मेरे मानस के राम : अध्याय 59

रामचंद्र जी का अभिषेक

रामचंद्र जी के अभिषेक से पूर्व उनकी एक शोभा यात्रा निकाली गई । जिससे नगर निवासी भी यह देख लें कि उनके राजा श्री राम स्वदेश लौट आए है। शंखघोष करते हुए यह शोभा यात्रा आगे बढ़ती जा रही थी। इस समय हनुमान जी, विभीषण जी, जामवंत जी और अनेक अतिथि गण भी सम्मानपूर्वक साथ-साथ चल रहे थे। शोभायात्रा को देखकर और अपने राजा को अपने बीच पाकर नगर निवासी जयकार कर रहे थे। लोगों ने अपने-अपने घरों पर पताकाएं लगाई थीं। नगर में होते हुए और उसकी शोभा को निहारते हुए श्रीराम अपने पिता के राजमहल में पहुंचे। इसी राजमहल में माता कौशल्या सुमित्रा और कैकई उपस्थित थीं। जिन्हें रामचंद्र जी ने प्रणाम किया।

तैयारी शुरू हो गई , करने को अभिषेक।
कर्मठ वृद्ध वशिष्ठ जी , थे गणमान्यों में एक।।

वशिष्ठ और कश्यप वहां , सुयज्ञ – गौतम साथ।
अभिषेक हेतु आ गए , ऋषिवर मिलकर आठ।।

रामचंद्र का हो गया , प्रतीक्षित अभिषेक।
राम राजा बन गए , हर्षित था सब देश।।

आनंद ही आनंद था , आनंद का था योग ।
देख लोक आनंद में , तंत्र के मिट गए रोग।।

आनंद सब को ही मिले – राम राज्य का मूल।
लोक में आनंद हो , यह लोकतंत्र का मूल।।

वसुधा कहते लोक को, कुटुंब को कहते तंत्र।
वसुधा कुटुंब के भाव से , बनता है जन तंत्र।।

राम राज्य को जानिए , लोकतंत्र का मूल।
रामायण में खोजिए , लोकतंत्र के मूल्य।।

आश्वस्त किया श्री राम ने , चलूं वेद अनुकूल।
सबका मंगल मैं करूं , चलूं शास्त्र अनुकूल।।

अभिषेक के समय दान

एक लाख गौएं करी, घोड़े दिए एक लाख।
सांड एक सौ दे दिए, किया राम ने दान।।

तीस करोड़ अशर्फियां, बेशकीमती वस्त्र।
दान ब्राह्मणों को दिया, जैसा कहता शास्त्र।।

हनुमान सुग्रीव जी , अंगद सम मेहमान।
रामचंद्र ने कर दिया , यथाविधि सम्मान।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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