सुवर्णा सुषमेश्वरी
राजस्थान की राजधानी जयपुर में 27 फरवरी शुक्रवार को रानी पद्मावती पर फिल्म बना रहे बॉलीवुड निर्देशक संजय लीला भंसाली की टीम पर करणी सेना के लोगों ने धावा बोल दिया और संजय लीला भंसाली को भी करणी सेना के कार्यकर्ताओं में से एक ने थप्पड़ मार दिया । करणी सेना के लोगों का आरोप है कि भंसाली अपनी फिल्म में रानी पद्ममिनी (पद्मावती) के जीवन से जुड़े तथ्यों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि रानी पद्मावती के पतिव्रत धर्म और अपनी सम्मान के लिए सती हो जाने की कथा को गौरव के साथ याद किया जाता है और पद्मिनी के जीवन को आज भी राजस्थान में पढ़ाया जाता है, और उन्हें देश का गौरव बताया जाता है । देश -विदेश से आने वाले पर्यटकों को पद्मावती की कथा के साक्षी रहे चित्तौड़गढ़ के किले में वह स्थान दिखाए, बताए और समझाए जाते हैं जहां पर सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मावती को देखा था। ऐसी महान रानी पद्मावती की पवित्र गाथा पर भंसाली की चारित्रिक हनन की खिलवाड़ को राजस्थान के लोगों ने कतई स्वीकार नहीं किया और उन्हें ठोंक दिया । इस घटना के बाद में देश में एक बार पुनः ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़- मरोड़कर फिल्मकारों के द्वारा प्रस्तुत कर भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के प्रयास पर बहस चल पड़ी है । लोगों का कहना है कि संजय लीला भंसाली ऐसे फिल्मकार हैं, जिन्होने लुप्त हो गए इतिहास को स्क्रीन पर उतारा हैं जिनकी वज़ह से भारत के वे पन्ने फिर ताजा हो जाते हैं जिन्हें लोग भूल चुके हैं, परन्तु उन्हें इतिहास को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत कर लोगों की मानसिकता को चोट पहुँचने का कोई अधिकार नहीं ।किसी भी देश के इतिहास को तोडना मरोड़ना उसके गौरव के साथ खिलवाड़ हैं । अभिव्यक्ति के नाम पर किसी को भी किसी दुसरे व्यक्ति की अवधारणाओ को तोडना मरोड़ना आस्था व विश्वास को ठेस पहुंचाना ,मजाक उडाना ये भी तो ठीक नहीं ।संजय लीला भंसाली के समर्थक कहते हैं, भंसाली के साथ जो भी हुआ वो दुर्भाग्य पूर्ण है इसलिए कि अभी फिल्म बन कर ही कहाँ तैयार हुई हैं ?फिल्म बनाने के बाद वो अभी सेंसर बोर्ड में जायेगी वहां खुद ही फैसला हो जाता की सही क्या गलत क्या ? इस वाद-विवाद के मध्य इस ऐतिहासिक परम सुन्दरी रानी पद्मिनी, जिसे पद्मावती भी कहा जाता है, के संदर्भ में ऐतिहासिक तथ्यों को जान लेना भी समीचीन जान पड़ता है । और इस पर विचार करना भी भी आवश्यक है कि अपनी स्वाभिमान की रक्षा हेतु प्राण न्योछावर करने वाली पतिव्रता महिलाओं को चंद पैसों के लिए उनकी इज्जत नीलाम कर हमारे स्वर्णिम इतिहास को कलंकित करने की हिमाकत करने को आत्माभिव्यक्ति का अधिकार कह उचित ठहराया जा सकता है क्या?
