यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि लगभग पांच शतकों के अथक संघर्षों व लाखों हुतात्माओं के बलिदानों के पश्चात हिन्दू समाज अपने आराध्य प्रभू श्री राम की जन्मभूमि आयोध्या में पुन: एक विशाल मन्दिर के नव निर्माण अभियान में सफल हो रहा है।इस ऐतिहासिक भव्य मन्दिर का शिलान्यास पांच अगस्त को हमारे प्रखर राष्ट्रवादी प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी जी के कर-कमलों द्वारा होना निश्चित हुआ है।
इस एतिहासिक भव्य कार्यक्रम में कुछ भारतीय मुसलमान भी सहयोगी होना चाह रहे हैं। इसके लिये राष्ट्रवादियों का मुख्य संगठन “राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ” से सम्बंधित “मुस्लिम राष्ट्रीय मंच” सक्रिय है। इसी सन्दर्भ में कुछ रामभक्त मुसलमान मन्दिर के शिलान्यास के समय नींव में मिट्टी डालने के लिये अन्य स्थानों से मिट्टी लेकर अयोध्या पहुंच रहे है जबकि कुछ मुस्लिम महिलाए “रामलला” के लिये रक्षा सूत्र भेज रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि ये इस्लाम धर्म के अनुयायी अपने आपको प्रबल रामभक्त के रूप में प्रस्तुत कर रहे हो। परन्तु चिंतन करना होगा कि क्या इनके ह्रदयों में उमडता हुआ यह भक्ति भाव कहीं मिथ्या प्रदर्शन तो नहीं?
क्या ऐसा करने वाले मुसलमानों को दंड स्वरुप मुस्लिम समाज से निष्काषित नहीं होना पड़ेगा या उन्हें घात लगाकर जहन्नुम नहीं पहुंचाया जायेगा? क्योंकि इस्लामिक मान्यताओं और शिक्षाओं के अनुसार अल्लाह व पैगंबर मोहम्मद के अतिरिक्त मुसलमानों के लिये अन्य कोई पूजनीय नहीं होता। यह भी सोचा जा सकता है कि क्या यह जिहाद का नया संस्करण “भक्ति जिहाद” तो नहीं? जिसमें हिन्दुओं को भ्रमित करके उनके धार्मिक अनुष्ठानों व आस्थाओं में घुसपैठ करके उसको भ्रष्ट किया जा सके। क्योंकि कभी भी धार्मिक अनुष्ठानों में कोई भी विधर्मी किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं होता। जबकि “राम जन्मभूमि मन्दिर” तो राष्ट्रीय अस्मिता व हिन्दुओं के स्वाभिमान का प्रतीक है। ऐसे में जिहादी आक्रांताओं को अपना महापुरुष मानने वालों को भूमि पूजन में सहभागी बनाना बहुसंख्यक हिन्दू समाज का उत्पीड़न व सत्तालोलुपता के कारण मुस्लिम समाज का सशक्तिकरण राष्ट्रवादी नेताओं की कैसी कुटनीतिज्ञता है?
