिस प्रकार सोनिया के सदस्यता ग्रहण करने के महज 62 दिनों के भीतर उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया, उसके बाद राहुल गांधी को यही एहसास हुआ होगा कि उनका परिवार भारत का राजपरिवार है, जो जब चाहे कुछ भी कर सकता है। सच भी यही है कि जब तक सोनिया गांधी की इच्छा नहीं हुई, कांग्रेस अध्यक्ष के पद को नहीं छोड़ा। 132 वर्षों के कांग्रेस के इतिहास में सोनिया गांधी लगातार सबसे ज्यादा वर्षों तक कांग्रेस अध्यक्ष रहने का रिकॉर्ड बना चुकी हैं। ये पद सोने की थाली में सजाकर अब राहुल गांधी को दे दिया गया है।
जाहिर है राहुल गांधी के जीवन में कभी ऐसा वक्त नहीं आया, जब उन्होंने अपने जीवन को तपाया हो, कभी ऐसा वक्त नहीं आया होगा, जब उन्होंने कोई कष्ट महसूस किया होगा, कभी ऐसा वक्त नहीं आया होगा जब कोई चीज खरीदने की इच्छा हुई होगी और उसके लिए कभी परिवार के किसी सदस्य ने पढ़ने की या कोई काम करने की शर्त रखी होगी। जाहिर है 48 वर्ष की उम्र तक भी कभी राहुल गांधी ने जीवन की कोई परीक्षा नहीं दी। लेकिन आज जब उनके सामने लोकतंत्र की ताकत बनकर दूसरे नेता खड़े हैं तो राहुल गांधी के लिए बर्दाश्त करना संभव नहीं हो पा रहा है। शायद यही वजह है कि वे ऊटपटांग हरकत कर रहे हैं और उनका जीवन रिवर्स गियर में दौड़ रहा है।