हमारे मध्यकालीन इतिहास में अनेक भ्रांतियां व्याप्त हैं , इसका कारण है कि इस काल की अधिकांश बातें उस काल के राजे-महाराजे व बादशाहों के अपने इतिहास लिखने वालों के द्वारा ही लिखी गई प्राप्य हैं। फिर भी इतिहास में पद्मिनी के सम्बन्ध में यत्र-तत्र अनेक विवरण प्राप्त होते हैं ।मल्लिक मुहम्मद जायसी ने अपने पद्मावत नामक ग्रन्थ में रानी पद्मिनी के बारे में लिखा है-
तन चितउर, मन राजा कीन्हा ।
हिय सिंघल, बुधि पदमिनि चीन्हा ॥
गुरू सुआ जेइ पंथ देखावा ।
बिनु गुरु जगत को निरगुन पावा ॥
नागमती यह दुनिया-धंधा ।
बाँचा सोइ न एहि चित बंधा ॥
राघव दूत सोई सैतानू ।
माया अलाउदीन सुलतानू ॥
प्रेम-कथा एहि भाँति बिचारहु ।
बूझि लेहु जौ बूझै पारहु ॥
इस कविता के अनुसार रानी पद्मिनी या पद्मावती चितौड़ के राजा राणा रतन सिंह की पत्नी थी और समकालीन सिंहली अर्थात श्रीलंका का एक द्वीप के राजा की बेटी थी। रानी पद्मिनी को उनके अपार दिव्य सौन्दर्य के लिए जाना जाता था और आज भी उनके सुन्दरता के विषय में अनेक कथाएं इतिहास में उल्लेख है। रानी पद्मिनी जौहर अर्थात आत्मदाह करने के कारण भी प्रसिद्ध है। सन 1303 में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया था उस समय पद्मावती ने जौहर कर लिया । रानी पद्मावती की कथा के साथ गोरा और बादल जैसे सेनानायक सरदारों की वीरता की कहानियां भी जुडी हुई हैं । रानी पद्मिनी चित्तौड़गढ़ के राजा रतन सिंह की पत्नी थीं ।और दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी उनकी सुंदरता पर मोहित था । ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि बारहवीं -तेरहवीं सदी में दिल्ली पर सल्तनत का राज था । विस्तारवादी नीति के तहत सुल्तान ने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए मेवाड़ पर कई आक्रमण किए । इन आक्रमणों में से एक आक्रमण अलाउदीन खिलजी ने सुंदर रानी पद्मिनी उर्फ़ पद्मावती को पाने के लिए किया था । अलाउदीन के स्वयं के इतिहासकारों ने यह कहानी अपनी पुस्तकों में लिखी है ।
कथा के अनुसार सिंहल के राजा गंधर्वसेन के यहाँ एक सुंदर कन्या का जन्म हुआ था उसका नाम पद्मिनी रखा गया और उसकी माता का नाम चंपावती था। पद्मिनी को पद्मावती भी कहा जाता है। रानी पद्मिनी बचपन से ही बहुत सुंदर थी और बेटी के बड़ी होने पर उसके पिता ने रिवाज के अनुसार उसका स्वयंवर आयोजित किया और इस स्वयंवर में उसने सभी हिन्दू राजाओं को आमंत्रित किया ।चितौड़गढ़ के राजा रावल रतन सिंह पूर्व से ही अपनी एक पत्नी नागमती होने के बावजूद स्वयंवर में भाग लिए थे । और राजा मलखान सिंह को हराकर स्वयम्बर जित रानी पद्मिनी से विवाह किया कर पद्मिनी के साथ वापस चितौड़ लौट गए । चित्तौड़ के राजपूत राजा रावल रतन सिंह (रतन सिंह) एक अच्छे शासक और पति होने के अलावा कला के संरक्षक और कलाप्रेमी थे उनके यहाँ चारण भाटो,गायकों संगीतकारों का अच्छा ख़ासा जमावड़ा था ।उनके दरबार में कई प्रतिभाशाली लोग थे जिनमें से राघव चेतन संगीतकार भी एक था, जो अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराने के लिए कुछ भी कर गुजरता था । राघव चेतन एक जादूगर भी हैं, यह लोगों को पता नहीं था । वह अपनी प्रतिभा का उपयोग दुश्मन को मार हराने में,गिराने में करता था । कहा जाता है कि एक दिन राघव चेतन का बुरी आत्माओं को बुलाने का काम चल रहा था और वह रंगे हाथों पकड़ा गया ।