इस्लाम सदा विश्वासघात करके हिन्दुओं व अन्य गैर मुस्लिमों को नष्ट करने का एक राजनैतिक षड्यंत्र है।परन्तु हमारे नेता साम्प्रदायिक सद्भावना की मृगमरीचिका से बाहर ही नहीं निकलते और सत्ता का सुख भोगने में धर्मनिरपेक्षता विशेषतौर पर हिन्दूत्व को ही क्षति पहुंचा रहे है। हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि जिहादियों के भयावह अत्याचारों के दुष्परिणाम स्वरुप हमारे हजारों मन्दिरों का विन्धव्स हिन्दू समाज के प्रति उनकी घोर वैमनस्यता व घृणित मानसिकता का परिचायक है। इस्लाम की मान्यताओं के अनुसार जो उनके अल्लाह व उनके पैगंबर में विश्वास नहीं करता वह अविश्वासी है,काफिर है। अत: उनकी आस्थाओं, मान्यताओं व रीति रिवाजों को नष्ट करना इस्लामिक शिक्षाओं का मुख्य ध्येय है। अल्लाह पर ईमान न लाने वालों को बेईमान मान कर उनके ऊपर अपना मजहब थौपना या उनको नष्ट करके जन्नत पाने की अंधी अभिलाषा कट्टरपंथी मुसलमानों को अत्याचारी व आतंकवादी बनाती आ रही हैं। इसीलिये शतकों से भारत सहित विश्व की अनेक संस्कृतियों और सभ्यताओं को मिटाने के लिये बलात् धर्मांतरण किया जाता आ रहा है।
यह इतिहासिक तथ्य है कि मुगल काल में भयानक अत्याचारों से पीड़ित करोड़ों हिन्दुओं को इस्लाम स्वीकार करने को विवश होना पड़ा था। अत: इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि आज भारतीय उपमहाद्वीप में लगभग 98 प्रतिशत मुसलमान भारतीय मूल के धर्मांतरित सनातनी हिन्दू ही हैं।
यह भी सत्य है कि जिहाद मुसलमानों का संकल्प है और इसके लिये वे कितने ही प्रकार के ढोंग और षडयंत्र रचने में सक्षम है।जबकि हमारा नेतृत्व हमारे भोले-भाले, सरल व उदार स्वभाव होने के कारण हमको अहिंसा का पाठ पढ़ा-पढ़ा कर हमारी तेजस्विता व ओजस्विता को भुला कर समझौतावादी बनाता आ रहा है। लेकिन जब इस्लाम अन्य सभ्यताओं और संस्कृतियों से घृणा व वैमनस्य का भाव हटा ही नहीं सकता तो धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद का विचार पराजित हो जाता हैं। फिर भी हमारे नेता इतिहास से कोई शिक्षा लेना ही नहीं चाहते? शत्रु को मित्र समझने की भयन्कर भूलों से इतिहास भरा हुआ है जो निरंतर हमारे अस्तित्व को ललकारता है।
हमारे देश के महानुभावों को ऐसे विशिष्ट धार्मिक अनुष्ठान में विधर्मियों का साथ लेने का कोई अधिकार नहीं हैं।बहुसंख्यक हिन्दुओं की आस्था का अनादर करने वाले ऐसे नेताओं को साम्प्रदायिक सौहार्द की मृगमरीचिका से मुक्त होना होगा। राम भक्तों से स्वस्थ व निष्पक्ष राजनीति की आशा में हिन्दू समाज समर्पित है परन्तु “रबर को इतना नहीं खीचना चाहिये की वह टूट ही जाए”।
इसलिए यह आवश्यक है कि ऐसे नेताओं को उन मुसलमानों को जो इस्लामिक अत्याचारों की निंदा करते हो और हिन्दुओं के मान बिन्दुओं के लिये सहयोगी होने का दावा करते हो तो को अपने मूल धर्म में घर वापसी करवा कर उनका मनोबल बढाने में सहयोग करना होगा। क्योंकि केवल अपने को हिन्दू हितैषी दिखा कर अंदर – अंदर शान्ति पुर्ण जिहाद के लिये भ्रमित करने वाली गंगा-जमूनी संस्कृति की आड़ में कट्टरपंथी मुसलमानों को राष्ट्रवादी व धर्मनिरपेक्ष नहीं बनाया जा सकता हैं।
ऐसी स्थिति में विशेष ध्यान देना चाहिये कि मौलाना महबूब अली से पण्डित महेंद्रपाल आर्य बन कर घर वापसी करने वाले वास्तविक रूप से मानवता के लिये संघर्ष कर रहे हैं। इस्लामिक शिक्षाओं के विद्वान होते हुए भी मौलवी महबूब अली ने मानवीय रक्षा के लिये वेदों और अन्य हिन्दू ग्रंथों को पढकर व उनको आत्मसात करने के बाद ही इस्लाम को त्यागा था। आज भी वे दशकों से समाज को इस्लाम के अत्याचारों से बचाने का अभूतपूर्व सार्थक प्रयास कर रहे हैं।
अत: श्री राम जन्म भूमि मन्दिर निर्माण के लिये मिट्टी लाने व रामलला को रक्षा सूत्र भेजने वाले मुसलमानों को यह अवश्य विचार करना चाहिये कि वे सब अपने मूल सनातन वैदिक धर्म में घर वापसी करके अपने जीवन को सार्थक करें अन्यथा इस्लामिक अत्याचारों से वे सुरक्षित कैसे हो पायेंगे?
विनोद कुमार सर्वोदय