इस बात का पता चलते ही रावल रतन सिंह ने उसे गधे पर बैठा कर सारा राज्य घुमाने और फिर अपने राज्य से बाहर निकाल देने का आदेश दिया । रतन सिंह की इस सजा के कारण राघव चेतन उसका दुश्मन बन गया। अपने अपमान का बदला लेने के लिए राघव चेतन दिल्ली चला गया। और इसके लिए वह अपने बड़े भाई को मारकर गद्दी पर बैठने वाले अलाउद्दीन खिजली के पास जाने की सोची। वहां, राघव चेतन एक जंगल में रुक गया जहां पर सुल्तान शिकार के लिये जाया करते थे ।एक दिन जब उसको पता चला कि सुल्तान शिकार के लिए जंगल में आ रहे हैं तो राघव चेतन ने अपनी कला, यानी बांसुरी बजानी प्रारम्भ कर दी । बांसुरी में माहिर राघव चेतन की कला को पहचानते हुए खिलजी ने अपने सैनिकों से उसे अपने पास लाने को कहा । उसके आने पर सुल्तान ने राघव चेतन की प्रशंसा करते हुए उसे अपने दरबार में आने को कहा । राघव चेतन को अपने मकसद में कामयाबी का रास्ता मिल गया और उसने एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश शुरू कर दी । अपनी कला के जरिए खिलजी के दरबार में पहुंचा तो दूसरे रतन सिंह से बदले के लिए खिलजी को उकसाने लगा । बदले की आग में जल रहे इस संगीतकार ने दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिजली के सामने सिंहल दीप की इस रानी के सौन्दर्य की ऐसी प्रशंसा की ऐसी पुल बाँधी कि जिसे सुन कर अलाउद्दीन खिजली के मन में रानी पद्मिनी से मिलने की इच्छा जाग पड़ी और चित्तौड़ जाने के लिए लालायित हो गया ।राजपूतों के बारे में खिलजी पहले से ही जानता था और इसलिए उसने अपनी सेना को चित्तौड़ कूच करने को कहा । खिलजी का सपना रानी पद्मिनी को अपने हरम में रखना था ।तारीफ सुनने के बाद बेचैन सुल्तान खिलजी रानी पद्मिनी की एक झलक पाने को बेताब था । चित्तौड़गढ़ किले की घेरेबंदी के बाद खिलजी ने राजा रतन सिंह को ये कहकर संदेशा भेजा कि वह रानी पद्मिनी को अपनी बहन समान मानता है और उससे मिलने का निवेदन किया ।रानी पद्मिनी को पाने की चाह में उतावला सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी राजा रावल रतन सिंह के राज्य में मेहमान के तौर पर गया । वहां उसने राजा रतन सिंह से दिव्य सुंदरी रानी पद्मिनी को देखने का निवेदन किया पर रानी ने इसको पूरी तरीके से नकार दिया क्योंकि धर्मानुसार अपने पति को छोड़ कर किसी भी अन्य पुरुष को मुंह दिखाना नियम के विरुद्ध था। काफी कोशिश के बाद रानी एक शर्त के साथ मान तो गयी पर उनकी शर्त थी की उनके चेहरे को सुल्तान आईने से पानी में पड़ रही प्रतिविम्ब में देखेंगे ना की सीधे और वो भी 100 दासियों और राजा रावल रतन सिंह के सामने। खिलजी ने भी अपनी सहमती दे दी ।शर्त के अनुसार उनकी चेहरे को सुल्तान सीधे नहीं देखेंगे इसलिए महल में लगे आईने से पानी में पड़ने वाली प्रतिविम्ब राजा रावल रतन सिंह और सौ दासियों की समक्ष दिखलाने की व्यवस्था की गई।अलाउद्दीन खिजली उस दिन किले में अपने कुछ महत्वपूर्ण ताकतवर सैनिकों के गया । उसने जब रानी के चेहरे को आईने से प्रतिविम्बित हो पानी में पड़ने वाली परछाई में देखा तो मदहोश हो गया ,अब दिल्ली के सुलातन के दिल में बस रानी को पाने की चाह थी । उसी दिन अपने कुछ सैनिको की सहायता से छल से उसने राजा रावल रतन सिंह का अपरहण कर लिया और बदले में रानी पद्मावती की मांग की ।इधर किले में चौहान राजपूत सेनापति गोरा और बादल ने सुल्तान को हराने के लिए एक योजना बनाई और खिलजी को संदेशा भेजा कि अगली सुबह पद्मिनी को सुल्तान को सौंप दिया जाएगा । योजना के अनुसार अगले दिन सुबह भोर होते ही डेढ़ पालकियां किले से खिलजी के शिविर की तरफ रवाना की गईं । पालकियां वहां रुक गई जहां पर रतन सिंह को बंदी बनाकर रखा गया था । अचानक इन पालकियों से सशस्त्र सैनिक निकले और अल्लाउद्दीन खिलजी से युद्ध कर रतन सिंह को छुड़ा लिया और खिलजी के अस्तबल से घोड़े लेकर भाग निकले। बताया जाता है कि गोरा इस मुठभेड़ में बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ जबकि बादल, रतन सिंह को छुड़ाकर सुरक्षित किले में तक ले गए ।
अपने को अपमानित और धोखे में महसूस करते हुए सुल्तान ने गुस्से में आकर अपनी सेना को चित्तौड़गढ़ किले पर आक्रमण करने का आदेश दिया । किला मजबूत था और सुल्तान की सेना किले के बाहर ही डट गई । खिलजी ने किले की घेराबंदी कर दी और किले में खाद्य आपूर्ति धीरे-धीरे समाप्त हो गई । युद्ध के लम्बा खींचने से मजबूरी में रतन सिंह ने द्वार खोलने का आदेश दिया और युद्ध के लिए ललकारा । रतन सिंह की सेना अपेक्षानुसार खिलजी के लड़ाकों के सामने ढेर हो गई और खुद रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हुए । यह सूचना पाकर रानी पद्मिनी (पद्मावती) ने चित्तौड़ की औरतों से कहा कि अब हमारे पास दो ही विकल्प हैं, या तो हम जौहर कर लें या फिर विजयी सेना के समक्ष अपना निरादर सहें ।
इस पर सभी महिलाओं ने एक राय बना एक विशाल चिता जलाई गई और 26 अगस्त 1303 को रानी पद्मिनी ने अपने आपको जौहर की अग्नि में सौंप दिया उसके बाद चित्तौड़ की सारी औरतें उसमें कूद गईं और इस प्रकार दुश्मन बाहर खड़े देखते रह गए । जिन महिलाओं ने जौहर किया उनकी याद आज भी लोककथाओं व लोक गीतों में जीवित है जिसमें उनके कार्य का क्रमशः गौरव का बखान व गान किया जाता है ।
एक वीरांगना के इस अतुल्य बलिदान पर संजय लीला भंसाली द्वारा बनाये जा रहे फिल्म का थीम है अलाउद्दीन और रानी पद्मावती का प्रेम । भंसाली को शायद रानी पद्मावती की कहानी और पतिव्रता स्त्री की शक्ति तथा देश में उनकी महता व स्थिति के बारे में शायद पता नहीं इसीलिए खिलजी की वासना और दुश्चरित्रता को एक प्रेम कहानी दिखा रहे हैं । बहरहाल इस विवाद के मध्य यह प्रश्न उत्पन्न होना स्वाभाविक हो जाता है कि इतिहास के ऐसे संवेदनशील विषय पर कला के नाम पर विवाद पैदा कर हिंदू मुस्लिमों में अराजकता फैलाने शांति भंग करने का दोषी मानकर क्यूँ नहीं इन्हें सजा दी जाए ताकि कोई ताकि भविष्य में कोई धन लोलुप अपनी इज्जत के लिए सती हो जाने वाली रानी पद्मिनी जैसी पवित्रतम चरित्र को कलंकित करने जैसी कार्य करने की जुर्रत न कर सकें ?
आपने किस्सागोई का अच्छा उदहारण पेश किया है,पर इसका आधार क्या है?क्या मल्लिक मोहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य को प्रामाणिक इतिहास माना जा सकता है?आपने जो पंक्तियाँ उद्धरित की हैं,वे भी अतिशयोक्ति पूर्ण हैं. पद्मावत मैंने नहीं पढ़ा है,पर उसके संक्षिप्त गद्य रूपांतर को पढ़ने के बाद उसको एक कल्पना के अतिरिक्त मैं कुछः नहीं कह सकता.प्राचीन मान्य स्त्री वर्णन में, पद्मिनी एक खास श्रेणी के स्त्रियों के लिए प्रयुक्त शब्द है और यह पद्मावत में भी दर्शित है,अतः,पद्मिनी से पद्मावति नाम अधिक सार्थक लगता है,क्योंकि पद्मावत की कहानी के अनुसार सिंहल के राजा द्वारा सोलह हजार पद्मिनी स्त्रियां रतन सेन या रतन सिंह के सहचरों के लिए भी प्रदान की गयी थीं.फिर भी मैं नहीं समझता कि भंसाली कुछ ऐसा दिखा रहे थे,जो मर्यादा के विरुद्ध था.इसपर मैं कुछ ज्यादा नहीं लिख सकता,क्योंकि इस विषय पर मैं मैं पहले हीं बहुत कुछ लिख चूका हूँ.